रिसर्च जर्नल साइंटिफिक रिपोर्टस में प्रकाशित अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक संघनित टैनिन्स के उत्पादन के लिए जिम्मेदार जीन्स में बदलाव किया जा सकता है। डॉ. मोहंती के अनुसार ‘अब गोआ बीन्स की एक नई प्रजाति विकसित की जा सकती है, जिसमें प्रचुर मात्रा में प्रोटीन होगा और टैनिन्स की मात्रा बेहद कम हो जाएगी।’
नई दिल्ली, 25 अप्रैल (इंडिया साइंस वायर) : लखनऊ की एक प्रयोगशाला में काम करने वाले कुछ वैज्ञानिकों को कमाल की कामयाबी मिली है, जिससे देश में दलहन उत्पादन की कमी से उबरने में मदद मिल सकती है।वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की लखनऊ स्थित प्रयोगशाला राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) के वैज्ञानिकों को एक जंगली फली के पौधे से कुछ अवांछनीय आनुवांशिक तत्वों को अलग करके इसके दानों को खाने योग्य एवं ज्यादा पोषक बनाने में सफलता मिली है।
पंख सेम या गोआ बीन्स तेजी से बढ़ने वाली एक जंगली फली है। देश के पश्चिमी और उत्तर-पूर्वी हिस्सों में इस फली की खेती खूब होती है। इस पौधे की फली के अलावा इसके तने, पत्तियों और बीजों समेत सभी हिस्सों को खाया जाता है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक गोआ बीन्स में सोयाबीन की तरह ही पोषक तत्व होते हैं। पोषक तत्व होने के बावजूद गोआ बीन्स का सेवन एक सीमा के बाद नहीं किया जा सकता। एनबीआरआई से जुड़े वैज्ञानिक डॉ. चंद्रशेखर मोहंती के मुताबिक ‘इस फली के पौधे में संघनित टैनिन्स का एक वर्ग पाया जाता है, जो पेट संबंधी विकारों को जन्म दे सकता है।’
डॉ. मोहंती और नैनीताल में कुमाऊं विश्वविद्यालय के बायोटेक्नोलॉजी विभाग से जुड़े उनके समकक्ष वैज्ञानिकों ने इस फली के पौधे में अनुवांशिक बदलाव के जरिये संघनित टैनिन्स को कम करने का रास्ता खोज निकाला है, जिसका मुख्य काम कीटों और रोगजनकों के हमलों के विरुद्ध गोआ बीन्स का बचाव करना है।
रिसर्च जर्नल साइंटिफिक रिपोर्टस में प्रकाशित अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक संघनित टैनिन्स के उत्पादन के लिए जिम्मेदार जीन्स में बदलाव किया जा सकता है। डॉ. मोहंती के अनुसार ‘अब गोआ बीन्स की एक नई प्रजाति विकसित की जा सकती है, जिसमें प्रचुर मात्रा में प्रोटीन होगा और टैनिन्स की मात्रा बेहद कम हो जाएगी।’ उन्होंने बताया कि ‘ऐसा करने के लिए वैज्ञानिक जीन-साइलेंसिंग नामक एक अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग करने की योजना बना रहे हैं।’
वैज्ञानिकों के अनुसार पिछले कई सालों से अनाज की फसलों की अपेक्षा फलीदार फसलों में सुधार की ओर कम ध्यान दिया गया है। डॉ. मोहंती के मुताबिक ‘फलियों की लगभग 20 हजार से अधिक प्रजातियां हैं, लेकिन उनमें से सिर्फ 20 अलग-अलग फलियों का उपयोग हम अपने भोजन में करते हैं।’ (इंडिया साइंस वायर)
भाषांतरण : उमाशंकर मिश्र
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