अब तक हम जान गये हैं कि भूखण्डों के एक दूसरे के सापेक्ष गतिमान होने के कारण पृथ्वी की सतह के नीचे स्थित चट्टानें दबाव की स्थिति में होती हैं और इस दबाव के एक सीमा से अधिक हो जाने पर चट्टानें अचानक से टूट जाती हैं, जिसके कारण वर्षों से जमा हो रही ऊर्जा अचानक अवमुक्त हो जाती है। यह चट्टानें प्रायः किसी कमजोर सतह के समानान्तर टूटती हैं और इन सतहों को भू-वैज्ञानिक भ्रंश या फॉल्ट कहते हैं।
पृथ्वी की सतह के नीचे जिस स्थान पर चट्टानें टूटती हैं उसे भूकम्प का केन्द्र (hypocenter या focus) कहते हैं। इस स्थान से भूकम्प में अवमुक्त ऊर्जा तरंगों के रूप में चारों ओर फैलती है; ठीक वैसे ही जैसे शांत तालाब के पानी में कंकड़ फेंकने पर तरंगों का वृत्ताकार विस्तार कंकड़ गिरने की जगह से चारों ओर होता है।
पृथ्वी के केन्द्र को भूकम्प के केन्द्र से जोड़ने वाली रेखा जिस स्थान पर पृथ्वी की सतह को काटती है उसे भूकम्प का अभिकेन्द्र (epicenter) कहते हैं। रेखागणित के स्थापित नियमों के अनुसार पृथ्वी की सतह पर यह स्थान भूकम्प के केन्द्र से सबसे नजदीक होता है इसलिये भूकम्प के झटकों की तीव्रता या उससे होने वाला नुकसान इस स्थान के आस-पास अपेक्षाकृत ज्यादा होता है।
साधारण स्थितियों में जैसे-जैसे हम अभिकेन्द्र से दूर जाते हैं भूकम्प के झटकों की तीव्रता या उसका प्रभाव भी कम होता चला जाता है। अतः देखा जाये तो अभिकेन्द्र के नजदीक महसूस किये जाने वाले भूकम्प के झटके सबसे तेज होते हैं और अभिकेन्द्र से दूर जाने पर इन झटकों की तीव्रता भी धीरे-धीरे कम होती जाती है।
भूकम्प आने के बाद प्रायः सबसे पहले पूछे जाने वाले प्रश्न, ‘‘भूकम्प कहाँ आया?’’ के उत्तर में हमें भूकम्प के अभिकेन्द्र की स्थिति से सम्बन्ध्ति जानकारी ही मिलती है।
ज्यादातर स्थितियों में भूकम्पों को अभिकेन्द्र के नजदीक स्थित जगह के नाम से ही जाना जाता है; उत्तरकाशी, चमोली, भुज, लातूर, मुजफ्फराबाद या गोरखा भूकम्प।
कहीं धरती न हिल जाये (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें) |
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भूकम्प पूर्वानुमान और हम (Earthquake Forecasting and Public) |
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