छत्तीसगढ़ का नाम सुनते ही लोगों के मन में एक आदिवासी राज्य की छवि बनती है, जो विकास की दौड़ में शामिल होने के लिए संघर्ष कर रहा है, लेकिन इसी छत्तीसगढ़ में सैंकड़ों मीलों तक जंगल का इलाका फैला है, जो इस राज्य को प्राकृतिक संपदाओं से समृद्ध राज्य बनाता है। यहां सैंकड़ों नदी, तालाब और झरने आदि सहित विभिन्न जलस्रोत इंसानों सहित विभन्न जीव-जंतुओं की प्यास बुझाते हैं, लेकिन विकास की अंधी दौड़ में छत्तीसगढ़ भी स्वार्थ की भेंट चढ़ गया है। जिस कारण प्रकृति/जंगलों को नुकसान पहुंच रहा है और नदी, तालाब आदि प्रदूषित होते जा रहे हैं। भूजल स्तर भी लगातार नीचे गिरता जा रहा है। खतरे में पड़ती प्रकृति और जल संसाधनों को बचाने के लिए ही वीरेंद्र सिंह पिछले 20 सालों से कार्य कर रहे हैं। वीरेंद्र के कार्यो की सराहना जलशक्ति मंत्रालय सोशल मीडिया पर अपनी एक पोस्ट के माध्यम से भी कर चुका है।
वीरेंद्र का जन्म बालोद जिला के दल्लीराजहरा गांव में एक सामान्य किसान परिवार में हुआ था। बचपन से ही वें प्रकृति से काफी करीब से जुड़े हुए थे। बी.काॅम, एम काॅम और अर्थशास्त्र में एमए की डिग्री लेने के बाद उन्होंने रोजी-रोटी के लिए वर्ष 2000 में निजी स्कूल में पढ़ाना शुरू किया। इसी के साथ 25 बच्चों की टीम बनाकर उन्होंने पर्यावरण संरक्षण का कार्य भी करना शुरू कर दिया। बीस साल पहले घर के पास ही पीपल का एक पौधा रोपकर अपने काम की शुरूआत की। बच्चों को भी वें पढ़ाई के साथ साथ पर्यावरण का महत्व समझाते थे।
इंडिया वाटर पोर्टल से बात करते हुए वीरेंद्र सिंह ने बताया कि ‘‘मैं बचपन से देखता था कि लोग अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए जंगल से पेड़ व लकड़ी काटकर ले जाते थे। खनन आदि गतिविधियों से भी पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचता था। ये देखकर काफी पीड़ा होती थी। इसलिए अपना जीवन प्रकृति के प्रति समर्पित करने का निर्णय लिया और अपने वेतन का एक अंश इस कार्य में लगाता हूं।’’
वीरेंद्र पौधारोपण के साथ साथ स्वच्छता अभियान भी चलाते थे। जब उन्होंने कार्य की शुरूआत की तो लोग उन्हें पागल कहते थे। लोग उनके घर पर शिकायत करते थे कि ‘पेड़ लगाने और गंदगी साफ करने में कुछ नहीं रखा है। ये क्या करते रहते हो।’’ शुरुआत में वीरेंद्र के परिजनों को भी ये काम पसंद नहीं आता था, लेकिन फिर परिजनों को अपने बेटे के काम का महत्व पता चला तो वें वीरेंद्र को प्रोत्साहित करने लगे।
वीरेंद्र ने बताया कि अभी तक मैं जन सहयोग से 35 हजार से ज्यादा पौधें लगा चुका हूं। जिनमें से अधिकांश पौधे जीवित हैं। मैंने 17 साल पहले बंजर पथरीली जमीन पर 250 पौधें लगाए थे। सभी पौधों की नियमित देखभाल की जाती थी। पिताजी जो खाद खेतों में डालने के लिए देते थे, उन्हें बिना बनाए इस खाद को मैं अपने लगाए पौधों में डाल देता था। आज सभी पौधें पेड़ बन चुके हैं। हम हर साल इन पेड़ों का जन्मदिवस भी मनाते हैं।
वीरेंद्र का कार्य केवल इतने तक ही सीमित नहीं रहा। वें पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए कई पदयात्राएं भी कर चुके हैं। सबसे पहले वीरेंद्र ने 2007 में दस लोगों के साथ दुर्ग जिले से नेपाल तक की साइकिल यात्रा की। 2008 में 11 लोगों के साथ छत्तीसगढ़ का भ्रमण कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया। पर्यावरण बचाने का संदेश देने के लिए राजहरा से कुसुमकसा तक सात किलोमीटर तक 15 हजार स्कूली छात्रों को साथ लेकर मानव श्रृंखला बनाई। आज भी वें जागरुकता के लिए विचरण करते रहते हैं।
वीरेंद्र ने दस सालों तक निजी स्कूल में पढ़ाया, लेकिन यहां से इतना वेतन नहीं मिल पाता था कि घर का खर्च ठीक से चल सके। इसलिए दस साल पहले उन्होंने माइनिंग साइट पर काम करना शुरू किया। बीस सालों के इस काम में वें साप्ताहिक छुट्टी का दिन अपने अभियान के लिए रखते थे। विभिन्न प्रकार के रचनात्मक तरीको के माध्यम से वें पर्यावरण बचाने का संदेश देते हैं, इनमें शरीर पर पेंटिंग करके जागरुक करना भी शामिल है। साथ ही प्लास्टिक के उपयोग को बंद करना भी उनके अभियान का हिस्सा है। समय समय पर एड्स जागरुकता, मतदान जागरुकता, साक्षरता जागरुकता आदि अभियान चलाए जाते हैं।
13 साल पहले उन्होंने जल संरक्षण का काम भी शुरू किया। दरअसल, छत्तीसगढ़ में विभिन्न प्रकार की जल प्रणालियां (प्राकृति जलस्रोत, नदी, तालाब, कुंए आदि) हैं, लेकिन इनमे लगातार जलस्तर कम होता जा रहा है। कई स्थानों पर लोगों ने नदियों और तालाबों को कूड़ादान बना दिया और नियमित रूप से उसमें कूड़ा फेंकते हैं। कई जल प्रणालियों का जल प्रदूषित हो चुका है। इसका असर भूजल स्तर में गिरावट के रूप में सामने आ रहा है। जिस कारण लोगों को जल संकट का सामना करना पड़ता है। समस्या का विकरालता और वक्त की जरूरत को देखते हुए वीरेंद्र जल को बचाने के लिए भी सफाई अभियान चला रहे हैं।
उन्होंने बताया कि 13 साल पहले एक कुंड़ की सफाई की थी। सरकार की मद्द से कुंड में घाट बनाया गया। अब कुंड के किनारे इसी घाट पर बैठकर लोग आनंद लेते हैं। हमारे कार्य से कई लोग भी जुड़ गए हैं और सभी कार्य हम सामूहिक रूप (जन सहयोग से) से करते हैं। जिनमें पेरी पत्नी भी साथ देती है। अभी तक हम 35 तालाब, एक नदी (तन्दला नदी) और 2 कुंड सहित विभिन्न नालों को साफ कर चुके हैं।
बीस साल पहले तंज कसने वाले लोग भी अब उनके कार्यों की प्रशंसा करने लगे हैं। साथ ही वीरेंद्र को ‘जल स्टार’ और ‘ग्रीन कमांड़ों’ जैसे नामों से भी जाना जाता है। साथ ही खंडि नदी के सरंक्षण के लिए भी महिलाओं को शपथ दिलाई गई है। अन्यों को भी नदी संरक्षण के लिए प्रेरित किया जा रहा है। क्योंकि वीरेंद्र का मानना है कि हर नदी गंगा है। इसके अलावा उनके कुछ प्रमुख नारे भी हैं - ‘‘बच्चा एक, वृक्ष अनेक’’, पर्यावरण बचाना है हमने ये ठाना है, स्वच्छ घर स्वच्छ शहर आदि। वें ‘खेत में मेड और मेड पर पेड़’ लगाने के लिए भी प्रेरित कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने अपने खेत की मेड पर विभिन्न प्रजाति के 150 फलदार पौधे लगाए हैं। वें कहते हैं कि प्रकृति का संरक्षण सभी का कर्तव्य है। मैं अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहा हूं और जीवन भर करता रहूंगा।
हिमांशु भट्ट (8057170025)
/articles/chatataisagadhah-parayaavarana-sanrakasana-maen-jautae-vairaendara-35-taalaaba-eka-nadai