वर्तमान में दिल्ली को निम्नलिखित श्रोत बागवानी और घरेलू उपयोग के लिए पानी उपलब्ध करा रहे हैः-
मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम)
उपरोक्त उत्तम जल प्रबंधन के सिद्धान्त के बाद आइये देखें कि दिल्ली के आसपास बिगड़ते पर्यावरण को सुधारने और दिल्लीवासियों को पर्याप्त जल उपलब्ध कराने के लिए क्या उपाय किये जा सकते हैं? जो उपाय सुझाए जा रहे हैं उन्हें यथा परिस्थिति द्वाब के अन्य क्षेत्रों, देश के अन्य भागों में यहां तक कि संसार के अन्य भागों में लागू किया जा सकता है। दिल्ली की अपनी कुछ लाभकर विशेषताएं हैं। जैसे दिल्ली में दक्षिणी पठार की सबसे उत्तरवर्ती पहाड़ी श्रृंखला विद्यमान है, जो इसके पर्यावरण को आकर्षक बनाती है। रिज, जो उत्तर में दिल्ली विश्वविद्यालय क्षेत्र से राष्ट्रपति भवन की उत्तर-पश्चिमी पहाडियों तक और वहां से कुतुब के पश्चिम में होती हुई दक्षिण में तिलपत श्रृंखला बनाती है।
इससे दिल्ली की स्थिति एक अतिउत्तम द्रोणी की बन गई है। पहले कहा जा चुका है कि उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भिक वर्षों तक इस द्रोणी में अपनी दो बारहमासी नदियां बहती थीं। ये दिल्ली के हौजों, तालाबों, बावड़ियों और झीलों को पुर करती हुई यमुना में जा गिरती थीं, जबकि साहिबी नदी, जिसे अब नाला नजफगढ़ के नाम से जाना जाता है; दक्षिण-पश्चिम की पहाड़ियों से बहकर आने वाले पानी से भर जाती थी और अन्त में यमुना में जा गिरती थी। अनेक छोटी-छोटी धाराएं तिलपत श्रृंखला से निकल कर 'रिज' उत्तर महरौली से पूर्व की ओर होती हुई, उत्तर में निजामुद्दीन के समीप यमुना में गिरती थीं। दो बारहमासी नदियों का अस्तित्व अंधाधुंध शहरीकरण, वृक्षों की कटाई और दिल्ली के पश्चिमी-दक्षिणी अर्धवृत्त के पहाड़ी क्षेत्र में खनिज उत्खनन को भेंट चढ़ गया।
(ए) | शुष्क मौसम में यमुना | 144 एमसीएम |
(बी) | यमुना मानसून में (प्रयोग योग्य) | 300 एमसीएम |
(सी) | भाखड़ा शुष्क मौसम में | 130 एमसीएम |
(डी) | गंगा 200 क्यूसैक पर (शुष्क मौसम) | 120 एमसीएम |
(ई) | यमुना से अतिरक्ति, न्यायालय के आदेशानुसार | 360 एमसीएम |
(एफ) | भूमिगत जल | 150 एमसीएम |
कुल | 1,024 एमसीएम |
उपरोक्त उत्तम जल प्रबंधन के सिद्धान्त के बाद आइये देखें कि दिल्ली के आसपास बिगड़ते पर्यावरण को सुधारने और दिल्लीवासियों को पर्याप्त जल उपलब्ध कराने के लिए क्या उपाय किये जा सकते हैं? जो उपाय सुझाए जा रहे हैं उन्हें यथा परिस्थिति द्वाब के अन्य क्षेत्रों, देश के अन्य भागों में यहां तक कि संसार के अन्य भागों में लागू किया जा सकता है। दिल्ली की अपनी कुछ लाभकर विशेषताएं हैं। जैसे दिल्ली में दक्षिणी पठार की सबसे उत्तरवर्ती पहाड़ी श्रृंखला विद्यमान है, जो इसके पर्यावरण को आकर्षक बनाती है। रिज, जो उत्तर में दिल्ली विश्वविद्यालय क्षेत्र से राष्ट्रपति भवन की उत्तर-पश्चिमी पहाडियों तक और वहां से कुतुब के पश्चिम में होती हुई दक्षिण में तिलपत श्रृंखला बनाती है।
इससे दिल्ली की स्थिति एक अतिउत्तम द्रोणी की बन गई है। पहले कहा जा चुका है कि उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भिक वर्षों तक इस द्रोणी में अपनी दो बारहमासी नदियां बहती थीं। ये दिल्ली के हौजों, तालाबों, बावड़ियों और झीलों को पुर करती हुई यमुना में जा गिरती थीं, जबकि साहिबी नदी, जिसे अब नाला नजफगढ़ के नाम से जाना जाता है; दक्षिण-पश्चिम की पहाड़ियों से बहकर आने वाले पानी से भर जाती थी और अन्त में यमुना में जा गिरती थी। अनेक छोटी-छोटी धाराएं तिलपत श्रृंखला से निकल कर 'रिज' उत्तर महरौली से पूर्व की ओर होती हुई, उत्तर में निजामुद्दीन के समीप यमुना में गिरती थीं। दो बारहमासी नदियों का अस्तित्व अंधाधुंध शहरीकरण, वृक्षों की कटाई और दिल्ली के पश्चिमी-दक्षिणी अर्धवृत्त के पहाड़ी क्षेत्र में खनिज उत्खनन को भेंट चढ़ गया।
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