उत्तर प्रदेश से लेकर बंगाल की खाड़ी तक मैली हो चुकी गंगा की सफाई के लिये हजारों करोड़ का बजट होने के बावजूद वह उजली क्यों नहीं हो पा रही है।
इस सवाल का जवाब आम आदमी ही नहीं केंद्र सरकार भी ढूँढ रही है। जबकि केंद्र सरकार ने तो इसके लिये धन की तंगी नहीं आने दी है, लेकिन परिणाम भी लगभग शून्य ही है। हालाँकि पिछले 30 साल में इस पर चार हजार करोड़ से अधिक खर्च हो चुका है और अब पाँच गुना अर्थात 20 हजार करोड़ का बजट फिर से उपलब्ध है। अब जल संसाधन मंत्रालय ने गंगा सफाई कार्य में तेजी लाने के साथ ही तय किया है कि गंगा सफाई में आ रही दिक्कतों को भी सामने लाया जाए। इसके लिये उसने एक अध्ययन दल गठित करने का निर्णय किया है। अध्ययन दल में रुड़की विश्वविद्यालय समेत अन्य संस्थानों के विशेषज्ञ शामिल किये जाएँगे।
गंगा को बीमार करने में धार्मिक दृष्टि से संवेदनशील उत्तर प्रदेश का सर्वाधिक योगदान है। यूपी के विभिन्न शहरों में गंगा और उसकी सहायक नदी कालीगंगा के किनारे 687 ऐसे उद्योग हैं जिनकी गंदगी गंगा में आती है। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट इन इकाइयों को स्थानांतरित करने और नदी में आने वाले गंदे पानी को ट्रीट करके डालने का आदेश दे चुका है। केंद्र सरकार ने भी उत्तर प्रदेश सरकार को अनेक बार इस बारे में चेताया है, लेकिन राज्य सरकार उस पर पूरी तरह अमल नहीं कर पाई है। यहाँ तक कि गंगा के पानी को इस्तेमाल कर गंदा जल-मल भी बिना ट्रीटमेंट गंगा में बहाने पर भी प्रभावी रोक नहीं लगा पाई है। जल संसाधन मंत्रालय के मुताबिक गंगा सफाई अभियान में धन की तंगी नहीं होने के बावजूद परिणाम नहीं मिलने के कारणों का पता लगाना आवश्यक है।
यद्यपि बड़े कारणों में औद्योगिक इकाइयों का प्रदूषित पानी, शहरों की गंदगी इत्यादि है। और उनके निराकरण पर यथासंभव जोर भी दिया जा रहा है। परंतु विशेषज्ञों का कहना है कि गंगा की गंदगी का एक बड़ा कारण उसके बहाव की गति अवरुद्ध होेना भी है। बारहमासी गंगा में भारी मात्रा में जमा गाद की वजह से उसकी गहराई कम हो गई है। जिससे पानी के बहने की गति भी मंद हो गई है। इससे गंगा सहज रूप से उसमें डाली गई गंदगी को बहाकर ले जाने की क्षमता भी खो बैठी है। विशेषज्ञों का मत है कि गंगा की गहराई को पहले जैसी स्थिति में लाया जाने पर वह स्वंय ही अपनी गंदगी को साफ करने में सक्षम है। लेकिन इसके लिये उसमें पानी के बहाव को नियंत्रित करने का लोभ छोड़ना होगा।
फैक्ट फाइल
- गंगा में प्रतिदिन बहाए जाने वाला गंदा पानी 12 हजार मिलियन लीटर प्रतिदिन
- सिर्फ 4 हजार मिलियन लीटर पानी का ही होता है ट्रीटमेंट
- गंगा किनारे के उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में 764 उद्योंगों का प्रदूषित पानी
- प्रतिदिन गंगा में आता है उत्तर प्रदेश से 269 किलोलीटर प्रदूषित पानी
- बिहार से 8.7 किलोलीटर प्रदूषित पानी
- झारखंड से 17.3 किलोलीटर प्रदूषित पानी
- बंगाल से 87.2 किलोलीटर प्रदूषित पानी
- 30 साल में खर्चे चार हजार करोड़
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