देश भर की नदियों की तलहटी को नए सिरे से खंगाला–खोजा जा रहा है। करीब 40 हजार 835 लाइन किमी स्थलीय क्षेत्र में इनके निजी कम्पनी से सर्वे और मूल्यांकन से देश में एक सुव्यवस्थित डाटा इकट्ठा हो सकेगा। इसकी मदद से देश में तेल और प्राकृतिक गैस के नए भण्डारों का आसानी से पता चल सकेगा। उड़ीसा में 7408 लाइन किमी के साथ असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड में भी मार्च 2019 तक सर्वे पूरा हो जाएगा। इसके पहले यहाँ सेटेलाइट सर्वे किया जा चुका है। देश की धरती अब तक पानी उलीचती थी, लेकिन अब पेट्रोलियम गैस और तेल भी उगलेगी। नदियों की तलछट घाटियों में इसके खोजे जाने का काम शुरू हो चुका है। सन 2020 तक कई स्थानों पर इनके बड़ी तादाद में भण्डार मिलने की सम्भावनाएँ जताई जा रही हैं। देश में तेल और प्राकृतिक गैस फिलहाल बहुत ही कम मिलती है। हमें अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये इसका बड़ा हिस्सा करीब 70 फीसदी विदेशों से आयात करना पड़ता है। उड़ीसा के महानदी घाटी और गुजरात के बड़े इलाके में हाइड्रोकार्बन की सम्भावना होने के बाद अब मध्य प्रदेश में भी इसके लिये सर्वे किया जा रहा है।
बीते 25 सालों में नदी घाटियों के तलछटी इलाकों में तेल और प्राकृतिक गैस के भण्डार होने की सम्भावनाओं के बाद भी अब तक कोई बड़ी पहल नहीं की गई है। लेकिन अब इसके लिये नेशनल सिस्मिक प्रोग्राम के रूप में नई कोशिश की जा रही है। देश में अब तक करीब 48 फीसदी नदी घाटी की तलहटी में धरती के भीतर का कोई डाटा एकत्रित नहीं किया गया है। इससे यह साफ नहीं हो पाता है कि कहाँ भूगर्भ में क्या खजाना छिपा हुआ है।
केन्द्र सरकार ने कुछ दिनों पहले यह तय किया है कि देश के कुछ हिस्सों में पेट्रोल–डीजल जैसे तेल और प्राकृतिक गैस के भण्डार हो सकते हैं लेन अब तक यहाँ किसी तरह का कोई सर्वे नहीं कराया जा सका है। ऐसे स्थानों को चिन्हांकित कर अब इस दिशा में वृहद कार्य योजना बनाई गई है। इसके तहत अब तक सेटेलाइट और अन्य तकनीकों के माध्यम से कुछ प्रारम्भिक अनुमान लगाए गए हैं। इन्हीं अनुमानित स्थानों पर अब विस्तृत सर्वे का काम भी शुरू किया गया है।
बाकायदा एक विशेष मुहिम की तरह नेशनल सिस्मिक प्रोग्राम का नाम देकर सरकार इसे तय समय सीमा में पूरा करना चाहती है। इस योजना में केन्द्र सरकार पहले चरण में करीब पाँच हजार करोड़ रुपए खर्च कर देश भर के 18 राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों की 26 (बेसिन) घाटियों में 2D सर्वे करवा रही है। देश के उत्तर पूर्वी इलाके में बड़ी संख्या में इसके भण्डार मिलने की सम्भवाना है। उड़ीसा में महानदी की तलछट घाटी से इसकी शुरुआत हो चुकी है।
अब देश भर की नदियों की तलहटी को नए सिरे से खंगाला–खोजा जा रहा है। करीब 40 हजार 835 लाइन किमी स्थलीय क्षेत्र में इनके निजी कम्पनी से सर्वे और मूल्यांकन से देश में एक सुव्यवस्थित डाटा इकट्ठा हो सकेगा। इसकी मदद से देश में तेल और प्राकृतिक गैस के नए भण्डारों का आसानी से पता चल सकेगा। उड़ीसा में 7408 लाइन किमी के साथ असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड में भी मार्च 2019 तक सर्वे पूरा हो जाएगा। इसके पहले यहाँ सेटेलाइट सर्वे किया जा चुका है।
इसी कार्यक्रम के तहत मध्य प्रदेश में भी विंध्य, नर्मदा और सतपुड़ा की घाटियों के विभिन्न हिस्सों में यह काम शुरू हो चुका है। इसमें शुरुआती दौर में देवास और सीहोर जिलों में कुछ स्थानों पर हाइड्रोकार्बन स्रोतों का पता लगाने के लिये सर्वे और डाटा इकट्ठा करने के लिये काम किया जा रहा है। ओएनजीसी (ऑयल एंड नेचुरल गैस कारपोरेशन लिमिटेड) तथा ओआईएल (ऑयल इण्डिया लिमिटेड) इस काम में जुटे हैं। वे जमीनी सर्वे के बाद सरकार को हाइड्रोकार्बन संसाधनों की उपलब्धता, प्रसंस्करण और अन्य महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ देंगे। केन्द्र सरकार इस पर खासा ध्यान दे रही है।
कैसे काम करता है यह सर्वे
हाइड्रोकार्बन स्रोत का पता लगाने के लिये सर्वे करने वाली कम्पनी अल्फा जिओ के प्रोजेक्ट मैनेजर राहुल चावला कहते हैं, 'तेल व प्राकृतिक गैस का पता लगाने के लिये हर तीन किमी पर सर्वे किया जा रहा है। इसके लिये 200 फीट तक धरती में होल किया जा रहा है। यह होल या गड्ढा उसी तरह होता है, जैसे पानी निकालने के लिये किया जाता है। इसके लिये 400 से ज्यादा विशेषज्ञ और प्रशिक्षित लोगों की टीम हमारे साथ काम कर रही है। इनमें वैज्ञानिक और आब्जर्वर भी शामिल हैं। इसके लिये विशेष रूप से कुछ विदेशी विशेषज्ञों की मदद भी ली जा रही है। यहाँ सर्वे करते समय धरती की हर गतिविधि को बारीकी से रिकॉर्ड किया जाता है। शुरुआत में आधुनिक मशीनों व यंत्रों के माध्यम से जमीन की आन्तरिक संरचना की जानकारी पता की जा रही है। इसके तहत जमीन के अन्दर छह से आठ किमी तक की स्थिति पता की जा रही है। साथ ही मिट्टी के सैम्पल भी लिये जा रहे हैं। अभी 2डी सर्वे हो रहा है। जानकारी जुटाने के बाद रिपोर्ट सम्बन्धित विभाग को सौंपी जाएगी। इसके बाद यह जानकारी प्रोसेसिंग सेंटर भेजी जाएगी, जहाँ वैज्ञानिक और विषय विशेषज्ञ बैठकर फाइनल रिपोर्ट तैयार करेंगे।'
उन्होंने बताया कि दरअसल होल करते समय निर्धारित स्टेट लाइन में तीन–तीन किमी के अन्तराल पर करीब 200 फीट गहरे और साढ़े चार इंच के दो होल के बीच 25 मीटर गहरे बोर 60 मीटर की दूरी पर किये जाएँगे। इनमें सेंसर लगाकर नियंत्रित विस्फोट किये जाएँगे। विस्फोट के समय उसके केबलयुक्त सेंसर से आसपास के 17 किमी इलाके में जो कम्पन पैदा होगा, उसके आँकड़े इकट्ठा किये जाएँगे। इसी तरह विस्फोट से उत्पन्न तरंगे धरती के भीतर करीब 6 किमी तक जाएँगी। तरंगे जब भूगर्भ से होकर लौटेंगी तो इन्हें रिकॉर्ड कर लिया जाएगा। विस्फोट के बाद 8 से 10 सेकेंड तक हर कम्पन का असर बारीकी से दर्ज होगा और इसी के आधार पर निष्कर्ष निकाले जाएँगे। इसका फायदा यह होगा कि वैज्ञानिकों को इसके अध्ययन के लिये धरती की परत-दर-परत का सुव्यवस्थित डाटा मिल सकेगा। यह डाटा ही महत्त्वपूर्ण होगा, इसी के विश्लेषण से यह तय हो सकेगा कि देश में तेल और गैस के भण्डार कहाँ सम्भव है। यह अध्ययन ही आगे की दिशा तय करेगा।
उन्होंने बताया कि कम्पनी को यहाँ सर्वे करने में करीब छह माह का समय लगेगा। इसी प्रकार पूरे मध्य प्रदेश में करीब दो साल में कम्पनी सर्वे कर लेगी। 2डी सर्वे पूरा करने के बाद 3डी सर्वे होगा। इसके बाद ही भूगर्भ से यह राज खुल सकेगा कि कहाँ–कहाँ तेल और प्राकृतिक गैस के भण्डार मिल सकते हैं और कहाँ नहीं। सन 2020 तक पूरे देश में स्थिति स्पष्ट हो सकेगी।
जानकार बताते हैं कि इससे यदि कुछ भण्डार सरकार के हाथ में आ जाते हैं तो देश की पेट्रोल, डीजल और गैस के लिये निर्भरता बढ़ सकेगी और विदेशों से आयात में भी कमी आएगी और विदेशी मुद्रा की बचत हो सकेगी।
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Post By: RuralWater