दरवाजे तक पहुंचा जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अब सिर्फ बात करने से नहीं बनेगी बात

दरवाजे तक पहुंचा जलवायु परिवर्तन का प्रभाव,फोटो क्रेडिट:-IWP Flicker
दरवाजे तक पहुंचा जलवायु परिवर्तन का प्रभाव,फोटो क्रेडिट:-IWP Flicker

कुछ माह पहले तक जोशीमठ के धंसते जाने की खबर देशव्यापी चर्चा का विषय थी, अब न्यूयॉर्क के निरंतर धंसते जाने की खबर विश्वव्यापी चर्चा का विषय है। एक रिपोर्ट में बताया गया है कि न्यूयॉर्क शहर धीरे-धीरे डूब रहा है और इसकी गगनचुंबी इमारतें इसे नीचे ला रही हैं। न्यूयॉर्क की ऊंची और लंबी इमारतें आसपास के पानी स्त्रोतों के पास वसती जा रही हैं। इस प्रक्रिया को अवतलन कहा जाता है। न्यूयॉर्क में स्थित 10 लाख से अधिक इमारतों का वजन लगभग 1.7 ट्रिलियन पाउंड है। यह शोध रोड आइलैंड विश्वविद्यालय में अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और भूवैज्ञानिकों द्वारा किया गया है। शोधकर्ताओं ने पाया कि शहर प्रति वर्ष 1-2 मिलीमीटर की दर से धंस रहा है। लोअर मैनहट्टन जैसे कुछ क्षेत्र तो इससे भी बहुत तेजी से लगभग 4 मिलीमीटर प्रतिवर्ष धंस रहे हैं। वैज्ञानिक  सैटेलाइट से लिए गए तस्वीरों की तुलनात्मक अध्ययन के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं। यह अध्ययन 'अर्थ फ्यूचर' जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

Global Warming
फोटो क्रेडिट : लोक सम्मान

न्यूयॉर्क कोई ऐसा-वैसा सामान्य शहर नहीं, बल्कि वर्तमान वैश्विक व्यवस्था की राजधानी है। इस समय विश्व व्यापार में जिस अमेरिकी डॉलर का सिक्का चलता है, न्यूयॉर्क शहर उसका घर है। ऐसे में न्यूयॉर्क के प्राकृतिक कोप का शिकार होने की आशंका में गहरा संदेश छिपा है। वह संदेश यह है कि प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन और उन्हें क्षति पहुंचा कर हासिल किए गए विकास की परिणति हमें प्रकृति के कोप के रूप में झेलनी पड़ सकती है। यदि प्रकृति हमसे रुष्ट हुई तो वैज्ञानिक / आर्थिक विकास के सहारे अर्जित संसाधन हमारा अस्तित्व बचाने के लिए अपर्याप्त साबित होंगे न्यूयॉर्क का ही उदाहरण लें तो इस तटीय स्थान पर गगनचुंबी इमारतें बनाने से पहले यह विचार किया जाना चाहिए था कि क्या धरती इनका बोझ झेलने में सक्षम है या नहीं। जबकि यह शहर हर साल बाढ़ के ख़तरे की चुनौतियों का सामना करता रहा है। शोधकर्ताओं की टीम ने न्यूयॉर्क शहर में 10 लाख से अधिक इमारतों के संचयी द्रव्यमान की गणना की, जो कि 1.68 ट्रिलियन पाउंड के बराबर थी। इतने बड़े वजन की वजह से न्यूयॉर्क शहर धंसते जा रहा है। बढ़ता वैश्विक तापमान, शहरीकरण और भूजल की अंधाधुंध निकासी भी न्यूयॉर्क के इसका प्रमुख कारण है।

न्यूयॉर्क के अस्तित्व को लेकर मंडरा रहा खतरा ऐसे समय में उजागर हुआ है जबकि  दुनियाभर में ग्लोबल वार्मिंग को लेकर चिंता जताई जा रही है। अलग-अलग समय पर जलवायु परिवर्तन और इसका असर कम करने को लेकर सम्मेलन भी होते रहते हैं। दुनियाभर के संगठन इसको लेकर समय-समय पर रिपोर्ट्स भी जारी करके लोगों को जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसानों को लेकर सचेत भी करते रहते हैं। जिनेवा स्थित विश्व मौसम विज्ञान संगठन डब्ल्यूएमओ ने कुछ माह पहले ऐसी ही एक रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र का जलस्तर दोगुना रफ्तार से बढ़ रहा है। इससे पूरी दुनिया में भयंकर बर्बादी हो सकती है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि विश्वस्तर पर बीते आठ साल अब तक के सबसे ज्यादा गर्म वर्ष रहे हैं। इस दौरान जलवायु में हुए बदलावों के कारण पूरी दुनिया में भयंकर बाढ़, लू और सूखा के कारण अरबों डॉलर का नुकसान हुआ है। डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 के दौरान औसत तापमान में 1.15 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की गई है। साल 2022 लगातार छठा साल रहा है, जब पृथ्वी के तापमान में बढ़ोतरी हुई है 2023 में भी यह ट्रेंड बदलेगा, इसका संभावना नहीं दिखती।

रिपोर्ट में कहा गया है कि लगातार तीसरे साल ' ला नीना' का मौसम पर असर पड़ने के बाद भी धरती के तापमान में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। बता दें कि ला नीना की वजह से तापमान में कमी दर्ज की जाती है. जलवायु परिवर्तन के कारण पूरी दुनिया के महासागरों में गर्मी और एसिड्स का स्तर रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है। इसके अलावा अंटार्कटिक की समुद्री बर्फ और यूरोपीय आल्प्स ग्लेशियर का स्तर काफी घट गया है। पूर्वी अफ्रीका में साल 2022 के दौरान सूखा पड़ा। इसके उलट पाकिस्तान में रिकॉर्ड बारिश चीन और यूरोप में भयंकर गर्मी के साथ लू चली. इससे लाखों लोगों के जीवन पर बुरा असर पड़ा।

जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में आई अनिश्चितता के चलते दुनियाभर में खाद्य सुरक्षा घटी है। इसके कारण बड़े पैमाने पर लोग विस्थापित हुए हैं। इससे अरबों डॉलर  का नुकसान हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक, अफ्रीका के सूखे ने सोमालिया और इथोपिया में 17  लाख से ज्यादा लोगों को पलायन के लिए मजबूर कर दिया। वहीं, पाकिस्तान में बाढ़ की वजह से एक तिहाई देश पानी में डूब गया और बड़ी तादाद में लोगों को विस्थापित होना पड़ा। डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट के मुताबिक, अंटार्कटिका में समुद्री बर्फ जून व जुलाई 2022 में रिकॉर्ड कम हुई और महासागरों में बहुत गर्मी रही। इसके अलावा महानगरों में 58 प्रतिशत हीटवेव महसूस हुई। ग्लेशियरों की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है। इस दौरान दुनिया के प्रमुख ग्लेशियर एक साल के भीतर 51 इंच सिकुड़ गए। साल 2013 से लेकर 2022 के बीच दुनियाभर के ग्लेशियरों के पिघलने से हर साल समुद्र के जलस्तर में 4.62 मिमी की औसत वृद्धि दर्ज की गई है। यह साल 1993 से लेकर   2002 के बीच की रफ्तार से करीब दोगुना है।

विश्व मौसम विज्ञान संगठन की रिपोर्ट में यह आशंका जताई गई है कि वर्तमान सदी के अंत तक महासागरों का जलस्तर आधा मीटर से एक मीटर तक बढ़ सकता है। इस दौरान बर्फ और ग्लेशियर्स के तेजी से पिघलने के कारण पानी भी अधिक मात्रा में निकलेगा। इससे पानी गर्म भी होता है जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि दुनिया 2023 या 2024 में नए औसत तापमान के रिकॉर्ड को तोड़ सकती है। ऐसा जलवायु परिवर्तन के कारण होगा।

कुछ समय पहले जारी की गई डब्ल्यूएमओ की एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत, चीन, बांग्लादेश और नीदरलैंड वैश्विक स्तर पर समुद्री जलस्तर में वृद्धि के उच्चतम खतरे का सामना कर रहे हैं। विभिन्न महाद्वीपों के कई बड़े शहर समुद्री जलस्तर में वृद्धि के कारण डूबने के खतरे का सामना कर रहे हैं। इनमें शंघाई, ढाका, बैंकॉक, जकार्ता, मुंबई, मापुटो, लागोस, काहिरा, लंदन, कोपेनहेगन, न्यूयॉर्क, लॉस एंजिल्स, ब्यूनस आयर्स और सैंटियागो शामिल हैं। यह एक प्रमुख आर्थिक, सामाजिक और मानवीय चुनौती है।  समुद्र के स्तर में वृद्धि से तटीय कृषि भूमि और जल भंडार व बुनियादी ढांचे के साथ-साथ मानव जीवन तथा आजीविका को खतरा है।

जलवायु परिवर्तन जनित चुनौतियों से भारत को लेकर आशंका जताई गई है कि तापमान बढ़ने से गर्मी में भारत में चलने वाली लू की आवृत्ति 21वीं सदी के अंत तक तीन से चार गुना ज्यादा हो जाएगी। वैज्ञानिकों का मानना है कि बढ़ते तापमान के लिए मुख्यतः ग्लोबल वार्मिंग ही जिम्मेदार है और इससे निपटने की त्वरित कोशिश नहीं हुई तो आने वाले वर्षों में धरती का खौलते कुंड में परिवर्तित होना तय है। अमेरिकी वैज्ञानिकों का कहना है कि वैश्विक औसत तापमान पिछले सवा सौ सालों में अपने उच्चतम स्तर पर है। औद्योगीकरण की शुरुआत से लेकर अब तक तापमान में 1.25 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो चुकी है। आंकड़ों के मुताबिक 45 वर्षों से हर दशक में तापमान में 0.18 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। एक आंकलन के मुताबिक 21वीं सदी में पृथ्वी के सतह के औसत तापमान में 1.1 से 29 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी होने की आशंका है। वायु में मौजूद ऑक्सीजन और कार्बन डाईऑक्साइड के अनुपात पर एक शोध में पाया गया है कि बढ़ते तापमान के कारण वातावरण से ऑक्सीजन की मात्रा तेजी से घट
रही है। अगर यही स्थिति बनी रही तो 2050 तक पृथ्वी के तापक्रम में लगभग 4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होना तय है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी का तापमान जिस तेजी से बढ़ रहा है उस पर काबू नहीं पाया गया तो अगली सदी में तापमान 60 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है। यदि पृथ्वी के तापमान में मात्र 3.6 डिग्री सेल्सियस तक वृद्धि होती है तो आर्कटिक के साथ-साथ अंटार्कटिका के विशाल हिमखण्ड पिघल जाएंगे। बढ़ते तापमान के कारण उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव की बर्फ चिंताजनक रूप से पिघल रही है। दुनिया भर के करीब 30 पर्वतीय ग्लेशियरों की मोटाई अब आधे मीटर से कम रह गयी है। हिमालय क्षेत्र में पिछले पाँच दशकों में माउंट एवरेस्ट के ग्लेशियर 2 से 5 किलोमीटर सिकुड़ गए हैं। 76 फीसद ग्लेशियर चिंताजनक गति से सिकुड़ रहे हैं। कश्मीर और नेपाल के बीच गंगोत्री ग्लेशियर भी तेजी से सिकुड़ रहा है।

इसी सबका परिणाम है कि जापान हो, इटली या फिर तुर्किये, धरती के अलग-अलग हिस्सों में स्थित ये देश बेमौसम भारी बारिश से उपजी विनाशकारी बाढ़ का सामना कर रहे हैं। भारत की बात करें तो इस वर्ष फरवरी में जहां तापमान असामान्य रूप से बहुत बढ़ गया, वही अप्रैल-मई में ऐसी भी स्थिति आई जब गर्मी के मौसम में जाड़े के दिनों का अहसास होने लगा। इस सबका दुष्प्रभाव खेती पर खाद्य सुरक्षा पर और अंतत मानव जीवन के अस्तित्व पर पड़ने की आशंका है। स्पष्ट है कि ये संकेत अच्छे नहीं है। ये जलवायु परिवर्तन का खतरा अब हमारे दरवाजे तक पहुंच चुका है। यह संकट किसी व्यक्ति वा देश नहीं, वरन् संपूर्ण मानव समाज का साझा संकट है। सबने मिलकर यदि इस चुनौती का सामना नहीं किया, तो परिणाम भी सभी भुगतेंगे। जब किसी व्यक्ति के शरीर का तापमान चढ़ता है तो उसके माथे पर पानी की पट्टी लगाने से राहत मिलती है। संकटग्रस्त नदियों को बचाकर हरियाली का दायरा बढ़ाकर बारिश की बूंदों को  सहेज कर एवं प्राकृतिक खेती व प्रकृति अनुकूल जीवनशैली को अपना कर हम गर्म होती धरती के माथे पर पट्टी लगा सकते हैं।

  सोर्स-:  लोक सम्मान

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Post By: Shivendra
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