डेढ़ लाख हेक्टेयर जमीन परती


सूखे से कराह रहा धान का कटोरा इलाहाबाद का लापर क्षेत्र

सूखाइलाहाबाद। लगभग डेढ़ लाख हेक्टेयर परती, दरारों में तब्दील जमीन देखकर किसानों का कलेजा फटता जा रहा है। कुछ खेतों में बुआई की गई, लेकिन उसे भूखे नीलगायों के झुण्ड निगल गए। जिधर देखिए दूर-दूर तक रबी की फसलों की हरियाली का कहीं नामोंनिशान नहीं दिखायी देता।

यह स्थिति अकेले इलाहाबाद जनपद के कोरांव तहसील की है। सहायक विकास अधिकारी कृषि (कोरांव) नजरूद्दीन बताते हैं, कोरांव तहसील में करीब दो लाख हेक्टेयर जमीन कृषि योग्य है, जिनमें से कुल डेढ़ लाख हेक्टेयर जमीन में पानी के (सिंचाई) अभाव में खेती नहीं हो सकी है।

कोरांव बेल्ट को इस जनपद का धान का कटोरा भी कहा जाता है। कोरांव से बासमती, विष्णुभोग, कालाकांकर के चावल का निर्यात सउदी अरब तक होता है। एक जगह है लेड़ियारी (ब्लाक-कोरांव), जहाँ की मंडी में सीधे मुम्बई के व्यापारी आते हैं। इस साल खरीफ सीजन में बारिश कमजोर होने से धान की खेती नष्ट हो गई थी। किसानों को लागत के रूप में इसकी काफी कीमत चुकानी पड़ी है। खरीफ सीजन में बैंकों से केसीसी योजना से कर्ज लेकर खेती करने वाले किसान बर्बाद हो रहे हैं। लगातार तीन फसलों से मार खा रहे किसान प्रकृति के कोप से परेशान हो चुके हैं। किसानों पर टूटी आफत के इस मौके पर शासन व प्रशासन भी हाथ खींच चुका है।

सूखापिछले साल रबी के मौसम में अतिवृष्टि और ओलावृष्टि की मार और अब भयानक अकाल के कारण गेहूँ, चने की बुआई न हो पाने से इस इलाके का किसान पहली बार हिम्मत हारता दिखाई दे रहा है। पिछले साल रबी के मौसम में फसल नुकसानी का मुआवजा भी कई गाँवों के किसानों को नहीं दिया गया। जिला कृषि अधिकारी, गणेश प्रसाद दुबे कहते हैं- दो दिन पहले कोरांव व मांडा विकास खण्डों में दौरा किया था। सज्ञान में आया कि इलाके का 30 प्रतिशत हिस्सा पूरी तरह से सूखे के चपेट में है, जहाँ बिल्कुल खेती नहीं हो सकी है। सरकारी विभाग का आँकड़ा बता रहा है कि जहाँ पिछले साल बीज केन्द्र से करीब 5000 कुन्तल गेहूँ का बीज बिक्री हुआ था वहीं इस साल एक बोरी बीज भी नहीं बिक पाया। इससे इलाके में सूखे की स्थिति का सहज ही आँकलन लगाया जा सकता है।

 

 

1962-63 में पड़ा था ऐसा सूखा


इस इलाके के कई बुजुर्गों का कहना है कि सन 1961 से लेकर 1968 तक यहाँ पर लगातार सूखा पड़ा था। फिर भी किसान मोटिया अनाज जैसे सावां, काकुन, कोदौ, ज्वार आदि पैदा कर लेता था। कुछ दलहनी फसलें भी हो जाती थीं। उसी समय अमेरिका से लाल दरिया आई थी, जिसके लिये गाँवों में भयंकर मारा-मारी मची थी। उस समय किसानों के पास खर्च बहुत कम थे। लड़कियों की शादी भी सस्ते में सम्पन्न हो जाती थी। लेकिन इस साल के सूखे से तो यहाँ बुन्देलखण्ड व विदर्भ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गयी लगती है।

 

 

 

 

पीने के पानी के लिये मचेगी रार


सूखानदी, नालों, तालाबों और लगातार सूख रहे कुओं से तो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अगले महीने से ही इस इलाके में पीने के पानी के लिये मारा-मारी मच जायेगी। सबसे अधिक समस्या पशुओं के लिये पीने का पानी को लेकर होगी। कोरांव तहसील में वैसे ही कुछ स्थानों पर प्रतिवर्ष टैंकर से पानी की सप्लाई होती है, जिसके लिये राज्य सरकार को लाखों रुपये खर्च करना पड़ता है। इस साल अकाल पड़ने के कारण 90 प्रतिशत गाँवों में टैंकर से पानी भेजना पड़ेगा।

किसानों के सामने बस एक ही सवाल है कि अब किसानों के पास कहाँ से आयेगा अनाज व पीने का पानी। वरिष्ठ आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह ने उ.प्र. सरकार से तत्काल खाद्य सुरक्षा कानून लागू करने की मांग रखी है। श्री सिंह के अनुसार यदि यह कानून लागू हो जाता है तो प्रत्येक व्यक्ति को 5 किलो गेहूँ 1.5 रु. और चावल 3 रु. प्रति किलो मिलना शुरू हो जायेगा और सूखे से बेहाल किसानों व मजदूरों को काफी राहत मिलेगी।

 

 

 

 

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