भूविज्ञान/पृथ्वी विज्ञान में पृथ्वी प्रणाली के उद्गम ढांचे, क्रम विकास तथा गतिशीलता तथा इसके प्राकृतिक संसाधनों का वैज्ञानिक अध्ययन सम्मिलित है। इसमें उन आंतरिक और बाह्य प्रक्रियाओं की जांच की जाती है जिनसे पृथ्वी को इसके 46 करोड़ वर्ष के इतिहास में यह स्वरूप प्राप्त हुआ है। भूवैज्ञानिक पृथ्वी के संसाधनों और पर्यावरण के रखवाले माने जाते हैं। वे पृथ्वी और अन्य ग्रहों पर प्राकृतिक प्रक्रियाओं को समझने के वास्ते कड़ी मेहनत करते हैं। पृथ्वी और इसकी मिट्टियों, महासागरों और वातावरण की जांच करना; मौसम के पूर्वानुमान; भूमि उपयोग योजनाओं का विकास, अन्य ग्रहों और सौर प्रणाली की संभावनाओं का पता लगाना आदि, भूवैज्ञानिकों की भूमिकाओं के कुछेक उदाहरण हैं, जिनके जरिए वे पृथ्वी की प्रक्रियाओं और इतिहास को समझने में योगदान करते हैं। भूवैज्ञानिक समस्याओं को सुलझाने और संसाधन प्रबंधन; पर्यावरणीय सुरक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य, सुरक्षा तथा मानव कल्याण के लिए सरकारी नीतियों को तैयार करने में प्रयुक्त अनिवार्य सूचना/डाटाबेस उपलब्ध् कराते हैं।
भूवैज्ञानिक हमेशा पृथ्वी और भूमण्डलीय प्रणाली के बारे में जानने को उत्सुक रहते हैं। क्या अन्य ग्रहों पर कोई जीवन है? चन्द्रमा, मंगल, बृहस्पति और अन्य ग्रहों पर क्या संसाधन उपलब्ध् हैं? इनमें किस तरह परिवर्तन हो रहे हैं? सिकुड़ते ग्लेशियरों का महासागरों और जलवायु पर क्या प्रभाव पड़ रहा है और किस तरह जलवायु परिवर्तन हो रहे हैं? महाद्वीपों के खिसकने, पर्वतों के बनने, ज्वालामुखी फटने के क्या कारण हैं? डायनासोर क्यों विलुप्त हो गए हैं? आदि। भूवैज्ञानिक पृथ्वी से संबंधित खोजबीन कार्यों से जुड़े हैं। वैश्विक पर्यावरण किस तरह परिवर्तित हो रहा है? पृथ्वी प्रणाली कैसे काम करती है? हमें औद्योगिक कपड़े का निपटान कैसे और कहां करना चाहिए? भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करते हुए समाज की ऊर्जा और पानी की बढ़ती मांग को कैसे पूरा किया जा सकता है। जिस तरह विश्व की जनसंख्या बढ़ रही है क्या हम उसके लिए पर्याप्त खाद्य और रेशा तैयार कर सकते हैं तथा किस प्रकार खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा प्राप्त कर सकते हैं?
भूवैज्ञानिक पृथ्वी और अन्य ग्रहों के बारे में डाटा एकत्र करते हैं तथा उसका विश्लेषण करते हैं। वे पृथ्वी की प्रक्रियाओं के प्रति हमारी समझ को बढ़ाने तथा मानवीय जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए अपने ज्ञान का प्रयोग करते हैं। चूंकि भूविज्ञान इतना व्यापक और विविध् क्षेत्र है इसलिए उनका कार्य और कॅरिअर मार्ग विभिन्नताओं से परिपूर्ण है। राष्ट्रीय विज्ञान फाउण्डेशन (एनएसएफ, अमरीका) ने भूविज्ञान, भूभौतिकी, जल विज्ञान, समुद्र विज्ञान, मॅरीन साइंस, वातावरणीय विज्ञान, ग्रहीय विज्ञान, मौसम विज्ञान, पर्यावरणीय विज्ञान और मृदा विज्ञान को व्यापक भूविज्ञान विषयक्षेत्र के रूप में माना है। नीचे वर्णित सूची में इस बात का उल्लेख है कि भूविज्ञानी क्या काम करते हैं और विभिन्न उभरते क्षेत्रों तथा विभिन्न प्रकार के उप-क्षेत्रों में वे क्या कुछ कर सकते हैं। (वर्ण क्रम में)
कृषि भूवैज्ञानिक फसलीय पद्वति और वरीयताओं की दृष्टि से मृदा प्रोफाइल्स के साथ चट्टानों और खनिजों के संपर्क का अध्ययन करते हैं। फसल-खेती में सुधार के वास्ते एक उपयुक्त निर्णय समर्थन प्रणाली तैयार करते हैं।
वातावरणीय भूवैज्ञानिक मौसम प्रक्रियाओं, जलवायु की वैश्विक गतिशीलता, सौर विकिरण और इसके प्रभावों तथा ओजोन क्षीणता, जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण में वातावरणीय भूरसायन विज्ञान की भूमिका का अध्ययन करते हैं।
आर्थिक भूवैज्ञानिक/अयस्क भूवैज्ञानिक धात्विक और गैर धात्विक संसाधनों की खोज और विकास के लिए काम करते हैं तथा पर्यावरणीय सुरक्षित उत्खनन और खनन पद्वतियों का अध्ययन करते हैं तथा खनन गतिविधिओं से उत्पन्न अपशिष्ट के निपटान का ध्यान रखते हैं।
इंजीनियरी भूवैज्ञानिक भूविज्ञान से संबंधित डॉटा, तकनीकों और सिद्वान्तों का इस्तेमाल चट्टानों तथा मृदा सामग्रियों और भूजल के अध्ययन के लिए करते हैं। वे उन भूवैज्ञानिक कारकों की जांच करते हैं जो विभिन्न अवसंरचनाओं, जैसे कि पुलों, भवनों, हवाई अड्डों, बांधों/जलाशयों, सुरंगों और अन्य मेगा अवसंरचनाओं को प्रभावित करते हैं।
पर्यावरणीय भूवैज्ञानिक भूक्षेत्र, जलक्षेत्र, वातावरण, जैव क्षेत्र और मानवीय गतिविधियों के बीच संपर्क का अध्ययन करते हैं। वे प्रदूषण, अपशिष्ट प्रबंधन, शहरीकरण और प्राकृतिक आपदाओं; जैसे कि बाढ़ और भूमि कटाव से जुड़ी समस्याओं को हल करते हैं।
जिओलॉजिस्ट्स खनिज विज्ञानियों का एक विशिष्ट क्लब है जो कि कीमती/अर्द्व - कीमती रत्नों तथा हीरों के प्रमाणीकरण् और पहचान के विशेषज्ञ होते हैं।
भूरसायनशास्त्री प्रकृति की जांच तथा भूजल और पृथ्वी के पदार्थों के वितरण में भौतिक तथा इनआर्गेनिक कैमिस्ट्री का प्रयोग करते हैं; वे जीवाश्म ईंधन (कोयला तेल और गैस) भण्डारों के अध्ययन के लिए आर्गेनिक कैमिस्ट्री का प्रयोग करते हैं।
जिओक्रोनोलॉजिस्टस चट्टानों में कुछेक रेडियो एक्टिव तत्वों के क्षय की दर तथा पृथ्वी के इतिहास में घटनाक्रमों के समय अनुक्रम और चट्टानों में उनकी आयु के निर्धारण हेतु कार्य करते हैं।
भूवैज्ञानिक पृथ्वी के पदार्थों, प्रक्रियाओं, उत्पादों, भौतिक प्रकृति तथा पृथ्वी के इतिहास का अध्ययन करते हैं।जिओमारफोलॉजिस्ट्स पृथ्वी के भूस्वरूप और भू-दृश्यों का जिओलॉजिक और जलवायु प्रक्रियाओं तथा मानवीय गतिविधियों से संबंधित अध्ययन करते हैं, जिनसे वे बनते हैं।
भूभौतिकीविद पृथ्वी के आंतरिक हिस्से के अध्ययन के लिए भौतिकी के सिद्वान्तों का प्रयोग करते हैं और पृथ्वी के चुम्बकत्व, वैद्युत तथा गुरुत्वाकर्षण क्षेत्रों का अध्ययन करते हैं।
ग्लेशियोलॉजिस्ट्स ग्लेशियरों और हिम पट्टियों की भौतिक संपत्तियों तथा प्रचालन का अध्ययन करते हैं।हाइड्रोजिऑलॉजिस्ट्स उप-भूतल जल की गुणवत्ता तथा भूतल के ऊपर उपलब्ध् पानी के जिओलॉजिक पहलुओं से संबंधित उपस्थिति, संचलन, प्रचुरता, वितरण और गुणवत्ता का अध्ययन करते हैं।
जलविज्ञानियों का संबंध् पानी से है जो कि इसके वर्षण से लेकर वातावरण में वाष्प बनने या समुद्र में बह जाने तक की गतिविधियों से जुड़े कार्य देखते हैं; उदाहरण के लिए, वे बाढ़ के प्रभावों का अध्ययन करने के लिए नदी व्यवस्था का अध्ययन करते हैं।
समुद्री भूवैज्ञानिक सागर-तल और सागर- महाद्वीपीय सीमाओं का अध्ययन करते हैं। वे समुद्री थाले, महाद्वीपीय अल्पप्रवण होने और महाद्वीपीय सीमाओं पर तटीय पर्यावरण आदि का अध्ययन करते हैं। मौसमविज्ञानी मौसम सहित वातावरण और वातावरणीय घटनाक्रमों का अध्ययन करते हैं।खनिजविज्ञानी खनिजों के बनने, मिश्रण और संपत्तियों का अध्ययन करते हैं।
समुद्रविज्ञानी समुद्रों के भौतिक, रासायनिक, जैविक और भूवैज्ञानिक गतिविधिओं की जांच करते हैं।पैलियोइकोलोजिस्ट्स प्राचीन जीवों का अध्ययन और संवितरण तथा उनका अपने पर्यावरण से संबंध् का अध्ययन करते हैं।
पैलियोऑन्टोलॉजिस्ट्स पिछले जीवन रूपों को समझने के लिए उनके जीवाश्मों तथा समूची पृथ्वी टाइमस्केल के जरिए उनके परिवर्तनों तथा पूर्व के पर्यावरण के पुनः निर्माण का अध्ययन करते हैं। पेट्रोलियम जिऑलॉजिस्ट्स तेल एवं प्राकृतिक गैस संसाधनों के उत्खनन तथा उत्पादन में शामिल हैं।पेट्रोलॉजिस्ट्स खनिज मिश्रण और तन्तुरचना संबंधों का विश्लेषण करके चट्टानों के उद्भव तथा प्राकृतिक इतिहास का निर्धारण करते हैं।
ग्रहीय भूविज्ञानी सौर प्रणाली की मूल क्रिया को समझने के वास्ते ग्रहों और उनके चन्द्रमाओं का अध्ययन करते हैं।
दूरसंवेदी और जीआईएस व्यावसायिक उपग्रह चित्रों के जरिए प्राप्त नए-नए डाटा की मदद से संपूर्ण ग्रहीय प्रणाली का अध्ययन करते हैं तथा उनकी व्याख्या करते हैं।
सेडिमेंटोलॉजिस्ट्स तलछटों जैसे कि रेत, कीचड़, तेल, गैस, कोयला और तलछटों में जमा कई खनिजों की प्रकृति, विकास, वितरण और वैकल्पिक प्रणाली का अध्ययन करते हैं।
भूकंपविज्ञानी भूकंपों का अध्ययन करते हैं तथा पृथ्वी के ढांचे की व्याख्या के लिए भूकंप तरंगों के व्यवहार का विश्लेषण करते हैं।
मृदा भूविज्ञानी मिट्टियों तथा उनकी प्रोपर्टीज का इस बात के निर्धारण के लिए अध्ययन करते हैं कि कृषि उत्पादकता को किस प्रकार बनाए रखा जा सकता है तथा संदूषित मिट्टी को किस प्रकार सुधारा जा सकता है।
शैल-विज्ञानी चट्टानों के स्थानीय, क्षेत्रीय और वैश्विक पैमाने पर संपूर्ण भूवैज्ञानिक समय में विशेषकर जीवाश्म और खनिज की लेअर वाली चट्टानों के समय तथा स्पेस संबंधों की जांच करते हैं।
अंतरिक्ष भूविज्ञानी पृथ्वी विज्ञान विशेषज्ञों को अंतरिक्ष विषयों तथा उनकी विशेषताओं के बारे में नई सूचनाओं के साथ सुसज्जित करने हेतु नई-नई जानकारियां उपलब्ध कराते हैं।
ज्वालामुखी-विज्ञानी ज्वालामुखियों और इनके परिदृश्यों की जांच करते हैं ताकि वे इन प्राकृतिक आपदाओं को समझ सकें तथा इनके बारे में पूर्वानुमान कर सकें।
इस समय लंबी-रेंज की संभावनाएं बहुत अच्छी हैं। ऊर्जा, खनिज, और जल संसाधनों की बढ़ती मांग के साथ-साथ पर्यावरण और प्राकृतिक आपदाओं से संबंधित वर्तमान चुनौतियों ने भू - वैज्ञानिकों के क्षेत्र को व्यापक बना दिया है। कई भू-विज्ञानी भूविज्ञानी सलाहकार के रूप में स्वयं - रोजगार संचालित कर रहे हैं या कंसलटिंग फर्मों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। ज्यादातर कन्सलटिंग जिऑलॉजिस्ट्स को उद्योग, शिक्षा या अनुसंधान में व्यापक व्यावसायिक अनुभव है।
कुल मिलाकर सामान्यतः पृथ्वी विज्ञान में रोजगार के अवसर और भूविज्ञान में विशेष तौर पर मुख्यतः सरकारी एजेंसियों में उपलब्ध् हैं। भूविज्ञान में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) सबसे बड़ा नियोक्ता है जहां भूवैज्ञानिकों और हाइड्रो जिऑलॉजिस्ट्स को नियुक्त किया जाता है।
प्रमुख पृथ्वी विज्ञान संगठन जीएसआई की स्थापना 1851 में मुख्यतः कोयला संसाधनों का पता लगाने के लिए की गई थी, अब यह करीब 2900 वैज्ञानिक और तकनीकी व्यावसायिकों के साथ सबसे बड़े वैज्ञानिक संगठनों में से एक बन गया है। यह कार्य बड़े पैमाने पर पृथ्वी विज्ञान गतिविधिओं से संबंधित हैं, जैसे कि भूविज्ञानिक, भूभौतिकीय और भूरासायनिक मैपिंग, विशेषीकृत थर्मेटिक अध्ययन, जमीनी और एअरबोर्न भूभौतिकीय सर्वेक्षण, समुद्री सर्वेक्षण, भू-पर्यावरणीय अध्ययन और सर्वेक्षण तथा भू-तकनीकी और सिस्मोटेक्टोनिक सर्वेक्षण।
संघ लोक सेवा आयोग भारतीय भू-सर्वेक्षण विभाग तथा अन्य सरकारी संगठनों में भू-वैज्ञानिकों की भर्ती के लिए परीक्षा का आयोजन करता है।
(1) ईंधन इंजीनियरी, खनिज इंजीनियरी, खान प्लानिंग और डिजाइन, ओपनकास्ट माइनिंग, रॉक एक्सावेशन और इंजीनियरी, लांग बाल माइन मैकेनाइजेशन, औद्योगिक इंजीनियरी और प्रबंधन, पेट्रोलियम इंजीनियरी, खनन भूभौतिकी, खनिज अन्वेषण, इंजीनियरी भूविज्ञान में एम.टेक. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटीज), जैसे कि आईआईटी-बी, आईआईटी-खड़गपुर, आईआईटीआर ऐसे प्रमुख संस्थानों में से हैं जहां पर इस क्षेत्र में विभिन्न व्यावसायिक पाठ्यक्रम संचालित किए जाते हैं। इसके अलावा अन्य प्रमुख केंद्रीय और राज्य विश्वविद्यालयों में भी पाठ्यक्रम संचालित किए जाते हैं।
दस क्षेत्रों जैसे कि पृथ्वी विज्ञान, भूविज्ञान, भूगोल, समुद्रीविज्ञान, दूर-संवेदन, वातावरणीय विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान, जल विज्ञान और कार्टोग्राफी में उपलब्ध् शैक्षणिक अवसरों का संक्षिप्त लेखा-जोखा निम्नानुसार है :-
डिप्लोमा पाठ्यक्रम अन्य तीन विश्वविद्यालयों में उपलब्ध् है :-(1) उस्मानिया विश्वविद्यालय- भौगोलिक मानचित्रकारी में डिप्लोमा, (2) जामिया- मिल्लिया-इस्लामिया- मानचित्रकारी में डिप्लोमा, एक विषय भूगोल रखते हुए-स्नातकों के लिए खुला है, (3) एम.एस. बड़ौदा विश्वविद्यालय मानचित्रकारी में डिप्लोमा।भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (मुंबई) में मानचित्रकारी से संबंधित स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम, उन्नत एरियल फोटो इन्टरप्रीटेशन उपलब्ध् है।
भारत में देश का प्रमुख भूवैज्ञानिक संगठन - भारतीय भूसर्वेक्षण विभाग (जीएसआई) उन गतिविधिओं के प्रति समर्पित है जिनमें विभिन्न पैमानों पर संपूर्ण देश का भूवैज्ञानिकमानचित्रीकरण, खनिज आधारित उद्योगों के विकास के लिए भूवैज्ञानिक डाटा संकलन, ऊर्जा और पर्यावरण संसाधनों, अनुसंधान गतिविधिओं तथा पृथ्वी विज्ञान से संबंधित सभी पहलुओं के ज्ञान के विस्तार संबंधी गतिविधियाँ शामिल हैं। इससे संबद्व प्रशिक्षण केंद्र हैं :-1. चित्रा दुर्ग प्रशिक्षण केंद्र, कर्नाटक2. लखनऊ प्रशिक्षण केंद्र, उत्तर प्रदेश3. रायपुर प्रशिक्षण केंद्र, छत्तीसगढ़4. रांची प्रशिक्षण केंद्र, झारखण्ड5. जवार प्रशिक्षण केंद्र, राजस्थान6. हैदराबाद प्रशिक्षण केंद्र, आन्ध्र प्रदेश
कई विकासशील और अल्प विकसित, विशेषकर सार्क देशों जैसे कि नेपाल, भूटान, बंगलादेश, सूरीनाम और कई अन्य देशों के भूविज्ञान व्यावसायिकों को देश में जीएसआई द्वारा प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। इसी प्रकार विभिन्न अन्य कम्पनियां भी अपनी विशिष्ट गतिविधिओं पर आधारित व्यावसायिकों को क्षमता निर्माण के लिए इन-हाउस प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित करती हैं।
(डॉ. बिजय सिंह विश्वविद्यालय भूविज्ञान विभाग (डीएसटी-एफआईएसटी प्रायोजित), रांची विश्वविद्यालय, रांची-834008, झारखण्ड में वरिष्ठ संकाय सदस्य है तथा डॉ. विवेक कुमार सिंह झारखण्ड अंतरिक्षअनुप्रयोग केंद्र, रांची, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, झारखण्ड सरकार में परियोजना वैज्ञानिक
भूवैज्ञानिक हमेशा पृथ्वी और भूमण्डलीय प्रणाली के बारे में जानने को उत्सुक रहते हैं। क्या अन्य ग्रहों पर कोई जीवन है? चन्द्रमा, मंगल, बृहस्पति और अन्य ग्रहों पर क्या संसाधन उपलब्ध् हैं? इनमें किस तरह परिवर्तन हो रहे हैं? सिकुड़ते ग्लेशियरों का महासागरों और जलवायु पर क्या प्रभाव पड़ रहा है और किस तरह जलवायु परिवर्तन हो रहे हैं? महाद्वीपों के खिसकने, पर्वतों के बनने, ज्वालामुखी फटने के क्या कारण हैं? डायनासोर क्यों विलुप्त हो गए हैं? आदि। भूवैज्ञानिक पृथ्वी से संबंधित खोजबीन कार्यों से जुड़े हैं। वैश्विक पर्यावरण किस तरह परिवर्तित हो रहा है? पृथ्वी प्रणाली कैसे काम करती है? हमें औद्योगिक कपड़े का निपटान कैसे और कहां करना चाहिए? भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करते हुए समाज की ऊर्जा और पानी की बढ़ती मांग को कैसे पूरा किया जा सकता है। जिस तरह विश्व की जनसंख्या बढ़ रही है क्या हम उसके लिए पर्याप्त खाद्य और रेशा तैयार कर सकते हैं तथा किस प्रकार खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा प्राप्त कर सकते हैं?
भूविज्ञान के आयाम
भूवैज्ञानिक पृथ्वी और अन्य ग्रहों के बारे में डाटा एकत्र करते हैं तथा उसका विश्लेषण करते हैं। वे पृथ्वी की प्रक्रियाओं के प्रति हमारी समझ को बढ़ाने तथा मानवीय जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए अपने ज्ञान का प्रयोग करते हैं। चूंकि भूविज्ञान इतना व्यापक और विविध् क्षेत्र है इसलिए उनका कार्य और कॅरिअर मार्ग विभिन्नताओं से परिपूर्ण है। राष्ट्रीय विज्ञान फाउण्डेशन (एनएसएफ, अमरीका) ने भूविज्ञान, भूभौतिकी, जल विज्ञान, समुद्र विज्ञान, मॅरीन साइंस, वातावरणीय विज्ञान, ग्रहीय विज्ञान, मौसम विज्ञान, पर्यावरणीय विज्ञान और मृदा विज्ञान को व्यापक भूविज्ञान विषयक्षेत्र के रूप में माना है। नीचे वर्णित सूची में इस बात का उल्लेख है कि भूविज्ञानी क्या काम करते हैं और विभिन्न उभरते क्षेत्रों तथा विभिन्न प्रकार के उप-क्षेत्रों में वे क्या कुछ कर सकते हैं। (वर्ण क्रम में)
कृषि भूवैज्ञानिक फसलीय पद्वति और वरीयताओं की दृष्टि से मृदा प्रोफाइल्स के साथ चट्टानों और खनिजों के संपर्क का अध्ययन करते हैं। फसल-खेती में सुधार के वास्ते एक उपयुक्त निर्णय समर्थन प्रणाली तैयार करते हैं।
वातावरणीय भूवैज्ञानिक मौसम प्रक्रियाओं, जलवायु की वैश्विक गतिशीलता, सौर विकिरण और इसके प्रभावों तथा ओजोन क्षीणता, जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण में वातावरणीय भूरसायन विज्ञान की भूमिका का अध्ययन करते हैं।
आर्थिक भूवैज्ञानिक/अयस्क भूवैज्ञानिक धात्विक और गैर धात्विक संसाधनों की खोज और विकास के लिए काम करते हैं तथा पर्यावरणीय सुरक्षित उत्खनन और खनन पद्वतियों का अध्ययन करते हैं तथा खनन गतिविधिओं से उत्पन्न अपशिष्ट के निपटान का ध्यान रखते हैं।
इंजीनियरी भूवैज्ञानिक भूविज्ञान से संबंधित डॉटा, तकनीकों और सिद्वान्तों का इस्तेमाल चट्टानों तथा मृदा सामग्रियों और भूजल के अध्ययन के लिए करते हैं। वे उन भूवैज्ञानिक कारकों की जांच करते हैं जो विभिन्न अवसंरचनाओं, जैसे कि पुलों, भवनों, हवाई अड्डों, बांधों/जलाशयों, सुरंगों और अन्य मेगा अवसंरचनाओं को प्रभावित करते हैं।
पर्यावरणीय भूवैज्ञानिक भूक्षेत्र, जलक्षेत्र, वातावरण, जैव क्षेत्र और मानवीय गतिविधियों के बीच संपर्क का अध्ययन करते हैं। वे प्रदूषण, अपशिष्ट प्रबंधन, शहरीकरण और प्राकृतिक आपदाओं; जैसे कि बाढ़ और भूमि कटाव से जुड़ी समस्याओं को हल करते हैं।
जिओलॉजिस्ट्स खनिज विज्ञानियों का एक विशिष्ट क्लब है जो कि कीमती/अर्द्व - कीमती रत्नों तथा हीरों के प्रमाणीकरण् और पहचान के विशेषज्ञ होते हैं।
भूरसायनशास्त्री प्रकृति की जांच तथा भूजल और पृथ्वी के पदार्थों के वितरण में भौतिक तथा इनआर्गेनिक कैमिस्ट्री का प्रयोग करते हैं; वे जीवाश्म ईंधन (कोयला तेल और गैस) भण्डारों के अध्ययन के लिए आर्गेनिक कैमिस्ट्री का प्रयोग करते हैं।
जिओक्रोनोलॉजिस्टस चट्टानों में कुछेक रेडियो एक्टिव तत्वों के क्षय की दर तथा पृथ्वी के इतिहास में घटनाक्रमों के समय अनुक्रम और चट्टानों में उनकी आयु के निर्धारण हेतु कार्य करते हैं।
भूवैज्ञानिक पृथ्वी के पदार्थों, प्रक्रियाओं, उत्पादों, भौतिक प्रकृति तथा पृथ्वी के इतिहास का अध्ययन करते हैं।जिओमारफोलॉजिस्ट्स पृथ्वी के भूस्वरूप और भू-दृश्यों का जिओलॉजिक और जलवायु प्रक्रियाओं तथा मानवीय गतिविधियों से संबंधित अध्ययन करते हैं, जिनसे वे बनते हैं।
भूभौतिकीविद पृथ्वी के आंतरिक हिस्से के अध्ययन के लिए भौतिकी के सिद्वान्तों का प्रयोग करते हैं और पृथ्वी के चुम्बकत्व, वैद्युत तथा गुरुत्वाकर्षण क्षेत्रों का अध्ययन करते हैं।
ग्लेशियोलॉजिस्ट्स ग्लेशियरों और हिम पट्टियों की भौतिक संपत्तियों तथा प्रचालन का अध्ययन करते हैं।हाइड्रोजिऑलॉजिस्ट्स उप-भूतल जल की गुणवत्ता तथा भूतल के ऊपर उपलब्ध् पानी के जिओलॉजिक पहलुओं से संबंधित उपस्थिति, संचलन, प्रचुरता, वितरण और गुणवत्ता का अध्ययन करते हैं।
जलविज्ञानियों का संबंध् पानी से है जो कि इसके वर्षण से लेकर वातावरण में वाष्प बनने या समुद्र में बह जाने तक की गतिविधियों से जुड़े कार्य देखते हैं; उदाहरण के लिए, वे बाढ़ के प्रभावों का अध्ययन करने के लिए नदी व्यवस्था का अध्ययन करते हैं।
समुद्री भूवैज्ञानिक सागर-तल और सागर- महाद्वीपीय सीमाओं का अध्ययन करते हैं। वे समुद्री थाले, महाद्वीपीय अल्पप्रवण होने और महाद्वीपीय सीमाओं पर तटीय पर्यावरण आदि का अध्ययन करते हैं। मौसमविज्ञानी मौसम सहित वातावरण और वातावरणीय घटनाक्रमों का अध्ययन करते हैं।खनिजविज्ञानी खनिजों के बनने, मिश्रण और संपत्तियों का अध्ययन करते हैं।
समुद्रविज्ञानी समुद्रों के भौतिक, रासायनिक, जैविक और भूवैज्ञानिक गतिविधिओं की जांच करते हैं।पैलियोइकोलोजिस्ट्स प्राचीन जीवों का अध्ययन और संवितरण तथा उनका अपने पर्यावरण से संबंध् का अध्ययन करते हैं।
पैलियोऑन्टोलॉजिस्ट्स पिछले जीवन रूपों को समझने के लिए उनके जीवाश्मों तथा समूची पृथ्वी टाइमस्केल के जरिए उनके परिवर्तनों तथा पूर्व के पर्यावरण के पुनः निर्माण का अध्ययन करते हैं। पेट्रोलियम जिऑलॉजिस्ट्स तेल एवं प्राकृतिक गैस संसाधनों के उत्खनन तथा उत्पादन में शामिल हैं।पेट्रोलॉजिस्ट्स खनिज मिश्रण और तन्तुरचना संबंधों का विश्लेषण करके चट्टानों के उद्भव तथा प्राकृतिक इतिहास का निर्धारण करते हैं।
ग्रहीय भूविज्ञानी सौर प्रणाली की मूल क्रिया को समझने के वास्ते ग्रहों और उनके चन्द्रमाओं का अध्ययन करते हैं।
दूरसंवेदी और जीआईएस व्यावसायिक उपग्रह चित्रों के जरिए प्राप्त नए-नए डाटा की मदद से संपूर्ण ग्रहीय प्रणाली का अध्ययन करते हैं तथा उनकी व्याख्या करते हैं।
सेडिमेंटोलॉजिस्ट्स तलछटों जैसे कि रेत, कीचड़, तेल, गैस, कोयला और तलछटों में जमा कई खनिजों की प्रकृति, विकास, वितरण और वैकल्पिक प्रणाली का अध्ययन करते हैं।
भूकंपविज्ञानी भूकंपों का अध्ययन करते हैं तथा पृथ्वी के ढांचे की व्याख्या के लिए भूकंप तरंगों के व्यवहार का विश्लेषण करते हैं।
मृदा भूविज्ञानी मिट्टियों तथा उनकी प्रोपर्टीज का इस बात के निर्धारण के लिए अध्ययन करते हैं कि कृषि उत्पादकता को किस प्रकार बनाए रखा जा सकता है तथा संदूषित मिट्टी को किस प्रकार सुधारा जा सकता है।
शैल-विज्ञानी चट्टानों के स्थानीय, क्षेत्रीय और वैश्विक पैमाने पर संपूर्ण भूवैज्ञानिक समय में विशेषकर जीवाश्म और खनिज की लेअर वाली चट्टानों के समय तथा स्पेस संबंधों की जांच करते हैं।
अंतरिक्ष भूविज्ञानी पृथ्वी विज्ञान विशेषज्ञों को अंतरिक्ष विषयों तथा उनकी विशेषताओं के बारे में नई सूचनाओं के साथ सुसज्जित करने हेतु नई-नई जानकारियां उपलब्ध कराते हैं।
ज्वालामुखी-विज्ञानी ज्वालामुखियों और इनके परिदृश्यों की जांच करते हैं ताकि वे इन प्राकृतिक आपदाओं को समझ सकें तथा इनके बारे में पूर्वानुमान कर सकें।
भूविज्ञानियों के लिए रोजगार के अवसर
देश की सामाजिक-आर्थिक स्थिति के अनुरूप अन्य व्यवसायों की तरह भूविज्ञान के क्षेत्र में रोजगार परिदृश्य विभिन्न प्रकार और रूपों में है।इस समय लंबी-रेंज की संभावनाएं बहुत अच्छी हैं। ऊर्जा, खनिज, और जल संसाधनों की बढ़ती मांग के साथ-साथ पर्यावरण और प्राकृतिक आपदाओं से संबंधित वर्तमान चुनौतियों ने भू - वैज्ञानिकों के क्षेत्र को व्यापक बना दिया है। कई भू-विज्ञानी भूविज्ञानी सलाहकार के रूप में स्वयं - रोजगार संचालित कर रहे हैं या कंसलटिंग फर्मों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। ज्यादातर कन्सलटिंग जिऑलॉजिस्ट्स को उद्योग, शिक्षा या अनुसंधान में व्यापक व्यावसायिक अनुभव है।
कुल मिलाकर सामान्यतः पृथ्वी विज्ञान में रोजगार के अवसर और भूविज्ञान में विशेष तौर पर मुख्यतः सरकारी एजेंसियों में उपलब्ध् हैं। भूविज्ञान में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) सबसे बड़ा नियोक्ता है जहां भूवैज्ञानिकों और हाइड्रो जिऑलॉजिस्ट्स को नियुक्त किया जाता है।
प्रमुख पृथ्वी विज्ञान संगठन जीएसआई की स्थापना 1851 में मुख्यतः कोयला संसाधनों का पता लगाने के लिए की गई थी, अब यह करीब 2900 वैज्ञानिक और तकनीकी व्यावसायिकों के साथ सबसे बड़े वैज्ञानिक संगठनों में से एक बन गया है। यह कार्य बड़े पैमाने पर पृथ्वी विज्ञान गतिविधिओं से संबंधित हैं, जैसे कि भूविज्ञानिक, भूभौतिकीय और भूरासायनिक मैपिंग, विशेषीकृत थर्मेटिक अध्ययन, जमीनी और एअरबोर्न भूभौतिकीय सर्वेक्षण, समुद्री सर्वेक्षण, भू-पर्यावरणीय अध्ययन और सर्वेक्षण तथा भू-तकनीकी और सिस्मोटेक्टोनिक सर्वेक्षण।
संघ लोक सेवा आयोग भारतीय भू-सर्वेक्षण विभाग तथा अन्य सरकारी संगठनों में भू-वैज्ञानिकों की भर्ती के लिए परीक्षा का आयोजन करता है।
पारिश्रमिक और पैकेज
किसी भी अन्य प्रमुख क्षेत्र की तुलना में इसमें वेतन और अनुलाभ उत्कृष्ट हैं तथा कई निजी कंपनियों और निगमित घरानों में 10-15 लाख के बीच प्रति वर्ष का ग्रेड होता है। ये बी.ई और बी.टेक. को ऑफर किए जाने वाले पैकेजों में बहुत अच्छा है।भूविज्ञान में पाठ्यक्रम तथा अकादमिक संस्थान
भारतीय खनि विद्यालय, धनबाद. 1926 में स्थापित यह संस्थान भूविज्ञान और खनन के क्षेत्र में एक प्रमुख संस्थान है जिसे मानित विश्व विद्यालय का दर्जा प्राप्त है। कम्प्यूटर्स इलेक्ट्रॉनिक्स और इन्सट्रमेंटेशन, खनन इंजीनियरी, खनन मशीनरी और पेट्रोलियम इंजीनियरी में बी.टेक पाठ्यक्रम संचालित करने के अलावा यहां अनुप्रयुक्त भूविज्ञान में एम.एससी. (टेक) तथा एम.बी.ए. पाठ्यक्रम संचालित किए जाते हैं। बी.टेक. पाठ्यक्रमों में प्रवेश आईआईटी-परिणामों पर आधारित होता है। अन्य स्नातकोत्तर कार्यक्रम हैं :(1) ईंधन इंजीनियरी, खनिज इंजीनियरी, खान प्लानिंग और डिजाइन, ओपनकास्ट माइनिंग, रॉक एक्सावेशन और इंजीनियरी, लांग बाल माइन मैकेनाइजेशन, औद्योगिक इंजीनियरी और प्रबंधन, पेट्रोलियम इंजीनियरी, खनन भूभौतिकी, खनिज अन्वेषण, इंजीनियरी भूविज्ञान में एम.टेक. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटीज), जैसे कि आईआईटी-बी, आईआईटी-खड़गपुर, आईआईटीआर ऐसे प्रमुख संस्थानों में से हैं जहां पर इस क्षेत्र में विभिन्न व्यावसायिक पाठ्यक्रम संचालित किए जाते हैं। इसके अलावा अन्य प्रमुख केंद्रीय और राज्य विश्वविद्यालयों में भी पाठ्यक्रम संचालित किए जाते हैं।
दस क्षेत्रों जैसे कि पृथ्वी विज्ञान, भूविज्ञान, भूगोल, समुद्रीविज्ञान, दूर-संवेदन, वातावरणीय विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान, जल विज्ञान और कार्टोग्राफी में उपलब्ध् शैक्षणिक अवसरों का संक्षिप्त लेखा-जोखा निम्नानुसार है :-
पृथ्वी विज्ञान :
मास्टर डिग्री स्तर पर, पृथ्वी विज्ञान का एक व्यापक विषय के तौर पर निम्नलिखित विश्वविद्यालयों में अध्ययन कराया जाता हैः- बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय (भोपाल 482026), भारतीय खनि विद्यालय (धनबाद- 826004)-अनुप्रयुक्त भूविज्ञान और अनुप्रयुक्त भूभौतिकी में तीन वर्षीय अवधि की एम.एससी. (टेक.), जीवाजी विश्वविद्यालय (ग्वालियर- 474011), मणिपुर विश्वविद्यालय (इम्फाल- 795003), संभलपुर विश्वविद्यालय (संभलपुर- 768019) और स्वामी परमानंद तीर्थ मराठवाड़ा विश्वविद्यालय (नांदेड-431606), विश्वविद्यालयवत् संस्थान भारतीय खान विद्यालय, पृथ्वी विज्ञान में शैक्षणिक और अनुसंधान का एक प्रमुख केंद्र हैं।भूविज्ञान
भूविज्ञान में करीब 60 विश्वविद्यालय एम. एससी. पाठ्यक्रम संचालित करते हैं जबकि इनमें से कइयों ने एम.फिल. और पी-एच. डी. कार्यक्रम शुरू किए हैं। इसके लिए पात्रता अपेक्षाएं प्रथम डिग्री स्तर पर एक विषय भूविज्ञान रखते हुए बी.एससी. डिग्री है। अन्य 25 विश्वविद्यालय अनुप्रयुक्त भूविज्ञान में एम.एससी., एम.एससी. (टेक) तथा एम.टेक. कार्यक्रम संचालित करते हैं। खनन में शिक्षण के लिए भूविज्ञान से जरूरी इनपुट्स की आवश्यकता होती है। इंजीनियरी कॉलेजों में खनन के रूप में इंजीनियरी विषय क्षेत्र में पाठ्यक्रम संचालित किए जाते हैं।समुद्र विज्ञान
समुद्र विज्ञान और संबंधित विषयों में मास्टर्स डिग्री पाठ्यक्रम निम्नलिखित विश्वविद्यालयों में उपलब्ध् हैं :- (1) अलगप्पा विश्वविद्यालय (कराईकुडी-630003)-एम.एससी. (समुद्र विज्ञान और तटीय क्षेत्र अध्ययन) (2) आंध्र विश्वविद्यालय (विशाखापत्तनम 530003)- एम.एससी. (समुद्र विज्ञान-भौतिकीय एवं रासायनिक); (3) अन्नामलै विश्वविद्यालय (अन्नामलै नगर 608002)-एम.एससी. (मॅरीन बायोलॉजी एवं समुद्र विज्ञानद्ध) (4) कोचिन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (कोच्चि-682022)-एम.एससी. (समुद्र विज्ञान); (5) मद्रास विश्वविद्यालय (चेन्नै- 600005), एम.एससी. (समुद्री जीव विज्ञान), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (चेन्नै 600036) एम.टेक. (समुद्री इंजीनियरी) पाठ्यक्रम संचालित करता है।दूरसंवेदन एवं जीआईएस
अनिवार्यतः, दूरसंवेदन प्रौद्योगिकी भूमि के सर्वेक्षण-इसके आयामों और इसमें मौजूद संसाधनों दोनों के संबंध् में काम करने के लिए आवश्यक है। भूमि का सर्वेक्षण करने के लिए एरियल फोटोग्राफी का व्यापक रूप से मानचित्र तैयार करने में किया जाने वाला उपयोग दूर संवेदन का ही पूर्ववर्ती है। दूर-संवेदन के महत्व पर विचार करते हुए - अन्ना विश्वविद्यालय (चेन्नै-600025) पहला संस्थान था जिसने तीन वर्षीय अवधि का एम. टेक. (दूर संवेदन) पाठ्यक्रम आरंभ किया, जो कि बी.ई./बी.टेक., बी.एससी. (कृषि/बागवानी), एम.एससी. (गणित/भैतिकी/ रसायन) या एम.एससी. (भूगोल/भौगोलिक) डिग्रियों वाले छात्रों के लिए खुला है। यहां बीई. (जिऑ-इन्फारमैटिक्स) प्रदान करने हेतु संबद्व क्षेत्र के अन्य पाठ्यक्रम भी संचालित करता है। अन्य जिन विश्वविद्यालयों ने पाठ्यक्रम शुरू किए हैं, वे हैं :- (1) आंध्र विश्वविद्यालय (विशाखापत्तनम-530003) एम.टेक. (दूर संवेदन); (2) बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय (भोपाल-482026) - एम. एससी. (टेक.) (दूर-संवेदन); (3) भारतीदासन विश्वविद्यालय (तिरुचिरापल्ली 620024) - एम.टेक. (दूरसंवेदन) - जो कि एम.एससी. भूगोल, भूविज्ञान या भूभौतिकी के छात्रों के लिए खुला है; (4) बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी- (रांची-835215) - एम.टेक. (दूर-संवेदन) - बी.ई. और एम.एससी. डिग्रीधारियों के लिए खुला है; (5) भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (मुंबई-400076) - एम.टेक. (दूर संवेदन); (6) पुणे विश्वविद्यालय (पुणे-411007) - एम.एससी. (दूर संवेदन) - विज्ञान की किसी भी शाखा में बी.एससी. डिग्रीधारियों के लिए खुला है; (7) रुड़की विश्वविद्यालय (रुड़की-147667), एम.टेक. (दूर संवेदन और फोटोग्रामैटिक इंजीनियरी); (8) श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय (तिरुपति- 517502) - एम.एससी. (दूर संवेदन प्रणाली प्रबंधन), बुंदेलखण्ड विश्वविद्यालय (झांसी- 284128) में दूर संवेदन और भू-पर्यावरण में एक वर्ष की अवधि का स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम संचालित किया जाता है जो कि एम.एससी./एम.टेक. (भूविज्ञान) डिग्रीधारियों के लिए खुला है, (9) भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (मुंबई-400075) - उन्नत एरियल फोटो-इंटरप्रीटेशन में स्नातकोत्तर डिप्लोमा)मानचित्रकारी :
मानचित्रों में लाइनों, रंगों, आकृतियों और चिन्हों, स्थानों तथा भौगोलिक, टोपोग्राफिकल और भूवैज्ञानिक फीचर्स के जरिए सूचनाएं प्रदान की जाती हैं। मानचित्रकारी मानचित्रों को रेखांकित करने की एक कला है। मानचित्रकारी में उपलब्ध् औपचारिक पाठ्यक्रम बहुत सीमित है, जो निम्नानुसार हैं: मद्रास विश्वविद्यालय में दो वर्षीय अवधि का एम.एससी. (मानचित्रकारी) पाठ्यक्रम संचालित किया जाता है।डिप्लोमा पाठ्यक्रम अन्य तीन विश्वविद्यालयों में उपलब्ध् है :-(1) उस्मानिया विश्वविद्यालय- भौगोलिक मानचित्रकारी में डिप्लोमा, (2) जामिया- मिल्लिया-इस्लामिया- मानचित्रकारी में डिप्लोमा, एक विषय भूगोल रखते हुए-स्नातकों के लिए खुला है, (3) एम.एस. बड़ौदा विश्वविद्यालय मानचित्रकारी में डिप्लोमा।भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (मुंबई) में मानचित्रकारी से संबंधित स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम, उन्नत एरियल फोटो इन्टरप्रीटेशन उपलब्ध् है।
वातावरणीय विज्ञान
वातावरणीय विज्ञानों के क्षेत्र में पाठ्यक्रम सामान्यतः वातावरणीय विज्ञान में और जलवायु विज्ञान, मौसम विज्ञान, कृषि मौसम विज्ञान में उपलब्ध् हैं। सभी पाठ्यक्रम मास्टर डिग्री (एम.एससी. या एम.टेक.) स्तर पर उपलब्ध् हैं, लेकिन कुछ विषयों में स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम उपलब्ध् हैं। (1) कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय (कुरुक्षेत्र-136119) - एम. एससी.; (2) पुणे विश्वविद्यालय, अंतरिक्ष विज्ञान विभाग (पुणे-411007), एम.एससी पात्रता : किसी भी शाखा में बी.एससी. (3) आन्ध्र विश्वविद्यालय (विशाखापत्तनम- 530003) - एम.टेक., पात्रता-एम.एससी- भौतिकी, परमाणु भौतिकी, मौसम विज्ञान, समुद्र विज्ञान, अंतरिक्ष भौतिकी, गणित या सांख्यिकी; (4) कलकत्ता विश्वविद्यालय (कलकत्ता-700073) - एम.टेक., पात्रता- संबंधित शाखा में बी.टेक.; (5) कोचिन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (कोच्चि-682022)-एम.टेक., पात्रता : एम. एससी.-मौसम विज्ञान, समुद्र विज्ञान या भौतिकी, साथ में वैध् गेट स्कोर; (6) भारतीय विज्ञान संस्थान (बंगलौर) - एम. एससी. (इंजी) पात्रता - एम.एससी. या बी.ई. /बी.टेक-संबंधित शाखा में; (7) श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय (तिरुपति-517502) - एम.टेक पात्रता : एम.एससी. या बी.ई./बी.टेक. संबंधित शाखा में।जलवायु विज्ञान
पुणे विश्वविद्यालय (पुणे-411007) - एम. एससी., पात्रता : किसी भी शाखा में बी. एससी मौसम विज्ञान :(1) आन्ध्र विश्वविद्यालय (विशाखापत्तनम- 530003) - एम.एससी. पात्रता : बी.एससी डिग्री;(2) कोचिन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (कोच्चि-682022) - एम. एससी., पात्रता : भौतिकी और गणित के साथ बी.एससी.; (3) एम.एस. बड़ौदा विश्वविद्यालय (बड़ोदरा-390002) - एम. एससी., पात्रता : बी.एससी. डिग्री; (4) भरथियार विश्वविद्यालय (कोयम्बत्तूर-641040) - मौसम विज्ञान में स्नातकोत्तर डिप्लोमा; (5) पंजाबी विश्वविद्यालय (पटियाला-147002)-मौसम विज्ञान में स्नातकोत्तर डिप्लोमा।कृषि मौसम विज्ञान(1) चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय (हिसार-125004);(2) गुजरात कृषि विश्वविद्यालय (सरदार कृषि नगर-385506); (3) हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय (शिमला-171005) (4) पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (लुधियाना-141004)।पाठ्यक्रम हालांकि केवल कृषि स्नातकों के लिए खुले हैं।अन्य पाठ्यक्रमअंतरिक्ष विज्ञान
अंतरिक्ष विज्ञान में पाठ्यक्रम संचालित करने वाला एक मात्र विश्वविद्यालय पुणे विश्वविद्यालय है। इसके लिए पात्रता योग्यता किसी भी शाखा में बी.एससी. डिग्री है। इसके अलावा गुजरात विश्वविद्यालय और आन्ध्र विश्वविद्यालय अंतरिक्ष विज्ञान में पोस्ट-मास्टर डिप्लोमा पाठ्यक्रम संचालित करते हैं।जल विज्ञान
जल विज्ञान में केवल दो विश्वविद्यालय एम. एससी. पाठ्यक्रम संचालित करते हैं :- (1) आन्ध्र विश्वविद्यालय-एम.एससी. (टेक.) - (जलविज्ञान), अवधि : तीन वर्ष, पात्रता : बी. एससी. डिग्री; (2) कोचिन विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय-एम.एससी. (हाइड्रो-केमिस्ट्री) -पात्रता केमिस्ट्री के साथ बी.एससी.। इसके अलावा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (मुंबई), उस्मानिया विश्वविद्यालय और रुड़की विश्वविद्यालय (रुड़की- 247667) जल विज्ञान में डिप्लोमा पाठ्यक्रम संचालित करते हैं।खनिज अन्वेषण और प्रोसेसिंग
इस विषय में दो विश्वविद्यालय एम.एससी पाठ्यक्रम संचालित करते हैं, अर्थात् आन्ध्र विश्वविद्यालय में-एम.एससी. (खनिज प्रोसेस इंजीनियरी) पाठ्यक्रम बी.टेक. या भूविज्ञान में मास्टर्स डिग्रीधारियों के लिए खुला है; और गुलबर्गा विश्वविद्यालय (गुलबर्गा-585108)- में एम.एससी. (खनिज प्रोसेसिंग और खनिज अन्वेषण)।व्यावसायिक प्रशिक्षण सुविधाएं
चूंकि देश में भूवैज्ञानिक शिक्षा में पर्याप्त व्यावहारिक अवयवों की कमी है इसलिए इसमें व्यावसायिक प्रशिक्षण अनिवार्य अपेक्षा है। तदनुसार 1976 में रायपुर में मुख्यालय के साथ एक पूर्ण प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना की गई जिसका मुख्य उद्देश्य नए भर्ती व्यक्तियों के लिए व्यावसायिक प्रेक्टिस सुविधाएं उपलब्ध् कराना था। इसके अलावा भारतीय भूसर्वेक्षण विभाग प्रशिक्षण संस्थान भी भूवैज्ञानिकों को उनके संबद्व क्षेत्रों में उन्नत अध्ययन के वास्ते महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। प्रशिक्षण पाठ्यक्रम विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी में हो रहे नियमित विकास के दृष्टिगत और संगठन में संचालित अत्याधुनिक तथा विविधतापूर्ण गतिविधिओं को ध्यान में रखकर तैयार किए जा रहे हैं।भारत में देश का प्रमुख भूवैज्ञानिक संगठन - भारतीय भूसर्वेक्षण विभाग (जीएसआई) उन गतिविधिओं के प्रति समर्पित है जिनमें विभिन्न पैमानों पर संपूर्ण देश का भूवैज्ञानिकमानचित्रीकरण, खनिज आधारित उद्योगों के विकास के लिए भूवैज्ञानिक डाटा संकलन, ऊर्जा और पर्यावरण संसाधनों, अनुसंधान गतिविधिओं तथा पृथ्वी विज्ञान से संबंधित सभी पहलुओं के ज्ञान के विस्तार संबंधी गतिविधियाँ शामिल हैं। इससे संबद्व प्रशिक्षण केंद्र हैं :-1. चित्रा दुर्ग प्रशिक्षण केंद्र, कर्नाटक2. लखनऊ प्रशिक्षण केंद्र, उत्तर प्रदेश3. रायपुर प्रशिक्षण केंद्र, छत्तीसगढ़4. रांची प्रशिक्षण केंद्र, झारखण्ड5. जवार प्रशिक्षण केंद्र, राजस्थान6. हैदराबाद प्रशिक्षण केंद्र, आन्ध्र प्रदेश
कई विकासशील और अल्प विकसित, विशेषकर सार्क देशों जैसे कि नेपाल, भूटान, बंगलादेश, सूरीनाम और कई अन्य देशों के भूविज्ञान व्यावसायिकों को देश में जीएसआई द्वारा प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। इसी प्रकार विभिन्न अन्य कम्पनियां भी अपनी विशिष्ट गतिविधिओं पर आधारित व्यावसायिकों को क्षमता निर्माण के लिए इन-हाउस प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित करती हैं।
(डॉ. बिजय सिंह विश्वविद्यालय भूविज्ञान विभाग (डीएसटी-एफआईएसटी प्रायोजित), रांची विश्वविद्यालय, रांची-834008, झारखण्ड में वरिष्ठ संकाय सदस्य है तथा डॉ. विवेक कुमार सिंह झारखण्ड अंतरिक्षअनुप्रयोग केंद्र, रांची, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, झारखण्ड सरकार में परियोजना वैज्ञानिक
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