मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि पर्यावरण के प्रति देश में हमेशा में चिंता रही है। हमारी संस्कृति वनों की संस्कृति होने के कारण हमने इसे करीब से समझा भी है। वनों में रहने वाले लोगों ने वनों की रक्षा भी की हैं, लेकिन कुछ समय बाद वनों को हम अपनी संपदा समझने लगे, जिसका दुष्परिणाम अब सभी को भुगतना पड़ रहा है।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत बुधवार को विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर होटल पेसिफिक में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि लोगों की आवश्यकताएं बढ़ रही हैं और समय के साथ और भी बढ़ेंगी। इसके कोई रोक भी नहीं सकता है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के लिए ऐसे यातायात के ऐसे माध्यमों का उपयोग करने जिससे पर्यावरण को नुकसान न हो और निर्माण कैसे किया जाए, इस पर विचार करते हुए उपाय सुझाने चाहिए। उन्होंने कहा कि पलायन को रोकने के लिए ग्रामीणों को गांव में ही रोकने के प्रयास किए जा रहे हैं। पीरूल से ईधन बनाने के लिए सरकार द्वारा प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने भविष्य की मांग और भावी की पीढ़ी को ध्यान में रखते हुए संसाधनों का उपयोग करने की सभी से अपील की।
वन एवं पर्यावरण मंत्री डा. हरक सिंह रावत ने कहा कि भारत के क्षेत्रफल के अनुसार उत्तराखंड की जैव विविधता ढाई प्रतिशत से अधिक है। जिससे देश में उत्तराखंड के महत्व को समझा जा सकता है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण को बचाने के जिम्मेदारी हर नागरिक के ऊपर है और अपनी जिम्मेदारी सभी को समझनी होगी, तभी पर्यावरण को बचाया जा सकता है। उन्होंने गंदगी न करने और न ही दूसरों को करने देने की अपील की। प्रमुख सचिव वन एवं पर्यावरण आनंद वर्धन ने कहा कि प्रकृति द्वारा उपलब्ध सभी संसाधनों पर मानव और सभी जीव जंतुओं का समान रूप से अधिकार है, लेकिन हम संसाधनों के दोहन में ये बात भूल गए हैं। इंसानों के इस कृत्य का पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। उन्होंने कहा कि अलग से पर्यावरण निदेशालय बनाने का प्रयास किया जा रहा है। साथ ही पर्यावरण संरक्षण के प्रति जनता को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी।
प्रमुख वन संरक्षक जयराज ने कहा कि हवा ही ऐसी चीज से जिससे बचा नहीं जा सकता। पानी तो कहीं और से भी पिया जा सकता है, लेकिन हवा तो लेनी ही है। उन्होंने कहा कि जंगलों में आग लगने से भी प्रदूषण बढ़ता है। बढ़ते प्रदूषण के कारण ग्लोबल वार्मिंग चिंता का विषय बन गई है। जंगल की आग से सांप, मेंडक, कीट आदि जैसे छोटे जीव जंतु सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। उन्होंने कहा कि जीवों के संरक्षण के लिए उनके साथ खड़े होना हर व्यक्ति का कर्तव्य है। जयराज ने कहा कि पर्यावरण पर काम करने वाले सभी संगठनों को एक मंच पर लाकर स्प्रिंग शेड मैनेजमैेंट कमेेटी बनाने की तैयारी चल रही है, ताकि जंगलों में आग न लगे। पूर्व सांसद तरुण विजय ने कहा कि भारत में वेदों और पुराणों की रचना वनों और तीर्थों की स्थापना नदियों के किनारे हुई है। जिससे पर्यावरण के प्रति हमारे प्रेम को समझा जा सकता है, लेकिन हम लोगो ने कृष्ण की यमुना को नहाने के लायक तक नहीं छोड़ा। उन्होंने पर्यावरण को पाठ्यक्रम से जोड़ने की अपील की।
विधायक खजान दास ने कहा कि ऐसा कहा जाता है कि पूर्वी ढाल पर पेड़ उगते हैं और पश्चिमी ढाल पर नहीं, लेकिन कुमांऊ और हिमाचल में तो हर दिशा में पेड़ हैं, तो फिर गढ़वाल में क्यों नहीं ? इस पर हमें विचार करना होगा। उन्होंने कहा कि विकास के यातायात, स्वास्थ्य, पेयजल और शिक्षा के मुख्य स्रोत हैं। उन्होंने कहा कि हम पेड़ लगा तो देते हैं, लेकिन उसे बचा नहीं पाते। हमें पेड़ों को बचाने की भी जरूरत है। जंगल में लगने वाली आग के लिए अधिकारी ही नहीं बल्कि जनमानस भी जिम्मेदार है। पर्यावरण के प्रति हर इंसान को अपनी नैतिक जिम्मदारी को भी समझना होगा। मेयर सुनील उनियाम गामा ने कहा कि पर्यावरण के प्रति प्रेम और समर्पण को हमें अपनी दिनचर्या में लाना होगा और पर्यावरण दिवस रोज मनाने की आवश्यकता है। इससे पर्यावरण के प्रति सभी की चिंता दूर हो जाएगी। उन्होने पाॅलीथिन का बहिष्कार करने की अपील की। इस दौरान कला संगम के कलाकारों ने नंदा देवी राजजात यात्रा का मनमोहक दृश्य प्रदर्शित किया और उत्तराखंड रत्न डा. सोनिया आनंद राव ने पर्यवरण पर आधारित गीत से सभी को पर्यावरण बचाने के प्रति प्रेरित किया।
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