मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिये यह याद करने का एकदम सही वक्त है कि यदि पानी के बिल में छूट का लुभावना वायदा आम आदमी पार्टी के लिये दिल्ली विधानसभा की राह आसान बना सकता है, तो दिल्ली जलापूर्ति की गुणवत्ता और मात्रा में मारक दर्जे की गिरावट तथा मीटर रीडरों की कारस्तानियाँ राह में रोड़े भी अटका सकती हैं।
आपात स्थिति से निपटने में अक्षम
स्थान - शकरपुर, पूर्वी दिल्ली, समय - प्रात: 6.30 बजे, दिनांक: 14 अक्टूबर सुबह नल खोला, तो गन्दा मटमैला पानी। 20 मिनट बाद वह भी बन्द। शाम को कोई पानी नहीं आया। 15 अक्टूबर को भी यही क्रम रहा। अखबार देखा, तो पूर्वी, उत्तर-पूर्वी, मध्य और दक्षिणी से लेकर नई दिल्ली तक एक ही हाल है। हर जगह पानी को लेकर हायतौबा।
जहाँ टैंकर पहुँच गया, वहाँ टैंकर के सामने कतारें। जहाँ टैंकर नहीं पहुँचा, वहाँ लोगों ने शौच आदि नित्य कर्म निपटाने के लिये पानी खरीदने के लिये भी ई प्याऊ अथवा बोतलबन्द पानी की दुकानों के सामने लाइनें लगाईं। जिनकी जेबें छोटी हैं, उनमें से कितनों ने पार्कों में हुई बोरिंग से पानी लेकर काम चलाया। भूजल के मामले में संकटग्रस्त इलाकों में बोरिंग कराने पर पाबन्दी है। जिन्होंने इस पाबन्दी की पालना करने की ईमानदारी दिखाई; आपूर्ति न आने पर वे ही ज्यादा रोए। जिन्होंने पुलिस व जल बोर्ड कर्मियों को घूस देकर बोरिंग करा ली; खराब आपूर्ति ने उन्हें कम प्रभावित किया।
अखबारों ने इसे लेकर खबर बनाई और नेताओं ने इसे लेकर राजनीति की। तर्क दिया गया कि यमुना में अमोनिया की मात्रा तीन गुना अधिक बढ़ने तथा गंगा नहर में पानी नहीं आने के कारण यह आपात स्थिति आई। जानकारों को कहना है कि यदि यदि पानी की ड्रेन नम्बर दो और आठ में यमुना का पानी डलवाने की शासकीय कोशिश समय रहते की गई होती, तो अमोनिया प्रदूषण को नियंत्रित कर आपात स्थिति से बचा जा सकता था। किन्तु दिल्ली जल बोर्ड ने यह बयान जारी कर इतिश्री कर ली कि अगले दो दिन तक दक्षिणी और पूर्वी दिल्ली के ज्यादातर इलाकों में पानी नहीं आएगा। कृपया टैंकर से पानी आपूर्ति के लिये दिये गए नम्बरों पर बात करें अथवा केन्द्रीय नियंत्रण कक्ष पर सम्पर्क करें।
कपिल मिश्रा के मंत्री पद छोड़ने के बाद ज्यादा खराब हुए हालात
दिल्ली जल बोर्ड का यह रवैया तो एक नमूना मात्र है। हकीकत यह है कि आम आदमी पार्टी को लेकर कपिल मिश्रा की अन्दरूनी राजनीति चाहे जो हो, उन्हें मंत्री पद से हटाए जाने के बाद से दिल्ली जल बोर्ड निरन्तर लापरवाह और भ्रष्ट हुआ है। याद कीजिए कि श्री कपिल मिश्रा को यह कहकर हटाया गया था कि वह अपने दायित्व को ठीक से अंजाम नहीं दे पा रहे। निस्सन्देह, दिल्ली के जल स्वावलम्बन, पानी के अनुशासित उपयोग तथा यमुना निर्मलीकरण व पुनर्जीवन को लेकर अपने लुभावने वायदों को जमीन पर उतारने की दिशा में कपिल मिश्रा नकारा साबित हुए। यमुना-श्रीश्री विवाद में श्रीश्री रविशंकर के पक्ष में खड़े होकर उन्होंने यह जताने में कोई शर्म महसूस नहीं की कि उनकी प्राथमिकता पर दिल्ली की प्राणरेखा कही जाने वाली यमुना नदी नहीं, बल्कि श्री श्री तथा अगले चुनाव में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर देखे जा रहे उनके शिष्य श्री महेश गीरी से नजदीकियाँ हैं; बावजूद इन सभी तथ्यों के यह सच है कि कपिल मिश्रा की जगह जल मंत्री बने राजेन्द्र पाल गौतम नाकाबिल साबित हुए। उन्होंने यह आरोप लगाकर हाथ झाड़े कि मुख्य कार्यकारी अधिकारी समेत दिल्ली जल बोर्ड के उच्च अधिकारी उन्हें काम नहीं करने दे रहे। असलियत यह है कि खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा जल मंत्रालय की जिम्मेदारी लिये जाने के बावजूद, दिल्ली जल बोर्ड की अफसरशाही के रवैए में कोई बदलाव नहीं है। उपभोक्ता के लिये हालात अभी भी बदतर ही हैं।
बढ़ते बीमार
दिल्ली के अन्य इलाकों की तुलना में पानी के मामले में पूर्वी दिल्ली शुरू से काफी सुखी रहा है। उसे अक्सर गंगनहर का पानी नसीब होता रहा है। लक्ष्मीनगर-शकरपुर इलाके के बाशिन्दे बताते हैं कि बीते मई महीने में कपिल मिश्रा के जाने के बाद से यहाँ जलापूर्ति की अवधि सुबह-शाम दो-दो घंटे से घटकर एक-एक घंटा रह गया है; वह भी अनिश्चित और सीवेज मिश्रित। न कोई सूचना और न कोई सुनवाई। नतीजा? दिल्ली में पानी के बीमारों की संख्या बेतहाशा बढ़ रही है। जीरो बिलिंग फार्मूले से जितनी बचत नहीं हो रही, उससे ज्यादा खर्च डॉक्टर, दवाई और बोतलबन्द पानी, आर ओ, फिल्टर आदि खरीदने में हो रहा है। इसे आप मिलीभगत भी कह सकते हैं।
बढ़ता भ्रष्टाचार
जीरों बिलिंग को लेकर दिल्ली जल बोर्ड के राजस्व विभाग के कर्मियों ने इधर एक नया खेल शुरू किया है। गौरतलब है कि एक महीने में 20 यूनिट यानी 20,000 लीटर पानी तक के लिये जीरो बिलिंग का प्रावधान है। मीटर रीडर कुछ महीनों तक वास्तविक खपत से काफी कम दिखाकर उपभोक्ता को जीरो बिल भेजते रहते हैं। मसलन, महीने में यदि वास्तविक खपत 18 यूनिट आई, तो बिल भेजा 05 यूनिट का। जाहिर है कि खपत की दोनों ही स्थिति में बिल तो जीरो रुपए ही होगा। आठ-दस महीने बीत जाने पर मीटर में मौजूद वास्तविक रीडिंग और पिछले बिल की दर्ज रीडिंग में काफी अन्तर होना स्वाभाविक है।
यह स्थिति पैदा करने के बाद मीटर रीडर, उपभोक्ता के सामने ऑफर पेश करते हैं- “भाई साहब, इस बार तो आपकी रीडिंग 98 यूनिट आई है। कैसे करें? कुछ कीजिए, तो धीरे-धीरे एडजस्ट कर देंगे। आपको जीरो बिल ही आएगा।’’ मीटर रीडरों ने रीडिंग लेने तथा घूस का लेन-देन तय करने के लिये निजी अनुबन्ध के आधार पर अपने साथ लड़के रखे हुए हैं। जल बोर्ड के अधिकारियों को इसकी जानकारी है; बावजूद इसके वे कोई कार्रवाई नहीं करते; कारण स्वयं उनका इस मिलीभगत में शामिल होना भी हो सकता है।
गौर कीजिए कि जो उपभोक्ता घूस देने से इनकार कर देते हैं, उन्हें दो ही महीने में इतनी अधिक यूनिट के लिये वास्तविक से कई गुना अधिक बिल का भुगतान करना पड़ता है। बिल सुधार का निवेदन करने पर क्षेत्रीय राजस्व अधिकारी मनचाही अवधि के आधार पर खपत का औसत तय करते हैं, जो कि न तो न्यायपूर्ण होता है और न तर्कपूर्ण। जबकि हकीकत यह है कि मौसम अनुसार खपत बदलती है। अतः कम-से-कम एक वर्ष की अवधि में हुई खपत को आधार बनाकर औसत खपत की गणना की जानी चाहिए। ऐसे कई मामले इधर मेरे निजी संज्ञान में आये हैं।
चेतिए, कहीं निजीकरण की तैयारी तो नहीं?
दिल्ली जल बोर्ड का यह चित्र निश्चित तौर पर निराशाजनक भी है और आम आदमी पार्टी के लोकलुभावन वायदों के विपरीत भी। कोई ताज्जुब नहीं, दिल्ली सरकार तथा जल बोर्ड के अफसरोें द्वारा इस चित्र को तैयार करने का उद्देश्य पहले दिल्ली जल बोर्ड को नकारा साबित करना और फिर दिल्ली में जलापूर्ति और बिलिंग को निजी क्षेत्र में ले जाना हो। जो भी हो, दिल्ली के जल उपभोक्ताओं के लिये यह सतर्क होने का वक्त भी है और अपनी तकलीफों को लेकर आवाज उठाने का भी। यमुना प्रेमियों को भी चाहिए कि सरकारों को जमीनी बेहतरी के लिये कदम उठाने हेतु विवश करें।
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