पानी सिर्फ पानी नहीं है। इसे अमृत कहा जाता है, क्योंकि यह जीवन को सम्भव बनाने के साथ-साथ जीवन की रक्षा तो करता ही है, इसमें कई औषधीय गुण भी विद्यमान हैं। जल-चिकित्सा कई तरह के रोगों में कारगर होती है।
आपने बहुत लोगों को बीमारों को यह सलाह देते हुए अवश्य सुना होगा, “कुछ दवा पानी क्यों नहीं लेते?” इससे कुछ और आगे बढ़िए तो बीमारी को ठीक करने की एक और सुगम और सुलभ सलाह- “जरा कुछ हवा-पानी बदल आइए।” मायने कि पानी की बीमारी से लड़ने की ताकत को हम सभी अपने अचेतन मन में कहीं बेहद करीब से महसूस करते हैं। पानी से जुड़े हुए स्वास्थ्य सम्बन्धी मिथक भी उतने ही पुराने हैं जितना कि हमारा स्वास्थ्य विज्ञान।दिन भर में कितना पानी पीना चाहिए? खाने के साथ पानी पिएँ या फिर पहले और या फिर बाद में? सुबह उठकर बासी मुँह पानी पीने से क्या फायदे हैं? ताँबे के बर्तन में रातभर रखने से क्या पानी औषधीय गुणों से युक्त हो जाता है? पानी ठंडा पिएँ या गर्म? ऐसे न जाने कितने सवाल हैं पानी से जुड़े हुए जो हममें से हरेक के मन में आते हैं, पर समुचित उत्तर के अभाव में अक्सर सवाल ही बने रह जाते हैं।
आइए देखते हैं कि कैसे पानी हमारे स्वास्थ्य के लिये बेहद अहम है, यह न केवल हमें बीमारियों से बचाने के लिये, बल्कि बीमारियाँ हो जाने पर उनके उपचार के लिये भी। पानी जहाँ दवा है, वहीं दर्द भी है। यदि वह ठीक तरह से पीने योग्य नहीं है और या फिर पर्याप्त मात्रा में पीने के लिये उपलब्ध नहीं है, तो इसके अलग नुकसान भी हैं।
जीवन को सम्भव बनाने में पानी की बेहद अहम भूमिका है। पानी को एक सार्वभौमिक विलायक माना जाता है जो तमाम तरह के पदार्थों को अपने में घोल लेता है। इसकी यह घोलने की शक्ति हमारे शरीर की रासायनिक प्रक्रियाओं को सुगम रूप से चलाए रखने में खासी मददगार होती है। जीवन की पहली उत्पत्ति भी इस कारण से पानी में ही हुई थी और आज भी जब दुनियाभर के अन्तरिक्ष शास्त्री समूचे ब्रह्मांड में सुदूर ग्रहों में जीवन की खोज कर रहे हैं, उनकी खोज का पहला चरण उन ग्रहों में पानी की खोज करना है।
पानी वस्तुतः जीवन की सम्भावना का सबसे पहला और सबसे अहम प्रमाण है। हमारे जीवित शरीर का 75 प्रतिशत से अधिक हिस्सा सिर्फ पानी से बना होता है। शरीर के कुछ हिस्सों में, जैसे रक्त और मस्तिष्क में पानी की मात्रा और जगहों से कहीं ज्यादा होती है। इसीलिये शरीर में पानी कम होने पर सबसे पहली प्रतिक्रिया इन अंगों द्वारा ही होती है। रक्त में पानी के कम होने का सीधा और सबसे पहला मतलब होता है डिहाइड्रेशन, यानी कि पानी की कमी।
शरीर में पानी की यह कमी तुरन्त पूरी न किये जाने पर इसका असर शरीर के बाकी सभी हिस्सों और उनकी क्रियाओं पर भी पड़ता है, मगर इसका सबसे गहरा असर गुर्दों पर पड़ता है। हमारे गुर्दे पानी को छानने के जरिये लगातार हमारे शरीर की सफाई में लगे रहते हैं। कुछ उसी तरह जैसे हम अपने घर की पानी से धुलाई करते हैं। पानी कम होने का सबसे पहला असर होता है इस धुलाई का रुक जाना और नतीजन शरीर में तमाम सारे निकाले जाने वाले विजातीय द्रव्यों का बाहर न निकल पाना। शरीर में आगे होने वाली तमाम अहम बीमारियों की यह एक शुरुआती दस्तक हो सकती है।
पानी शरीर में संक्रमण का एक अहम स्रोत भी हो सकता है। पेट और लीवर की अनेक खतरनाक बीमारियों के वाहक जीवाणु और वायरस पानी के जरिये ही हमारे शरीर में पहुँचते हैं। पीने के लिये साफ पानी का जन-सामान्य को उपलब्ध कराया जाना, आज भी हमारे देश की स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रमुख चुनौतियों में से एक है। पानी के संक्रमण के अलावा पानी में मिले अवांछित खनिज तत्व भी स्वास्थ्य सम्बन्धी अनेक परेशानियों को जन्म दे सकते हैं। पानी में आर्सेनिक और फ्लोराइड का सम्मिश्रण हड्डियों और दाँतों की अनेक बीमारियों को जन्म देता है।
समूचे विश्व में प्रचलित उपचार की लगभग सभी पद्धतियों में पानी किसी-न-किसी प्रकार से औषधि रूप में प्रयोग में लाया जाता रहा है। पानी के नैसर्गिक औषधीय गुणों से प्राचीन यूनान, मिस्र, चीन और भारत के लोग भली प्रकार परिचित थे। प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में जल चिकित्सा एक विशिष्ट उपचार के रूप में प्रयोग में लाई जाती है। पानी के आन्तरिक प्रयोग के अतिरिक्त इसके तमाम सारे बाह्य प्रयोग भी प्राकृतिक चिकित्सा में प्रयोग में लाये जाते हैं।
पानी के ऐसे प्रयोग पानी को गर्म कर अथवा उसके ठंडा रहने पर, दोनों प्रकार से ही प्रयोग में लाये जा सकते हैं। प्राकृतिक चिकित्सा का ठंडा-गर्म स्नान स्थानिक सूजन और रक्त नलिकाओं की तन्यता को दुरुस्त करने के लिये एक प्रामाणिक उपाय है। रक्त नलिकाओं की अक्षमता के कारण पैरों में आने वाली सूजन तथा नसों के विस्फार-जैसी अवस्थाओं में यह एक अच्छी चिकित्सा है। भाप स्नान प्राकृतिक चिकित्सा में बहुतायत से प्रयोग में लाया जाने वाला एक उपचार है जिसे सारे शरीर के लिये प्रयोग में लाया जा सकता है।
रोगी को पर्याप्त मात्रा में पानी पी लेने के बाद भाप स्नान के लिये भाप के बक्से में ले जाते हैं और वहाँ तब तक रखते हैं जब तक कि शरीर से खूब पसीना न निकलने लगे। पसीने के माध्यम से शरीर के सारे विजातीय द्रव्य भी बाहर निकल जाते हैं और इस तरह शरीर को विषाक्त द्रव्यों के बोझ से मुक्ति मिल जाती है। पसीना शरीर से यूरिया के निकाले जाने का भी एक अच्छा साधन है। सामान्यतः यूरिया की निकासी शरीर में गुर्दों के जरिये होती है, पर गुर्दों के तनिक भी कम काम करने पर पसीने की मात्रा को बढ़ाकर गुर्दों के इस काम की कमी को एक सीमा तक पूरा किया जा सकता है।
आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में ठंडा जल और उष्ण जल अनुपान के भेद से विभिन्न औषधियों के गुणों को बढ़ाने अथवा घटाने का काम सुगमतापूर्वक करता है। आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा की भाँति ही पानी की भाप से अनेक प्रकार के उपचार निर्दिष्ट करता है। पंचकर्म की प्रारम्भिक तैयारी की अवस्था में भाप द्वारा किया गया स्वेदन उपचार शरीर के चिपके हुए दोषों को विगलित कर उन्हें बाहर निकाले जाने में मदद करता है।
जल धारा, आयुर्वेद में पानी के औषधीय उपयोग का एक अनूठा उदाहरण है। शरीर में अधिक गर्मी से उत्पन्न होने वाली बीमारियों में ताँबे के एक लोटे से पानी को कुछ ऊँचाई से नाभि के ऊपर गिराते हैं। ज्वर जैसी अवस्थाओं में यह उपचार शरीर के अतिरिक्त ऊष्मा को जल्दी बाहर निकालने में मदद करता है।
पानी द्वारा की जाने वाली शिरोधारा मानसिक रोगों, नींद न आना, अवसाद तथा तनाव का एक कारगर उपाय है। एक स्थिर पात्र में गुनगुना पानी भरकर उसे लगभग चार से छह इंच की ऊँचाई से रोगी के माथे पर गिराने से तथा इस प्रक्रिया को लगभग तीस मिनट तक दोहराने से शरीर में वैसे ही उद्वेग उत्पन्न होते हैं जैसे कि लम्बे ध्यान के बाद उत्पन्न होते हैं। तनाव को दूर कर सकने की इस अनूठी क्षमता के कारण यह आजकल अनिद्रा और हाइपरटेंशन का बहुप्रचलित औषधि रहित उपचार है।
योग भी पानी के औषधीय महत्त्व को भली प्रकार से रेखांकित करता है। जल नेति तथा कुंजल शरीर की आभ्यान्तरिक सफाई के लिये प्रयोग में लाई जाने वाली दो बहु प्रचारित प्रक्रियाएँ हैं। कुंजल जहाँ पानी पी लेने के बाद वमन द्वारा हमारी आहार नलिका के ऊपरी हिस्से की सफाई करता है वहीं जल नेति नाक और उसके आस-पास के सूक्ष्म क्षेत्रों की पानी से परिमार्जित करने की प्रक्रिया है।
पानी दर्द भी है और दवा भी, बशर्ते कि हम सजगता से इसका ठीक तरह से अपने को स्वस्थ रखने के लिये प्रयोग कर सकें।
(लेखक कायचिकित्सा विभाग, आयुर्वेद संकाय, लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं)
TAGS |
water in Hindi, ability to cure diseases in Hindi, water borne diseases in Hindi, arsenic in Hindi, fluoride in Hindi |
Path Alias
/articles/darada-bhai-davaa-bhai
Post By: editorial