तारीख : 13-15 फरवरी 2015
स्थान : बान्द्राभान, होशंगाबाद (मध्य प्रदेश)
आयोजक : नर्मदा समग्र
चौथे नदी महोत्सव का विषय है 'नदी जलग्रहण क्षेत्र, रसायन और समस्याएँ।' कार्यक्रम का प्रतीक चिन्ह इसे कला के माध्यम से दर्शाता है। एक पहाड़ का गहरा हरा रंग उत्तम कृषि को दर्शाता है, वहीं दूसरा हल्का हरा रंग रसायन व कीट नाशकों के प्रभाव से कृषि उत्पाद में गिरते 'रस' तत्व की कमी और भूमि में होने वाले भूमि तत्व कि गिरावट को दर्शाता है।
पेड़, जंगल का प्रतीक है और उसका अकेला होना छिदरे हुए जंगल की ओर ध्यान आकर्षित करवाता है। झोपड़ी, किसान का घर है, केकड़ा (कर्क रोग) किसान के घर में प्रवेश कर रही असाध्य बीमारियों का प्रतिनिधि है। नीली रेखा नदी है जिसमें सम्पूर्ण जलग्रहण क्षेत्र का जल आ रहा है, जो रासायनिक प्रयोग के कारण काली (मृत) हो रही है। वह अन्ततोगत्वा जलग्रहण क्षेत्र के सम्पूर्ण जीव तत्वों को मार रही है। मृत मछली उन सभी का प्रतीक है। संक्षिप्त में यह प्रतीक चिन्ह नदी जलग्रहण क्षेत्र में प्रयोग होने वाले रसायन व कीटनाशकों को दर्शाता है।
नदी सिर्फ दो किनारों के बीच बहता पानी नहीं, बल्कि अपने सम्पूर्ण जलग्रहण क्षेत्र के साथ रचा-बसा एक भरा-पूरा संसार है। कोई भी नदी कीट-पतंगों से लेकर मनुष्य तक, घास से लेकर वटवृक्ष तक, सभी को पालती है। सबसे अपेक्षा होती है कि वे उसे सींचें, उसकी सेवा करें।
औद्योगिक क्रान्ति से विकसित हुई इस नई समाज रचना ने नए-नए प्रतिमान निर्धारित किए और बेतहाशा, पागलों की तरह उन्हें प्राप्त करने के मन्त्र दिए। सामूहिक विकास व सहअस्तित्व के साथ विकास के स्थान पर स्व का विकास जीवन मन्त्र बन गया।
कृषि क्षेत्र में यही सोच व संस्कृति रासायनिक कृषि की पोषक बन गई। धरती से ज्यादा-से-ज्यादा प्राप्त करने का सफर शुरुआत में तो स्वप्न सुन्दरी बन कर उतरा। परन्तु आधी शताब्दी बीतते-बीतते यह ध्यान आने लगा कि अरे, यह तो असुरा शूर्पणखा है। यह बात ध्यान आते-आते बहुत कुछ खो गया। लेकिन इससे पहले कि सब कुछ खो जाए, हमें दिशा सुधार कर लेने की आवश्यकता है, बल्कि यह अपरिहार्यता हो चली है। यह महोत्सव, उसी मोड़ पर एक चौपाल है जो रोग के परीक्षण से प्रारम्भ होकर निदान तक पहुँचने की कोशिश है और जो पथ्य को चिन्हित करने का भी प्रयास करेगी।
लेकिन यह सब करते हुए भी वह किसी बोझिल मन्थन का स्वरूप न ले ले, बल्कि वातावरण आनन्द और उत्साह से भरा रहे, यह चौपाल हमेशा उत्सव के रंग में रंगी रहे, इसकी कोशिश हमेशा रहेगी।
प्रथम दिवस
1. पंजीयन
2. उद्घाटन
3. विषय-प्रवेश
4. विषय विस्तार
5. नर्मदा संवाद
6. नदी संस्कृति
द्वितीय दिवस
रासायनिक कृषि का जल, जंगल, जमीन, जानवर व जन पर प्रभाव
1. प्राकृतिक कृषि-सफलता की कहानियाँ
2. प्रतिभागियों के प्रयोग
3. नर्मदा संवाद
4. सरिता की संस्कृति
5. मानव बस्ती व औद्योगिक रसायनों का प्रभाव
तृतीय दिवस
उत्तम कृषि के अनिवार्य अंग
1. विचार, विस्तार और संरचना का स्वरूप
2. संकलन
3. समापन
दैनिक पल-प्रतिपल के विस्तृत कार्यक्रम पंजीयन के समय उपलब्ध रहेंगे।
श्री देवदत्त माधव धर्माधिकारी (पूर्व न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय)
श्री सीताशरण शर्मा (अध्यक्ष, विधानसभा, म.प्र.)
श्री अमृतलाल वेगड़ (अध्यक्ष, नर्मदा समग्र)
श्री अनिल माधव दवे
श्री राव उदय प्रताप सिंह (सांसद, होशंगाबाद)
श्री पुरुषेन्द्र कौरव (अतिरिक्त महाधिवक्ता, म.प्र.)
श्री पोपटराव पवार (हिवरे बाजार, महाराष्ट्र)
श्री सुभाष पालेकर (शून्य बजट कृषि के प्रणेता)
डॉ. अनुपम मिश्र (क्षेत्रीय समन्वयक, भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद)
सुश्री ज्योति बेन पण्ड्या (शिक्षाविद् एवं नर्मदा सेवी, गुजरात)
श्री अतुल जैन (सचिव, दीनदयाल शोध संस्थान, दिल्ली)
श्री सी.एम. नारायण शास्त्री (जैविक कृषि विशेषज्ञ, बेंगलुरु)
श्री अखिलेश खण्डेलवाल (अध्यक्ष, नगर पालिका होशंगाबाद)
श्री कृष्णगोपाल व्यास (जल विशेषज्ञ)
श्री सुनील देशपाण्डे (बाँस विशेषज्ञ)
श्री राजीव जैन (निदेशक, दूरदर्शन भोपाल)
श्री आशीष गौतम (गंगा समग्र-हरिद्वार)
श्रीमती नीलम सोलंकी (पर्यावरणविद् व लेखक)
श्री श्रीपाल शाह (संस्थापक, असल, अहमदाबाद, गुजरात)
श्री सतीश शर्मा (नान्दूवाली नदी,राजस्थान)
क्षी चतर सिंह (पारम्परिक जल स्रोत विशेषज्ञ, जैसलमेर)
नजदीकी एयरपोर्ट भोपाल - 90 कि.मी.
नजदीकी रेलवे जंक्शन ईटारसी - 30 कि.मी.
नजदीकी रेलवे स्टेशन होशंगाबाद (मुम्बई-दिल्ली रेलवे लाईन) - 10 कि.मी.
आयोजन समिति-नम '15
नर्मदा समग्र 'नदी का घर'
सीनियर एमआईजी-2, अंकुर कॉलोनी,
शिवाजी नगर, भोपाल-462016, मध्य प्रदेश, भारत
फोन : +917552460754,
ईमेल - narmadasamagra@gmail.com,
वेबसाइट- www.narmadasamagra.org
स्थान : बान्द्राभान, होशंगाबाद (मध्य प्रदेश)
आयोजक : नर्मदा समग्र
प्रतीक का अर्थ
चौथे नदी महोत्सव का विषय है 'नदी जलग्रहण क्षेत्र, रसायन और समस्याएँ।' कार्यक्रम का प्रतीक चिन्ह इसे कला के माध्यम से दर्शाता है। एक पहाड़ का गहरा हरा रंग उत्तम कृषि को दर्शाता है, वहीं दूसरा हल्का हरा रंग रसायन व कीट नाशकों के प्रभाव से कृषि उत्पाद में गिरते 'रस' तत्व की कमी और भूमि में होने वाले भूमि तत्व कि गिरावट को दर्शाता है।
पेड़, जंगल का प्रतीक है और उसका अकेला होना छिदरे हुए जंगल की ओर ध्यान आकर्षित करवाता है। झोपड़ी, किसान का घर है, केकड़ा (कर्क रोग) किसान के घर में प्रवेश कर रही असाध्य बीमारियों का प्रतिनिधि है। नीली रेखा नदी है जिसमें सम्पूर्ण जलग्रहण क्षेत्र का जल आ रहा है, जो रासायनिक प्रयोग के कारण काली (मृत) हो रही है। वह अन्ततोगत्वा जलग्रहण क्षेत्र के सम्पूर्ण जीव तत्वों को मार रही है। मृत मछली उन सभी का प्रतीक है। संक्षिप्त में यह प्रतीक चिन्ह नदी जलग्रहण क्षेत्र में प्रयोग होने वाले रसायन व कीटनाशकों को दर्शाता है।
अवधारणा एवं अपेक्षा
नदी सिर्फ दो किनारों के बीच बहता पानी नहीं, बल्कि अपने सम्पूर्ण जलग्रहण क्षेत्र के साथ रचा-बसा एक भरा-पूरा संसार है। कोई भी नदी कीट-पतंगों से लेकर मनुष्य तक, घास से लेकर वटवृक्ष तक, सभी को पालती है। सबसे अपेक्षा होती है कि वे उसे सींचें, उसकी सेवा करें।
औद्योगिक क्रान्ति से विकसित हुई इस नई समाज रचना ने नए-नए प्रतिमान निर्धारित किए और बेतहाशा, पागलों की तरह उन्हें प्राप्त करने के मन्त्र दिए। सामूहिक विकास व सहअस्तित्व के साथ विकास के स्थान पर स्व का विकास जीवन मन्त्र बन गया।
कृषि क्षेत्र में यही सोच व संस्कृति रासायनिक कृषि की पोषक बन गई। धरती से ज्यादा-से-ज्यादा प्राप्त करने का सफर शुरुआत में तो स्वप्न सुन्दरी बन कर उतरा। परन्तु आधी शताब्दी बीतते-बीतते यह ध्यान आने लगा कि अरे, यह तो असुरा शूर्पणखा है। यह बात ध्यान आते-आते बहुत कुछ खो गया। लेकिन इससे पहले कि सब कुछ खो जाए, हमें दिशा सुधार कर लेने की आवश्यकता है, बल्कि यह अपरिहार्यता हो चली है। यह महोत्सव, उसी मोड़ पर एक चौपाल है जो रोग के परीक्षण से प्रारम्भ होकर निदान तक पहुँचने की कोशिश है और जो पथ्य को चिन्हित करने का भी प्रयास करेगी।
लेकिन यह सब करते हुए भी वह किसी बोझिल मन्थन का स्वरूप न ले ले, बल्कि वातावरण आनन्द और उत्साह से भरा रहे, यह चौपाल हमेशा उत्सव के रंग में रंगी रहे, इसकी कोशिश हमेशा रहेगी।
दैनिक कार्यक्रम
प्रथम दिवस
1. पंजीयन
2. उद्घाटन
3. विषय-प्रवेश
4. विषय विस्तार
5. नर्मदा संवाद
6. नदी संस्कृति
द्वितीय दिवस
रासायनिक कृषि का जल, जंगल, जमीन, जानवर व जन पर प्रभाव
1. प्राकृतिक कृषि-सफलता की कहानियाँ
2. प्रतिभागियों के प्रयोग
3. नर्मदा संवाद
4. सरिता की संस्कृति
5. मानव बस्ती व औद्योगिक रसायनों का प्रभाव
तृतीय दिवस
उत्तम कृषि के अनिवार्य अंग
1. विचार, विस्तार और संरचना का स्वरूप
2. संकलन
3. समापन
दैनिक पल-प्रतिपल के विस्तृत कार्यक्रम पंजीयन के समय उपलब्ध रहेंगे।
मार्गदर्शक मण्डल
श्री देवदत्त माधव धर्माधिकारी (पूर्व न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय)
श्री सीताशरण शर्मा (अध्यक्ष, विधानसभा, म.प्र.)
श्री अमृतलाल वेगड़ (अध्यक्ष, नर्मदा समग्र)
संयोजक
श्री अनिल माधव दवे
आयोजन समिति
श्री राव उदय प्रताप सिंह (सांसद, होशंगाबाद)
श्री पुरुषेन्द्र कौरव (अतिरिक्त महाधिवक्ता, म.प्र.)
श्री पोपटराव पवार (हिवरे बाजार, महाराष्ट्र)
श्री सुभाष पालेकर (शून्य बजट कृषि के प्रणेता)
डॉ. अनुपम मिश्र (क्षेत्रीय समन्वयक, भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद)
सुश्री ज्योति बेन पण्ड्या (शिक्षाविद् एवं नर्मदा सेवी, गुजरात)
श्री अतुल जैन (सचिव, दीनदयाल शोध संस्थान, दिल्ली)
श्री सी.एम. नारायण शास्त्री (जैविक कृषि विशेषज्ञ, बेंगलुरु)
श्री अखिलेश खण्डेलवाल (अध्यक्ष, नगर पालिका होशंगाबाद)
श्री कृष्णगोपाल व्यास (जल विशेषज्ञ)
श्री सुनील देशपाण्डे (बाँस विशेषज्ञ)
श्री राजीव जैन (निदेशक, दूरदर्शन भोपाल)
श्री आशीष गौतम (गंगा समग्र-हरिद्वार)
श्रीमती नीलम सोलंकी (पर्यावरणविद् व लेखक)
श्री श्रीपाल शाह (संस्थापक, असल, अहमदाबाद, गुजरात)
श्री सतीश शर्मा (नान्दूवाली नदी,राजस्थान)
क्षी चतर सिंह (पारम्परिक जल स्रोत विशेषज्ञ, जैसलमेर)
बान्द्राभान कैसे पहुँचे
नजदीकी एयरपोर्ट भोपाल - 90 कि.मी.
नजदीकी रेलवे जंक्शन ईटारसी - 30 कि.मी.
नजदीकी रेलवे स्टेशन होशंगाबाद (मुम्बई-दिल्ली रेलवे लाईन) - 10 कि.मी.
पंजीयन एवं अन्य जानकारी हेतु सम्पर्क करें
आयोजन समिति-नम '15
नर्मदा समग्र 'नदी का घर'
सीनियर एमआईजी-2, अंकुर कॉलोनी,
शिवाजी नगर, भोपाल-462016, मध्य प्रदेश, भारत
फोन : +917552460754,
ईमेल - narmadasamagra@gmail.com,
वेबसाइट- www.narmadasamagra.org
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Post By: Shivendra