झारखंड की आदिवासी आबादी अपनी आजीविका के लिए मुख्य रूप से कृषि और मजदूरी पर निर्भर है। रामगढ़ जिले की आदिवासी आबादी लगभग 21 प्रतिशत है। छोटानागपुर पठारी क्षेत्र के अधिकांश आदिवासी किसानों के पास छोटी जोत की भूमि है। परंपरागत रूप से भूमि पर आदिवासियों का कब्जा था लेकिन धीरे- धीरे इसे सरकारों द्वारा कोयला खनन और खनिज अन्वेषण कंपनियों को हस्तारित कर दिया गया। आदिवासी कृषि प्रणाली में यांत्रिक शक्ति की तुलना में मानव और पशु शक्ति का अभी भी अधिक प्रयोग है। परपरागत रूप से इस क्षेत्र के किसान, कृषि कार्यों के लिए कई छोटे उपकरणों और औजारों का उपयोग कर रहे हैं जो स्थानीय रूप से उनकी आवश्यकताओं के अनुसार विकसित और निर्मित किए गए हैं। पारंपरिक उपकरण वे होते है जो प्राचीन समय में आविष्कार किए गए थे और इनका उपयोग कई वर्षों तक हुआ। कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए इन उपकरणों का उपयोग हाल तक और कहीं-कहीं अभी भी किया जा रहा है।
आदिवासी किसानों के अधिकांश उपकरण स्थानीय कारीगरों द्वारा बास, लकड़ी और लोहे से बने होते हैं। लेकिन अब धीरे-धीरे उन्होंने मानकीकृत कारखाना निर्मित उपकरणों को अपनाना शुरू कर दिया है जो किफायती मी होते हैं। आदिवासियों के पारंपरिक कृषि उपकरण पुरुष और महिला दोनों उपयोग कर सकते हैं। प्रत्येक उपकरण का उपयोग किसी विशेष कृषि कार्य के लिए किया जाता है जैसे कि भूमि की तैयारी, बुवाई, निराई, सिंचाई कटाई, कटाई के बाद के प्रसंस्करण और कृषि उपज का परिवहन आदि। वर्तमान में उपयोग में आने वाले पारंपरिक कृषि उपकरणों के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिए रामगढ़ जिले के जनजातीय क्षेत्रों में एक सर्वेक्षण किया गया। अध्ययन का उद्देश्य इन पारंपरिक उपकरणों और प्रौद्योगिकी का दस्तावेजीकरण करना था क्योंकि ये पारंपरिक उपकरण और प्रौद्योगिकी, आधुनिक उपकरणों और प्रौद्योगिकी के आने के साथ विलुप्त होने के कगार पर हैं। किसान द्वारा कृषि मशीनों को अपनाने में प्रमुख बाधाओं के बारे में एक निष्कर्ष निकाला गया और कृषि मशीनीकरण में सुधार करने के सुझाव भी दिये गए।।
यह सर्वेक्षण, रामगढ़ जिले (औसत ऊंचाई 337 एमएसएल) के आराबस्ती, बडका चुम्बा, बहातू पिप्राटांड़, अमरादाग, गन्धौनिया गोविंदपुर और गरगाली गावों में आयोजित किया गया जो कि आदिवासी बहुल है। आठ गावों में कुल 250 घरों को चुना गया। कृषि पद्धतियों में उनके द्वारा उपयोग किए जाने वाले स्वदेशी उपकरणों से संबंधित जानकारी विशेष रूप से तैयार प्रारूप और सामूहिक चर्चा के माध्यम से एकत्र की गई। पारंपरिक उपकरणों को उनके आयाम, उपकरण की चौड़ाई, निर्माण सामग्री वजन आदि जैसे अन्य मापदंडों के साथ सूचीबद्ध किया गया। कृषि यंत्रीकरण सेवाओं में सुधार के लिए किसानों के दस संभावित अवरोधों और छह सुझावों को पास के कृषि विज्ञान केंद्र, गैर सरकारी संगठनों और पंचायत के प्रमुख जैसे विश्वसनीय स्रोतों की समीक्षा के बाद सूचीबद्ध किया गया।
चयनित घर के मुखिया का साक्षात्कार एक पूर्व नियोजित प्रारूप के माध्यम से किया गया। कृषि मशीनीकरण अपनाने की बाधाओं को चार बिंदु पैमाने पर मापा गया अर्थात् सबसे गंभीर, गंभीर कम गंभीर और बाधा रहित को क्रमशः 4 3 2 और 1 की स्कोरिंग दी गयी। सुझावों को तीन बिंदु पैमाने पर गाया गया. अर्थात् क्रमशः 3,2 और 1 के स्कोरिंग से सहमत, तटस्थ और असहमत सारणीकरण, छंटाई और सांख्यिकीय विश्लेषण किया गया। प्रत्येक बधा के लिए औसत स्कोर की गणना की गई और रैंकिंग दी गई।
किसानों की भूमि जोत और कृषि यंत्रीकरण प्रतिरूप
भूमि जोत का प्रतिरूप कृषि मशीनों के उपयोग एवं इनको अपनाने में प्रभावशाली है सर्वेक्षण किए गए गांवों के अधिकांश आदिवासी किसानों (82 प्रतिशत के पास छोटे जोत की भूमि थी। 16 प्रतिशत किसानों के पास 2-4 हेक्टेयर जमीन थी और केवल 2 प्रतिशत किसानों के पास 4-10 हेक्टेयर जमीन थी। परिवार का आकार भी एक महत्वपूर्ण कारक है क्योंकि परिवार के सदस्य अपने स्वयं के खेत में मजदूर के रूप में काम करते हैं। सर्वेक्षण किए गए घरों में से छोटे परिवार का आकार (14) केवल 16 प्रतिशत था जबकि परिवार का अधिकाश हिस्सा (68 प्रतिशत ) 5 से 8 परिवार के सदस्यों का था ।
क्षेत्र के किसानों की भूमि की उपलब्धता क्षेत्र के किसानों का पारिवारिक आकार
किसानों द्वारा पारंपरिक कृषि उपकरणों के उपयोग का प्रतिरूप - बड़ी संख्या में क्षेत्र के किसान कुदाल, हतिया खुरपी कुल्हाड़ी दाऊ आदि उपकरणों का उपयोग करते हैं। लगभग 90 प्रतिशत किसान जुताई के लिए बैल और देसी हल का उपयोग करते है। अधिकाश किसानों (72 प्रतिशत) के पास बैल की एक जोड़ी थी और और वे दूसरे किसानों को बैल किराए पर भी देते हैं। हालांकि, कुछ ( 18 प्रतिशत) किसानों के पास केवल एक बैल था। जिन परिवारों के पास देसी हल था उनके पास लकड़ी का बना पाटा भी था। लगभग 14 प्रतिशत किसान 200-400 रुपये प्रतिदिन के शुल्क पर बल के साथ देसी हल किराए पर चला रहे हैं।
किसानों द्वारा उन्नत कृषि मशीनों के उपयोग का प्रतिरूप
स्प्रेयर, कल्टीवेटर, रोटावेटर, इलेक्ट्रिक मोटर्स, थ्रेशर आदि जैसे आधुनिक उन्नत उपकरण कुछ किसानों द्वारा उपयोग में लाये जा रहे है। किसानों के अनुसार, पिछले पांच वर्षों से क्षेत्र में ट्रैक्टर और पावर टिलरों का उपयोग बढ़ा है। उन्होंने फसली मौसम के दौरान मजदूर की कमी के बारे में बताया। हालांकि, 250 किसानों में से केवल 29 (11.50 प्रतिशत) किसानों के पास ट्रैक्टर अथवा पावर टिलर थे ज्यादातर किसानों ने हल के साथ ट्रैक्टर अथवा पावर टिलर को किराये पर लिया। अधिकांश किसान ट्रैक्टर (48 प्रतिशत) को किराये पर खेत में चलाने के पक्ष में थे। इस इलाके में ट्रैक्टर के साथ हल का किराया लगभग 700 से 800 रुपये प्रति घंटा था। हालांकि केवल 18 (7.20 प्रतिशत) और 17 (6.80 प्रतिशत) किसानों के पास कल्टीवेटर और रोटावेटर है। लगभग 22 प्रतिशत किसानों ने खेत तैयार करने के लिए रोटावेटर को किराए पर लिया। क्षेत्र मैं रोटावेटर का किराया लगभग 900 से 1200 रुपये प्रति घंटा है ।
नैक्सैक स्प्रेयर करीब 60 प्रतिशत से अधिक किसानों के पास था। सिंचाई पंप किसानों द्वारा उपयोग किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण उपकरण हैं। यह लगभग 30 प्रतिशत किसानों के पास उपलब्ध है। और करीब 9 प्रतिशत किसानों ने फसल के मौसम में इसे किराए पर लिया। बिजली से चलने वाले पम्प का किराया 100 से 200 रुपये प्रति घंटा था। डीजल पम्प का किराया 400-500 रूपये प्रति घंटा था जिसमें डीजल खर्च किराए में शामिल है। लगभग 6 प्रतिशत किसानो ने किराए पर ट्रैक्टर ट्रेलर लिया। हालांकि, सर्वेक्षण में शामिल केवल 3 प्रतिशत किसानों के पास ही ट्रेलर था। इसका किराया 400 से 500 रुपये प्रति ट्रिप हैं।
क्षेत्र में उन्नत कृषि यंत्रों को अपनाने में अड़चनें
किसानों द्वारा बताई गई अड़चन में सबसे गंभीर श्रेणी में भूमि के छोटे आकार (86 प्रतिशत) कृषि यंत्रों की मरम्मत और रखरखाव की सुविधा का अभाव (85.33 प्रतिशत), पठारी क्षेत्र होने के कारण एक जगह पर पूरी जोत न हो पाना (79.33 प्रतिशत) और महंगे कृषि उपकरण एवं बैंक से ऋण मिलने में परेशानी को (76.67 प्रतिशत) किसानों ने इंगित किया। फिर आदिवासी किसानों द्वारा गंभीर अड़चन की श्रेणी में व्याप्त बाधाओं को सूचीबद्ध किया गया जिसमें नई मशीनों के बारे में जानकारी की कमी (27-33 प्रतिशत खराब आर्थिक स्थिति (20 प्रतिशत) और बिजली की कम उपलब्धता (19-33 प्रतिशत) की किसानों ने "गंभीर" श्रेणी में रखा। इसके बाद "कम गंभीर" श्रेणी में बाधाओं को सूचीबद्ध किया गया जिसमे विशिष्ट मशीनों के बारे में ज्ञान की कमी और खेतों तक सड़क की अनुपलब्धता (क्रमशः 26.67 और 18 प्रतिशत) को सूचीबद्ध किया गया। औसत के आधार पर समस्याओं की रैंकिंग की गई, जहां भूमि के छोटे आकार को 4.0 में से 3.77 के स्कोर के साथ पहले स्थान पर रखा गया। एक जगह पर बड़ी खेतिहर भूमि का न हो पाना कृषि मशीनों के उपयोग को बहुत ही महंगा बना देती है। खेत तक सड़क की अनुपलब्धता को सबसे कम रैंकिंग (2.70) दी गयी एवं इसे कम गंभीर श्रेणी में रखा गया।
कृषि मशीनीकरण की स्थिति में सुधार के लिए किसानों के सुझाव -
अधिकांश किसान कौशल विकास ( 95 33 प्रतिशत) के लिए कार्यक्रम कस्टम हायरिंग केंद्रों की स्थापना (95.33 प्रतिशत) कृषि मशीनीकरण मेला (90.67 प्रतिशत) और कृषि मशीनों के बारे में जागरूकता के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम (90 प्रतिशत) जैसे सुझावों के अनुरूप थे औसत के आधार पर सुझावों को अधिक से कम के क्रम में सूचीबद्ध किया गया जिसमें कौशल विकास के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम को 3.0 में से 2.95 का औसत स्कोर मिला और इसे पहले स्थान पर रखा गया। बैंक द्वारा आसानी से ऋण मिलने की सुविधा को 286 का न्यूनतम स्कोर दिया गया।
आदिवसी किसान देशी साधनों और उपकरणों का अब भी उपयोग कर रहे हैं क्योंकि यह सत्ता किफायती और गाँव में आसानी से उपलब्ध हो जाता है। हालांकि आदिवासी क्षेत्रों में कस्टम हायरिंग के माध्यम से आधुनिक उपकरणों के उपयोग का प्रचलन बढ़ रहा है। किसानों के बीच ट्रैक्टर कल्टीवेटर (48 प्रतिशत) सबसे अधिक किराए पर लिया जाने वाला उपकरण है। सर्वेक्षण में किसानों ने छोटे आकार की भूमि को कृषि मशीनीकरण अपनाने के रास्ते में सबसे बड़े बाधक के रूप में सूचीबद्ध किया है । और यह सुझाव दिया कि गाँवो में मशीनीकरण की स्थिति को सुधारने की दिशा में किसानों को प्रशिक्षण देना अत्यंत आवश्यक है।
/articles/chaotaanaagapaura-pathaarai-kasaetara-maen-adhaunaika-karsai-upakaranaon-kao-apanaanae