पिछले 4 साल में देश के प्रमुख राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) में 6,879 करोड़ रुपये खर्च करने का सकारात्मक परिणाम मिला है साल 2019 में शीर्ष प्रदूषित वाले शहरों में से कुछ ने पीएम 2.5 और 10 के स्तरों में मामूली सुधार तो किया लेकिन केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के उल्लंघन को जारी रखा। NCAP ट्रैकर और सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) संगठनों द्वारा किए गए दो अलग-अलग विश्लेषणों में यह बात सामने आई है कि 131 शहरों में से केवल 38 शहर ऐसे थे जिन्होंने साल 2021-2022 में वार्षिक प्रदूषण में कमी के लक्ष्य को हासिल किया।
साल 2019 में लांच हुई NCAP ने साल 2024 तक PM10 और PM2.5 के स्तर को 20-30% तक कम करने का लक्ष्य रखा था लेकिन इससे पहले यानि साल 2017 को प्रदूषण के स्तर को सुधारने के लिए आधार वर्ष के रूप में लिया था। सितंबर 2022 में केंद्र ने 2026 तक NCAP के तहत आने वाले शहरों में पार्टिकुलेट मैटर सघनता में 40% की कमी का एक नया लक्ष्य निर्धारित किया । सीआरईए के विश्लेषण के अनुसार इलाहाबाद, लखनऊ, वाराणसी, श्रीनगर और मुरादाबाद जैसे शहरों ने पीएम 10 में 50 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (एमपीसीएम) से अधिक का सुधार हुआ है, जबकि अन्य जैसे वसई-विरार, दुर्गापुर, बरनीहाट और काला अंब में गिरावट देखी गई है।
NCAP ट्रैकर द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चला है कि नई दिल्ली में 2022 में सबसे अधिक जहरीली हवा थी, जिसका वार्षिक औसत PM 2.5 और 99.71प्रति घन मीटर था। शीर्ष दस सबसे प्रदूषित सूची में अधिकांश शहर भारत-गंगा के मैदान से हैं यहां तक कि दस सबसे कम प्रदूषित शहरों में से 9 में पीएम 10 का स्तर अभी भी सीपीसीबी द्वारा निर्धारित सुरक्षित सीमा से ऊपर था। 2019 में सबसे कम प्रदूषित शहरों में भी 2022 में वायु गुणवत्ता के स्तर में गिरावट और रैंकिंग में भी कमी आई है। ऐसे में वायु प्रदूषण के वास्तविक और दीर्घकालिक समाधान के लिए दिल्ली और उसकी तरह प्रदूषण से प्रभावित दूसरे क्षेत्रों को एयरशेड पर निर्भर होना होगा।
पीएम 2.5 और प्रदूषित शहरों की 10 सांद्रता के आधार पर सबसे कम प्रदूषित 10 शहर देश के अधिक विविध हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं। विश्लेषण में पाया गया है कि साल 2022 में 26.33 एमपीसीएम पीएम 2.5 की सघनता वाला सबसे स्वच्छ शहर श्रीनगर और इसके बाद कोहिमा (नागालैंड) था। जहां पीएम 10 की सघनता 26.77 यूजी/एम थी। आरईए के अध्ययन में आगे बताया गया है कि 131 शहरों में से केवल 37 ने ही सॉर्स अपॉर्शन्मन्ट अध्ययन को पूरा किया है जो कि साल 2020 तक पूरा होना जाना चाहिए था। इन सभी रिपोर्टों में अभी भी सार्वजनिक उपलब्धता में कमी के साथ शहर की कोई कार्य योजना को अपडेट नहीं किया गया है। देश में राष्ट्रीय उत्सर्जन सूची को अभी भी औपचारिक रूप दिया जाना है जिसे 2020 तक पूरा हो जाना चाहिए था।
सीआरईए ने इस बात पर भी जोर दिया है कि देश को 2024 तक 1,500 निगरानी स्टेशनों के एनसीएपी लक्ष्य तक पहुंचने के लिए प्रति वर्ष 300 से अधिक मानवीय वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन स्थापित करने होंगे। जो वाकई में काफी लंबा कार्य हैं क्योंकि पिछले चार वर्षों में केवल 180 स्टेशन स्थापित किए गए है । सीआरईए के विश्लेषक सुनील दहिया ने कहा भारत में उद्योगों ने एक वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों का एक व्यापक नेटवर्क स्थापित किया है ऐसे में हमें बेहतर परिणाम के लिए उस बुनियादी ढांचे का उपयोग करना चाहिए। उद्योगों से डेटा सार्वजनिक करके सरकारी वायु गुणवत्ता निगरानी एजेंसी के साथ उसे एकीकृत किया जाना चाहिए जिससे न केवल सार्वजनिक वायु गुणवत्ता डेटा उपलब्धता बढ़ाने में मदद मिलेगी बल्कि स्टेशनों को कुशलतापूर्वक संचालित करने के लिए उद्योगों की जवाबदेही भी तय होगी ।
क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने कहा कि उत्तर भारत के शहरों में हवा की गुणवत्ता बहुत खराब से लेकर गंभीर तक बनी हुई है। सबसे अधिक PM2.5 वाले शीर्ष चार शहर दिल्ली और एनसीआर और शीर्ष 9 भारत-गंगा के मैदानी इलाकों से हैं। इन परिणामों को आश्चर्यजनक तो नहीं कह सकते लेकिन इसकी विस्तृत जांच उन सभी मिथकों को भी तोड़ती है कि मुंबई जैसे तटीय शहर कभी प्रदूषित नहीं हो सकते हैं। जबकि सीपीसीबी ने पहले ही राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों पर खड़े नहीं होने
वाले शहरों के लिए सख्त कटौती लक्ष्य जारी कर दिए हैं, हम एनसीएपी के लिए मूल लक्ष्य 2024 से सिर्फ एक साल दूर हैं। कई शहर अभी भी अपने कटौती लक्ष्य तक पहुंचने से दूर हैं और आक्रामक योजनाओं और कड़े उपायों के बिना ऐसा करने में असमर्थ होगा।
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