तालाब तकरीबन दो एकड़ में फैला है। इसके दो तरफ घाट जैसी व्यवस्थाएँ की गई हैं। यह तालाब कितना ऐतिहासिक है इसके बारे में कोई प्रामाणिक तथ्य नहीं मिलते। लेकिन यह तो तय है कि माँ भीमेश्वरी देवी के दर्शन के लिये आने वाले लाखों लोगों की आस्था तालाब से भी उतनी ही गहरी जुड़ी है जितनी मन्दिर से। फिर यह हमारे देश के सब तीर्थों और गाँव के मन्दिरों की परम्परा है कि उनकी खूबसूरती तालाबों से ही बनती है। किसी देवी देवताओं की पूजा वरुण देवता द्वारा उससे नहलाए जाने के बाद ही शुरू होती है लेकिन यहाँ तो आस्था पर गन्दगी का सैलाब हावी है।
खूबसूरत सम्पन्न ऐतिहासिक तालाबों, कुँओं और हवेलियों के अलावा बेरी को सबसे अधिक जिस बात के लिये दुनिया भर में जाना जाता है वह माता भीमेश्वरी देवी का मन्दिर। हर साल इस मन्दिर पर नवरात्रों में लाखों लोग देवी की पूजा अर्चना करने के लिये आते हैं। नवरात्रों के अलावा हर महीने की अमावस्या, पूर्णिमा और दूसरे छोटे बड़े त्योहारों पर आने वाले भक्तों की संख्या भी हजारों में होती है।लोग यहाँ अपने बच्चों का मुंडन कराते हैं और प्रसाद वितरण करते हैं। देवी से अपने और अपने बच्चों के सुरक्षित भविष्य के लिये याचना करते हैं। बताते हैं कि भीमेश्वरी देवी का मन्दिर महाभारतकालीन है। महाभारत के युद्ध के दौरान श्री कृष्ण ने महाबली भीम को कहा कि वह युद्ध में जीत सुनिश्चित करने के लिये अपने कुल देवी युद्ध के मैदान में लाए।
श्रीकृष्ण और अपने बड़े भाई युधिष्ठिर के आदेश पर भीम वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित हिंगले पर्वत से देवी लेने के लिये गए। देवी ने कहा कि मैं चलने के लिये तैयार हूँ। लेकिन उसने रास्ते में मुझे कहीं भी उतारा तो वह वहीं बैठ जाएगी और वह आगे कहीं नहीं जाएगी। भीम ने कुल देवी को एक वृक्ष के नीचे अपनी गोदी से उतारा और लघुशंका के उपरान्त नजदीक से पानी लेने के लिये गए। उसके बाद देवी ने भीम को अपनी शर्त याद दिलाते हुए वहाँ से चलने के लिये मना कर दिया है। कहते हैं कि उसी वक्त से यहाँ मन्दिर की स्थापना हुई।
जिस श्रद्धा के साथ लोग भीमेश्वरी देवी की पूजा अर्चना करने के लिये आते हैं उनकी श्रद्धा को इतनी ही ठेस लगती है माता भीमेश्वरी देवी मन्दिर का गन्दा, सड़ांध मारता हुआ तालाब देखकर। मन्दिर का ट्रस्ट है। मेले के दौरान की व्यवस्था का जिम्मा सरकार के पास रहता है। हर साल कई लाख लोग यहाँ देवी की पूजा करने को आते हैं लेकिन शायद ही किसी ने यहाँ के तालाब की चिन्ता की हो।
सेठों द्वारा बनवाए गए ऐतिहासिक तालाबों की बात गाँव के लोग यह कहकर टाल देते हैं कि ये बनियों ने बनवाए थे। लेकिन सवाल यह है कि भीमेश्वरी देवी का मन्दिर तो सब का साझा मन्दिर है। यह अलग बात है कि ग्रामीण इस मन्दिर से ज्यादा उपयोग परम्परागत रूप से सेठों या सामूहिक रूप से ग्रामीणों द्वारा बनवाए गए तालाबों का ही करते आये हैं। पहले लोग इस मन्दिर के तालाब की हर वर्ष सफाई करते थे। जितने भी भक्तजन आते थे तालाब की गारा निकालते थे लेकिन अब अधिकांश लोग तालाब की ओर देखते भी नहीं।
तालाब के एक ओर ग्रिल भी बनवाई गई है। लोग तालाब के आस-पास मल त्यागते हैं और इसी में आकर हाथ धोते हैं। कई टन कचरा तालाब के अन्दर और चारों ओर बड़ा है। लगता है कि कचरे से तालाब की चारदीवारी बनाई जा रही है। ट्रस्ट के लोग तालाब की सफाई को लेकर कोई बात करने को तैयार नहीं है। ग्रामीण बताते हैं कि ट्रस्ट के पास अच्छी खासी धनराशि है लेकिन तालाब के उद्धार में ट्रस्ट के सदस्यों की कोई रुचि नहीं है। तालाब में फैली गन्दगी इस बात का भी प्रमाण देती है।
तालाब तकरीबन दो एकड़ में फैला है। इसके दो तरफ घाट जैसी व्यवस्थाएँ की गई हैं। यह तालाब कितना ऐतिहासिक है इसके बारे में कोई प्रामाणिक तथ्य नहीं मिलते। लेकिन यह तो तय है कि माँ भीमेश्वरी देवी के दर्शन के लिये आने वाले लाखों लोगों की आस्था तालाब से भी उतनी ही गहरी जुड़ी है जितनी मन्दिर से। फिर यह हमारे देश के सब तीर्थों और गाँव के मन्दिरों की परम्परा है कि उनकी खूबसूरती तालाबों से ही बनती है। किसी देवी देवताओं की पूजा वरुण देवता द्वारा उससे नहलाए जाने के बाद ही शुरू होती है लेकिन यहाँ तो आस्था पर गन्दगी का सैलाब हावी है।
फर्नीचर के व्यापारी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्वयंसेवक पीताम्बर कहते हैं ट्रस्ट या सरकार तालाब की खुदाई सफाई का एक बार अवसर तो दे समाजजन इसे खुद ही पाक साफ स्वच्छ कर देंगे।
बकौल पीताम्बर फिर मन्दिर की असली शक्ति तो तालाब ही है। बाकी तालाबों को देखकर जो घोर निराशा हुई वह तो दुखदाई है ही लेकिन देवी के तालाब की यह उपेक्षा और बदहाली देखकर लगता है मानो बेरी के लोगों के साथ देवी भी सो गई हैं। सो गए हैं भीम जिन्होंने धरती में गदा मारकर पानी निकाल लिया था और स्नान किया था।
गाँव के युवक सुधीर काद्यान शिक्षक हैं, तालाबों की चिन्ता करते हैं, लेकिन उनके उधार के नाम पर बेबसी प्रकट करते हैं। बेबसी कैसी और क्यों पर चुप्पी साध लेते हैं। यही स्थिति कृष्ण कुमार की भी है। देवी के दर्शन करने आये जींद जिले के पिल्लूखेड़ा ब्लॉक के कालवा गाँव के शिक्षक महेंद्र कहते हैं कि इन सारे तालाबों के रकबे की निशानदेही तो सरकार को हर हाल में करा देनी चाहिए। इससे न केवल बेरी के लोगों को भविष्य में पानी मिलता रहेगा बल्कि तालाबों पर कब्जों को लेकर झगड़े भी नहीं होंगे। तालाब के साथ खंडहरों में बदल चुका कुआँ इस बात का प्रतीक है इतिहास में इस कुएँ की इमारत बहुत बुलन्द रही होगी।
नरक जीते देवसर (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें) | |
क्रम | अध्याय |
1 | |
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3 | पहल्यां होया करते फोड़े-फुणसी खत्म, जै आज नहावैं त होज्यां करड़े बीमार |
4 | |
5 | |
6 | |
7 | |
8 | |
9 | |
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11 | जिब जमीन की कीमत माँ-बाप तै घणी होगी तो किसे तालाब, किसे कुएँ |
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16 | सबमर्सिबल के लिए मना किया तो बुढ़ापे म्ह रोटियां का खलल पड़ ज्यागो |
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19 | |
20 | पाणी का के तोड़ा सै,पहल्लां मोटर बंद कर द्यूं, बिजली का बिल घणो आ ज्यागो |
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/articles/daevaisara-asathaa-kao-maunha-caidhaataa-ganadagai-kaa-taalaaba