चानपुरा रिंग बांध का उत्तर कांड

राजीव गांधी के उदय के साथ-साथ ब्रह्मचारी जी का भी सत्ता के गलियारों में पहले जैसा प्रभाव नहीं रहा। अक्टूबर 1984 में इन्दिरा गाँधी की हत्या के बाद उनकी पूछ एकाएक घट गयी और कुछ समय बाद ब्रह्मचारी जी स्वयं एक विमान दुर्घटना में मारे गए।

यहाँ से चानपुरा रिंग बांध का उत्तर काण्ड शुरू होता है। पटना हाई कोर्ट में दुःखहरण चौधरी ने इस नये रिंग बांध के निर्माण के खिलाफ जो मामला दायर किया था उसमें उच्च न्यायालय में वादियों की तरफ से बिहार के भूतपूर्व चीप़फ इंजीनियर भवानन्द झा ने आपत्ति की थी कि (क) रिंग बांध को उत्तर की तरफ बढ़ाया जाता है तो इस रिंग बांध और अंगरेजवा पोखर के बीच का फासला घट जायेगा और पोखर के बांध और रिंग बांध के बीच से पानी की निकासी में बाधा पड़ेगी जिसके फलस्वरूप उत्तर और पश्चिम के इलाके ज्यादा समय तक बाढ़ में डूबे रहेंगे और उन पर बाढ़ का खतरा बढ़ेगा, (ख) रिंग बांध के पश्चिम की ओर होने वाले विस्तार के कारण रजवा नाले और रिंग बांध के बीच का भी फासला कम होगा और वहाँ भी बाढ़ का खतरा बढ़ेगा। उनका सुझाव था कि रिंग बांध को थोड़ा और पश्चिम की तरफ खींच कर पछुआरी टोल को भी रिंग बांध के अंदर ही ले लिया जाए तथा (ग) भुड़का नाला दो स्थानों पर प्रस्तावित रिंग बांध से टकराता है जिससे रिंग बांध पर खतरा बढ़ेगा। अतः इसके अलाइनमेन्ट को दुरुस्त किया जाए।

यह सारे मसले टेकनिकल थे जिन पर राय जानने के लिए उच्च न्यायालय ने वरिष्ठ इंजीनियरों की एक समिति का गठन करके उससे भावी कार्यक्रम के लिए राय मांगी और तय किया कि यह समिति 15 जनवरी 1983 तक अपनी रिपोर्ट दे देगी। इस समिति के तीन सदस्य थे जिसमें गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष नीलेन्दु सान्याल, बिहार सिंचाई विभाग के अभियंता प्रमुख ए. के. बसु और बिहार सरकार में समस्तीपुर क्षेत्र के मुख्य अभियंता एच. पी. सिंह शामिल थे। इस समिति ने अपनी अंतिम रिपोर्ट पहली फरवरी 1983 को उच्च न्यायालय को दे दी। समिति ने अपनी राय देते हुए कहा कि (क) अंगरेजवा पोखर और प्रस्तावित रिंग बांध के बीच का फासला 100 फुट न होकर 200 फुट है तथा बसैठ-मधवापुर सड़क का लेवेल भी उच्चतम बाढ़ लेवेल से कोई 2 फुट नीचे है तथा इस सड़क में स्थित 3 पुल हैं जिनसे होकर बरसात/ बाढ़ के पानी की निकासी सुचारु रूप से हो जायेगी और अगर इसके बाद भी पानी की निकासी में बाधा पड़ती है तो अंगरेजवा पोखर के दक्षिणी भाग का सरकार अधिग्रहण कर के उसके बांध के कुछ हिस्से को काट कर अतिरिक्त रास्ता बना ले। इस तरह जल-निकासी दुरुस्त हो जायेगी और रिंग बांध के अलाइनमेन्ट को बदलने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी।

कुछ गाँव वालों के सुझाव पर समिति का यह भी कहना था कि गाँव में उत्तर-दक्षिण दिशा में एक जमींदारी बांध पहले से ही था और वह वहाँ तक था जहाँ तक यह रिंग बांध उत्तर दिशा में जाता है। (ख) रिंग बांध को पश्चिम की ओर बढ़ा कर पछुआरी टोल को भी रिंग बांध के अंदर ले लिए जाने के प्रस्ताव पर समिति का कहना था कि पछुआरी टोल का उच्चतम बाढ़ का लेवेल इतना ही होता है कि वहाँ केवल एक घर (बैद्यनाथ चौधरी का घर) ही बाढ़ में डूबेगा और यह रिंग बांध बनने के पहले भी डूबता था। अतः रिंग बांध बन जाने से बाढ़ की स्थिति में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इ. भवानन्द झा के इस प्रस्ताव को उन्हीं के तर्क से काटते हुए समिति का कहना था कि रिंग बांध को और अधिक पश्चिम हटाने का मतलब होगा कि उस तरफ धार और पश्चिमी बांध के बीच पानी की निकासी में बाधा पड़ेगी तथा (ग) भुड़का नाले को प्रस्तावित बांध द्वारा दो जगह काटने की बात पर समिति ने इन स्थानों पर सुरक्षात्मक उपाय सुझाये। संस्कृत कॉलेज को रिंग बांध के अंदर लेने के लिए थोड़े बहुत परिवर्तन सुझाये और कुछ जगहों पर स्लुइस गेट लगाने की व्यवस्था देते हुए इस रिंग बांध की डिजाइन को ठीक-ठाक बताते हुए अलाइनमेन्ट को दुरुस्त करार दिया। समिति का कहना था ‘‘...अगर बांध के अलाइनमेन्ट में वह परिवर्तन जिनकी सिफारिश की गयी है, कर दिये जाएं और पोखर के बांधों को थोड़ा तराश दिया जाए तो पछुआरी टोले पर बाढ़ का कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा।’’

समिति की इस रिपोर्ट के आने के पहले ही रिंग बांध पर काम बंद हो चुका था जो संभवतः राजीव गांधी की इस पूरे मामले में रुचि लेने के कारण हुआ हो। उनके न रहने का सबसे ज्यादा नुकसान चानपुरा को हुआ और 1982 में जो रिंग बांध पर काम बंद हुआ तो वर्षों उसी स्थिति में पड़ा रहा। अब स्थिति यह थी कि बिंदु E पर जहाँ एक खंड़जा बिछाया हुआ रास्ता पश्चिम से रिंग बांध के अंदर जाकर जीरो चेन पर बाहर निकलता हुआ बसैठ-मधवापुर सड़क को जोड़ता था वहाँ आकर रिंग बांध का निर्माण रुक गया।

कुल मिला कर बांध की जो स्थिति बनती वह चित्र-8.2 में दिखायी हुई है। विशेषज्ञ समिति की सलाह के अनुसार नक्शे में बिंदु H को E से बांध द्वारा जोड़ना था, जिस पर पछुआरी टोल के ग्रामीणों का ऐतराज था। उनको लगता था कि बांध का यह प्रस्तावित अलाइनमेन्ट दो जगहों पर भुड़का नाले से टकरायेगा और उनके लिए परेशानी पैदा करेगा। समाधान के तौर पर समझौता हुआ कि A बिंदु पर स्लुइस के पास से यह बांध संस्कृत कॉलेज के पश्चिम से जमींदारी बांध के रास्ते से E से जुड़ जायेगा जैसा कि चित्र HAE में दिखाया गया है और पुराना A से B, G तक का बांध एक अतिरिक्त सुरक्षा बांध के तौर पर काम करेगा। जब इस तकनीकी समिति की रिपोर्ट उच्च न्यायालय के पास विचार के लिए आयी तब 7 जनवरी 1983 को माननीय उच्च न्यायालय ने उसके समक्ष प्रस्तुत याचिका का निष्पादन कर दिया और बिहार सरकार को यह हिदायत दी की वह समिति की सिफारिशों के अनुसार काम को पूरा करवा दे। AE वाले बांध का निर्माण अभी तक नहीं हुआ है (जून 2010)।

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Post By: tridmin
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