देश का पर्यावरण बिगड़ रहा है


आठ साल बाद भारत सरकार द्वारा जारी स्टेट आफ द इन्वायरमेन्ट रिपोर्ट-2009 में कहा गया है कि देश का पर्यावरण बुरी तरह से बिगड़ रहा है. हवा, पानी और जमीन तीनों ही खतरनाक रूप से प्रदूषित हो रहे हैं.

मंगलवार को रिपोर्ट देश के वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने नई दिल्ली में जारी किया. रिपोर्ट बताती है कि देश की कुल जमीन में 45 प्रतिशत जमीन खराब (डिग्रेडेड) हो चुकी है. देश के सभी शहरों में हवा का प्रदूषण भी बढ़ रहा है और वनस्पतियों तथा पशु पक्षियों की प्रजातियां भी तेजी से विलुप्त हो रही हैं. यही नहीं, शहरों में बढ़ती झुग्गी बस्तियों के कारण पर्यावरण की नयी तरह की समस्या पैसा हो रही है. रिपोर्ट कहती है कि भारत अपने कुल जल संसाधन का जितना पानी प्रयोग कर सकता है उसका 75 प्रतिशत इस्तेमाल कर रहा है.

गैर सरकारी संस्था डेवलपमेन्ट अल्टरनेटिव्स के सहयोग से तैयार की गयी रिपोर्ट में कहा गया है कि देश की माटी में क्षारीय तत्व तेजी से बढ़ रहा है और बंजर जमीनों का दायरा भी बड़ा हो रहा है. रही सही कसर जगह-जगह होने वाले जल भराव के कारण पूरी हो रही है. इसका परिणाम यह हो रहा है कि देश की 45 फीसदी जमीन अनुत्पादक और अनुपजाऊ हो गयी है. जमीन की बिगड़ी इस दशा का मुख्य कारण बताया गया है कि जिस तरह से वनों का विनाश हो रहा है, खदान और पानी का अनियमित दोहन किया जा रहा है तथा गलत तरीके के खेती की पद्धतियों का इस्तेमाल किया जा रहा है उससे जमीन को सबसे अधिक नुकसान पहुंच रहा है. हालांकि रिपोर्ट में इस बात की संभावना जताई गयी है कि अगर थोड़ी सावधानी बरती जाए और कुछ प्रयास किया जाए तो खराब हो चुकी 14.7 करोड़ हेक्टेयर जमीन को दोबारा ठीक करके माटी की गुणवत्ता को बढ़ाया जा सकता है.

दिल्ली के पत्र सूचना कार्यालय में रिपोर्ट जारी करने के बाद पत्रकारों से बात करते हुए पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि 'इस बात की उम्मीद करना कि आनेवाले दिनों में वन क्षेत्रों में हम तेजी से वृद्धि कर लेगे थोड़ी अव्यावहारिक सोच होगी.' उन्होंने कहा कि 'हमारी योजना है कि आनेवाले 10 सालों में हम वर्तमान 21 प्रतिशत वनक्षेत्र को और अधिक सघन कर सकें.' वर्तमान में देश में केवल 2 प्रतिशत वन क्षेत्र ऐसा हैं जो उच्च सघनता वाले क्षेत्र में आता हैं जबिक मध्यम सघनता वाला वन क्षेत्र कुल भू क्षेत्र का 10 प्रतिशत है.

रिपोर्ट के बारे में बताते हुए डेवलपमेन्ट अल्टरनेटिव्स के अध्यक्ष जार्ज सी वर्गीज ने बताया कि केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और आल इंडिया मेडिकल साईंस के साथ मिलकर जो सर्वे किया गया उसमें चौंकाने वाले नतीजे सामने आये हैं. देश के जिन 50 शहरों में ये सर्वे करवाये गये उसमें यह बात निकलकर सामने आयी है कि यहां रहनेवाले 11 करोड़ लोग धूल और धुएं के शिकार हैं तथा इन शहरों में प्रदूषण के कारण 15,000 करोड़ सालाना का जीडीपी में नुकसान हो रहा है. उन्होंने बताया कि शहरों में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण तेजी से बढ़ रही गाड़ियों की संख्या है. उन्होंने कहा कि अब वक्त आ गया है सार्वजनिक परिवहन को पूरी मजबूती के साथ चुस्त दुरुस्त किया जाए.

यही हाल पानी का हो रहा है. रिपोर्ट कहती है कि भारत में पानी को बहुत सावधानी से इस्तेमाल करने की जरूरत है क्योंकि पानी का कोई विकल्प नहीं है. रिपोर्ट बताती है कि शहरों में पानी की समस्या का प्रमुख कारण अनियमित तरीके से घरेलू इस्तेमाल की सप्लाई, कमजोर निकासी, उद्योगों द्वारा भूजल का मनमानी दोहन, फैक्ट्रियों द्वारा भूजल में जहरीले रसायन छोड़ना तथा खेतों में बेतहाशा प्रयोग किया जा रहा केमिकल और फर्टिलाईजर देश में पानी के प्रदूषण के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है.

इसी तरह देश के पशु पक्षियों की प्रजातियों तथा वनस्पतियों पर भी खतरा मंडरा रहा है. भारत दुनिया का 17वां बहुविविधता वाला देश है लेकिन अब देश के प्राकृतिक विविधता का दस प्रतिशत हिस्सा खतरे के निशान के पास पहुंच गया है जिन्हें बचाने के लिए अगर कोशिश नहीं की गयी तो वे जल्द ही खत्म हो जाएंगे. रिपोर्ट में इसका मुख्य कारण बताते हुए कहा गया है कि जिस तरह से देश में जैव विविधता के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया जा रहा है उससे पशु पक्षियों के साथ ही पर्यावरण की विविधता पर खतरा मंडरा रहा है. हालांकि दुनिया के कुल ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भारत का हिस्सा 5 प्रतिशत है लेकिन आज देश के 70 करोड़ लोगों पर पर्यावरण में हो रहे बदलावों का खतरा मंडरा रहा है. जलवायु परिवर्तन का सीधा प्रभाव देश की खेती और उत्पादन प्रणाली पर पड़ रहा है जिसके बहुत भयावह परिणाम निकलने की आशंकाएं बढ़ती जा रही हैं.

रिपोर्ट कहती है कि भारत में पानी को बहुत सावधानी से इस्तेमाल करने की जरूरत है क्योंकि पानी का कोई विकल्प नहीं है. रिपोर्ट बताती है कि शहरों में पानी की समस्या का प्रमुख कारण अनियमित तरीके से घरेलू इस्तेमाल की सप्लाई, कमजोर निकासी, उद्योगों द्वारा भूजल का मनमानी दोहन, फैक्ट्रियों द्वारा भूजल में जहरीले रसायन छोड़ना तथा खेतों में बेतहाशा प्रयोग किया जा रहा केमिकल और फर्टिलाईजर देश में पानी के प्रदूषण के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है. तेजी से बढ़ता शहरीकरण भी पर्यावरण के सामने गंभीर चुनौती पैदा कर रहा है. जिस तरह से गावों को अनुत्पादक बनाया जा रहा है उसके कारण गांवों से तेजी से शहरों की तरफ पलायन हो रहा है. रिपोर्ट कहती है कि शहरों में रहनेवाली कुल आबादी का 20 से 40 प्रतिशत झुग्गियों में रह रहा है. रिपोर्ट कहती है कि शहरों में मूलभूत सुविधाएं बढ़ाने के नाम पर केन्द्र सरकार द्वारा जो पैसा खर्च किया जा रहा है उसका अधिकांश हिस्सा महानगरों में खर्च हो रहा है जबकि असल समस्या उन 4,000 छोटे शहरों में पैदा हो रही है जहां तेजी से पलायन करके लोग पहुंच रहे हैं. रिपोर्ट पर बोलते हुए वर्गीज ने कहा भी सरकार को शहरीकरण की इस बढ़ती समस्या से निपटने के लिए बेहतर तरीके से प्लानिंग करनी होगी और योजनाओं को पूर्णता में तैयार और लागू करना होगा.

आठ साल बाद ही सही लेकिन इस रिपोर्ट के कारण देश में पर्यावण संकट की विकरालता का अंदाज तो लगता ही है. लेकिन सरकारी विभागों के साथ दिक्कत यह है कि वे समस्याओं को अलग अलग करके देखते हैं. यह रिपोर्ट जिन बातों की ओर ध्यान दिला रही है उससे साफ है कि देश के विकास के माडल पर दोबारा सोचने की जरूरत है. लेकिन दिक्कत यह है कि सरकार विकास के नाम पर खुद देश के पर्यावरण और लोगों के जीवन पर संकट पैदा कर रही है ऐसे में केवल रिपोर्ट जारी कर देने से तो कुछ हासिल नहीं होगा. जरूरत इस बात की है कि सरकार पूरी औद्योगिक नीति में बदलाव लाये ताकि बदलते पर्यावरण में धरती और लोग दोनों को बचाया जा सके.

Tags - State of environment report India 2009Date: Aug 2009, Ministry of Environment and Forests, Energy, Climate Change, Food Security, Land Degradation, Urbanisation, Water Quality, Biodiversity, Environment, Air Pollution in Hindi.

मूल रिपोर्ट अटैचमेंट में देखें


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