छत्तीसगढ़ के जलाशयों के पट्टे सहकारी मछुआ समूहों को

 

छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्य के आठ जलाशयों को मछली पालन के लिए पट्टे पर देने का फैसला किया है। सूत्रों के मुताबिक छत्तीसगढ़ के दो सौ हेक्टेअर से एक हजार हेक्टेअर जल क्षेत्र वाले आठ जलाशयों को मछली पालन के लिए पांच साल के पट्टे पर पंजीकृत मछुआ सहकारी समितियों एवं समूहों को देने का फैसला किया गया है। इनमें रायपुर जिले के किरना और बल्लार, रायगढ़ जिले का चिंकारी, कोरिया जिले का गेज, राजनांदगाव का मटिया, कबीरधाम जिले का बेहराखार, कांकेर जिले का परलकोट और बस्तर जिले का जलाशयों जलाशय शामिल हैं।

 

राज्य के मछली पालन विभाग ने सभी जलाशयों को पट्टे पर देने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। राज्य के राजनांदगांव जिले के मटिया और कबीरधाम जिले के बेहराखार जलाशयों को पांच साल की अवधि के लिए मछुआ सहकारी समितियों को पट्टे पर दिया जा चुका है। जलाशयों के कार्य क्षेत्र में सहकारी समितियों और जलाशयों के पास रहने वाले मछुआ समूहों को जलाशय के लीज आबंटन में प्राथमिकता दी जाएगी। अधिकारियों ने बताया कि राज्य के 22 ऐसे जलाशयों में से इस साल आठ जालाशयों की पुरानी लीज अवधि खत्म होने पर उन्हें पट्टे पर देने की कार्रवाई की जा रही है।

 

 राज्य में छोटे, मझोले एवं बड़े जलाशयों को मिलाकर कुल 1,617 जलाशय हैं। इन जलाशयों का कुल जल क्षेत्र 0.841 लाख हेक्टेअर है। इन जलाशयों में 64 प्रतिशत क्षेत्र (53,613 हेक्टेअर) छोटे जलाशयों के हैं जिनकी संख्या 1,610 है। मझोले आकार के जलाशयों की संख्या 5 है, जिनका कुल क्षेत्रफल 12,066 हेक्टेअर है और इनका हिस्सा राज्य के कुल जलाशयों के क्षेत्र में 14 प्रतिशत है। जबकि दो बड़े जलाशयों का क्षेत्रफल 18,435 हेक्टेअर है और इनका हिस्सा 22 प्रतिशत क्षेत्र है। राज्य में मछली उत्पादन का औसत 69 किग्रा प्रति हेक्टेअर है। राज्य के मछली पालन विभाग का कहना है कि छोटे जलाशयों में मछली उत्पादन की ज्यादा क्षमता है। इनमें स्थानीय परिस्थितियों एवं प्रयास के आधार पर 100 किग्रा से 500 किग्रा तक उत्पादन हो सकता है। राज्य में सरकारी नीति के अनुसार 1 हेक्टेअर से ज्यादा क्षेत्रफल वाले किसी भी तालाब को सहकारी समितियों व समूहों को मछली पकड़ने के लिए पट्टे पर दिया जाता है।

 

राज्य के मछली पालन विभाग की नीति के अनुसार छत्तीसगढ़ में 200 से 1000 हेक्टेअर तक और पांच हजार हेक्टेअर से अधिक जल क्षेत्र के जलाशयों को मछली पालन कर मत्स्याखेट और बेचने के लिए पांच साल की लीज पर दिया जाता है। राज्य में दो सौ हेक्टेअर तक के जल क्षेत्र के जलाशयों एवं तालाबों को त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के तहत मछुआ सहकारी समितियों और समूहों को पांच वर्ष की लीज पर मछली पालन के लिए दिया जाता है। दस हेक्टेअर जल क्षेत्र तक के तालाबों को ग्राम पंचायत द्वारा, दस से अधिक और सौ हेक्टेअर तक के जलाशयों को जनपद पंचायत द्वारा एवं सौ से अधिक एवं दो सौ हेक्टेअर जल क्षेत्र तक के जलाशयों को जिला पंचायत द्वारा मछुआ सहकारी समितियों और समूहों को आबंटित किया जाता है।

 

मछली पालन विभाग द्वारा दो सौ से एक हजार हेक्टेअर जल क्षेत्र व पांच हजार हेक्टेअर से अधिक जल क्षेत्र वाले जलाशयों को पात्र सहकारी समितियों व समूहों को पट्टे पर दिया जाता है। अधिकारियों के अनुसार राज्य में एक हजार से पांच हजार हेक्टेअर जल क्षेत्र वाले बारह जलाशयों में से पांच जलाशयो को मत्स्य महासंघ को आबंटित किया जा चुका है। साथ ही पांच हजार हेक्टेअर से अधिक जल क्षेत्र के दो जलाशयों गंगरेल जलाशय एवं हसदेव बांगो जलाशय को भी शासन द्वारा मछली पालन के लिए पांच वर्ष की अवधि के लिए पट्टे पर दिया जा चुका है।

 

Tags: Chhattisgarh, fisheries, coooperative societies, reservoir, lease, fisheries department, fish production

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