दिल्ली की गंधक वाली बावड़ी


जागरण याहू/ नई दिल्ली, [वी.के.शुक्ला]। प्राचीन व सास्कृतिक धरोहरों के रूप में बावड़ियों का विशेष महत्व हैं, लेकिन प्रशासनिक उपेक्षा के चलते ये समाप्त होती जा रही हैं।

बात महरौली स्थित गंधक वाली बावड़ी से शुरू करें, कहा जाता है कि इस ऐतिहासिक बावड़ी में नहा लेने से खुजली और फोड़े-फुंसी ठीक हो जाते थे। इसी मान्यता के चलते रोगग्रस्त समुदाय विशेष के लोग आज भी बड़ी संख्या में इस बावड़ी पर परिवार सहित पहुंचते हैं। आसपास के लोगों द्वारा कूड़ा डालने के कारण बावड़ी सूख चुकी है। पानी न मिलने के कारण कई लोग वहा की मिट्टी खुरचने का प्रयास करते हैं। जबकि कुछ लोग पानी की तलाश में बावड़ी में काफी अंदर तक चले जाते हैं।

कुछ ऐसा ही हाल यहा से पांच सौ मीटर दूर स्थित राजों की बैन बावड़ी का भी है। इसे सिकंदर लोदी के शासनकाल में [1498-1517] के दौरान बनवाया गया था। यह बावड़ी चार स्तरों वाली सीढ़ी युक्त बावड़ी है। जिसमें आज भी कई फुट पानी भरा है। इस बावड़ी में भी पर्यटक सीढि़या उतरते हुए पानी तक पहुंच जाते हैं। प्रशासन को चाहिए कि ऐसी व्यवस्था की जाए कि पर्यटक पानी तक न पहुंच सकें। क्योंकि ऐसा करना खतरनाक साबित हो सकता है। मगर प्रशासन का ध्यान शायद इस ओर नहीं है। बावड़ियों की बदहाली की बात यहीं समाप्त नहीं होती है। इस क्षेत्र में आधा दर्जन के करीब ऐसी बावड़ी अस्तित्व में हैं, जिनकी प्रशासन ने आज तक सुध नहीं ली है।

महरौली स्थित ख्वाजा कुतबुद्दीन कुतुब साहिब की दरगाह के पास स्थित बावड़ी का भी यही हाल है। बताया जाता है कि इसे शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने अपने शासनकाल में बनवाया था। आज सरकारी लापरवाही के कारण यह बावड़ी भी कूड़ाघर बनी हुई है।

गंधक की बावड़ी का इतिहास यह बावड़ी अधम खा के मकबरे से सौ मीटर की दूरी पर स्थित है। इस बावड़ी के पानी में गंधक की गंध पायी जाती है। इसे इल्तुतमिश ने [1211-36] में बनवाया था। दक्षिणी छोर पर एक गोलाकार कुएं सहित इसकी पांच श्रेणियां हैं। यह गोता लगाने वाला कुआं भी कहलाता है। क्योंकि यहा पहले गोताखोर ऊपर की श्रेणियों से दर्शकों का मनोरंजन के लिए छलांग लगाया करते थे।

साभार - जागरण याहू

 
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