पिछले दिनों भूकंप के कारण धरती हिलने से देश की राजधानी दिल्ली एवं उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ समेत देश के कई शहरों में अनिष्ट की आशंका से हड़कंप मच गया। भूकंप के अनेक कारण हैं, लेकिन एक प्रमुख कारण भूजल का अंधाधुंध दोहन भी बताया जाता है। विकास की आंधी में हम हरियाली और भूमिगत जल को खोते जा रहे हैं। देखते-देखते ही महानगर ही नहीं छोटे शहर भी कंक्रीट के जंगल में तब्दील होते जा रहे हैं। इसके लिए भूजल का अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है। औद्योगिक इकाइयों के अलावा रोजमर्रा की तमाम गतिविधियों में भूजल का अधिक प्रयोग होने से लगातार जल स्तर गिर रहा है।
भूजल भंडार का बेलगाम दोहन हो रहा है। यदि नदियों की स्थिति बेहतर होती तो भूजल भंडार लगातार रिचार्ज होते रहते। लेकिन हमारी नदियां तो स्वयं अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं पिछले दिनों भूकंप के कारण धरती हिलने से देश की राजधानी दिल्ली एवं उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ समेत देश के कई शहरों में अनिष्ट की आशंका से हड़कंप मच गया। भूकंप के अनेक कारण हैं, लेकिन एक प्रमुख कारण भूजल का अंधाधुंध दोहन भी बताया जाता है। विकास की दौड़ में हम हरियाली और भूमिगत जल को खोते जा रहे हैं।
भूमि के भीतर अवस्थित पानी जमीन को खिसकने से रोकता है। थोड़ी बहुत जमीन खिसकने से होने वाले कंपन को पानी अपने आप संभाल लेता है। लेकिन भूजल स्तर गिरने या पानी खत्म होने से जमीन खोखली हो गई है। हल्का सा कंपन भी जमीन को धँसा देता है। बिल्डरों ने इमारतें तो बना दीं। लेकिन ग्राउंड वाटर रिचार्ज करने के लिए कोई योजना नहीं बनाई। यदि इसी तरह भूगर्भ जल का दोहन होता रहा तो निश्चित रूप से महाप्रलय का खतरा गहरा जाएगा।
वैज्ञानिक भविष्यवाणियां आ रही हैं जिनमें भूजल भण्डार के समाप्त होने और नदियों के सूखने की चेतावनी है। तापमान में असामान्य उतार-चढ़ाव और अनियमित वर्षा के कारण कृषि उत्पादन भी प्रभावित होने लगा है। पूरी दुनिया में पानी का संकट बढ़ रहा है। विशाल आबादी की तुलना में भारत में जल उपलब्धता पहले ही कम है। इसके बाद भी भूजल भंडार का बेलगाम दोहन हो रहा है। यदि नदियों की स्थिति बेहतर होती तो भूजल भंडार लगातार रिचार्ज होते रहते। लेकिन हमारी नदियां तो स्वयं अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं। अनेक मौसमी नदियाँ तो बीते दशकों में गायब ही हो गई और जिनमें पहले वर्ष भर पानी रहता था वे मौसमी बन गई है । प्रदषण के मामले में स्थितियां बहुत चिंताजनक हैं। वायु, मिट्टी और जल, सभी प्रकार का प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है। यमुना नदी, नदियों की दुर्दशा का उदाहरण हैं। पिछले साल छठ पर्व के अवसर पर सोशल मीडिया पर ऐसी कई तस्वीरें वायरल हुई, जिन्होंने दिल्ली में यमुना की बदहाली की और जनमानस का ध्यान खींचा। जलस्रोतों और प्रकृति की महत्ता को रेखांकित करने वाले छठ पर्व के दिन यमुना की ऐसी स्थिति देखना कष्टदायक अनुभव था, लेकिन दूसरी तरफ यह अच्छा ही हुआ कि छठ के बहाने ही सही, यमुना में उठते 'बर्फीले पहाड़ पर लोगों की नजर गई। वैसे भी यह कोई नई बात नहीं है। दिल्ली में ऐसा नजारा न जाने कितने वर्षों से देखने को मिल रहा है। दशक बदलते रहे पर यमुना के हालात नहीं बदले।
दिल्ली में यमुना का अस्तित्व संकटग्रस्त है। सदियों से मानव और प्राणिजगत को जीवन प्रदान करने वाली यमुना के बारे में अब विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि नदी में बनने वाले जहरीले सफेद झाग की वजह से बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ जाता है। इससे सबसे ज्यादा खतरा ऐसे लोगों को होता है जो यमुना के पानी का इस्तेमाल नहाने के लिए करते हैं। हालांकि सुधार की आवश्यकता केवल दिल्ली और यमुना में ही नहीं है।
अनेक नदियां हैं जिनका अस्तित्व आज खतरे में है। कई नदियों की पहचान मिट चुकी है और कइयों की मिटने के कगार पर है। जिस प्रकार से यमुना नदी के पानी में जहरीली झाग तैरती नजर आई, अनेक नदियों में ऐसे दृश्य देखे जा सकते हैं। माना जाता है कि पानी में आमोनिया का स्तर बढ़ने से इस प्रकार से की स्थिति उत्पन्न होती है। साथ ही, फैक्ट्रियों, रंगाई उद्योगों, धोबी घाटों और घरों में इस्तेमाल होने वाले डिटर्जेंट के कारण वेस्ट वाटर में फॉस्फेट की बढ़ने वाली मात्रा भी जहरीली झाग बनाती है। अगर इस पानी में कोई नहाता है तो यह निश्चित तौर पर उनके स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला होगा।
जलवायु परिवर्तन के साथ ही हमारे दुर्व्यवहार की बहुत बड़ी हानि हमारी अमूल्य प्राकृतिक संपदा, हमारी नदियों को हुआ है। एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले दशकों में लगभग 4500 छोटी-बड़ी नदियाँ पूरी तरह सूख गई हैं अथवा सूखने के कगार पर हैं। अन्य नदियों की स्थिति भी चिंताजनक है। इसके अतिरिक्त लगभग 20 लाख तालाब खत्म हो चुके हैं।
भारत में बहने वाली कुछ मुख्य नदियों के अतिरिक्त सहायक रूप में बहने वाली नदियों की संख्या हजारों में है और इनमें से अधिकांश के उद्गम स्थल पर कोई झील अथवा कुआं होता है। इनकी स्थिति में सुधार के लिए सरकारी प्रयासों के रूप में नमामि गंगे जैसे बड़े बजट के प्रकल्प हैं, तो जल संरक्षण के विषय पर केंद्र और प्रदेश सरकारों का बड़ा अमला काम कर रहा है। लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। दूसरी तरफ, जलवायु परिवर्तन, अतिवृष्टि और अनावृष्टि के कारण जन-धन की क्षति का सिलसिला बढ़ता जा रहा है। प्रकृति लगातार हमें चेता रही है कि यदि शीघ्र ही नहीं सुधरे, तो मानव सभ्यता के मिट जाने का खतरा है।
ऐसे में सरकार और समाज को साथ मिलकर भूजल और नदियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए जुटने की जरूरत है। नदी क्षेत्रों में निवास करने वाले अनुभवी लोगों एवं इस विषय पर कार्य कर रहे समूहों की सलाह और सहयोग से कार्य किया जाए तो बेहतर परिणाम आ सकते हैं। नदी तट क्षेत्र पर सघन वन विकसित करने की दीर्घकालिक योजना भी चाहिए। हर क्षेत्र की आवश्यकताएं एवं परिस्थितियां भिन्न हैं, अतः पूरे देश में एक समान योजना लाभकारी नहीं होगी। देश के अनेक क्षेत्रों में नदी / जल प्रहरी पुत्र के रूप में बड़ी संख्या में पर्यावरण की चिंता करने वाले बंधु एवं संगठन कार्य कर रहे हैं। इनके अनुभवों से लाभ लेकर कार्य को गति दी जा सकती है।
नदियों का तेजी से विलुप्त होना और वह रही। नदियों में जल प्रवाह की दिनोंदिन हो रही कमी के साथ इनमें रोज बढ़ रहा प्रदूषण एक प्रकार से आपातकाल की स्थिति है। इस कार्य में तालाबों एवं छोटी छोटी सहायक नदियों के पुनर्जीवन का कार्य बड़ी भूमिका निभा सकता है। सरकारें अपनी और से अनेक प्रयास कर रही हैं, लेकिन असरकारी परिणाम के लिए सरकारी योजनाओं पर निर्भर न रहकर हम सभी का दायित्व है कि अपने अपने क्षेत्र में छोटे-छोटे प्रयास प्रारंभ कर इस पुनीत कार्य में सहयोगी बनें। लोक भारती द्वारा भूजल स्तर को सुधारने के प्रयास के साथ-साथ गोमती और इसकी 22 सहायक नदियों के संरक्षण एवं पुनर्जीवन पर वर्ष 2011 से अभियान चलाया जा रहा है। इसके अंतर्गत कई संकटग्रस्त और विलुप्तप्राय नदियों को नवजीवन प्रदान किया गया है।
इस कार्य को निरंतर विस्तृत और व्यापक किए जाने की आवश्यकता है। साथ ही ऐसे जल प्रहरियों के पुरुशार्थ और प्रतिबद्धता को भी समाज के समक्ष लाना होगा जिन्होंने जल / नदी संरक्षण को ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया और समस्या कारण बनने या उस पर केवल चर्चा करने करने के बजाए समाधान में जुटे और सभी के लिए प्रेरणा बन गए। इस अंक के माध्यम ऐसे ही जल प्रहरियों के प्रयासों को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है ताकि इनसे प्रेरित होकर हम सब जल / नदी संरक्षण के हमारे अस्तित्व के लिए आवश्यक अभियान से जुड़ सकें और प्रत्येक बूंद के संचय में सहायक बने। ऐसा करने पर नदियों के साथ-साथ भूजल स्तर में सुधार होगा, जो भूकंप का खतरा टालने में सहायक साबित होगा ।।
भूमि के भीतर अवस्थित पानी जमीन को खिसकने से रोकता है। थोड़ी बहुत जमीन खिसकने से होने वाले कंपन को पानी अपने आप संभाल लेता है। लेकिन भूजल स्तर गिरने या पानी खत्म होने से जमीन खोखली हो गई है। हल्का सा कंपन भी जमीन को धंसा देता है
लोक भारती द्वारा भूजल स्तर को सुधारने के प्रयास के साथ-साथ गोमती और इसकी 22 सहायक नदियों के संरक्षण एवं पुनर्जीवन पर वर्ष 2011 से अभियान चलाया जा रहा है। इसके अंतर्गत कई संकटग्रस्त और विलुप्तप्राय नदियों को नवजीवन प्रदान किया गया है। इस कार्य को निरंतर विस्तृत और व्यापक किए जाने की आवश्यकता है।
स्रोत :- लोक सम्मान ,05 अक्टूबर - 2023
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