फसलों में कीटनाशकों के इस्तेमाल की एक निश्चित मात्रा तय कर देनी चाहिए, जो स्वास्थ्य पर विपरीत असर न डालती हो। मगर सवाल यह भी है कि क्या किसान इस पर अमल करेंगे। 2005 में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने केंद्रीय प्रदूषण निगरानी प्रयोगशाला के साथ मिलकर एक अध्ययन किया था। इसकी रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी स्टैंडर्ड (सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन) के मुकाबले पंजाब में उगाई गई फसलों में कीटनाशकों की मात्रा 15 से लेकर 605 गुना ज्यादा पाई गई।
देश की एक बड़ी आबादी धीमा जहर खाने को मजबूर है, क्योंकि उसके पास इसके अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है। हम बात कर रहे हैं भोजन के साथ लिए जा रहे उस धीमे जहर की, जो सिंचाई जल और कीटनाशकों के जरिए अनाज, सब्जियों और फलों में शामिल हो चुका है। देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों में आर्सेनिक सिंचाई जल के माध्यम से फसलों को जहरीला बना रहा है। यहां भू-जल से सिंचित खेतों में पैदा होने वाले धान में आर्सेनिक की इतनी मात्रा पाई गई है, जो मानव शरीर को नुकसान पहुंचाने के लिए काफी है। इतना ही नहीं, देश में नदियों के किनारे उगाई जाने वाली फसलों में भी जहरीले रसायन पाए गए हैं। यह किसी से छुपा नहीं है कि हमारे देश की नदियां कितनी प्रदूषित हैं। कारखानों से निकलने वाले कचरे और शहरों की गंदगी को नदियों में बहा दिया जाता है, जिससे इनका पानी अत्यंत प्रदूषित हो गया है। इसी दूषित पानी से सींचे गए खेतों की फसलें कैसी होंगी, सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
दूर जाने की जरूरत नहीं, देश की राजधानी दिल्ली में यमुना की ही हालत देखिए। जिस देश में नदियों को मां या देवी कहकर पूजा जाता है, वहीं यह एक गंदे नाले में तब्दील हो चुकी है। कारखानों के रासायनिक कचरे ने इसे जहरीला बना दिया है। नदी के किनारे सब्जियां उगाई जाती हैं, जिनमें काफी मात्रा में विषैले तत्व पाए गए हैं। इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नदियों के किनारे उगाई गई फसलों में से 50 फीसदी में विषैले तत्व पाए जाने की आशंका रहती है। इसके अलावा कीटनाशकों और रसायनों के अंधाधुंध इस्तेमाल ने भी फसलों को जहरीला बना दिया है। अनाज ही नहीं, दलहन, फल और सब्जियों में भी रसायनों के विषैले तत्व पाए गए हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक हैं। इसके बावजूद अधिक उत्पादन के लालच में डीडीटी जैसे प्रतिबंधित कीटनाशकों का इस्तेमाल धड़ल्ले से जारी है। अकेले हरियाणा की कृषि भूमि हर साल एक हजार करोड़ रुपये से ज्यादा के कीटनाशक निगल जाती है। पेस्टिसाइड्स ऐसे रसायन हैं, जिनका इस्तेमाल अधिक उत्पादन और फसलों को कीटों से बचाने के लिए किया जाता है।
इनका इस्तेमाल कृषि वैज्ञानिकों की सिफारिश के मुताबिक सही मात्रा में किया जाए तो फायदा होता है, लेकिन जरूरत से ज्यादा प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति खत्म होने लगती है और इससे इंसानों के अलावा पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने कीटनाशकों के अत्यधिक इस्तेमाल से कृषि भूमि पर होने वाले असर को जांचने के लिए मिट्टी के 50 नमूने लिए। ये नमूने उन इलाकों से लिए गए थे, जहां कपास की फसल उगाई गई थी और उन पर कीटनाशकों का कई बार छिड़काव किया गया था। इसके साथ ही उन इलाकों के भी नमूने लिए गए, जहां कपास उगाई गई थी, लेकिन वहां कीटनाशकों का छिड़काव नहीं किया गया था। कीटनाशकों के छिड़काव वाले कपास के खेत की मिट्टी में छह प्रकार के कीटनाशकों के तत्व पाए गए, जिनमें मेटासिस्टोक्स, एंडोसल्फान, साइपरमैथरीन, क्लोरो पाइरीफास, क्वीनलफास और ट्राइजोफास शामिल हैं। मिट्टी में इन कीटनाशकों की मात्रा 0.01 से 0.1 पीपीएम पाई गई। इन कीटनाशकों का इस्तेमाल कपास को विभिन्न प्रकार के कीटों और रोगों से बचाने के लिए किया जाता है। कीटनाशकों की लगातार बढ़ती खपत से कृषि वैज्ञानिक भी हैरान और चिंतित हैं।
कीटनाशकों से जल प्रदूषण भी बढ़ रहा है। प्रदूषित जल से फल और सब्जियों का उत्पादन तो बढ़ जाता है, लेकिन इनके हानिकारक तत्व फलों और सब्जियों में समा जाते हैं। सब्जियों में पाए जाने वाले कीटनाशकों और धातुओं पर भी कई शोध किए गए हैं। एक शोध के मुताबिक, सब्जियों में जहां एंडोसल्फान, एचसीएच एवं एल्ड्रिन जैसे कीटनाशक मौजूद हैं, वहीं केडमियम, सीसा, कॉपर और क्रोमियम जैसी खतरनाक धातुएं भी शामिल हैं। ये कीटनाशक और धातुएं शरीर को बहुत नुकसान पहुंचाती हैं। सब्जियां तो पाचन तंत्र के जरिए हजम हो जाती हैं, लेकिन कीटनाशक और धातुएं शरीर के संवेदनशील अंगों में एकत्र होते रहते हैं। यही आगे चलकर गंभीर बीमारियों की वजह बनती हैं। इस प्रकार के जहरीले तत्व आलू, पालक, फूल गोभी, बैंगन और टमाटर में बहुतायत में पाए गए हैं। पत्ता गोभी के 27 नमूनों का परीक्षण किया गया, जिनमें 51.85 फीसदी कीटनाशक पाया गया। इसी तरह टमाटर के 28 नमूनों में से 46.43 फीसदी में कीटनाशक मिला, जबकि भिंडी के 25 नमूनों में से 32 फीसदी, आलू के 17 में से 23.53 फीसदी, पत्ता गोभी के 39 में से 28, बैंगन के 46 में से 50 फीसदी नमूनों में कीटनाशक पाया गया।
भारत में कुल 40 हजार कीटों की पहचान की गई है, जिनमें से एक हजार कीट फसलों के लिए फायदेमंद हैं, 50 कीट कभी कभार ही गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं, जबकि 70 कीट ऐसे हैं, जो फसलों के लिए बेहद नुकसानदेह हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि फसलों के नुकसान को देखते हुए कीटनाशकों का इस्तेमाल जरूरी हो जाता है। देश में जुलाई से नवंबर के दौरान 70 फीसदी कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है,
फसलों में कीटनाशकों के इस्तेमाल की एक निश्चित मात्रा तय कर देनी चाहिए, जो स्वास्थ्य पर विपरीत असर न डालती हो। मगर सवाल यह भी है कि क्या किसान इस पर अमल करेंगे। 2005 में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने केंद्रीय प्रदूषण निगरानी प्रयोगशाला के साथ मिलकर एक अध्ययन किया था। इसकी रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी स्टैंडर्ड (सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन) के मुकाबले पंजाब में उगाई गई फसलों में कीटनाशकों की मात्रा 15 से लेकर 605 गुना ज्यादा पाई गई। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि मिट्टी में कीटनाशकों के अवशेषों का होना भविष्य में घातक सिद्ध होगा, क्योंकि मिट्टी के जहरीला होने से सर्वाधिक असर केंचुओं की तादाद पर पड़ेगा। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति क्षीण होगी और फसलों की उत्पादकता भी प्रभावित होगी। मिट्टी में कीटनाशकों के इन अवशेषों का सीधा असर फसलों की उत्पादकता पर पड़ेगा और साथ ही जैविक प्रक्रियाओं पर भी। उन्होंने बताया कि यूरिया खाद को पौधे सीधे तौर पर अवशोषित कर सकते हैं। इसके लिए यूरिया को नाइट्रेट में बदलने का कार्य विशेष प्रकार के बैक्टीरिया द्वारा किया जाता है।
अगर भूमि जहरीली हो गई तो बैक्टीरिया की तादाद प्रभावित होगी। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि रसायन अनाज, दलहन और फल-सब्जियों के साथ मानव शरीर में प्रवेश कर रहे हैं। फलों और सब्जियों को अच्छी तरह से धोने से उनका ऊपरी आवरण तो स्वच्छ कर लिया जाता है, लेकिन उनमें मौजूद विषैले तत्वों को भोजन से दूर करने का कोई तरीका नहीं है। इसी धीमे जहर से लोग कैंसर, एलर्जी, हृदय, पेट, शुगर, रक्त विकार और आंखों की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। इतना ही नहीं, पशुओं को लगाए जाने वाले ऑक्सीटॉक्सिन के इंजेक्शन से दूध भी जहरीला होता जा रहा है। अब तो यह इंजेक्शन फल और सब्जियों के पौधों और बेलों में भी धड़ल्ले से लगाया जा रहा है। ऑक्सीटॉक्सिन के तत्व वाले दूध, फल और सब्जियों से पुरुषों में नपुंसकता और महिलाओं में बांझपन जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं।
हालांकि देश में कीटनाशक की सीमा यानी मैक्सिमम ऐजिड्यू लिमिट के बारे में मानक बनाने और उनके पालन की जिम्मेदारी तय करने से संबंधित एक संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया जा चुका है, लेकिन इसके बावजूद फसलों को जहरीले रसायनों से बचाने के लिए कोई खास कोशिश नहीं की जाती। रसायन और उर्वरक राज्यमंत्री श्रीकांत कुमार जेना के मुताबिक, अगर कीटनाशी अधिनियम, 1968 की धारा 5 के अधीन गठित पंजीकरण समिति द्वारा अनुमोदित दवाएं प्रयोग में लाई जाती हैं तो वे खाद्य सुरक्षा के लिए कोई खतरा पैदा नहीं करती हैं। कीटनाशकों का पंजीकरण उत्पादों की जैव प्रभाविकता, रसायन एवं मानव जाति के लिए सुरक्षा आदि के संबंध में दिए गए दिशा-निर्देशों के अनुरूप वृहद आंकड़ों के मूल्यांकन के बाद किया जाता है। केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार स्वीकार कर चुके हैं कि कई देशों में प्रतिबंधित 67 कीटनाशकों की भारत में बिक्री होती है और इनका इस्तेमाल मुख्य रूप से फसलों के लिए होता है। उन्होंने बताया कि कैल्शियम सायनायड समेत 27 कीटनाशकों के भारत में उत्पादन, आयात और इस्तेमाल पर पाबंदी है।
निकोटिन सल्फेट और केप्टाफोल का भारत में इस्तेमाल तो प्रतिबंधित है, लेकिन उत्पादकों को निर्यात के लिए उत्पादन करने की अनुमति है। चार किस्मों के कीटनाशकों का आयात, उत्पादन और इस्तेमाल बंद है, जबकि सात कीटनाशकों को बाजार से हटाया गया है। इंडोसल्फान समेत 13 कीटनाशकों के इस्तेमाल की अनुमति तो है, लेकिन कई पाबंदियां भी लगी हैं। गौरतलब है कि भारत में क्लोरडैन, एंड्रिन, हेप्टाक्लोर और इथाइल पैराथीओन पर प्रतिबंध है। कीटनाशकों के उत्पादन में भारत एशिया में दूसरे और विश्व में 12वें स्थान पर है। देश में 2006-07 के दौरान 74 अरब रुपये कीमत के कीटनाशकों का उत्पादन हुआ। इनमें से करीब 29 अरब रुपये के कीटनाशकों का निर्यात किया गया। खास बात यह भी है कि भारत डीडीटी और बीएचसी जैसे कई देशों में प्रतिबंधित कीटनाशकों का सबसे बड़ा उत्पादक भी है। यहां भी इनका खूब इस्तेमाल किया जाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, डेल्टिरन, ईपीएन और फास्वेल आदि कीटनाशक बेहद जहरीले और नुकसानदेह हैं। पिछले दिनों दिल्ली हाईकोर्ट ने राजधानी में बिक रही सब्जियों में प्रतिबंधित कीटनाशकों के प्रयोग को लेकर सरकार को फलों और सब्जियों की जांच करने का आदेश दिया है। अदालत ने केंद्र और राज्य सरकार से कहा कि शहर में बिक रही सब्जियों की जांच अधिकृत प्रयोगशालाओं में कराई जाए। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने अपने आदेश में कहा कि हम जांच के जरिए यह जानना चाहते हैं कि सब्जियों में कीटनाशकों का इस्तेमाल किस मात्रा में हो रहा है और ये सब्जियां बेचने लायक हैं या नहीं। अदालत ने यह भी कहा कि यह जांच इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट की प्रयोगशाला या दूसरी प्रयोगशालाओं में की जाए।
ये प्रयोगशालाएं नेशनल एक्रेडेशन बोर्ड फोर टेस्टिंग से अधिकृत होनी चाहिए। यह आदेश कोर्ट ने कंज्यूमर वॉयस की उस रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए दिया है, जिसमें कहा गया है कि भारत में फलों और सब्जियों में कीटनाशकों की मात्रा यूरोपीय मानकों के मुकाबले 750 गुना ज्यादा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि क्लोरडैन के इस्तेमाल से आदमी नपुंसक हो सकता है। इसके अलावा इससे खून की कमी और ब्लड कैंसर जैसी बीमारी भी हो सकती है। यह बच्चों में कैंसर का सबब बन सकता है। एंड्रिन के इस्तेमाल से सिरदर्द, सुस्ती और उल्टी जैसी शिकायतें हो सकती हैं। हेप्टाक्लोर से लीवर खराब हो सकता है और इससे प्रजनन क्षमता पर विपरीत असर पड़ सकता है। इसी तरह इथाइल और पैराथीओन से पेट दर्द, उल्टी और डायरिया की शिकायत हो सकती है।
केयर रेटिंग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में कीटनाशकों के समुचित प्रयोग से उत्पादकता में सुधार आ सकता है। इससे खाद्य सुरक्षा में भी मदद मिलेगी। देश में हर साल कीटों के कारण करीब 18 फीसदी फसल बर्बाद हो जाती है यानी इससे हर साल करीब 90 हजार करोड़ रुपये की फसल को नुकसान पहुंचता है। भारत में कुल 40 हजार कीटों की पहचान की गई है, जिनमें से एक हजार कीट फसलों के लिए फायदेमंद हैं, 50 कीट कभी कभार ही गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं, जबकि 70 कीट ऐसे हैं, जो फसलों के लिए बेहद नुकसानदेह हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि फसलों के नुकसान को देखते हुए कीटनाशकों का इस्तेमाल जरूरी हो जाता है। देश में जुलाई से नवंबर के दौरान 70 फीसदी कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि इन दिनों फसलों को कीटों से ज्यादा खतरा होता है। भारतीय खाद्य पदार्थों में कीटनाशकों का अवशेष 20 फीसदी है, जबकि विश्व स्तर पर यह 2 फीसदी तक होता है। इसके अलावा देश में सिर्फ 49 फीसदी खाद्य उत्पाद ऐसे हैं, जिनमें कीटनाशकों के अवशेष नहीं मिलते, जबकि वैश्विक औसत 80 फीसदी है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में कीटनाशकों के इस्तेमाल के तरीके और मात्रा के बारे में जागरूकता की कमी है।
गौर करने लायक बात यह भी है कि पिछले तीन दशकों से कीटनाशकों के इस्तेमाल को लेकर समीक्षा तक नहीं की गई। बाजार में प्रतिबंधित कीटनाशकों की बिक्री भी बदस्तूर जारी है। हालांकि केंद्र एवं राज्य सरकारें कीटनाशकों के सुरक्षित इस्तेमाल के लिए किसानों को प्रशिक्षण प्रदान करती हैं। किसानों को अनुशंसित मात्रा में कीटनाशकों की पंजीकृत गुणवत्ता के प्रयोग, अपेक्षित सावधानियां बरतने और निर्देशों का पालन करने की सलाह दी जाती है। यह सच है कि मौजूदा दौर में कीटनाशकों पर पूरी तरह पाबंदी लगाना मुमकिन नहीं, लेकिन इतना जरूर है कि इनका इस्तेमाल सही समय पर और सही मात्रा में किया जाए।
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