चीन के नये सामरिक हथियार : कचरा और पानी

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चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र पर तीन नये बांधों की मंजूरी के ताजा खुलासे की खबर पर चिंता मीडिया में दिखी। सच पूछें तो भारत के प्रति चीन का समूचा रवैया ही चिंतित करने वाला है। सबसे ज्यादा चिंता रेडियोधर्मी कचरा और पानी को सामरिक हथियार के रूप में इस्तेमाल होनी चाहिए; क्योंकि इससे पूरा उत्तर-पूर्व नई बर्बादी और आग की चपेट में आ जायेगा। यह किसी घोषित युद्ध से ज्यादा भयावह नतीजे देगा। किसने कल्पना की होगी कि कचरा और पानी सामरिक हथियार के तौर पर भी इस्तेमाल हो सकते हैं ! लेकिन आज का सच यही है। पानी के लिए तीसरा विश्व युद्ध होगा, जब होगा, तब होगा; पानी व कचरे के जरिए एक अघोषित युद्ध तो अभी ही छिड़ चुका है। भारत के खिलाफ आज चीन के सबसे धारदार हथियार कचरा और पानी ही हैं। पानी और कचरे की इस सीधी लड़ाई में भारत हारेगा ही; क्योंकि यह ऐसा युद्ध है जिसमें धारा के ऊपरी हिस्से पर हावी योद्धा ही जीतता है। कचरा और पानी ऐसे दो धारी हथियार हैं... जो मारते भी हैं, बीमार भी करते हैं, आग भी लगाते है और एक नहीं, अनेक पीढियों को जड़ों से उजाड़ देते हैं। चीन ने भारत के खिलाफ इसका इस्तेमाल भी शुरु कर दिया है और तिब्बत की धरती बन गई है इन नये सामरिक हथियारों का चीनी अड्डा।

चीन तिब्बत का इस्तेमाल आणविक हथियारों से उत्पन्न रेडियोधर्मी कचरा फेंकने के लिए कूड़ादान की तरह कर रहा है। न सिर्फ चीन, बल्कि अमेरिका और यूरोप के कई देशों ने भी तिब्बत में आणविक रेडियोधर्मी कचरा फेंकने की छूट हासिल कर ली है। यह कचरा तिब्बत उद्गम वाली नदियों को बुरी तरह प्रदूषित कर रहे हैं: आक्सास, सिंधु, ब्रह्मपुत्र, इरावदी....। इनमें बहाया रेडियोधर्मी कचरा भारत के उत्तर पूर्व से लेकर बांग्ला देश तक को बीमार करेगा। अपने कई लेखों में मैंने पहले भी सतर्क करने की कोशिश की थी कि दुनिया के कई देश विदेशी निवेश के नाम पर भारत में ही ऐसे उद्योगों को स्थापित कर रहे हैं, जो जानलेवा कचरा फैलाते हैं। उल्लेखनीय है कि जागू, जियाचा और जिएंझू - ये ताजा मंजूरी प्राप्त ब्रह्मपुत्र नदी पर चीनी बांध परियोजनओं के तीन स्थान हैं। ये तीनों स्थान तिब्बत में स्थित हैं। ब्रह्मपुत्र पर चीन 510 मेगावाट की एक जलविद्युत परियोजना पहले से ही खड़ी कर रहा है। सूत्रों के मुताबिक वह पांच बड़े बांध, 24 छोटे बांध और 11 झीलों के जरिए छह से ज्यादा नदी धाराओं पर अपना कब्जा मजबूत करने में लगा है। मंजूरशुदा बांध आर्थिक खतरा बढायेंगे। उत्तर पूर्व की जलविद्युत परियोजनाओं का क्या होगा ? पानी की किल्लत होगी। इससे उत्तर-पूर्व भारत की खेती सूखेगी। अचानक पानी छोड़ने से बाढ का खतरा बढेगा।

चीन की ऐसी कारगुजारियों का नतीजा लद्दाख की बाढ़ और किन्नौर की तबाही के रूप में भारत पहले ही झेल चुका है। हालांकि यही काम बांध, बैराज और तटबंध बनाकर भारत ने बांग्ला देश के साथ भी किया है। बांग्ला देश के पर्यावरणविद् इसे लेकर भिन्न मंचों पर अपनी आपत्ति जताते रहे हैं। कल को यही आपत्ति उत्तराखण्ड में बन रहे बांधों को लेकर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल भी उठायेंगे। खैर! इससे भी बड़ी आपत्ति का मुद्दा बहकर आने वाला रेडियोधर्मी कचरा है। यह धीमा जहर है। इसके नतीजे बेहद खतरनाक होंगे। यह भारत के उत्तर-पूर्व से लेकर बांग्ला देश समेत दक्षिण एशिया के बड़े भूगोल का नाश करेगा। यह पीढियों को बीमार और अपंग बनायेगा। क्या भारत को इसकी चिंता है ?

अपनी नदियों में कचरा मिलाकर भारत पहले ही अपना काफी कुछ बिगाड़ चुका है। कचरा और पानी आगे चलकर भारत को और बर्बाद करें, इससे पहले पहल जरूरी है। ग्रीन ट्रिब्यूनल ने यमुना किनारे कचरा डालने पर रोक लगाकर पहल कर दी है। पुराने कचरे को हटाने का आदेश देते हुए हटाने का खर्च जिनका कचरा हैभारत सरकार अपने बजट में उत्तर-पूर्व और जम्मू-कश्मीर के विकास के लिए विशेष राशि का प्रावधान करती है। दोनों जगह कानून-व्यवस्था को लेकर अक्सर चिंता जताई जाती है। क्या उसे इस बात की चिंता नहीं होनी चाहिए कि जहर, सूखा और बाढ़ भेजकर चीन उत्तर-पूर्व के पूरे विकास को शून्य कर देगा। आगे चलकर यह उत्तर-पूर्व में असंतोष और पलायन का नया कारण बनेगा। चीन के ये नये सामरिक हथियार आगे चलकर इस पूरे इलाके में नई आग लगायेंगे। यह भारत, बांग्ला देश और तिब्बत की साझा चिंता व साझे प्रयास का मुद्दा है। इस मोर्चे पर भारत को ही पहल करनी होगी; पर ऐसा लगता है कि चीन कुछ भी करे, भारत सरकार ने जैसे चुप्पी न तोड़ने की कसम खा रखी है। विरोध भी बस! औपचारिक आपत्ति दर्ज कराने तक ही सीमित रहता है। कभी-कभी तो सरकार यह दिखाने की कुछ ज्यादा ही कोशिश करती है कि चीन के साथ हमारे संबंध ठीक-ठाक हैं।

ब्रह्मपुत्र पर चीन द्वारा तीन नये बांधों की ताजा मंजूरी पर हालांकि बतौर विदेश मामला समिति सदस्य नजमा हेपतुल्ला ने इसे गंभीर मसला बताते हुए समिति में उठाने की बात कही है, लेकिन रक्षा मंत्री ने वही पुराना रवैया दिखाया - ’’अभी प्रतिक्रिया देना जल्दबाजी होगी।’’ पाकिस्तान और चीन...विरोध के दो-दो मोर्चे एक साथ खोलने से बचने की कोशिश रणनीतिक हो सकती है; लेकिन यह कोई पहली बार नहीं है। भारत पर चीन अपना दखल और दबाव दोनो लगातार बढा रहा है। भारत की समुद्री सीमा में भी अपनी मौजूदगी बढा रहा है। क्या इसे नजरअंदाज कर देना चाहिए ? क्या भारत सरकार के आंख मूंद लेने से उत्तर-पूर्व पर आसन्न खतरा टल जायेगा ?

काफी देर हो चुकी है। अपनी नदियों में कचरा मिलाकर भारत पहले ही अपना काफी कुछ बिगाड़ चुका है। कचरा और पानी आगे चलकर भारत को और बर्बाद करें, इससे पहले पहल जरूरी है। ग्रीन ट्रिब्यूनल ने यमुना किनारे कचरा डालने पर रोक लगाकर पहल कर दी है। पुराने कचरे को हटाने का आदेश देते हुए हटाने का खर्च जिनका कचरा है, उनसे वसूलने का निर्देश भी सराहनीय है। ग्रीन ट्रिब्यूनल देश के भीतर और विदेश मंत्रालय बाहर से आ रहे कचरे की चिंता करने में जुट जाये, तो हो सकता है कि एक दिन हमारे दिमाग में जमा कचरा भी साफ हो जाये। तब हमारी नदियां भी साफ हो जायेंगी, पानी भी बर्बाद होने से बच जायेगा और सीमांत इलाके भी।

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