नर्मदा बचाओ आन्दोलन की नेत्री मेधा पाटकर ने कहा है कि जीवन अधिकार सत्याग्रह ढाई लाख लोगों की आजीविका और उनके भविष्य को विनाश से बचाने की लड़ाई है। नर्मदा घाटी की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है। अश्मयुग से कलियुग तक सभी के अवशेष परत दर परत मिलते हैं। केन्द्र सरकार का विकास का मॅाडल पूरी सभ्यता को लीलने पर आमादा है। पूरी निर्णय प्रक्रिया और विकास मॉडल अलोकतांत्रिक और संवेदनहीन हैं। पूरी प्रणाली में दुर्भावना भरी हुई है। यह बात उन्होंने जीवन अधिकार यात्रा के दौरान कही।
सरदार सरोवर बाँध की ऊँचाई बढ़ाए जाने के विरोध में मध्य प्रदेश के खालाघाट से यह यात्रा आरम्भ हुई और एकलबड़ा, अछोदा, सेमलदा, पेरखड़, छोटा बडदा, पिपलूद, पिपरी, धनोरा, कुंडिया, कसरावद, छिखाल्दा, भीलखेड़ा होती हुई बडवानी पहुँची।
मेधा पाटकर ने बाँध की ऊँचाई बढ़ाने के फैसले को अलोकतांत्रिक करार दिया। महाराष्ट्र, गुजरात व म.प्र के 244 गाँव डूब प्रभावित है। ऐसे में इन गाँवों के लोगों को बिना सुविधा दिए अन्य स्थान पर पर जाने को कहा गया है, जो सरासर गलत है। सरकार ने फैसला लेते समय दूसरे पक्ष को नजरअंदाज किया। यह लड़ाई पूरे नदी घाटी सभ्यता को बचाने और उपजाऊ जमीन को बचाने की है। यह विनाश चाहे बड़े बाँधों से होता है या फिर रेत के खनन से। केन्द्र और राज्य सरकारें सिर्फ चुनावी वायदों से नहीं बल्कि संवैधानिक दायित्व से भी पीछे हट रही है।
उन्होंने सरदार सरोवर और नर्मदा के सवाल को लेकर प्रधानमन्त्री को खुला पत्र भी लिखा है।
पदयात्रा के दौरान लोगों से ढोल, नाच, गीत, नारों के माध्यम से संवाद किया गया और वर्तमान चुनौतियों से गाँव-गाँव में लोगों को अगाह किया गया। भीमा नायक, ख्वाजा नायक, टनटया मामा के संघर्षो का स्मरण किया और कहा गया कि उनके संघर्ष के फलस्वरूप अँग्रेजी राज से निमाड़ और पहाड़ी क्षेत्रों बाहर रहे।
यात्रा के दौरान पन्नालाल भाई ने उत्तरखंड और केदारनाथ की मानव निर्मित व बाँध प्रभावित आपदाओं को एक कविता के माध्यम से याद किया और चेताया कि नर्मदा घाटी में भी ऐसे दिन दूर नहीं है। सरदार सरोवर के खिलाफ संघर्ष जरूरी बताया।
डूब-प्रभावित बेक वाटर प्रभावित क्षेत्रों के लोगों ने संघर्ष तेज करने का संकल्प लिया। पदयात्रा के दौरान आयोजित सभाओं तथा संवाद के क्रम में लोगों ने बसाहटों की समस्याओं के संदर्भ में विशेष रूप से पीने के पानी, बिजली, नालियाँ, चारागाह, जमीन, भू-खण्डों में जल भराव आदि समस्याओं की शिकायत की। 'हमारे गाँव में, हमारा राज’ नारे से नर्मदा घाटी गूँज रहे थे। लोगों ने ग्राम सभाओं के संवैधानिक अधिकारों के संदर्भ में 245 गाँवों को गैर-कानूनी रूप से डुबाने का निर्णय का प्रतिरोध किया। साथ ही नर्मदा घाटी में शांति, न्याय और जनतंत्र के लिए नई आजादी की लड़ाई को अनिवार्य बताया। सरकार ने 2.5 लोगों को बिना पुनार्वास जल समाधि देने का फैसला लेकर कम्पनियों पुँजीपतियों को बाँध के लाभ क्षेत्र की लाखों हेक्टेयर जमीन और लाखों लीटर पानी खैरात में दे रही है। पदयात्रा के दौरान वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ताओं व विशेषज्ञों ने आकर आन्दोलन के प्रति समर्थन का इजहार किया। इसमें राजस्थान से आये रेत खनन विरोधी सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश मीना, महाराष्ट्र में शक्कर कारखानों का घोटाले का पर्दाफाश करने में अग्रणी भूमिका अदा करनेवाले यशवंत बापू, सुनीति, प्रकाश झा, सतीश भिंगारे शामिल हैं। पदयात्रियों ने स्वराज अभियान के दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर किसान विरोधी विवादास्पद भूमि अधिग्रहण बिल विरोध में हो रहे प्रदर्शन के दौरान योगेन्द्र यादव की गिरफ्तारी का पदयात्रियो ने भर्त्सना की व उनकी तुरन्त रिहाई की माँग की।
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