दिल्ली और वाराणसी में भी घुसपैठ कर चुका है क्रोमियम
नई दिल्ली। गंगा और यमुना के तटीय क्षेत्रों के भूजल में आर्सेनिक व फ्लोराइड के बाद अब क्रोमियम ने भी घुसपैठ कर दी है। पश्चिम बंगाल के बाद अब दिल्ली व वाराणसी में पेयजल में तय मात्रा से ज्यादा क्रोमियम मिलने लगा है। क्रोमियम युक्त पानी के प्रयोग से पेट की गड़बड़ी से लेकर कैंसर तक का खतरा है। आर्सेनिक व फ्लोराइड के ज्यादा इस्तेमाल से विभिन्न बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए अब क्रोमियम ने खतरे की घंटी बजा दी है। तय मानदंड से ज्यादा क्रोमियम मिला है
आर्सेनिक से गंगा के तटीय क्षेत्रों में कैंसर, हाथ व पैर टेढ़े होना, दांतों का पीला होना, नजर कमजोर होना, बाल सफेद होना आदि बीमारियों का प्रकोप बढ़ने की बात केंद्र सरकार पहले ही मान चुकी है। केंद्रीय जल संसाधन राज्यमंत्री वीसेंट पाला ने बृहस्पतिवार को राज्यसभा में स्वीकार किया कि राजधानी दिल्ली और उत्तर प्रदेश के प्रमुख शहर वाराणसी तथा पश्चिम बंगाल के चौबीस परगना और मुर्शिदाबाद जिलों के पेयजल में तय मानदंड से ज्यादा क्रोमियम मिला है। पहाड़ी क्षेत्रों खासतौर पर हिमाचल प्रदेश के काला अंब औद्योगिक क्षेत्र व जम्मू-कश्मीर के कथुआ व राजौरी जिलों में भी क्रेमियम मिला है। केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा शहरों के भूजल को लेकर किए अध्ययन में यह बात सामने आई है।
आर्सेनिक के कारण बीमारियां बढ़ रही हैं
क्रोमियम की मात्रा बढ़ने की मुख्य वजह भी औद्योगिक कचरा व जल नदियों में बहा देना है। नई दिल्ली नगर पालिका के डॉ अनिल बंसल के मुताबिक क्रोमियम के ज्यादा इस्तेमाल से पेट खराब रहना, अपच, उल्टी की शिकायत होना जैसी बीमारियां होने का खतरा रहता है। लंबे समय तक इस्तेमाल से कैंसर भी हो सकता है। इसी जनवरी में तत्कालीन जल संसाधन राज्यमंत्री जयप्रकाश नारायण यादव ने संसद में माना था कि गंगा के तटीय क्षेत्रों में आर्सेनिक के कारण बीमारियां बढ़ रही हैं। खासतौर पर कानपुर अलीगढ़, बनारस से लेकर आरा, भोजपुर, पटना, मुंगेर व फरक्का से लेकर पश्चिम बंगाल तक आर्सेनिक है। विभिन्न रिपोर्ट कहती रही हैं कि आर्सेनिक हरिद्वार तक पहुंच चुका है।
नई दिल्ली। गंगा और यमुना के तटीय क्षेत्रों के भूजल में आर्सेनिक व फ्लोराइड के बाद अब क्रोमियम ने भी घुसपैठ कर दी है। पश्चिम बंगाल के बाद अब दिल्ली व वाराणसी में पेयजल में तय मात्रा से ज्यादा क्रोमियम मिलने लगा है। क्रोमियम युक्त पानी के प्रयोग से पेट की गड़बड़ी से लेकर कैंसर तक का खतरा है। आर्सेनिक व फ्लोराइड के ज्यादा इस्तेमाल से विभिन्न बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए अब क्रोमियम ने खतरे की घंटी बजा दी है। तय मानदंड से ज्यादा क्रोमियम मिला है
आर्सेनिक से गंगा के तटीय क्षेत्रों में कैंसर, हाथ व पैर टेढ़े होना, दांतों का पीला होना, नजर कमजोर होना, बाल सफेद होना आदि बीमारियों का प्रकोप बढ़ने की बात केंद्र सरकार पहले ही मान चुकी है। केंद्रीय जल संसाधन राज्यमंत्री वीसेंट पाला ने बृहस्पतिवार को राज्यसभा में स्वीकार किया कि राजधानी दिल्ली और उत्तर प्रदेश के प्रमुख शहर वाराणसी तथा पश्चिम बंगाल के चौबीस परगना और मुर्शिदाबाद जिलों के पेयजल में तय मानदंड से ज्यादा क्रोमियम मिला है। पहाड़ी क्षेत्रों खासतौर पर हिमाचल प्रदेश के काला अंब औद्योगिक क्षेत्र व जम्मू-कश्मीर के कथुआ व राजौरी जिलों में भी क्रेमियम मिला है। केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा शहरों के भूजल को लेकर किए अध्ययन में यह बात सामने आई है।
आर्सेनिक के कारण बीमारियां बढ़ रही हैं
क्रोमियम की मात्रा बढ़ने की मुख्य वजह भी औद्योगिक कचरा व जल नदियों में बहा देना है। नई दिल्ली नगर पालिका के डॉ अनिल बंसल के मुताबिक क्रोमियम के ज्यादा इस्तेमाल से पेट खराब रहना, अपच, उल्टी की शिकायत होना जैसी बीमारियां होने का खतरा रहता है। लंबे समय तक इस्तेमाल से कैंसर भी हो सकता है। इसी जनवरी में तत्कालीन जल संसाधन राज्यमंत्री जयप्रकाश नारायण यादव ने संसद में माना था कि गंगा के तटीय क्षेत्रों में आर्सेनिक के कारण बीमारियां बढ़ रही हैं। खासतौर पर कानपुर अलीगढ़, बनारस से लेकर आरा, भोजपुर, पटना, मुंगेर व फरक्का से लेकर पश्चिम बंगाल तक आर्सेनिक है। विभिन्न रिपोर्ट कहती रही हैं कि आर्सेनिक हरिद्वार तक पहुंच चुका है।
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