बीते साल भूखे लोगों की संख्या दुनिया में जहाँ 81 करोड़ 50 लाख थी वहीं इस साल तीन करोड़ 80 लाख बढ़कर 85 करोड़ 30 लाख हो गई है। इसके पीछे जलवायु परिवर्तन और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में हो रहे हिंसक संघर्षों की बड़ी भूमिका है। भारत की आबादी का लगभग पाँचवाँ हर हिस्सा हर रोज भूखे सोने के लिये विवश है और भुखमरी हमारे यहाँ भी हर साल लाखों जानें ले रही है।
यह बात उजागर हुई है एसोचैम और एमआरएसएस इंडिया की एक रिपोर्ट से। इसमें बताया गया है कि विश्व के एक बड़े उत्पादक देश होने के बाद भी भारत में कुल उत्पादन का करीब 40 से 50 प्रतिशत भाग बर्बाद हो रहा है। बर्बाद होने वाले इस हिस्से का मूल्य लगभग 440 अरब डॉलर के बराबर है। खाद्य पदार्थों की इस बर्बादी का सबसे बड़ा कारण रख-रखाव और भंडारण की तहस-नहस हो चुकी व्यवस्था है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में कुल 6300 कोल्ड स्टोरेज हैं जिसकी कुल भंडारण क्षमता 3.01 करोड़ टन खाद्य पदार्थ रखने की है। यह आँकड़ा देश में पैदा होने वाले कुल खाद्य पदार्थों का केवल 11 प्रतिशत है। इसका अर्थ यह हुआ कि 89 प्रतिशत खाद्य उत्पादों के रख-रखाव का कोई प्रबन्ध नहीं है। इस भंडारण क्षमता का अधिकतर भाग उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात और पंजाब में है। इसके बाद भी खाद्य उत्पादों की 60 प्रतिशत बर्बादी इन्हीं राज्यों में होती है। दक्षिण भारत की स्थिति और भी खराब है। यहाँ के मौसम का हिसाब-किताब उत्तर भारत की तुलना में गरम और उमस भरा होता है, लिहाजा यहाँ दूध, फल और सब्जियाँ तेजी से खराब होने का खतरा बना रहता है। अगर इन्हें कोल्ड स्टोरेज में सुरक्षित रखा जाये तो इनकी बर्बादी को रोका जा सकता है।यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि खाद्य उत्पादों के उचित भंडारण के लिये देश में कोल्ड स्टोरेज की भारी कमी है। यही नहीं उसके संचालन के लिये प्रशिक्षित कर्मियों की कमी, अप्रचलित तकनीकें और अनियमित बिजली सप्लाई भी खाद्य उत्पादों की बेकारी का एक कारण है। यहाँ ध्यान देना होगा कि बर्बाद भोजन को पैदा करने में 25 प्रतिशत स्वच्छ जल का इस्तेमाल होता है और साथ ही कृषि के लिये जंगलों को भी नष्ट किया जाता है। इसके अलावा बर्बाद हो रहे खाद्य पदार्थों को उगाने में 30 करोड़ बैरल तेल की भी खपत होती है। बर्बाद हो रहे भोजन से जलवायु प्रदूषण का खतरा भी बढ़ रहा है। उसी का नतीजा है कि खाद्यान्नों में प्रोटीन और आयरन की मात्रा लगातार कम हो रही है।
गौरतलब है कि कुछ वर्षों पहले भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (आईआईपीए) ने कुछ साल पहले एक अध्ययन के आधार पर इस बात का खुलासा किया था कि शादी-ब्याह और अन्य समारोहों में 20 से 25 प्रतिशत तक खाने की बर्बादी होती है। इसके बाद कई राज्यों की सरकारों ने इस बर्बादी को रोकने के लिये कार्यक्रमों में व्यंजनों की संख्या सीमित करने जैसे उपाय करने की कोशिश की लेकिन उम्मीद के मुताबिक नतीजे नहीं मिल सके। व्यंजनों की संख्या सीमित करने वाले नियम हैं तो अब भी लेकिन कागजों पर। उन पर कोई गौर नहीं कर रहा इसलिये कि वे व्यावहारिकता से अलग हैं। आईआईपीए के बाद कुछ वर्षों पहले एसोचैम ने भी अपने एक अध्ययन में बताया थ कि विवाह के अलावा बड़े स्तर पर होने वाले आयोजनों में 20 फीसदी भोजन और खाद्य पदार्थों की बर्बादी हो रही है।
भुखमरी और दुनिया का हाल
संयुक्त राष्ट्र की ओर से पिछले दिनों जारी एक रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि दुनिया में 85 करोड़ 30 लाख लोग भुखमरी का शिकार हैं। वर्ष 2030 तक के लिये वैश्विक स्तर पर खाद्य सुरक्षा और पोषण पर जारी की गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों और हिंसक संघर्षों के कारण पिछले एक दशक में पहली बार इस साल वैश्विक स्तर पर भुखमरी में 11 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते साल भूखे लोगों की संख्या दुनिया में जहाँ 81 करोड़ 50 लाख थी वहीं इस साल तीन करोड़ 80 लाख बढ़कर 85 करोड़ 30 लाख हो गई है। इसके पीछे जलवायु परिवर्तन और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में हो रहे हिंसक संघर्षों की बड़ी भूमिका है।
भारत की आबादी का लगभग पाँचवाँ हर हिस्सा हर रोज भूखे सोने के लिये विवश है और भुखमरी हमारे यहाँ भी हर साल लाखों जानें ले रही है। तेजी से महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर भारत में तकरीबन 20 करोड़ लोग भूखे पेट रहकर सोने को मजबूर हैं और प्रतिदिन 3000 बच्चे भूख से मर जाते हैं। यह जानकारी ग्लोबल हंगर इंडेक्स के आँकड़ों से मिली है।
पिछले दिनों जारी ग्लोबल हंगर इंडेक्स में जिन 118 देशों की सूची जारी की गई है उनमें भारत का स्थान 97वां रहा। मंगल पर अपना यान भेजने वाले देश भारत में भूख के खिलाफ जंग सबसे बड़ी चुनौती है। बच्चों में कुपोषण और उनकी मृत्यु दर का स्तर बेहद चिन्ताजनक है। यहाँ तक कि नेपाल और श्रीलंका की स्थिति भारत से बेहतर है जबकि पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे पिछड़े देशों में स्थिति और भी बुरी है। इस सच्चाई से इन्कार नहीं किया जा सकता कि दुनिया में भुखमरी बढ़ रही है और भूखे लोगों की करीब 23 फीसदी आबादी भारत में रहती है। तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो भारत में भूख की समस्या लगभग उत्तर कोरिया जैसी ही है। भारत में पाँच साल से कम उम्र के 38 प्रतिशत बच्चे सही पोषण के अभाव में जीने को विवश हैं जिसका असर मानसिक और शारीरिक विकास, पढ़ाई-लिखाई और बौद्धिक क्षमता पर पड़ता है। रिपोर्ट की भाषा में ऐसे बच्चों को ‘स्टन्टेड’ कहा गया है।
पड़ोसी देश, श्रीलंका और चीन का रिकॉर्ड इस मामले में भारत से बेहतर हैं जहाँ क्रमशः करीब 15 प्रतिशत और 9 प्रतिशत बच्चे कुपोषण और अवरुद्ध विकास के पीड़ित हैं। यहाँ ध्यान देना होगा कि भारत ही नहीं दुनिया भर में सालाना 1.6 अरब टन अन्न की बर्बादी हो रही है जिसकी कीमत तकरीबन 1000 अरब डॉलर है। ऐसे में आवश्यक हो जाता है कि बर्बाद हो रहे खाद्य पदार्थों को बचाने, एकत्र करने, स्टोर करने और एक से दूसरी जगह भेजने के लिये नई तकनीकों को इस्तेमाल किया जाये। अन्यथा यह स्थिति भुखमरी के दायरे का अत्यधिक विस्तार ही करेगी।
घट रही है गुणवत्ता
वैज्ञानिकों का कहना है कि कार्बन डाइ ऑक्साइड उत्सर्जन की अधिकता से भोजन से पोषक तत्व नष्ट हो रहे हैं जिसके कारण चावल, गेहूँ, जौ जैसे प्रमुख खाद्यान्न में प्रोटीन की कमी होने लगी है। आँकड़ों के मुताबिक चावल में 7.6 प्रतिशत, जौ में 14.1 प्रतिशत, गेहूँ में 7.8 प्रतिशत और आलू में 6.4 प्रतिशत प्रोटीन की कमी दर्ज की गई है। एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक भारतीयों के प्रमुख खुराक से 5.3 प्रतिशत प्रोटीन गायब हो जाएगा। इस कारण 5.3 करोड़ भारतीय प्रोटीन की कमी से जूझेंगे। गौरतलब है कि प्रोटीन की कमी होने पर शरीर की कोशिकाएँ ऊतकों से ऊर्जा प्रदान करने लगती हैं।
चूँकि कोशिकाओं में प्रोटीन भी नहीं बनता है लिहाजा इससे ऊतक नष्ट होने लगते हैं। इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति धीरे-धीरे कमजोर होने लगता है और उसका शरीर बीमारियों का घर बन जाता है। अगर भोज्य पदार्थों में प्रोटीन की मात्रा में कमी आई तो भारत के अलावा अफ्रीका के देशों के लिये भी यह स्थिति भयावह होगी। इसलिये और भी कि यहाँ लोग पहले से ही प्रोटीन की कमी और कुपोषण से जूझ रहे हैं। बढ़ते कार्बन डाइऑक्साइड के प्रभाव से सिर्फ प्रोटीन ही नहीं आयरन कमी की समस्या भी बढ़ेगी।
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