कोढ़ली की रिटायर्ड लाइन बनने के बाद भटनियाँ के नजदीक कोसी की गोबरगढ़ा धार से एक उप-धारा निकली और उसने पूर्वी कोसी तटबन्ध को 17 से 18 किलोमीटर के बीच में तबाह करना शुरू किया। तब इस धार को बन्द किया गया। इस तरह 20-22 किलोमीटर के बीच जो रिटायर्ड लाइन बनी, उसी के उत्तरी विस्तार के रूप में भटनियाँ अप्रोच बांध धीरे-धीरे बन कर तैयार हो गया जिसे 10 किलोमीटर के पास पूर्वी तटबन्ध में मिला दिया गया।
कोसी के पूर्वी तटबन्ध के निर्माण के फलस्वरूप नदी की मुख्य धारा और तटबन्ध के बीच बहुत से गाँव फंसे। यद्यपि इस तरह के गाँवों के पुनर्वास का एक कार्यक्रम सरकार अपने हाथ में ले चुकी थी मगर पूर्वी तटबन्ध के 10वें से 19 किलोमीटर के बीच सुपौल जिले के बसन्तपुर प्रखण्ड के कई गाँवों के रहने वालों ने तटबन्ध के बाहर पुनर्वास में जाकर रहने से साफ इनकार कर दिया। इन लोगों की मांग थी कि इनकी बाढ़ से सुरक्षा एक अप्रोच बांध का निर्माण करके की जाय (देखें चित्रा-4.2) और यह लोग अपने पूर्वजों की जमीन-जायदाद और घर-द्वार छोड़ कर कहीं भी नहीं जायेंगे। इन लोगों का नेतृत्व टेढ़ी गाँव के जंग बहादुर सिंह और छतौनी के नत्थू सिंह कर रहे थे जो अपने क्षेत्र के प्रभावशाली नेता थे और इनके ललित नारायण मिश्र से नजदीकी ताल्लुकात थे। यह जगह इसलिए भी महत्वपूर्ण थी कि इन गाँवों से लगे हुये बसावन पट्टी नाम का एक गाँव था जो कि इस क्षेत्र के प्रभावशाली कांग्रेसी नेताओं राजेन्द्र मिश्र और रवि नन्दन मिश्र का पैतृक गाँव था। मूलतः इसी गाँव के रहने वाले ललित नारायण मिश्र और डॉ. जगन्नाथ मिश्र केन्द्रीय मंत्री हुये। डॉ. जगन्नाथ मिश्र तो तीन बार बिहार राज्य के मुख्यमंत्री बने और वह केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं। ललित नारायण मिश्र लंबे समय तक केंद्र में मंत्री थे।इस दूरी में कोसी का पूर्वी तटबन्ध 1956 में ही बन कर तैयार हो गया था। भटनियाँ गाँव इस तटबन्ध के बाहर पूरब में पड़ता था जहाँ कभी निलहे गोरों की कोठी हुआ करती थी। ललित नारायण मिश्र से नजदीकी ताल्लुकात का फायदा इन गाँवों को मिला और बिना कोई आन्दोलन किये ही अप्रोच बांध का प्रस्ताव कोसी परियोजना द्वारा स्वीकार कर लिया गया।
घटना क्रम कुछ इस प्रकार है कि तटबन्ध बनने के कई वर्ष बाद भी कोसी परियोजना में पुनर्वास के प्रति कोई स्पष्टता नहीं थी। उधर दोनों तटबन्धों के बीच नदी की मुख्य धारा का अपनी राह बदलते रहना जारी था। 1962 के आस-पास बसन्तपुर प्रखण्ड के पश्चिमी हिस्सों में पूर्वी तटबन्ध पर कोसी नदी का आक्रमण शुरू होने लगा। नदी का पहला हमला हुआ भीमनगर से दक्षिण 20 से 22 किलोमीटर के बीच जहाँ नदी से तटबन्ध की रक्षा के लिए रिटायर्ड लाइन तटबन्ध का निर्माण करना पड़ा। इस निर्माण से तटबन्ध की सुरक्षा तो जरूर सुनिश्चित हुई मगर दो गाँव, गोपालपुर पुनर्वास और कोढ़ली (दोनों भपटियाही प्रखण्ड), मुख्य तटबन्ध और रिटायर्ड लाइन के बीच फंस गये। यह स्थिति आज भी बनी हुई है। कोढ़ली की रिटायर्ड लाइन बनने के बाद भटनियाँ के नजदीक कोसी की गोबरगढ़ा धार से एक उप-धारा निकली और उसने पूर्वी कोसी तटबन्ध को 17 से 18 किलोमीटर के बीच में तबाह करना शुरू किया। तब इस धार को बन्द किया गया। इस तरह 20-22 किलोमीटर के बीच जो रिटायर्ड लाइन बनी, उसी के उत्तरी विस्तार के रूप में भटनियाँ अप्रोच बांध धीरे-धीरे बन कर तैयार हो गया जिसे 10 किलोमीटर के पास पूर्वी तटबन्ध में मिला दिया गया। इस अप्रोच बांध को नदी के हमलों से बचाने के लिए इस पर भी स्परों का निर्माण किया गया। इस प्रकार अब पूरा रुपौली गाँव, नरपत पटृी की बंजराही टोली, भटनियाँ, पूरा टेढ़ी बाजार, लालमन पटृी, छतौनी और ढाढ़ा का कुछ हिस्सा भटनियाँ अप्रोच बांध और कोसी पूर्वी तटबन्ध के बीच आ गया। अप्रोच बांध के निर्माण का यह काम फरवरी 1968 तक पूरा कर लिया गया। थोड़ा बहुत काम 1969 में भी चला था।
1971 की बिहार की राज्य-व्यापी बाढ़ में 12 अगस्त के दिन भटनियाँ अप्रोच बांध का कटाव 10 किलोमीटर के आस-पास शुरू हुआ और यह बांध धीरे-धीरे कट गया। ढाढ़ा गाँव के भुवनेश्वर प्रसाद सिंह (87) बताते हैं कि, ‘‘... यह अप्रोच बांध हमारी मांग पर बना था क्योंकि हम लोग अपना पैतृक गाँव छोड़ कर जाना नहीं चाहते थे। सरकार ने हम लोगों के प्रभाव से हमारी बात मान ली थी। हम लोगों की जमीन बहुत उपजाऊ थी। पाँच मन का कट्ठा जलई भदई धान होता था और अनायास पटुआ की खेती होती थी। रबी फसल भी बिना मेहनत के होती थी। आराम ही आराम था, इसलिए कोई अपनी जमीन से हटना नहीं चाहता था।
1971 में जब बांध कटने लगा तो हम लोगों ने काफी शोर-शराबा किया मगर यहाँ जो सुपरिन्टेडिंग इंजीनियर थे वह बहुत ही शाह तबियत के आदमी थे। ‘चलो आते हैं- चलो देखते हैं’, कहते-कहते उन्होंने बहुत समय गंवा दिया। अप्रोच बांध के स्परों पर लगा कटाव धीरे-धीरे अप्रोच बांध को ही खाने लगा। नीचे तबके के कर्मचारी तो यहाँ काफी सक्रिय थे और जब कुछ भी बस नहीं चला तो यहाँ के दो ओवरसियरों ने बकरे की बलि चढ़ाई और कोसी मइया से जान बख्श देने की गुहार लगाते रहे। उधर एस0 ई0 साहब इन सभी चीजों से बेखबर बने रहे और अप्रोच बांध टूट गया और सारा पानी अन्दर के गाँवों में भर गया। लोग भाग कर तटबन्ध पर आ गये अपने पूरे परिवार और माल मवेशी के साथ। दो-एक दिन में पूरा का पूरा अप्रोच बांध साफ हो गया। फसल भी डूब गई और घर भी बैठ गये। हमारी हजारों एकड़ जमीन पानी में चली गई। यह सारी बर्बादी हमने अपनी आंखों के सामने बेबस होकर देखी। बस कोसी ने इतनी मेहरबानी जरूर की कि पूर्वी तटबन्ध को कोई नुकसान नहीं पहुँचाया। थोड़ी सी धारा और तेज रहती तो पूर्वी तटबन्ध भी बह गया होता क्योंकि इस पर कोई स्पर या सुरक्षात्मक संरचना थी ही नहीं और हमलोगों को भागते भी नही बनता। भटनियाँ अप्रोच बांध केवल इन गाँवों की ही रक्षा नहीं करता था, पूर्वी कोसी तटबन्ध को भी बचा कर रखता था।
इंजीनियरों को तकलीफ इसी बात की थी। एक तो अप्रोच बांध उनकी नहीं, हमारी मरजी से बना था। दूसरे जब तक यह अप्रोच बांध रहता तब तक 10 से 20 किलोमीटर के बीच उनकी कमाई के सारे रास्ते बन्द थे। जो योजना में पैसे की लूट-पाट मचती और सरकारी धन का अपव्यय होता वह रुक गया था। इसलिए व्यक्तिगत फायदे को ध्यान में रखते हुये कोसी योजना के स्थानीय इंजीनियरों ने इस बांध की रक्षा नहीं की और इसे टूट जाने दिया।’’ धीरे-धीरे अन्दर के सारे गाँव खाली हो गये। पूर्वी तटबन्ध पर ही नदी को आगे बढ़ने से रोकने के लिए स्पर बना दिये गये। बंजराही और रुपौली गाँव के लोग कुछ साल तक अपने गाँव में टिके मगर अब वह भी गोपालपुर और नरपतपटृी पुनर्वास में चले गये हैं। जल संसाधन विभाग के भूतपूर्व चीफ इंजीनियर पी0 एन0 त्रिवेदी, जो कि इस क्षेत्र और इस घटना से परिचित थे, का मानना है कि, ‘‘... सुपरिन्टेंडिंग इंजीनियर पर इस तरह के आरोप लगाना ठीक नहीं है। उनके साइट पर चले जाने से कोई बहुत फर्क पड़ता, यह तो कोई जरूरी नहीं है। आखिर वह घर में बैठ कर आराम तो नहीं ही कर रहे थे। हो सकता है वह दफ्तर में रह कर निर्माण सामग्री और कर्मचारियों की व्यवस्था कर रहे हों। दिक्कत यह है कि ऐसी एमरजेन्सी के समय आम ग्रामीणों के मानस और अधिकारियों पर काम और सुरक्षा बनाये रखने के दबाव एकदम अलग-अलग दिशा में काम करते हैं। इंजीनियरों को काम के साथ जनता के आक्रोश का भी सामना करना पड़ता है। कोई भी इंजीनियर यह नहीं चाहेगा कि जिस तटबन्ध की रक्षा की जिम्मेवारी उसकी है उसे यूँ ही टूट जाने दिया जाय। आखि़र उसको भी तो कहीं न कहीं जवाब देना पड़ता है।’’
बिहार विधान सभा सदस्य अमरेन्द्र मिश्र ने 15 जनवरी 1974 को विधान सभा की लोक लेखा समिति के सभापति को इस घटना की जांच करने का प्रस्ताव किया। उन्होंने आरोप लगाया कि, भटनियाँ अप्रोच बांध, जिसे विभाग भी पूर्वी कोसी तटबन्ध की सुरक्षा की दूसरी पंक्ति मानता था, की सुरक्षा के लिए कोसी परियोजना के अधिकारियों ने प्रयास नहीं किया और उसे टूट जाने दिया। उन्होंने यह भी दावा किया कि स्थानीय लोगों ने मौखिक रूप से बांध टूटने के महीनों पहले ओवरसियरों, सहायक अभियन्ताओं, एक्जीक्यूटिव इंजीनियरों और सुपरिन्टेंडिंग इंजीनियर को इस संभावित दुर्घटना के प्रति आगाह किया था मगर कोई कार्यवाही की नहीं गई।
अमरेन्द्र मिश्र के इस आवेदन पर लोक लेखा समिति ने निम्न पहलुओं पर जाँच के लिए गंभीरता पूर्वक विचार किया। (I) क्या विभाग ने 1971 में फ्रलड पफाइटिंग रूल्स के अनुसार बांध की सुरक्षा का प्रबन्ध किया या नहीं, (II) क्या भटनियाँ बांध की सुरक्षा के लिए आवश्यक सामग्रियों का पूर्व से संचयन किया गया था या नहीं, (III) क्या अधिकारियों ने लोगों द्वारा दी गई सूचनाओं पर ध्यान दिया या नहीं, (IV) इन सब कारणें के बावजूद अगर बांध टूटा तो विभाग के किन अधिकारियों पर कितना दोष आता है?
21 नवम्बर 1975 को लोक लेखा समिति के सदस्यों ने जिनमें सत्य नारायण यादव तथा रामाश्रय राय (सदस्य-बिहार विधान सभा), जागेश्वर मंडल (सदस्य-विधान परिषद) और चीफ इंजीनियर (डिजाइन) लोक निर्माण विभाग-बिहार शामिल थे, क्षेत्र का दौरा किया। इस समिति ने आम जनता के साथ-साथ बहुत से स्थानीय नेताओं जैसे दमन नारायण सिंह, डम्बर नारायण सिंह, तारिणी देव, सहदेव झा, मार्कण्डेय झा, बलदेव महतो, रामजी गोयत तथा भुवनेश्वर प्रसाद सिंह से भी बात की। स्थानीय लोगों से बात करने के साथ समिति ने कोसी योजना तथा सरकार के अधिकारियों के साथ भी विचार विमर्श किया और इस नतीजे पर पहुँची कि विभाग की रिपोर्टों और पत्राचार तथा विशेषज्ञों की रिपोर्ट के अनुसार यह पाया कि फ्लड फाइटिंग नियमों का पालन स्थानीय अधिकारियों ने किया था यद्यपि आम जनता की राय इससे एकदम भिन्न थी। समिति ने यह भी पाया कि कोसी तटबन्ध के दसवें किलोमीटर पर दो लाख ईंटें, 40,000 घनफुट पत्थर/बोल्डर्स तथा क्रेट्स, बांस बल्ला और अन्य सामग्री उपलब्ध थी। इसके अलावा कोसी परियोजना के खातों के मुताबिक मार्च-मई 1971 के बीच भटनियाँ स्थल पर जून 1971 में 15,705/-रुपये, जुलाई में 2,62,530/-रुपये और 12 अगस्त 1971 तक 57,353/-रुपये खर्च हुये थे। समिति की समझ में यह नहीं आ सका था कि जब वहाँ निर्माण सामग्री भारी मात्रा में मौजूद थी तो इतना पैसा वहाँ क्यों खर्च हुआ। समिति ने यह भी महसूस किया कि पाँच वर्षों के बाद यह अन्दाजा लगाना कि इतना पैसा खर्च भी हुआ था या नहीं, नामुमकिन है।
समिति ने यह माना कि भटनियाँ में कोसी योजना के अधिकारियों से ज्यादा वहां के लोग सतर्क थे क्योंकि उन्होंने हर तरह से पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से तथा अन्य उपलब्ध-साधनों से, सरकार का ध्यान बराबर संभावित खतरे की ओर आकृष्ट किया। ‘‘इस बात के लिए विभाग को दोषी ठहराया जा सकता है कि जनता की इन शिकायतों की ओर सावधानीपूर्वक कार्यवाई करने का निदेश उच्चाधिकारियों से स्थानीय अधिकारियों को प्राप्त नहीं हुआ।’’
समिति ने यह भी पाया कि भटनियाँ बांध के टूट जाने के बाद मुख्य पूर्व कोसी तटबन्ध की सुरक्षा पर भारी व्यय हुआ जिसका विवरण नीचे दिया गया है-
वर्ष | रुपया |
1972-73 | 39,76,081 रुपया 50 पैसा |
1973-74 | 88,61,572 रुपया 08 पैसा |
1974-75 | 92,01,490 रुपया 38 पैसा |
1975-76 | 66.01,322 रुपया 10 पैसा |
कुल | 2,86,40,466 रुपया 06 पैसा |
इस तरह जहाँ भटनियाँ अप्रोच बांध के निर्माण में कुल 3,16,887 रुपये खर्च हुये थे वहीं इस बांध के टूट जाने के बाद मुख्य पूर्वी कोसी तटबन्ध की मरम्मत में बाद के चार वर्षों में 2.86 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े।
अमरेन्द्र मिश्र (70) का कहना है कि, ... भटनियाँ आदि गाँवों के लोग अप्रोच बांध टूटने पर बाहर आने को मजबूर हुये। यह पूरा इलाका सीपेज का इलाका है। भीम नगर से सलखुआ तक एक ही हालत है। यह एक बड़ी समस्या है और ऐसी ही बातों के लिए जिस कोसी पीड़ित विकास प्राधिकार की स्थापना हुई थी, वह कुछ करता ही नहीं है। मैं जब बिहार सरकार में लोक निर्माण विभाग का मंत्री था तब मैंने अस्सी के दशक में दो सड़कें इन लोगों के लिए बनवा दी थीं। एक सड़क सिमराही से भटनियाँ और नरपतपटृी को जोड़ती थी। दूसरी सड़क बीरपुर से बीहपुर तक 10 किलोमीटर तक पक्की बनी थी। यही कुछ काम हुये हैं मगर आम हालत वहाँ की अच्छी नहीं है।’’
जिस साल भटनियाँ का अप्रोच बांध टूटा उसी साल बरसात के बाद पूर्वी तटबन्ध के 10 से 20 किलोमीटर के बीच में एक रिटायर्ड लाइन तटबन्ध बनाने का प्रस्ताव किया गया। इस रिटायर्ड लाइन के निर्माण से यहाँ पूर्वी कोसी तटबन्ध के टूटने की स्थिति में अतिरिक्त सुरक्षा की व्यवस्था हो पाती। मगर दूसरी तरफ ढाढ़ा, पिपराही, बसावन पटृी, लालमन पटृी, बैद्यनाथपुर, राजपुर, नरपत पटृी और सातन पटृी गाँव और उनकी अधिकांश शमीन प्रस्तावित रिटायर्ड लाइन और पूर्वी कोसी तटबन्ध के बीच फंस जाती। इन गाँवों की जमीन पहले से ही कोसी तटबन्ध अप्रोच बांध, सुपौल शाखा नहर, एस्केप चैनेल आदि के लिये सरकार द्वारा अधिगृहित की जा चुकी थी और जो बची-खुची जमीन थी वह रिटायर्ड लाइन में चली जाती। इसलिये ग्रामीणों ने रिटायर्ड लाइन का जोरदार विरोध किया और उसे बनने नहीं दिया। वह अभी भी पुराने अप्रोच बांध के पुनर्निमाण की बात करते हैं मगर इस स्थान को तो कोसी ने दखल कर लिया हुआ है। इसलिए यहाँ कोई काम नहीं हो पाया।
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