2.1 उद्देश्य
जलपोतों के सम्पूर्ण एवं आंशिक विखण्डन के पर्यावरणीय दृष्टि से समुचित प्रबन्ध हेतु इस तकनीकी मार्गदर्शक सिद्धान्त का उद्देश्य है उन देशों को दिशा-निर्देश देना जो जलपोतों के विखण्डन की सुविधाएँ चलाने वाले हैं।
इन मार्गदर्शक सिद्धान्तों का प्रमुख उद्देश्य है, जानकारी देकर और कार्यविधियों, प्रक्रियाओं और तौर-तरीकों के सबन्ध में सिफारिशें देकर जलपोत विखण्डन सुविधाओं को पर्यावरणीय दृष्टि से उचित प्रबन्धन (ईएसएम) करने में सक्षम बनाना।
ये मार्गदर्शक सिद्धान्त सुझाई गई कार्यविधियों, प्रक्रियाओं और तौर-तरीकों के क्रियान्वयन, मानिटरन और निष्पादन के सत्यापन के लिये भी सिफारिशें देते हैं।
2.2 पृष्ठभूमि
उद्योगीकृत देशों में 1980 के दशक में पर्यावरणीय विनियम अधिक सख्त बना दिये गए जिससे खतरनाक कचरे का निपटारा अधिक व्यय साध्य हो गया। इसके बाद से, ‘विषाक्त व्यापारियों’ द्वारा खतरनाक कचरे को विकासशील देशों में निर्यात किया जाने लगा जहाँ विनियम कम सख्त थे। जब इन गतिविधियों की जानकारी अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को हुई तो काफी हो-हल्ला मचा जिसके परिणामस्वरूप 1989 में खतरनाक अपशिष्ट पदार्थों के सीमापार स्थानान्तरण पर नियंत्रण और इन पदार्थों के निपटारे से सम्बन्धित बेसिल संधि अस्तित्व में आई (इसे युनेप द्वारा प्रशासित किया जाता है)।
सबसे पहले इस संधि ने खतरनाक कचरे के राष्ट्रीय सीमाओं के पार आने-जाने को रोकने के लिये ढाँचा तैयार करने और ‘पर्यावरणीय दृष्टि से उचित प्रबन्धन’ के लिये कसौटी तैयार करने की ओर ध्यान दिया।
जलपोत चलायमान संरचनाएँ होते हैं जो काफी बड़े होते हैं और जो मुख्यतः इस्पात के बने होते हैं। उनके उपयोगी कार्यकाल के अन्त में लोहे के भंगार के रूप में उनकी काफी माँग होती है। यह अनवीकरणीय लौह अयस्क का एक आकर्षक विकल्प है और यह सरल इस्पातीय वस्तुओं के निर्माण के लिये उपयुक्त होता है। जीर्ण-शीर्ण जलपोत से निकाले गए उपकरण दुबारा बाजार में बेचे भी जा सकते हैं और इसके लिये भी पुराने जलपोतों की काफी माँग रहती है।
जलपोतों के स्वरूप के कारण जब उन्हें तोड़ा जाता है, तो वे पर्यावरण के लिये और सामान्य सुरक्षा के लिये खतरे पैदा करते हैं। उनका विशाल आकार, उनकी चलायमानता और उनमें उपकरणों और पदार्थों का होना, जिनमें से कुछ उनके ढाँचे में लगे होते हैं और कुछ उनके प्रचालन के लिये आवश्यक होते हैं, ये सब खतरों को जन्म दे सकते हैं।
अन्तरराष्ट्रीय जहाजरानी को विनियमित करने वाली प्रणाली जलपोतों के अभिकल्पन, निर्माण, प्रचालन और रख-रखाव पर प्रकाश डालती है और इन सबके लिये न्यूनतम मानक और अनुपालन के तौर-तरीके निश्चित करती है। लेकिन जहाजरानी से सम्बन्धित कानूनी ढाँचा जलपोतों के अन्तिम वर्षों को ध्यान में नहीं लेता है जब उन्हें सेवानिवृत्त किया जाता है। इस लिये इस समय जलपोतों के विखण्डन को नियंत्रित करने के लिये कोई अन्तरराष्ट्रीय मानक उपलब्ध नहीं है। इस कमी के कारण, कई देशों में जलपोतों के विखण्डन के लिये ऐसे तौर-तरीके, कार्यविधियाँ और प्रक्रियाएँ अपनाई जाती हैं जो पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिये गम्भीर समस्याएँ पैदा करती हैं।
संसाधनों की पुनर्प्राप्ति
विखण्डन से निकलने वाली वस्तुओं की धारा, जिसे कभी-कभी कचरा धारा भी कहा जाता है, उसे उल्लेखनीय हद तक पुनरुपयोग किया जा सकता है। उपयोग किये जा सकने वाले उपकरण और घटक; बिजली की युक्तियाँ (रेडियो, कम्प्यूटर, टीवी, आदि); जीवन रक्षक उपकरण (लाइफबॉय, सरवाइवल सूट, राफ्ट, आदि); स्वच्छता के उपकरण; कम्प्रेसर; पम्प; मोटर; वाल्व; जनित्र; इत्यादि, का वैकल्पिक उपयोग सम्भव है और इस्पात के ढाँचे को पिघलाकर पुनः ढाला जा सकता है। लौह अयस्क से इस्पात बनाने के बजाय इस भंगार से इस्पात बनाया जाये, तो ऊर्जा की काफी बचत हो सकती है। इस परिदृश्य में जलपोत विखण्डन को टिकाऊपन (सस्टेनेबिलिटी) के सिद्धान्तों पर खरा उतरने वाली गतिविधि माना जा सकता है, यद्यपि वास्तविक अनुप्रयोग में कुछ विसंगतियाँ देखी जा सकती हैं। दुर्भाग्य से जलपोतों से संसाधन निकालने और पुनरुत्पादित करने के लिये जो प्रक्रियाएँ अपनाई जाती हैं वह टिकाऊ कतई नहीं हैं।
वर्तमान प्रक्रियाएँ - उनका परिणाम
आजकल अधिकांश जलपोत विखण्डन भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में सागरतट के पास होता है जहाँ जलपोतों को उनकी ही शक्ति से आगे सरकाकर ज्वार के समय समुद्रतट पर ले आया जाता है (इसके बारे में अधिक जानकारी अध्याय 3.4 में है)। वर्तमान प्रक्रियाओं की अपर्याप्तताओं में शामिल हैं एहतियाती कदम, सुविधाएँ, प्रशिक्षण और जागरुकता की कमी और अन्य भी। इसके अलावा सुधार करने के उपायों को लागू करने का प्रभाव मात्र जलपोत विखण्डन इकाई पर ही नहीं पड़ेगा, बल्कि विखण्डन के पूर्व की गतिविधियों पर और विखण्डन के दौरान प्राप्त किये गए अपशिष्ट पदार्थों के अन्तिम गन्तव्य स्थान और उनके निपटारे पर भी पड़ेगा।
वर्तमान जलपोत विखण्डन पद्धतियों की खामियों से जो समस्याएँ पैदा होती हैं, उनके परिणाम मात्र पर्यावरण को ही नहीं भुगतने होते हैं, बल्कि कर्मियों की व्यावसायिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य पर भी उनका बुरा प्रभाव पड़ता है।
पर्यावरण
पर्यावरणीय प्रभावों को इस तरह वर्गीकृति किया जा सकता है:
- विखण्डन के लिये आवश्यक स्थान को घेरकर और उसे विस्तार देते जाकर, विखण्डन उद्योग स्थानीय परिवेश, पर्यावरण और समाज को प्रभावित करता है। उस स्थान में पहले से रहते आ रहे समुदाय मछली पकड़ने, कृषि आदि मूलभूत उद्योगों पर आश्रित हो सकता है जिससे दोनों के हितों में टकराहट सम्भव है और यह एक विचारणीय मुद्दा बन सकता है।
- समुद्र, जमीन और हवा में निकासी और उत्सर्जन से तीव्र और दीर्घकालिक प्रदूषण हो सकता है। पर्यावरण में विषाक्त पदार्थों के पहुँचने को रोकने के लिये परिसीमन (कन्टेनमेंट) का अभाव चिन्ता का एक प्रमुख विषय है।
व्यावसायिक सुरक्षा
मूलभूत एहतियाती कदम न उठाने से कर्मियों की सुरक्षा भी दाँव पर लग जाती है। जलपोतों को सेवानिवृत्त (डीकमिशन) करने के लिये उचित मार्गदर्शक सिद्धान्त न होने के कारण उन्हें विखण्डन के लिये भेजने के पूर्व उन पर आवश्यक तैयारियाँ करना सम्भव नहीं होता और इसलिये जलपोत स्वयं भी खतरों से भरा एक पिटारा होता है। एक उदाहरण हो सकता है जलपोतों के बन्द स्थानों में यह सुनिश्चित करना कि वहाँ कर्मियों के साँस लेने लायक वायु है। जोखिम कम करने या उसे पूर्णतः दूर करने के मूलभूत कदम भी नहीं उठाए जाते और इससे अन्ततः दुर्घटनाएँ होकर रहती हैं।
कार्य प्रणालियों में परस्पर समायोजन का अभाव, सुविधाओं का अभाव और सुरक्षा नियंत्रण का अभाव, ये सब भी जोखिम के विभिन्न अंग हैं और ये शारीरिक चोट और अन्य नुकसानों के कारण बन सकते हैं।
स्वास्थ्य
स्वास्थ्य सम्बन्धी सबसे प्रमुख चिन्ता का विषय है हानिकारक पदार्थों के सम्पर्क में आना, स्वच्छता की अपर्याप्त सुविधाएँ और कार्य प्रचालन का स्वरूप ही (इसमें कठोर श्रम की आवश्यकता पड़ती है और भारी-भरकम वस्तुओं को उठाना पड़ता है)।
इसके अलावा, चिन्ता के विषय हैं विखण्डन सुविधा के निकट स्थित आवासीय इलाके, स्वच्छता के लिये अपर्याप्त प्रावधान और समुद्र, जमीन और हवा में प्रदूषक तत्वों के छोड़े जाने से होने वाले खतरे।
जलपोत विखण्डन कर्मी और स्थानीय समुदाय के लोग पीसीबी, पीएएच, भारी धातुएँ और एसबेस्टोस जैसे कैंसर लाने वाले पदार्थों (कार्सिनोजेन) और अन्य हानिकारक पदार्थों के सम्पर्क में आ सकते हैं। इस तरह के पदार्थ अधिकतर जलपोतों में विद्यमान होते हैं। इन पदार्थों के लम्बे समय तक सम्पर्क में आने से होने वाले दीर्घकालिक हानिकारक परिणाम सुपरिचित हैं। ये प्रभाव काफी गम्भीर हो सकते हैं और ये अगली पीढ़ियों को स्थानान्तरित हो सकते हैं।
जलपोत विखण्डन कार्यविधियाँ
जलपोत को उपयोग से हटाने की प्रक्रिया (डीकमिशनिंग) उसे निपटारे (भंगार के रूप में) के लिये बेचने के निर्णय से शुरू होती है। इस प्रक्रिया के विभिन्न चरण तालिका 1 में दर्शाए गए हैं। जलपोतों के सम्पूर्ण एवं आंशिक विखण्डन के पर्यावरणीय दृष्टि से समुचित प्रबन्ध हेतु तकनीकी मार्गदर्शक सिद्धान्त में चरण 2 और 3 (जिन्हें नीचे की तालिका में छायित किया गया है) से सम्बन्धित सिफारिशें हैं जिनमें तकनीकी और कार्यविधि-सम्बन्धी उपाय शामिल हैं।
तालिका 1 जलपोत-निपटारा प्रक्रियाएँ | |||
निपटारे हेतु जलपोत के डीकमिशनिंग के चरण | |||
1 तट से दूर/लंगर पर | 2 ज्वारीय क्षेत्र में/नौकाघाट में | 3 जमीन पर/ गोदी में | |
सेवानिवृत्ति और बिक्री | तोड़ना – तोड़ने की प्रक्रिया के सिद्धान्त | पुनरुपयोग, पुनश्चक्रण और निपटारे के लिये छँटाई | |
सम्बन्धित प्रक्रियाएँ | निपटाया जानेवाला जलपोत* | हिस्सों में तोड़ना | वस्तुएँ निकालना और छँटाई |
कार्रवाई/ घटनाएँ | रद्दीकरण स्थल पर 1. जलपोत द्वारा निर्मित कचरा जो उस पर हो 2. खतरनाक पदार्थों की सूची (इन्वेंटरी); आवश्यक न्यूनतम डुबाव (ड्रॉट) 3. आवश्यक अधिकतम निकासी (बलास्ट जल, बिल्ज और टंकी अवशेष) | समुद्रतट, घाट या गोदी सुविधा 4. छोड़े गए पदार्थों को परिसीमित करना 5. जहाज के सन्तुलन को सुनिश्चित करना हिस्सों में खोलना; 6. विस्फोट रोकना/साँस न लिये जा सकने वाला वायुमंडल बनने से रोकना + अनजाने में गैस/रसायन विमुक्त करने से बचना, आसानी से पहुँचने की व्यवस्था करना काटना, टूटेफूटे सामान, गिरते घटक, छँटाई और भण्डारण स्थल को परिवहन | खोलने, छाँटने और भंडारण सुविधा 7. तरल/ठोस/खतरनाक कचरे, ज्वलनशील पदार्थ, विस्फोटक की छँटाई और भंडारण 8. काटना, जलाना (उदाहरण, तांबे के तारों को निकालना) 9. परिवहन |
उपाय | रद्दीकरण/निपटारे के लिये सेवानिवृत्ति हेतु मानक/तौर-तरीके | मानक/तौर-तरीके, सुविधाएँ (तकनीकी) | मानक तौर-तरीके (कार्यविधि-सम्बन्धी) |
मानक/तौर-तरीके, सुविधाएँ (कार्यविधि-सम्बन्धी) | मानक तौर-तरीके (तकनीकी) | ||
हितधारक | आईएमओ, फ्लैग स्टेट, राष्ट्रीय/स्थानीय प्राधिकरण, जलपोत का मालिक, वर्गीकरण समुदाय, जलपोत रद्दीकरण में संलग्न पक्ष, गैरसरकारी संगठन | युनेप, आईएलओ, राष्ट्रीय/स्थानीय प्राधिकरण, जलपोत रद्दीकरण में संलग्न पक्ष, गैरसरकारी संगठन | युनेप, आईएलओ, राष्ट्रीय/स्थानीय प्राधिकरण, गैरसरकारी संगठन |
* जलपोत को खोलने की पूर्व-तैयारी के लिये एक-समान मानक, जिसका पालन जलपोत को खोलने के पूर्व करना होगा, आईएमओ द्वारा तैयार किये जाने की आशा है। |
यह ध्यान देने योग्य है कि मारपोल संधि तालिका 1 (मद 1) में उल्लिखित जलपोतों द्वारा निर्मित अपपदार्थों को विनियमित करती है और इस संधि के अनुसार बन्दरगाह के संचालक राज्य के लिये यह आवश्यक है कि वह इन अपपदार्थों को स्वीकार करने की सुविधाएँ उपलबध कराए। इसकी अधिक चर्चा अध्याय 3.4.1 में की गई है।
2.3 हितधारक
हितधारक और उनके प्रमुख कार्यक्षेत्र तालिका 1 में दर्शाए गए हैं।
संयुक्त राज्य पर्यावरण कार्यक्रम (युनेप)
खतरनाक अपशिष्ट के रूप में जलपोतों के निर्यात से जुड़े कानूनी प्रश्नों का बेसेल संधि के कानूनी कार्य दल द्वारा निरीक्षण अभी बाकी है। इन सिद्धान्तों में जिन विषयों को लिया गया है वे मात्र जलपोत विखण्डन के तकनीकी और कार्यप्रणालीय पहलुओं से सम्बन्धित हैं।
बेसेल संधि में शामिल पक्षों की सभा ने दिसम्बर 1999 में आयोजित अपनी पाँचवीं बैठक (सीओपी 5) में जलपोत विखण्डन के विषय से दो-चार होने का निर्णय लिया। बेसेल संधि के तकनीकी कार्य दल को जलपोतों के सम्पूर्ण एवं आंशिक विखण्डन के पर्यावरणीय दृष्टि से समुचित प्रबन्ध हेतु तकनीकी मार्गदर्शक सिद्धान्त विकसित करने के कार्य का श्रीगणेश करने के निर्देश दिये गए। इसके साथ ही, तकनीकी कार्य दल को जलपोत विखण्डन के लिये प्रासंगिक बेसेल संधि के अधीन आने वाले खतरनाक अपशिष्टों और पदार्थों की सूची बनाने को कहा गया।
तकनीकी कार्य दल की 17वीं बैठक में (जो जेनेवा में 9-11 अक्तूबर 2000 को हुई) कर्मियों की परिस्थितियों से सम्बन्धित मदों से निम्नलिखित रूप से निपटने का निर्णय लिया गया;
'स्वास्थ्य और सुरक्षा के समाधान के लिये कर्मियों की सुरक्षा और स्वास्थ्य को होने वाले खतरों को पहचानकर उन्हें एक मद में समेटकर बिन्दु 4.4 में जोड़ा गया है। बेसेल संधि से अलग किसी संगठन को विस्तृत मार्गदर्शक सिद्धान्त विकसित करने चाहिए। इस कार्य को पूरा करने के लिये आईएलओ को आमंत्रित किया जाना चाहिए।'
ये मार्गदर्शक सिद्धान्त खतरनाक कचरों और पदार्थों के उचित निपटान की व्यवस्था करते हैं, जिसमें शामिल हैं पर्यावरणीय दृष्टि से उचित रूप से उनका संग्रह, छँटाई और निपटारा/पुनश्चक्रण। यह ध्यान में रखना चाहिए कि इन मार्गदर्शक सिद्धान्तों का स्वास्थ्य और सुरक्षा विषयों से सम्बन्ध नहीं है। स्वास्थ्य और सुरक्षा से जुड़े कुछ पहलुओं की चर्चा होगी क्योंकि उनका किसी खास पर्यावरणीय पहलू से सम्बन्ध है, लेकिन विस्तार से नहीं।
अन्तरराष्ट्रीय समुद्री संगठन (इंटरनेशनल मारिटाइम ओर्गनाइसेशन (आईएमओ))
आईएमओ संयुक्त राज्य का एक अभिकरण है जिसका मुख्यालय लंदन में है। जलपोत विखण्डन (रद्दी करने) के विषय को 1998 में आईएमओ की समुद्री पर्यावरण संरक्षण समिति (एमईपीसी) के समक्ष रखा गया जब नोर्वे ने इस विषय को आईएमओ की कार्यसूची में (एमईपीसी 43/18/1) शामिल करने का प्रस्ताव रखा था। एमईपीसी सत्र (एमईपीसी 43) के प्रतिवेदन में निम्नलिखित विचार व्यक्त किये गए हैं;
'गहन विचार-विमर्श के बाद इस विषय में बोलने वाले अधिकांश शिष्टमंडलों ने जलपोतों के रद्दीकरण के विषय को समिति के कार्यक्रम में शामिल करने का समर्थन किया। यह स्वीकारते हुए कि इसको लेकर विभिन्न अभिमत हैं तथा इस जटिल विषय से कैसे निपटा जाये इससे सम्बन्धित अधिक जानकारी उपलब्ध होने से समिति को निर्णय लेने में आसानी रहेगी, समिति ने जलपोतों का पुनश्चक्रण विषय को एमईपीसी 44 की कार्यसूची में शामिल कर लिया और नोर्वे और अन्य इच्छुक सदस्यों को समिति के अगले सत्र में इस विषय में अधिक जानकारी देने को कहा, विशेषकर इस बात के बारे में कि आईएमओ को इसे किस तरह निपटाना चाहिए।'
इस निमंत्रण का प्रत्युत्तर अनेक राष्ट्रों और गैरसरकारी संगठनों से प्राप्त हुआ और इस पर अनुवर्ती बैठक (एमईपीसी 44) में चर्चा हुई:
- समिति को युनेप पहल (बेसेल संधि के क्रियान्वयन हेतु बनाई गई युनेप की चौथी तदर्थ समिति) के बारे में सूचित किया गया जहाँ पक्षों ने बेसेल संधि के तकनीकी कार्य गुट को इस विषय के लिये आईएमओ के साथ सहयोग करके पर्यावरणीय दृष्टि से उचित रूप से जलपोतों के विखण्डन के लिये मार्गदर्शक सिद्धान्त विकसित करने और इससे सम्बन्धित कानूनी पहलुओं की चर्चा
बेसेल संधि के कानूनी और तकनीकी विशेषज्ञों के परामर्शी उपगुट से करने को कहा। (सन्दर्भ: एमईपीसी 44/आईएनएफ.22)
- टिकाऊ विकास आयोग ने आईएमओ से मुलाकात किया और राज्यों को प्रोत्साहित किया कि जलपोतों के निपटान में उत्तरदायित्वपूर्ण देखरेख की व्यवस्था की जाये
- एमईपीसी.53 (32) वाले प्रस्ताव का भी हवाला दिया गया जिसका विषय है जलपोतों के रद्दीकरण की क्षमता विकसित करना ताकि मार्पोल 73/78 के अनुलग्नक 1 के संशोधन का क्रियान्वयन सरलता से हो सके। इस संशोधन में सिफारिश किया गया है सदस्य सरकारों को (विशेषकर उन्हें जो जलपोत निर्माण और जहाजरानी उद्योग में संलग्न हैं) को जलपोत निर्माताओं और जहाजरानी उद्योग के साथ मिलकर पहल करनी चाहिए।
- विश्वव्यापी स्तर पर जलपोत रद्दीकरण सुविधाएँ विकसित करना और रद्दीकरण तकनीकों को अधिक कार्यक्षम बनाने के लिये अनुसन्धान और विकास कार्यक्रमों को बढ़ावा देना।
- जितनी जल्दी हो सके पर्याप्त जलपोत रद्दीकरण सुविधाएँ स्थापित करना
- विकासशील देशों को जलपोत रद्दीकरण सुविधाएँ स्थापित करने के लिये तकनीकी सहायता देना और प्रौद्योगिकी हस्तान्तरण की व्यवस्था करना
एमईपीसी44 के दौरान हुई चर्चाओं में स्पष्ट हुआ कि इस बात को लेकर आम सहमति थी कि जलपोतों के निपटान से जुड़े स्वास्थ्य एवं पर्यावरणीय जोखिमों को कम करने में आईएमओ को अहम भूमिका निभानी होगी। समिति इस मसले की चर्चा एमईपीसी 46 में जारी रखने के लिये सहमत हुआ और चर्चा को सुगम बनाने के लिये एक करेस्पोंडेन्स गुट (सीजी) स्थापित करने का निर्णय लिया। सीजी ने एमईपीसी 46 को अपना प्रतिवेदन भेजा और निम्नलिखित बातों की पुष्टि की:
- पर्यावरणीय चिन्ताओं, व्यावसायिक स्वास्थ्य और कर्मी सुरक्षा के मामले में राष्ट्रीय विनियमनों में कमियाँ हैं, तथा मानकों का प्रवर्तन भी सन्तोषजनक नहीं है।
- जलपोतों के पुनश्चक्रण से जुड़े तौर-तरीकों के लिये अन्तरराष्ट्रीय संचालन ढाँचे का अभाव है
इसके साथ ही सीजी से समिति से अनुरोध किया कि सम्बन्धित अभिकरण और निकाय अपने लिये क्या भूमिकाएँ देखते हैं इसके सम्बन्ध में गुट के विचारों को ध्यान में रखा जाये और दिये गए सिफारिशों के प्रकाश में भविष्य के लिये कार्यों पर विचार किया जाये। देखी गई जिम्मेदारियाँ जो सुझाई गईं, वे निम्नानुसार हैं:
अभिकरण और निकाय | देखी गई भूमिकाएँ |
अन्तरराष्ट्रीय समुद्री संगठन (आईएमओ) | जलपोतों के पुनश्चक्रण से जुड़े मुद्दों के समग्र समायोजन की जिम्मेदारी और जलपोतों के अभिकल्पन, निर्माण और प्रचालन के समय जो मुद्दे सामने आएँगे जिनका पुनश्चक्रण पर प्रभाव पड़ सकता है, जिसमें शामिल है जलपोत को पुनश्चक्रण के लिये तैयार करना, इन सब मुद्दों के मानिटरण की जिम्मेदारी। |
अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) | जलपोतों के पुनश्चक्रण से जुड़े तटीय उद्योगों में प्रचालन के मानक स्थापित करने की जिम्मेदारी - ऐसा करते हुए वर्तमान मानकों और सिफारिशों को जलपोत विखण्डन के लिये ढाला जाएगा और इस तथा अन्य क्षेत्रों के जलपोत पुनश्चक्रण उद्योग के लिये मार्गदर्शक सिद्धान्त विकसित करना – जलपोतों को तट पर लाने के बाद उस पर और उसके आसपास काम करने की स्थितियों को सुधारने के काम में अग्रणी भूमिका निभाना। |
संयुक्त राज्य पर्यावरण कार्यक्रम (युनेप) | खतरनाक कचरे के सीमापार परिचलन और उसके निपटारे को नियंत्रित करने से सम्बन्धित बेसेल संधि – पुनश्चक्रित होने वाले अधिकांश जलपोतों के लिये इस संधि की सीमित प्रासंगिकता को स्वीकारते हुए, इस बात पर ज्यादा ध्यान दिया जाएगा कि खतरनाक कचरे की पहचान और सुरक्षित हस्तन/निपटान हो और इस तरह के कचरे को जन्म देने वाली सामग्रियों के उपयोग को कम किया जाये |
1972 की लंदन संधि | सुमुद्र पर जलपोतों के निपटारे को मानिटर करते जाना और इसके बजाय जलपोतों के पुनश्चक्रण को अपनाने को प्रोत्साहन देना। लंदन संधि के वैज्ञानिक गुट ने समुद्र में जलपोतों के निपटारे के लिये मानदंड विकसित किया है। |
जहाजरानी उद्योग | ने 'जलपोतों के पुनश्चक्रण के लिये कार्यपद्धति संहिता' तैयार की है जिसमें 'जलपोतों में विद्यमान सम्भावित रूप से खतरनाक सामग्रियों की सूची' भी शामिल है। नियमति रूप से एमईपीसी से अपने काम की पुष्टि और उस पर टिप्पणियाँ प्राप्त करता रहता है और वर्गीकरण समाजों (क्लासिफिकेशन सोसाइटी) के साथ काम करते हुए पर्यावरणीय दृष्टि से सुरक्षित तरीके से जलपोतों के डीकमिशनिंग की योजनाओं को सुधारने के लिये योगदान करता है। |
पर्यावरणीय गुट | जलपोतों के पुनश्चक्रण से जुड़े मुद्दों को जिम्मेदाराना रूप से मानिटर करना और रिपोर्ट करना। |
राज्य | अन्तरराष्ट्रीय संगठनों के भीतर जलपोतों के पुनश्चक्रण हेतु, जैसा उचित हो, अन्तरराष्ट्रीय मानक विकसित करना, अपनाना और उनका प्रवर्तन करना। |
एमपीसी 46 में जो चर्चाएँ हुईं, उनमें निम्नलिखित बातें उभरकर आईं:
1. आईएमओ की मुख्य भूमिका पुनश्चक्रण के पूर्व जलपोतों से निपटने में रहेगी और इसके लिये अन्तरराष्ट्रीय रूप से बाध्यकारी मार्गदर्शक सिद्धान्त स्थापित किये जाने चाहिए;
2. कोई मार्गदर्शक सिद्धान्त लिखने बैठने के पूर्व आईएमओ को उसकी व्यावहारिकता के बारे में चर्चा करनी चाहिए;
3. क्या उसे जलपोतों के पुनश्चक्रण में मुख्य समायोजनकारी भूमिका निभानी चाहिए या नहीं इस विषय पर आईएमओ को चर्चा जारी रखनी चाहिए;
4. यह सुझाया गया कि तेईसवीं सभा के लिये एक सभा प्रस्ताव (एसेंबली रिसोल्यूशन) का मसौदा तैयार किया जाना चाहिए;
5. पुनश्चक्रण के पूर्व जलपोतों को अपनी अन्तिम यात्रा के लिये तैयार करते समय उन्हें असुरक्षित नहीं बना देना चाहिए;
6. आईएमओ को वर्तमान जलपोतों को पुनश्चक्रण के लिये तैयार करने को लेकर चर्चा छेड़नी चाहिए;
7. भावी जलपोतों की अवधारणा ऐसी बनानी चाहिए कि उनसे पुनश्चक्रण उद्योग में पर्यावरण और सुरक्षा की समस्याएँ कम हो जाएँ;
8. करेस्पोडेन्स गुट को पुनः स्थापित करना चाहिए और उसे आईएमओ की भावी भूमिका पर काम करना चाहिए और समिति का ध्यान किस ओर लगाना चाहिए; और
9. करेस्पोंडेन्स गुट को जलपोतों के पुनश्चक्रण हेतु मार्गदर्शक सिद्धान्त विकसित करने, बाध्यकारी मार्गदर्शक सिद्धान्त विकसित करने, सभा प्रस्ताव विकसित करने या कोई नया उपकरण विकसित करने के नफे-नुकसानों का आकलन करना चाहिए।
एमईपीसी 46 ने अप्रैल 2001 में करेस्पोंडेन्स गुट को पुनः स्थापित किया और उसके विचारार्थ विषयों को नवीनीकृत किया:
- जलपोत के जीवनकाल में उससे जुड़े सभी हितधारकों को पहचानना और उनकी भूमिकाओं को समझना
- जलपोत-पुनश्चक्रण में आईएमओ की भूमिका को पहचानना और उसे विस्तार देना
- ऐसे वर्तमान अन्तरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और अतिरिक्त औद्योगिक और/या अन्य प्रासंगिक मानकों/मार्गदर्शक सिद्धान्तों को पहचनना, जो आईएमओ के तत्वावधान में जलपोतों के पुनश्चक्रण के लिये प्रासंगिक हों
- समिति के विचारार्थ कोई अन्य कार्रवाई की सिफारिश करना और हर विकल्प के नफे-नुकसान को पहचानना
यह गुट एमईपीसी 47 को मार्च 2002 में अपना प्रतिवेदन भेजेगा और इस सत्र में एक कार्य दल के गठन की सम्भावना है, जो अन्य कार्यों के साथ निम्नलिखित प्रश्नों पर काम करेगा (एमईपीसी 47 द्वारा अनुमोदित होने के पश्चात):
अल्प काल के लिये:
1. जलपोत-स्वामियों और सम्भवतः राज्यों के लिये भी तकनीकी मार्गदर्शक सिद्धान्त और आचार संहिताएँ विकसित करना;
2. एक जलपोत पुनश्चक्रण प्रौद्योगिकी कार्यक्रम विकसित करने में मदद देना जो वर्तमान में जलपोतों के पुनश्चक्रण में संलग्न देशों में स्थितियों को सुधारने के लिये काम करेगा। ऐसा एक कार्यक्रम बेसेल संधि के तहत विकसित किया जा रहा है;
3. जलपोतों के पुनश्चक्रण के विषय के बारे में तथ्य और आँकड़े संकलित करते जाना।
दीर्घ काल के लिये:
4. जलपोत निर्माण के लिये नई तकनीकें और पर्यावरण की दृष्टि से उचित सामग्रियों के उपयोग को प्रोत्साहित करके निरोधात्म उपाय विकसित करना; और
5. यदि इसे अपनाना हो, तो जलपोतों के पुनश्चक्रण के लिये वित्तीय उपकरण विकसित करना।
अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ)
आईएलओ ने, जो जेनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ का एक अभिकरण है, दोनों आईएमओ और युनेप के जलपोतों के रद्दीकरण से सम्बन्धित चालू कार्यों का मानिटरन किया है और उसे व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा से सम्बन्धित मुद्दों का समाधान करने के लिये आमंत्रित किया गया है। यह विषय आईएलओ की कार्यसूची में 1980 के अन्तिम वर्षों से ही विद्यमान है लेकिन उस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।
आईएलओ के संचालन इकाई (गवर्निंग बॉडी) के 279वें सत्र (नवम्बर 2000) में उपकरणों के निर्माण और वैश्वीकरण का समाज और श्रम पर प्रभाव विषय पर त्रिपक्षीय बैठक के निष्कर्ष को अनुमोदित किया और कहा कि;
'सबसे पहले, आईएलओ को स्थानीय परिस्थितियों के लिये अनुकूलित बेहतरीन तौर-तरीकों का संकलन करना चाहिए और उसके बाद जलपोत-विखण्डन में व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ के लिये एक सर्वांगीण संहिता तैयार करना चाहिए और सरकारों को प्रोत्साहित करना चाहिए कि वे ऐसे कानून बनाएँ जो जलपोतों को उनमें विद्यमान खतरनाक सामग्रियों की सूची रखना आवश्यक बनाए और इस सूची को जलपोत के सम्पूर्ण जीवनकाल के दौरान अद्यतन रखना चाहिए।'
वर्ष 2002-2003 के कार्यक्रम और बजट में जलपोत-विखण्डन स्थलों में काम करने की स्थितियों में सुधार लाने के कार्यों को बजटेतर गतिविधियों के रूप में प्राथमिकता दी गई है। कार्यक्रम और बजट में आगे कहा गया है कि आईएलओ राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तरों पर सामाजिक वार्तालाप को बढ़ावा देकर यह भी दिखाएगा कि किस तरह जलपोत-विखण्डन जैसे क्षेत्रों में व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिये त्रिपक्षीय अनुबन्धों के अवसर प्रदान किये जा सकते हैं जहाँ सामाजिक साझेदार परस्पर सहयोग से अच्छा काम कर सकते हैं।
आईएलओ के क्षेत्रीय गतिविधियों से सम्बन्धित कार्यक्रम (सेक्टोरल एक्टिविटीस प्रोग्राम) में कुछ प्रकाशन विकसित करना भी शामिल है:
- बांग्लादेश में जलपोत-विखण्डन पर एक पृष्ठभूमिय शोधपत्र (1999)
- जलपोतों को तोड़ने का कोई अच्छा तरीका है? परिचर्चा दस्तावेज (2001)
- जलपोत-विखण्डन उद्योगों में कर्मियों की सुरक्षा – मुद्दों का ब्योरा देने वाला शोधपत्र (2001)
- आईएलओ ने एक जलपोत तोड़ने वाले (द शिपब्रेकर्स) (2001) नामक वृत्तचित्र वीडियो भी तैयार करवाई है और एक जाल स्थल भी: www.ilo.org/safework/shipbreaking.
आईएलओ ने विगत वर्षों में मुख्य रूप से व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य से सम्बन्धित विषयों के बारे में जागरुकता लाने की ओर ध्यान दिया है। उपर्युक्त प्रकाशनों में जो जानकारी उपलब्ध है, उसमें शामिल है वर्तमान तौर-तरीके, निपटारे के लिये आने वाले जलपोतों की संख्या, रद्दीकरण स्थल, जलपोत चलाने वाले लोगों का राष्ट्रीय वितरण और जलपोत निर्माण उद्योग का स्थान (यानी, हितधारकों की पहचान)। इन शोधपत्रों से जाहिर हो जाता है कि अच्छे तौर-तरीकों का संकलन किस तरह आईएलओ के वर्तमान अन्तरराष्ट्रीय श्रम मानकों के उपयोग से सम्भव हो सकता है। यद्यपि ये दस्तवेज विशेषतः जलपोत विखण्डन को ध्यान में रखकर नहीं लिखे गए हैं, फिर भी जलपोत विखण्डन से जुड़े अनेक व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य खतरों और कर्मियों के रक्षण से जुड़े मुद्दों के लिये अनेक आईएलओ संधियाँ, सिफारिशें और तौर-तरीका संहिताएँ प्रासंगिक हैं (देखें परिशिष्ट इ)
आईएलओ राष्ट्रीय स्तर पर जागरुकता लाने के अभियान को जारी रखेगा और एक तकनीकी सहयोग कार्यक्रम स्थापित करेगा जिसमें ऐसे व्यावहारिक कार्रवाइयाँ और उपाय शामिल होंगे जो 'निपटारे और पुनश्चक्रण हेतु जलपोतों का टिकाऊ रद्दीकरण' जैसी योजनाओं के क्रियान्वयन को अधिक आसान बनाएँगे। यह कार्यक्रम जलपोत विखण्डन उद्योग, स्थानीय और राष्ट्रीय प्राधिकरण तथा नियोजकों और कर्मचारियों के संगठनों और अन्य सम्बन्धित अभिकरणों और संस्थाओं से प्राप्त आदानों (इनपुट) पर आधारित होगा। आईएलओ ने चिटगाँव (बांग्लादेश) और मुम्बई (भारत) में राष्ट्रीय त्रिपक्षीय कार्यशालाएँ और गडानी एस्टेट (पाकिस्तान) में एक तथ्य-शोधक मिशन आयोजित किये हैं। कुछ मामलों में इन्हें आईएमओ और बेसेल संधि द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया। चीन के चार जलपोत विखण्डन स्थलों में अक्तूबर में एक परामर्शी मिशन को अंजाम दिया गया और उसके बाद 19-20 दिसम्बर 2001 में बीजिंग में एक त्रिपक्षीय राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित की गई। इन मिशनों ने व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरणीय मुद्दों के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी कमियाँ पहचानी हैं, जिनमें शामिल हैं संगठित होने और संयुक्त रूप से भाव-तोल करने के अधिकार का अभाव, सामाजिक सुरक्षा (पेंशन, रुग्णता, चोट और अक्षमता लाभ और बेरोजगारी बीमा), कल्याणकारी प्रावधान, मूलभूत जीवन स्तर और प्रशिक्षण और इन सब क्षेत्रों में काफी सुधार करने की आवश्यकता है।
जलपोत विखण्डन उद्योगों में सुरक्षा हेतु तकनीकी मार्गदर्शक (आइएलओ के ओएसएच प्रबन्ध प्रणाली की तौर-तरीका संहिता के अनुरूप) विकसित करने के लिये प्रारम्भिक अनुसन्धान शुरू कर दिया गया है जो आईएमओ द्वारा और बेसेल संधि के तकनीकी कार्य दल द्वारा किये गए प्रयासों का पूरक होगा। इस मार्गदर्शिका के मसौदे तो वर्ष 2002 भर परीक्षण किया जाएगा और 2003 में उसे अन्तिम रूप दिया जाएगा।
जहाजरानी उद्योग
जहाजरानी के अन्तरराष्ट्रीय चैम्बर (आईसीएस) ने फरवरी 1999 में 'जलपोप पुनश्चक्रण के उद्योग कार्य पक्ष' (इंडस्ट्री वर्किंग पार्टी ओन शिप रीसाइक्लिंग, आईडब्ल्यूपीएसआर) स्थापित करने की पहल की। इस पहल की पृष्ठभूमि में सरकारों, गैरसरकारी संगठनों और स्वयं इस उद्योग द्वारा उत्तरोत्तर अधिक प्रबल रूप से व्यक्त की जा रही चिन्ताओं के प्रति उद्योग से कोई प्रतिक्रिया की अपेक्षा है। इन चिन्ताओं में शामिल हैं:
- पुनश्चक्रण के लिये बेचे गए जलपोतों की कानूनी स्थिति
- जलपोत विखण्डन उद्योगों के कर्मियों की स्थिति और उन्हें उपलब्ध सुरक्षा प्रावधान।
- पर्यावरणीय चिन्ताओं का अभाव
आईडब्ल्यूपीएसआर में निम्नलिखित संगठन शामिल हैं:
बाल्टिक और अन्तरराष्ट्रीय समुद्री परिषद (बाल्टिक एंड इंटरनेशेनल मैरिटाइम काउंसिल, बीआईएमसीओ) | अन्तरराष्ट्रीय टैंकर स्वामियों का पोल फेड (इंटरनेशनल टैंकर ओनर्स पोल फेड, आईटीओपीएफ) |
शुष्क कार्गो जलपोत-स्वामियों का अन्तरराष्ट्रीय संघ (इंटेरकार्गो) | अन्तरराष्ट्रीय परिवहन कर्मियों का संघ (आईटीएफ) |
स्वतंत्र टैंकर मालिकों का अन्तरराष्ट्रीय संघ (इंटरटैंको) | तेल कम्पनी अन्तरराष्ट्रीय समुद्री मंच (ओसीआईएमएफ) |
जहाजरानी का अन्तरराष्ट्रीय चैम्बर (आईसीएस) |
इस गुट की बैठकों में वर्गीकरण सोसाइटियों का अन्तरराष्ट्रीय संघ (आईएसीएस) और यूरोपीय समुदाय जलपोत मालिक संघ (ईसीएसए) प्रेक्षक के रूप में विद्यमान रहते हैं।
आईडब्ल्यूपीएसआर का मुख्य कार्यभार रहा है 'जलपोत पुनश्चक्रण के उद्योग के लिये तौर-तरीका संहिता' विकसित करना। यह संहिता अगस्त 2001 में अपनाई गई और इसमें 'जलपोतों पर विद्यमान सम्भावित रूप से खतरनाक सामग्रियों की सूची' तैयार करने के लिये एक प्रपत्र शामिल है। यह संहिता मालिकों को रद्दीकरण के मुद्दे के सम्बन्ध में सक्रिय नीति अपनाने को कहती है, न कि मात्र जलपोत और उसमें विद्यमान सामग्रियों के निपटारे से सम्बन्धित नीति।
पर्यावरणीय गुट
राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय स्तर के अनेक पर्यावरणीय संगठनों ने जलपोतों के रद्दीकरण में अपनाई जाने वाली कार्यविधियों और कचरे-के-रूप-में-जलपोत पर बेसेल संधि के विधिवत लागू किये जाने को लेकर चिन्ताएँ व्यक्त की हैं।
पर्यावरणीय गुटों ने खतरनाक कचरे के राष्ट्रीय सीमाओं के पार परिचालन, पर्यावरणीय मुद्दे और व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों के कानूनी पक्षों पर जोर दिया है। संगठनों ने स्थल पर अध्ययन करके अनेक प्रतिवेदन प्रकाशित किये हैं, जिनमें शामिल हैं, अलंग, भारत, चिटगाँव, बांग्लादेश तथा चीन और तुर्की के विखण्डन स्थलों पर। पर्यावरणीय गुटों कुछ कम मौकों पर अन्य स्थलों में स्थित विखण्डन सुविधाओं पर भी प्रतिवेदन निकाले हैं।
पर्यावरणीय गुट कुछ अन्य विषयों को लेकर भी सक्रिय रहे हैं, जैसे खतरनाक कचरा पैदा करने वाले पर उसके निपटारे की जिम्मेदारी डालने की विश्वव्यापी नीति की स्थापना, पर्यावरणीय दृष्टि से उचित प्रबन्ध और खतरनाक कचरे से भरे जलपोतों के विकासशील देशों में बेचे जाने पर रोक।
जलपोत निपटान सम्बन्धी नीतियाँ
यूरोपीय संघ ने हाल में यूरोप में ही जलपोतों के रद्दीकरण की तकनीकी और आर्थिक साध्यता पर एक अध्ययन हाथ में लिया है। यह कार्य इसलिये हाथ में लिया गया जब यह पता चला कि वर्तमान निपटान कार्यविधियाँ 1989 के खतरनाक कचरों के सीमा पर परिचालन नियंत्रण और उनके निपटान सम्बन्धी संधि (बेसेल संधि) का उल्लंघन करती हैं।
अमरीका ने भी पुनश्चक्रण के लिये भेजे जाने वाले सरकारी जलपोतों पर अधिक कड़े विनियम लागू किया है। इन दो पहलों के उपयोग से यह पता चलता है कि:
- विश्व समुदाय जलपोतों के विखण्डन/निपाटन की वर्तमान कार्यविधियों को लेकर सन्तुष्ट नहीं है
- सुस्थापित अर्थव्यवस्थाओं में रोजगार निर्माण की सम्भावनाओं को नजरअन्दाज नहीं किया जाता है
कई सरकारों और गै-रसरकारी संगठनों ने, जिनमें जहाजरानी उद्योग और पर्यावरणीय और श्रम संगठनों के पैरवीकार (लोबीइस्ट) भी शामिल हैं, निपटान से सम्बन्धित वर्तमान तौर-तरीकों और इनके परिणामों को लेकर चिन्ताएँ व्यक्त की हैं।
2.4 इन मार्गदर्शक सिद्धान्तों का दायरा
पर्यावरणीय चिन्ता वाले मुद्दों का अक्सर सम्बन्ध कर्मियों की सुरक्षा एवं स्वास्थ्य से होता है। जलपोतों के सम्पूर्ण एवं आंशिक विखण्डन के पर्यावरणीय दृष्टि से समुचित प्रबन्ध हेतु तकनीकी मार्गदर्शक सिद्धान्त (आगे इसे ‘मार्गदर्शक सिद्धान्त’ कहा गया है), पर्यावरणीय चिन्ताओं के सन्दर्भ में सिफारिशें प्रस्तुत करते हैं और स्वास्थ्य और सुरक्षा से सम्बन्धित पहलुओं के बारे में विशिष्ट प्रावधान नहीं करते। स्वास्थ्य, सुरक्षा और पर्यावरण कई क्षेत्रों में परस्पर जुड़े हुए हैं और इसलिये स्वास्थ्य और सुरक्षा के कुछ पहलुओं पर भी प्रकाश डाला जाएगा, लेकिन अधिक नहीं। इन मार्गदर्श्क सिद्धान्तों की उपर्युक्त सीमाओं को समझना महत्त्वपूर्ण है। किन्तु ये मार्गदर्शक सिद्धान्त सुरक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण (एसएचई) के लिये स्थल विशिष्ट क्रियाविधियाँ विकसित करने के लिये आधार का काम कर सकते हैं।
यहाँ जिन विषयों को लिया गया है वे मात्र जलपोत विखण्डन के तकनीकी और कार्यप्रणालीय पहलुओं से सम्बन्धित हैं। कुछ सिफारिशें मद 2.2 के चरण 1 में चर्चित मुद्दों (देखें तालिका 1) का जिक्र करेंगे।
ये मार्गदर्शक सिद्धान्त पूर्ण एवं आंशिक विखण्डन पर लागू होते हैं। किन्हीं कारणों से यदि किसी जलपोत का मात्र आंशिक विखण्डन ही आवश्यक हो, तो उसे भी इन मार्गदर्शक सिद्धान्तों के प्रावधानों के अनुसार निपटाया जा सकता है। किन्तु इस बात को रेखांकित करना आवश्यक है कि जलपोतों के आंशिक विखण्डन के फलस्वरूप पूर्ण विखण्डन से प्राप्त होने वाले उत्पादों से अलग प्रकार के उत्पाद प्राप्त होते हैं। आंशिक विखण्डन के अन्तिम उत्पादों पर निम्नलिखित आवश्यकताएँ लागू होती हैं:
- सन्दूषण दूर करना: आंशिक विखण्डन की किसी भी प्रक्रिया के फलस्वरूप सन्दूषण होता है। सिफारिश की जाती है कि समुद्र में निपटारे के लिये जलपोतों के मूल्यांकन हेतु विकसित लंदन संधि के मापदंडों और पर्यावरण कनाडा (एन्वायरनमेंट कनाडा) के पर्यावरणीय रक्षा शाखा द्वारा फरवरी 1998 में विकसित 'समुद्र में जलपोतों के निपटारे के लिये सफाई मानक' (क्लीनप स्टैडर्ड्स फोर ओशन डिस्पोसल ओफ वेसेल्स)और 'समुद्र में जलपोतों के निपटारे के लिये सफाई सम्बन्धी मार्गदर्शक सिद्धान्त' (क्लीनप गाइडलाइन्स फॉर ओशन डिस्पोसल ओफ वेसेल्स) को भी ध्यान में रखा जाये और जहाँ उचित हो, पालन किया जाये (देखें परिशिष्ट इ)
- परिवहन: किसी भी आंशिक विखण्डन में जलपोत-विखण्डन सुविधा से सुरक्षित रूप से सामान हटाने और उनके परिवहन की व्यवस्था करनी चाहिए।
2.5 कार्य प्रणाली
मार्गदर्शक सिद्धान्तों के दायरे को पूरा करने के लिये अपनाया गया अभिगम चित्र 3 में दर्शाया गया है
अध्याय: | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 |
विषय: | स्थिति कथन | मार्गदर्शक सिद्धान्त और सिफारिशें | क्रियान्वयन और सत्यापन |
चित्र 3 मार्गदर्शक सिद्धान्तों के उद्देश्यों को पूरा करने के लिये अभिग
स्थिति वक्तव्य
प्रथम दो परिचयात्मक अध्याय मार्गदर्शक सिद्धान्तों के उद्देश्य को परिभाषित करते हैं और बेसेल संधि और पर्यावरणीय दृष्टि से उचित प्रबन्धन की अवधारणाओं के दृष्टिकोण से जलपोत विखण्डन में आने वाली चुनौतियों को पहचानते हैं। पर्यावरणीय दृष्टि से उचित रूप से जलपोतों के विखण्डन में आने वाली चुनौतियों को बेहतर रूप से समझने के लिये वर्तमान तौर-तरीकों और मानकों पर भी विचार किया जाएगा।
मार्गदर्शक सिद्धान्त और सिफारिशें
अध्याय 4 और 5 में पहचानी गई चुनौतियों और उनसे सम्बन्धित पर्यावरणीय चिन्ताओं पर अधिक प्रकाश डालते हैं। क्रियाविधिक और प्रचलनात्मक दोनों पहलुओं का मूल्यांकन किया जाएगा और अच्छे तौर-तरीकों को स्पष्ट किया जाएगा। सिफारिशों में शामिल हैं निकसी नियंत्रण, मानीटरण, ध्येय (मानक और तौर-तरीके), सुरक्षा उपाय, आपात स्थितियों के लिये तैयारी तथा विखण्डन सुविधा के अभिकल्पन, निर्माण और प्रचालन से जुड़े विषय।
अमलीकरण और सत्यापन
जलपोतों के विखण्डन के लिये अमल किये जा सकने वाले प्रचालनात्मक और कार्यविधिक मानक विकसित करने की आवश्यकता को स्वीकारते हुए प्राप्ति के विषय की ओर ध्यान दिया जाएगा। इसमें शामिल हैं साध्यता का मूल्यांकन (रिक्तियों को मापना और प्राथमिकतापूर्ण सुधारों को पहचानना), जागरुकता लाना और सुधार लाने के लिये प्रोत्साहनों की स्थापना करना, जिसमें शामिल होंगे मानिटरण, सत्यापन और रिपोर्टिंग।
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