भारतीय नदीजोड़ योजना : एक परिचय

(यहाँ जो दस्तावेज दिया जा रहा है, वह सरकार के आंकड़ों पर आधारित है, इस आलेख का उद्देश्य मात्र भारतीय नदीजोड़ योजना से परिचय कराने का है। इसमें भारतीय नदीजोड़ योजना से पड़ने वाले प्रभावों के बारे में भी सरकार का कथन ही दिया गया है। )

.भारत में नदियों को जोड़ने का विचार, जो बहुत दिनों से शांत पड़ा था, खासकर 2002 के कावेरी विवाद एवं उसी वर्ष देशभर के विभिन्न हिस्सों में पड़े सूखे के कारण एक बार फिर चर्चा में आ गया है। एक जनहित याचिका के जवाब में उच्चतम न्यायालय ने इच्छा जतायी है कि भारत में नदियों को जोड़ने की परियोजना आगे बढ़ायी जा सकती है।

प्रधानमन्त्री ने परियोजना के अमलीकरण के तौर-तरीके पर विचार करने के लिए एक कार्यदल के गठन की घोषणा की एवं घोषित किया कि इस काम को ‘युद्ध गति’ से आगे बढ़ाया जाएगा। सरकार द्वारा इसे भावी जल समस्या के स्थायी हल के प्रयास के तौर पर प्रस्तुत किया गया। इस निर्णय पर बहुत गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है एवं इस पर आगे बढ़ने से पहले सरकार द्वारा बहुत सावधानीपूर्वक पुनर्विचार की आवश्यकता है।

योजना का प्रस्ताव


भारत की नदियों को जोड़ने की राष्ट्रीय परिदृश्य योजना दो भागों में विभाजित हैः प्रायद्वीपीय नदी विकास भाग और हिमालयी नदी विकास भाग।

प्रायद्वीपीय नदी विकास भाग में एनडब्ल्यूडीए (नेशनल वाटर डेवलपमेंट एजेंसी ) ने 137 नदी घाटियों/ उप घाटियों का जल सन्तुलन अध्ययन एवं 52 दिशांतरण विन्दुओं, 58 जलाशयों एवं 18 नदीजोड़ों का स्थलाकृति अध्ययन पूरा कर लिया है।

हिमालयी नदी विकास विभाग के अन्तर्गत 19 दिशांतरण विन्दुओं का जल-सन्तुलन अध्ययन, 16 जलाशयों का स्थलाकृति अध्ययन, 19 जोड़ों का स्थलाकृति अध्ययन पूरा कर लिया है।

प्रस्तावित नदीजोड़


हिमालयी भाग के प्रस्तावित नदीजोड़ हैं: 1. ब्रह्मपुत्र-गंगा (मानस-शंखोश-तीस्ता-गंगा),
2. कोसी-घाघरा,
3. गंडक-गंगा,
4. घाघरा-यमुना,
5. शारदा-यमुना,
6. यमुना-राजस्थान,
7. राजस्थान-साबरमती,
8. चुनार-सोन बैराज,
9. सोन बांध - गंगा की दक्षिणी सहायक नदियाँ,
10. गंगा-दामोदर-सुवर्ण रेखा,
11. सुवर्ण रेखा-महानदी,
12. कोशी-मेची,
13. फरक्का-सुंदरबन और
14. ब्रह्मपुत्र-गंगा (जोगीघोपा-तीस्ता-फरक्का)।

प्रायद्वीपीय (पेनिनस्यूलर) भाग में:


15. महानदी (मनिभद्र) - गोदावरी,
16. गोदावरी (इचमपल्ली निचला बांध) - कृष्णा (नागार्जुनसागर छोर तालाब),
17. गोदावरी (इचमपल्ली) - कृष्णा (नागार्जुनसागर),
18. गोदावरी (पोलावरम)-कृष्णा (विजयवाड़ा),
19. कृष्णा (अलमाटी)-पेन्नार,
20, कृष्णा (श्रीसीलम)-पेन्नार,
21. कृष्णा (नागार्जुनसागर)-पेन्नार (सोमासिला),
22. पेन्नार (सोमसिला-कावेरी ग्रैंड एनिकट),
23. कावेरी (कट्टालाई)-वैगाई-गुण्डर,
24. केन-बेतवा,
25. पार्वती-कालीसिंध-चम्बल,
26 पार-तापी-नर्मदा,
27. दमणगंगा-पिंजाल,
28. बेडती-वरदा,
21. नेत्रवती-हेमवती और
30. पम्बा-अचनकोविल-वैप्पार
नदीजोड़ प्रस्तावित हैं।

प्रस्तावित नदीजोड़ एवं उनके विवरण


प्रायद्वीपीय भाग: एनडब्ल्यूडीए ने महानदी, गोदावरी, कृष्णा, पेन्नार, कावेरी, वैगाई, केरल व कर्नाटक की पश्चिमी प्रवाही नदियों, मुंबई की उत्तरी एवं तापी की दक्षिणी एवं यमुना की दक्षिणी सहायक नदियों सहित विभिन्न प्रमुख नदी घाटियों के जलसन्तुलन का अध्ययन किया है। इन अध्ययनों से संकेत मिलता है कि महानदी एवं गोदावरी जलबहुल नदी घाटियाँ हैं जबकि प्रायद्वीपीय नदियों में कृष्णा, पेन्नार, कावेरी एवं वैगाई जलाभाव वाली नदी घाटियाँ हैं।

अगले कदम के तौर पर, 16 सम्भावित नदीजोड़ों के लिए पूर्वसम्भाव्यता अध्ययन किया गया, जिसमें से सात के लिए एनडब्ल्यूडीए ने सम्भाव्यता अध्ययन भी पूरा कर लिया है। इन अध्ययनों से यह भी संकेत मिलता है कि यह जलबहुल नदी घाटियों से जलाभाव वाली नदी घाटियों में पानी स्थानांतरण के लिए तकनीकी रूप से सम्भव एवं आर्थिक रूप से व्यवहार्य है। यहाँ पर प्रत्येक नदीजोड़ के बारे में संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है। यह जानकारी अस्थायी है एवं डीपीआर के चरण में यह बदल सकता है।

महानदी-गोदावरी नदीजोड़


महानदी पर मनिभद्र जलाशय से 111760 लाख घनमीटर पानी एक संपर्क नहर द्वारा गोदावरी नदी के दोलाइस्वरम जलाशय में डाला जाना प्रस्तावित है। यह नदीजोड़ मार्ग में 4.54 लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई करेगी, जिसमें से 1.02 लाख हेक्टेयर आंध्र प्रदेश में एवं 3.52 लाख हेक्टेयर उड़ीसा में प्रस्तावित है। इस प्रक्रिया में 38,540 लाख घनमीटर पानी इस्तेमाल होगा।

इस सम्पर्क नहर की कुल लम्बाई 932 किलोमीटर होगी, जिसमें 6.30 किलोमीटर लम्बी सुरंग शामिल है। नहर के मार्ग में रिसाव से 8220 लाख घनमीटर पानी क्षति का आकलन किया गया है। शेष बचे 65000 लाख घनमीटर को दक्षिणी इलाके में मांग पूरा करने के लिए गोदावरी नदी में स्थानान्तरित किया जाएगा। इस नदीजोड़ में मनिभद्र बांध पर 966 मेगावाट बिजली बनाने का भी प्रस्ताव है।

महानदी से गोदावरी में पानी स्थानांतरित करने के विचार से उड़ीसा सरकार का महानदी पर मनिभद्र में बांध बनाने का विचार है। जलाशय की सकल एवं सजीव भंडारण क्षमता क्रमशः 93750 लाख घनमीटर एवं 42900 लाख घनमीटर है। स्थानांतरित पानी आंध्र प्रदेश में दोलाइस्वरम में मौजूदा ‘सर आर्थर काॅटन बैराज’ में ग्रहण किया जाएगा। संपर्क नहर की कुल लंबाई 932 किलोमीटर होगी, जिसके प्रारंभ एवं अन्तिम जलाशय की ऊंचाई समुद्रतल से क्रमशः 74 मीटर एवं 13.81 मीटर होगी।

निकास स्थल पर नहर की डिस्चार्ज क्षमता 627 क्यूमेक्स होगी एवं नहर को पूरे साल संचालित करने का प्रस्ताव है।

मनिभद्र जलाशय से कुल 86 मीटर की जलाशय स्तर पर 45,900 हेक्टेयर जमीन डूब में आएगी। इस जलाशय में 4881 हेक्टेयर वनभूमि डूब में आने की उम्मीद है। प्रस्तावित मनिभद्र जलाशय के डूब से करीब 90,582 लोग प्रभावित होंगे।

इचमपल्ली-नागार्जुनसागर नदीजोड़


गोदावरी नदी का अतिरिक्त पानी एवं महानदी से प्राप्त 65,000 लाख घनमीटर पानी सहित कुल 2,14,200 लाख घनमीटर तीन सम्पर्क नहरों के माध्यम से कृष्णा नदी घाटी में स्थानांतरण का प्रस्ताव है, जिसमें इचमपल्ली-नागार्जुनसागर पहला सम्पर्क होगा। इसमें 9 किलोमीटर सुरंग सहित 299 किलोमीटर लंबी संपर्क नहर द्वारा 164,260 लाख घनमीटर पानी स्थानांतरित किया जाएगा।

यह संपर्क मार्ग में कुल 3.19 लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई करेगी, जिसमें से 1.98 लाख हेक्टेयर श्रीरामसागर परियोजना की ककतिया नहर चरण-2 के अन्तर्गत पड़ता है एवं 1.21 लाख हेक्टेयर श्रीसैलम बायीं तट नहर के अन्तर्गत पड़ता है। इसमें 18,500 लाख घनमीटर पानी मार्ग में इस्तेमाल होगा एवं 3,760 लाख घनमीटर पानी मार्ग में रिसाव से क्षति हो जाएगी।

इस नदीजोड़ में पानी को 116 मीटर ऊंचाई पर चढ़ाने के लिए 1705 मेगावाट बिजली की आवश्यकता होगी। इसमें इचमपल्ली बांध पर परिवर्तनीय टरबाइन स्थापित करके 975 मेगावाट बिजली उत्पादन का भी प्रस्ताव है। अन्ततः दक्षिणी क्षेत्र में ले जाने के लिए करीब 1,42,000 लाख घनमीटर पानी कृष्णा नदी पर नागार्जुनसागर जलाशय में स्थानांतरित किया जाएगा।

इस प्रस्ताव के लिए दो जलाशय प्रस्तावित हैं, उनमें से एक आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा गोदावरी नदी पर 112.77 मीटर जलाशय स्तर वाला इचम्पल्ली बांध एवं दूसरा मौजूदा नागार्जुनसागर बांध 179.83 मीटर जलाशय स्तर पर विचार किया गया है। इचमपल्ली बांध की सकल एवं सजीव भंडारण क्षमता क्रमशः 1,03,740 लाख घनमीटर एवं 4,22,850 लाख घनमीटर है।

नागार्जुनसागर बांध की सकल एवं सजीव भंडारण क्षमता क्रमशः 1,15,600 लाख घनमीटर एवं 57,330 लाख घनमीटर है। इचमपल्ली एवं नागार्जुनसागर के बीच संपर्क नहर की कुल लंबाई 299 किलोमीटर होगी, जिसमें गोदावरी-कृष्णा पहाड़ी को पार कराने के लिए 9 किलोमीटर की सुरंग शामिल है। सम्पर्क नहर के शीर्ष एवं अन्तिम छोर की ऊंचाई क्रमशः 142.00 मीटर एवं 182.765 मीटर होगी। डिजाइन के अनुसार 1219 क्यूमेक्स निकास क्षमता वाली नहर को वर्ष में 195 दिन संचालित करने का प्रस्ताव है।

इचम्पल्ली जलाशय के अन्तर्गत कुल डूब 92,555 हेक्टेयर होगा, जिसमें से 21,734 हेक्टेयर आरक्षित वन होगा, इसके लिए क्षतिपूरक वनीकरण किया जाएगा। जलाशय से लगभग 1 लाख लोग प्रभावित होंगे।

इचम्पल्ली निचला बांध-नागार्जुनसागर अन्तिम जलाशय नदीजोड़


गोदावरी को कृष्णा से जोड़ने वाली यह दूसरी नदीजोड़ है। इस नदीजोड़ में 419 किलोमीटर लम्बी सम्पर्क नहर द्वारा 52,180 लाख घनमीटर पानी स्थानांतरित किया जाएगा।

इस संपर्क नहर में गोदावरी एवं कृष्णा के बीच पहाड़ी को पार करने के लिए 13 किलोमीटर लंबी सुरंग बनायी जाएगी। इस संपर्क नहर के मार्ग में 17,570 लाख घनमीटर पानी का इस्तेमाल करते हुए 2.97 लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई एवं मार्ग में 2,480 लाख घनमीटर रिसाव के बाद 32,130 लाख घनमीटर पानी अन्तिम छोर जलाशय में डाला जाएगा।

सम्पर्क नहर द्वारा इचम्पल्ली दायीं तट नहर के अन्तर्गत 0.72 लाख हेक्टेयर की सिंचाई होगी, मार्ग में 0.15 लाख हेक्टेयर नये इलाके एवं नागार्जुनसागर में स्थानांतरण द्वारा उपलब्ध पानी एवं पानी की अदला-बदली से 6.50 लाख हेक्टेयर की सिंचाई प्रस्तावित है। इस प्रस्ताव में पानी को प्रारंभ में 21 मीटर ऊपर चढ़ाने के लिए 147 मेगावाट बिजली की आवश्यकता होगी।

इस नदीजोड़ में दो बांध प्रस्तावित हैं। उनमें से पहला गोदावरी पर 95.0 मीटर ऊंचे जलाशय स्तर वाला इचमपल्ली बांध एवं दूसरा कृष्णा नदी पर 75.50 मीटर ऊंचे जलाशय स्तर वाला नागार्जुन सागर अन्तिम छोर जलाशय के बारे में विचार किया गया है। इचमपल्ली बांध की सकल एवं सजीव भंडारण क्षमता क्रमशः 9,760 लाख घनमीटर एवं 29.55 लाख घनमीटर है।

जबकि नागार्जुनसागर बांध की सकल एवं सजीव भंडारण क्षमता क्रमशः 9,010 लाख घनमीटर एवं 295.50 लाख घनमीटर प्रस्तावित है। इचमपल्ली निचले बांध के पानी को जमीन स्तर से 107 मीटर ऊपर उठाने के लिए पानी 21 मीटर ऊंचा उठाना पड़ेगा। इसके बाद पानी गुरुत्वीय भार से आगे बढ़ेगा। सम्पर्क नहर को मार्ग में सिंचाई के लिए पूरे साल संचालित करने एवं नागार्जुनसागर अन्तिम छोर जलाशय में स्थानांतरित करने के लिए 153 दिन संचालित करने का प्रस्ताव है।

इचमपल्ली निचले बांध के अन्तर्गत करीब 17,900 हेक्टेयर जमीन डूब में आएगी, जो कि नदी के हिस्से तक ही सीमित है। पुनर्वास की किसी समस्या की उम्मीद नहीं है। इस क्षेत्र में अच्छी जलनिकास सुविधा होने के कारण किसी किस्म के जलजमाव एवं इससे सम्बन्धित समस्याओं की उम्मीद नहीं है। नदी के पानी की गुणवत्ता में किसी भी नकारात्मक असर को रोकने के लिए नदीजोड़ के डाउनस्ट्रीम में पर्याप्त प्रवाह सुनिश्चित किया जाएगा।

पोलावरम्-विजयवाड़ा नदीजोड़


गोदावरी से कृष्णा को जोड़ने हेतु यह तीसरा संपर्क नहर प्रस्तावित है। यह संपर्क नहर गोदावरी के दाहिने तट पर प्रस्तावित पोलावरम् जलाशय से निकलेगी एवं 174 किलोमीटर सम्पर्क नहर द्वारा 53,250 लाख घनमीटर पानी स्थानांतरित करेगी। यह नहर आंध्र प्रदेश में कुल 5.82 लाख हेक्टेयर जमीन को सिंचाई की सुविधा प्रदान करेगी। यह सम्पर्क नहर मार्ग में घरेलू एवं औद्योगिक आवश्यकताओं के लिए 1,620 लाख घनमीटर कृष्णा डेल्टा के मौजूदा लाभ क्षेत्र के लिए 12,360 लाख घनमीटर की पूर्ति एवं 2,600 लाख घनमीटर रिसाव से क्षति के बाद 22,650 लाख घनमीटर पानी कृष्णा डेल्टा में स्थानांतरित करेगी। एनडब्ल्यूडीए ने इस नदीजोड़ के लिए सम्भाव्यता अध्ययन पूरा कर लिया है।

आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तावित पोलावरम् परियोजना का इस्तेमाल सम्पर्क नहर के माध्यम से गोदावरी के पानी को स्थानांतरित करने के लिए किया जाएगा, जो कि विजयवाड़ा में कृष्णा नदी पर मौजूदा प्रकाशम् बराज पहुंचेगा। पोलावरम् जलाशय का स्तर 45.72 मीटर होगा एवं इसकी सकल एवं सजीव भंडारण क्षमता क्रमशः 55,110 लाख घनमीटर एवं 21,300 लाख घनमीटर है। पोलावरम् बांध स्थल से प्रकाशम बराज तक सम्पर्क नहर की कुल लम्बाई 174 किलोमीटर होगी।

पोलावरम् जलाशय से निकलने वाली सम्पर्क नहर की समुद्रतल से ऊंचाई 40.232 मीटर एवं प्रकाशम् बराज पर नहर की समुद्र तल से ऊंचाई 27.965 मीटर होगी। सम्पर्क नहर को पूरे साल संचालित करने का प्रस्ताव है। नहर के शीर्ष में निकास क्षमता 405.12 क्यूमेक्स आकलन किया गया है। पूरा स्थानांतरण गुरुत्वीय भार से होगा।

पोलावरम् जलाशय से 63,691 हेक्टेयर जमीन डूब में आएगी, जिसमें आंध्र प्रदेश की 60,063 हेक्टेयर, छत्तीसगढ़ की 2,398 हेक्टेयर एवं उड़ीसा की 1230 हेक्टेयर शामिल है। सम्पूर्ण डूब क्षेत्र में 30650 हेक्टेयर कृषिभूमि एवं 3705 हेक्टेयर वनभूमि शामिल है। जलाशय के डूब से आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं उड़ीसा के 250 गांवों के 1.45 लाख लोग प्रभावित होंगे।

अलमाटी-पेन्नार नदीजोड़


कृष्णा नदी को पेन्नार से जोड़ने के लिए तीन सम्पर्कों पर विचार किया गया है। अलमाटी-पेन्नार पहली सम्पर्क नहर होगी। यह सम्पर्क नहर 19800 लाख घनमीटर पानी स्थानांतरित करेगी एवं मार्ग में 2.35 लाख हेक्टेयर (1.61 लाख हेक्टेयर आंध्र प्रदेश में एवं 0.74 लाख हेक्टेयर कर्नाटक में) जमीन को सिंचाई प्रदान करेगी। इस संपर्क नहर द्वारा स्थानांतरण के लिए पानी की मात्रा अलमाटी में उपलब्ध कराया जाएगा, जो कि गोदावरी से नागार्जुनसागर में महानदी व गोदावरी नदी घाटी के जलाधिक्य के स्थानांतरण के बदले उपलब्ध कराया जाएगा। इस सम्पर्क नहर की कुल लम्बाई 564 किलोमीटर होगी, जिसमें 36.2 किलोमीटर की पांच सुरंग शामिल हैं।

यह नदीजोड़ कृष्णा नदी घाटी में निर्माणाधीन अलमाटी जलाशय को इस्तेमाल करने के लिए प्रस्तावित है, जो सकल भंडारण क्षमता 11,950 लाख घनमीटर एवं 512.256 मीटर ऊंची जलाशय स्तर वाली निर्माणाधीन अपर कृष्णा परियोजना चरण-1 का हिस्सा है। इस परियोजना के साथ सम्पर्क नहर के हेडवर्क के लिए आवश्यक कल्वपल्ली में एक अतिरिक्त जलाशय एवं पेन्नार नदी घाटी में बुकापट्टनम में मौजूदा जलाशय प्रस्तावित है।

पूरी नहर प्रणाली की लम्बाई 564 किलोमीटर होगी, जिसमें पहाड़ी में भारी मोड़ों को टालने के लिए 5 सुरंग भी शामिल हैं। शीर्ष स्थल पर 208.12 क्यूमेक्स निकास क्षमता वाली सम्पर्क नहर साल में जून से नवम्बर तक 180 दिन संचालित होगी। समुद्रतल से 510 मीटर ऊंचे अलमाटी जलाशय से नहर निकलकर तुंगभद्र एवं वेदावती नदियों को पार करके पेन्नार नदी पर प्रस्तावित कल्वपल्ली जलाशय में मिलेगी एवं उसके बाद आगे बहुते हुए मौजूदा बुकापट्टनम् जलाशय के माध्यम से पेन्नार की उपनदी मडिलेरू से मिलेगी। यह स्थानांतरण पूरी तरह गुरुत्वीय भार पर आधारित होगा।

अलमाटी जलाशय कुल 25,206 हेक्टेयर जमीन को डुबोएगा, जिसमें 2,295 हेक्टेयर वनभूमि शामिल है। इस परियोजना की वजह से 101 गांवों के 1.2 लाख लोग प्रभावित होंगे। कर्नाटक सरकार प्रभावित होने वाले लोगों के लिए 50 नये केंद्रों में पुनर्वास की व्यवस्था कर रही है एवं मूलभूत सुविधाओं सहित प्रभावित लोगों को रोजगार देते हुए नये आदर्श गांव विकसित कर रही है।

श्रीसैलम-पेन्नार नदीजोड़


कृष्णा को पेन्नार से जोड़ने वाली यह दूसरी नदीजोड़ है, इसमें 23,100 लाख घनमीटर पानी स्थानांतरण प्रस्तावित है। इस सम्पर्क मार्ग में कोई सिंचाई प्रस्तावित नहीं है। मार्ग में नहरों द्वारा ऊपर से गिरते पानी को इस्तेमाल करने के लिए कुल 17 मेगावाट क्षमता की 4 लघु पनबिजली परियोजनाएं प्रस्तावित हैं। इस सम्पर्क नहर द्वारा पेन्नार नदी में स्थानांतरित किये जाने वाले पानी को सोमासिला में उठाया जाएगा एवं पेन्नार नदी से आगे दक्षिण में पानी ले जाने के लिए इसे नागार्जुनसागर-सोमासिला सम्पर्क नहर के साथ स्थानांतरित किया जाएगा। सम्पर्क नहर की कुल लम्बाई 204 किलोमीटर होगी। एनडब्ल्यूडीए ने इस नदीजोड़ के लिए सम्भाव्यता अध्ययन तैयार कर लिया है।

इस नदीजोड़ में कोई बांध या जलाशय बनाने का विचार नहीं है। पानी को मौजूदा श्रीसैलम जलाशय से मोड़ा जाएगा एवं पेन्नार नदी तक यह प्राकृतिक धाराओं से पहुंचेगा। श्रीसैलम जलाशय से पेन्नार नदी पर अपने पहुंच तक सम्पर्क नहर की कुल लम्बाई 204 किलोमीटर होगी। श्रीसैलम नहर प्रणाली की मौजूदा ढांचों जैसे प्रवेश चैनल, पोथीरेड्डीपाडु पर हेड नियंत्रक, श्रीसैलम दायीं तट मुख्य नहर एवं बनाकाचेरला पर क्रास नियंत्रक का उपयोग पानी के स्थानांतरण के लिए किया जाएगा।

बनाकाचेरला पर क्रास नियंत्रक के केन्द्रीय निकास से पानी को पेन्नार नदी पर आदिनीमायापल्ली एनिकट तक पहुंचने तक निपुलावागु, गलेरू एवं कुंडेरू जैसी प्राकृतिक धाराओं में डाला जाएगा। 145 क्यूसेक निकास क्षमता वाली सम्पर्क नहर को 184 दिन संचालित करने का प्रस्ताव है। इस सम्पर्क नहर के मार्ग में कोई सिंचाई का प्रस्ताव नहीं है, क्योंकि वे इलाके मौजूदा एवं निर्माणाधीन परियोजनाओं के लाभ क्षेत्र के अन्तर्गत आते हैं जबकि मार्ग में सम्पर्क नहर के प्राकृतिक प्रपात को इस्तेमाल करने के लिए कुल 17 मेगावाट स्थापित क्षमता की पनबिजली लगाने का प्रस्ताव है।

इस नदीजोड़ के कारण कोई भी नया डूब क्षेत्र नहीं होगा, क्योंकि प्रस्तावित सम्पर्क में मौजूदा श्रीसैलम जलाशय का इस्तेमाल होना है।

नागार्जुनसागर-सोमासिला नदीजोड़


नदी जोड़ परियोजनायह कृष्णा नदी एवं पेन्नार नदी को जोड़ने वाली तीसरी सम्पर्क नहर होगी, इसमें 121,460 लाख घनमीटर पानी स्थानांतरण का प्रस्ताव है। सम्पर्क नहर की कुल लम्बाई करीब 393 किलोमीटर होगी। सम्पर्क नहर मार्ग में 32,640 लाख घनमीटर पानी इस्तेमाल करके आंध्र प्रदेश में 5.81 लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई करेगी। इसमें से 9,080 लाख घनमीटर पानी गुंडलाकम्मा एवं पेन्नार के बीच 1.68 लाख हेक्टेयर की सिंचाई के लिए एवं 23,560 लाख घनमीटर पानी नागार्जुनसागर के दायीं तट नहर के क्षेत्र में 4.13 लाख हेक्टेयर सिंचाई के लिए इस्तेमाल होगा। मार्ग में पेयजल के लिए 1,240 लाख घनमीटर पानी इस्तेमाल होगा एवं 3,320 लाख घनमीटर पानी रिसाव से क्षति होगा। सोमासिला में शेष बचे हुए 84,260 लाख घनमीटर पानी को कावेरी एवं वैगाई में स्थानांतरण के लिए सोचा गया है। इस सम्पर्क नहर की शुरुआत में 90 मेगावाट की स्थापित क्षमता की पनबिजली परियोजना प्रस्तावित है। एनडब्ल्यूडीए ने इस प्रस्ताव के लिए सम्भाव्यता अध्ययन पूरा कर लिया है।

इस नदीजोड़ में किसी नये जलाशय के निर्माण का विचार नहीं है। इसमें मौजूदा जलाशयों, जैसे कृष्णा नदी पर नागार्जुनसागर एवं पेन्नार नदी पर सोमासिला का उपयोग किया जाना प्रस्तावित है। नागार्जुनसागर जलाशय की सकल भंडारण क्षमता 197.83 मीटर जलाशय स्तर पर 1,95,600 लाख घनमीटर है एवं सजीव भंडारण क्षमता 57,330 लाख घनमीटर है। सोमासिला में जलाशय की सकल भंडारण क्षमता 100.58 मीटर जलाशय स्तर पर 22,080 लाख घनमीटर है एवं सजीव भंडारण क्षमता 19,940 लाख घनमीटर है। नागार्जुनसागर से सोमासिला जलाशय तक पहुंचने में सम्पर्क नहर की कुल लम्बाई 393 किलोमीटर है। नागार्जुनसागर की दायीं तट नहर जवाहर नहर के नाम से जानी जाती है, जो नागार्जुनसागर जलाशय से 151.67 मीटर की ऊंचाई से निकलती है, यही नागार्जुनसागर-सोमसिला सम्पर्क नहर होगी पहले 203 किलोमीटर के लिए सम्पर्क नहर मौजूदा नागार्जुनसागर दायीं तट नहर के सामानान्तर प्रवाहित होगी एवं 81,460 लाख घनमीटर पानी ले जाएगी। इसके बाद नागार्जुनसागर दायीं नहर द्वारा 16,440 लाख घनमीटर पानी स्थानांतरण सहित नयी व्यवस्था द्वारा 97,900 लाख घनमीटर पानी ले जाया जाएगा। नागार्जुनसागर दायीं तट नहर की वहन क्षमता 40,000 लाख घनमीटर है एवं 16,230 लाख घनमीटर पानी इचमपल्ली-पुलिचिंताला सम्पर्क नहर द्वारा प्राप्त करना प्रस्तावित है। नागार्जुनसागर दायीं तट नहर की आवश्यकता 39,790 लाख घनमीटर है, जबकि 16,440 लाख घनमीटर (40,000+16,230-39790) पानी 203 किलोमीटर बाद सम्पर्क नहर में स्थानांतरित किया जाना है। यह सम्पर्क नहर सोमासिला जलाशय में 84,260 लाख घनमीटर पानी डालेगी। 565 क्यूसेक निकास क्षमता वाली सम्पर्क नहर को पूरे साल में 240 दिनों तक संचालित करने का प्रस्ताव है।

इस नदीजोड़ में कोई नया क्षेत्र डूब में नहीं आएगा, क्योंकि मौजूदा नागार्जुनसागर एवं सोमासिला जलाशय का इस योजना में इस्तेमाल होगा। स्थानांतरण विन्दु के डाउनस्ट्रीम में पानी की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए पर्याप्त प्रवाह सुनिश्चित की जाएगी।

सोमासिला-ग्रैंड एनिकट नदीजोड़


इस नदीजोड़ के अन्तर्गत पेन्नार नदी घाटी में सोमासिला जलाशय से पेन्नार के दक्षिणी हिस्से में पानी स्थानांतरण का विचार है। इस सम्पर्क नहर से सोमासिला जलाशय में पहुंचने वाले 107,430 लाख घनमीटर (नागार्जुनसागर-सोमासिला 86,480 लाख घनमीटर एवं श्रीसैलम -पेन्नार 20,950 लाख घनमीटर) में से 85,650 लाख घनमीटर पानी गुरुत्वीय भार से बहेगा। तेलगू गंगा परियोजना की सिंचाई के लिए आवश्यक 8,900 लाख घनमीटर पानी की मात्रा सोमासिला-कंडालेरू बाढ़ प्रवाही नहर द्वारा कंडालेरू जलाशय में स्थानांतरित किया जाएगा एवं 12,880 लाख घनमीटर का इस्तेमाल पेन्नार डेल्टा के अभाव को पूरा करने के लिए होगा। यह सम्पर्क नहर 438 किलोमीटर प्रवाहित होगी एवं 4.91 लाख हेक्टेयर (आंध्र प्रदेश में 0.49 लाख हेक्टेयर, तमिलनाडु में 4.36 लाख हेक्टेयर एवं पांडिचेरी में 0.06 लाख हेक्टेयर) जमीन को सिंचेगी। सम्पर्क नहर द्वारा कुल 85,650 लाख घनमीटर पानी स्थानांतरण प्रस्तावित है, जिसमें से मार्ग में सिंचाई के लिए 31,700 लाख घनमीटर, मार्ग में घरेलू उपयोग के लिए 2,790 लाख घनमीटर, चेन्नई शहर में घरेलू एवं औद्योगिक उपयोग के लिए 8,760 लाख घनमीटर, कावेरी नदी में स्थानांतरण के लिए 38,550 लाख घनमीटर एवं रिसाव से क्षति 3,850 लाख घनमीटर शामिल है।

सोमासिला परियोजना 100.58 मीटर की जलाशय स्तर की पेन्नार नदी पर मौजूदा बहुउद्देशीय परियोजना है। इसकी सकल एवं सजीव भंडारण क्षमता क्रमशः 22,080 लाख घनमीटर एवं 19,940 लाख घनमीटर है। कावेरी नदी पर ग्रैंड एनिकट या कल्लानी एक बहुत पुरानी परियोजना है, जिसका जलाशय स्तर 59.22 मीटर है। सोमासिला से कावेरी नदी तक इसके पहुंचने तक सम्पर्क नहर की कुल लम्बाई 538 किलोमीटर है। सम्पर्क नहर समुद्रतल से 91.96 मीटर की ऊंचाई से निकलती है एवं गुरुत्वीय भार से बहते हुए समुद्रतल से 59.70 मीटर की ऊंचाई पर कावेरी नदी स्थित ग्रैंड एनिकट से मिलती है। सम्पर्क नहर को 616.38 क्यूसेक निकास क्षमता के साथ पूरे साल संचालित करने का प्रस्ताव है। पूरी सम्पर्क नहर की परत सीमेंट से युक्त होगी।

इस नदीजोड़ में भी कोई पर्यावरणीय समस्या नहीं होगी, क्योंकि मौजूदा सोमासिला, कंडालेरू एवं ग्रैंड एनिकट में कल्लानी जलाशय का उपयोग इस जोड़ में किया जाएगा। इस क्षेत्र की स्थिति अच्छी ढलान वाली होने के कारण जलजमाव की समस्या नहीं होगी।

कट्टालाई-वैगाई-गुंडार नदीजोड़


प्रस्तावित जोड़ में कावेरी नदी स्थित मौजूदा कट्टालाई सतह नियंत्रक से 250 किलोमीटर लम्बी गुरुत्वीय भार वाली सम्पर्क नहर द्वारा तमिलनाडु में 3.53 लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई के लिए 20,070 लाख घनमीटर इस्तेमाल करते हुए 22,520 लाख घनमीटर पानी स्थानांतरण का विचार है। यह नहर मार्ग में 1,090 लाख घनमीटर घरेलू एवं औद्योगिक इस्तेमाल हेतु पानी प्रदान करेगी एवं मार्ग में रिसाव से 1,360 लाख घनमीटर पानी की क्षति होगी।

मौजूदा कट्टालाई हेड नियंत्रक कावेरी नदी पर मेत्तुर बांध के डाउनस्ट्रीम में स्थित है। इसके शीर्ष की चौड़ाई 97.83 मीटर से 98.43 मीटर के बीच है एवं शटर का उच्चतम स्तर 98.54 मीटर है। सम्पर्क नहर के लिए हेडवर्क ढांचे की तरह उपयोग के लिए इस नियंत्रक को सुधार कर बराज बनाने का प्रस्ताव है। सिंचाई के लिए पानी को उठाने के लिए गुंडार नदी पर एक बराज बनाने का प्रस्ताव है। सम्पर्क नहर की कुल लम्बाई 250 किलोमीटर है। सम्पर्क नहर कट्टालाई के पास कावेरी नदी के दाहिने किनारे के हेड नियंत्रक से समुद्रतल से 100.75 मीटर ऊंचाई से निकलती है एवं समुद्रतल से 78.865 मीटर की ऊंचाई पर गुंडार नदी से मिलती है। घरेलू व औद्योगिक आपूर्ति एवं कृषि आवश्यकता की पूर्ति के लिए सम्पर्क नहर को पूरे साल भर संचालित करने का प्रस्ताव है। पूरी सम्पर्क नहर को सीमेंट से प्लास्टर की योजना है।

इस सम्पर्क नहर में भी कोई पर्यावरणीय मुद्दा नहीं है। सम्पर्क नहर के जलाभाव वाले क्षेत्र से नहर गुजरने के कारण जल-जमाव की उम्मीद नहीं है। यह उस क्षेत्र में भू-जल के पुनर्भरण में लाभकारी होगा।

पम्बा-अचनकोविल-वैप्पार नदीजोड़


एनडब्ल्यूडीए ने इस सम्पर्क नहर के लिए सम्भाव्यता अध्ययन पूरा कर लिया है। इस सम्पर्क नहर द्वारा केरल के पम्बा एवं अचनकोविल नदी घाटी में उपलब्ध जलाधिक्य को तमिलनाडु के सूखा प्रभावित तिरूनेलवेली, चिदंबरनर एवं कामाराजर में 91,400 हेक्टेयर जमीन की सिंचाई के लिए वैप्पार नदी घाटी में 6,340 लाख घनमीटर पानी स्थानांतरण का प्रस्ताव है। इसके अलावा परियोजना 508 मेगावाट बिजली उत्पादन करेगी एवं सूखे मौसम में पम्बा एवं अचनकोविल नदियों में प्रवाह को बढ़ाने एवं खारेपन को रोकने के लिए 1,500 लाख घनमीटर नियंत्रित पानी छोड़ेगी।

इस नदीजोड़ परियोजना में पम्बा काल अर पर 150 मीटर ऊंचा कंक्रीट का बांध, अचनकोविल काल अर पर 160 मीटर ऊंचा कंक्रीट का बांध एवं अचनकोविल नदीपर 35 मीटर ऊंचा कंक्रीट का बांध शामिल है। पुन्नामेडु जलाशय से अचनकोविल काल अर जलाशय में पानी स्थानांतरण के लिए पुन्नामेडु एवं अचनकोविल काल अर बांध आपस में 5 मीटर व्यास एवं 8 किलोमीटर लम्बी सुरंग द्वारा जुड़े होंगे। अचनकोविल नदी का पानी अचनकोविल काल अर जलाशय में डाला जाएगा। अचनकोविल काल अर जलाशय का पानी 8 मीटर व्यास-एवं 9 किलोमीटर लंबी सुरंग द्वारा पश्चिमी घाट के पार भेजा जाएगा। वैप्पार की एक उपनदी अलागार ओडाई तक पहुंचने में मुख्य नहर 50.68 किलामीटर लंबी होगी। अचनकोविल काल अर बांध के छोर में 500 मेगावाट की स्थापित क्षमता की उच्च मांग वाली पनबिजली परियोजनाएं स्थित होगी। कुल 8.37 मेगावाट की स्थापित क्षमता की 6 लघु पनबिजली परियोजनाएं स्थापित होंगी, जो कि पुन्नामेडु एवं अचनकोविल काल अर को जोड़े जाने वाले सुरंग के शीर्ष पर, अचनकोविल बांध के छोर पर एवं मुख्य नहर के प्रपात पर चार पनबिजली परियोजनाएं स्थापित होंगी। उच्च मांग वाली पनबिजली परियोजना में 100 मेगावाट की 5 इकाइयां होंगी। तीन इकाइयां परिवर्तनीय किस्म की होंगी। अचनकोविल काल अर जलाशय से 6 घंटे की उच्च मांग के लिए छोड़े जाने वाले 100 लाख घनमीटर पानी को अचनकोविल काल अर जलाशय में शेष समय में इस्तेमाल के लिए डाला जाएगा।

पुन्नामेडु जलाशय 440 हेक्टेयर जमीन को डुबोएगी, जो कि पूरा वनक्षेत्र है। इस डूब से कोई आबादी प्रभावित नहीं होगी। अचनकोविल काल अर बांध का डूब क्षेत्र 1,241 हेक्टेयर है, जिसमें 872 एकड़ प्राकृतिक वन एवं शेष सागौन वृक्षारोपित इलाका है। अचनकोविल बांध 323 हेक्टेयर जमीन को डुबोएगी, जिसमें से 304 हेक्टेयर प्राकृतिक व वृक्षारोपित वन एवं 19 हेक्टेयर कृषि भूमि है। क्षतिपूरक वनीकरण के लिए आवश्यक प्रावधान किये जाने हैं। सूखे मौसम में 1,500 लाख घनमीटर नियंत्रित पानी छोड़े जाने से नदी के प्रवाह में सुधार होगा एवं समुद्र के कारण होने वाला खारापन रुकेगा।

बेडती-वरदा नदीजोड़


इस नदीजोड़ प्रस्ताव के अन्तर्गत तुंगभद्र परियोजना के लाभ क्षेत्र में इस्तेमाल के लिए बेडती के 2,420 लाख घनमीटर जलाधिक्य को जलाभाव वाले तुंगभद्र उपनदी घाटी में स्थानांतरित करने का प्रस्ताव है। इस संपर्क नहर के अन्तर्गत कर्नाटक के रायचूर जिले के सूखा प्रभावित क्षेत्र के 60,200 हेक्टेयर जमीन को सिंचाई प्रदान करने का प्रस्ताव है। इसमें 1.8 मेगावाट की स्थापित क्षमता का दो बिजलीघर भी लगाने का प्रस्ताव है। पानी को 123.70 मीटर ऊपर उठाने के लिए तीन स्तरों में कुल 61.10 मेगावाट बिजली खर्च होने का अनुमान किया गया है।

इस परियोजना के हेडवर्क में मुख्यतः पट्टानडाहल्ला नदी पर पट्टानडाहल्ला बांध, सालमलाहल्ला नदी पर सालमलाहल्ला बांध एवं दोनों जलाशयों को जोड़ना शामिल है। पट्टानडाहल्ल बांध का प्रस्तावित जलाशय स्तर 512.75 मीटर एवं सालमलाहल्ला बांध का जलाशय स्तर 480.4 मीटर है। इन दोनों बांधों की सजीव एवं स्थिर भंडारण क्षमता क्रमशः 130 लाख घनमीटर व 50 लाख घनमीटर एवं 725 लाख घनमीटर व 75 लाख घनमीटर निर्धारित है। सम्पर्क नहर की प्रवाह व्यवस्था मुख्यतः दो हिस्सों में बंटी हुई है, जिसमें पट्टानडाहल्ला व सालमलाहल्ला जलाशयों को आपस में जोड़ना एवं नहर/सुरंग को सालमलाहल्ला जलाशय से वरदा नदी की उपनदी से जोड़ना शामिल है। पहले हिस्से को जोड़ने वाले चैनल की लम्बाई 8.5 किलामीटर होगी, जिसमें 2.2 किलोमीटर लंबी सुरंग शामिल है। दूसरे हिस्से को जोड़ने वाले चैनल की लम्बाई 14.83 किलोमीटर होगी, जिसमें 6.8 किलोमीटर लम्बी सुरंग शामिल है। सम्पर्क नहर प्रारंभ में 57.8 मीटर ऊपर उठाये जाने के बाद समुद्रतल से 520.3 मीटर की ऊंचाई से सालमलाहल्ला से निकलकर पुनः दो चरणों में 25.78 मीटर एवं 40.12 मीटर ऊपर उठकर समुद्रतल से 56.50 मीटर की ऊंचाई पर वरदा नदी की ओर जाने वाली धारा में मिलती है।

इस नदीजोड़ के अन्तर्गत उत्तरी कन्नड़ जिले के 1005 हेक्टेयर जमीन डूब मंे आयेगी, जिसमें 787 हेक्टेयर वनभूमि, 130 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि एवं 88 हेक्टेयर गैर कृषि इस्तेमाल वाली भूमि शामिल है। डूब में आने वाले जंगलों के बदले क्षतिपूरक वनीकरण का प्रावधान है। कोई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्मारक व पुरातत्वीय ढांचा इससे नहीं डूबेगा। प्रस्तावित दो बांधों के कारण 967 लोगों की आबादी का एक गांव डूबेगा।

नेत्रवती-हेमवती नदीजोड़


इस नदीजोड़ प्रस्ताव में नेत्रवती नदी घाटी से 1,880 लाख घनमीटर जलाधिक्य के जलाभाव वाली कावेरी नदी घाटी की हेमवती सिंचाई परियोजना के लाभ क्षेत्र के अन्तर्गत कर्नाटक के सूखा प्रभावित तुमकुर, हसन एवं मंडया जिले में 33,813 हेक्टेयर जमीन की सिंचाई हेतु स्थानांतरित करना प्रस्तावित है। इस परियोजना में दो चरणों में पानी को 81 मीटर ऊपर उठाने के लिए कुल 6 मेगावाट बिजली खपत होगी। सम्पर्क नहर की कुल लम्बाई 11 किलोमीटर होगी, जिसमें कुल 8.4 किलोमीटर लम्बाई की तीन सुरंग शामिल हैं।

यह परियोजना दो चरणों में बंटी होगी। पहले चरण के अन्तर्गत नेत्रवती नदी घाटी के यतिनहोल जलाशय के जलाधिक्य को हेमवती नदी में स्थानांतरित करने के लिए 19.50 मीटर ऊपर उठाया जाएगा। दूसरे चरण के अन्तर्गत नेत्रवती नदी घाटी के केरीहोल एवं होंगधल्लाद होल जलाशय का संयुक्त पानी कावेरी नदी घाटी के हेमवती नदी में स्थानांतरित करने के लिए 61.31 मीटर ऊपर उठाया जाएगा। यतिनहोल से हेमवती नदी का प्रवाह चैनल 3.54 किलोमीटर लम्बा होगा, जिसमें 3.04 किलोमीटर लंबी सुरंग शामिल है। केरी होल से होंगधल्लाद होल जलाशय तक आपस में जोड़ने वाली सुंरग 3.98 किलोमीटर लम्बी होगी। होंगधल्लाद होल से हेमवती नदी तक प्रवाह चैनल 3.3 किलोमीटर लम्बा होगा, जिसमें 1.375 किलोमीटर लम्बी सुरंग शामिल है।

यतिनहोल जलाशय से 90.0 मीटर के जलाशय स्तर पर हसन जिले के सकलेसपुर तालुक की 295 हेक्टेयर जमीन डूब में आयेगी, जिसमें 78 हेक्टेयर वनभूमि, 173 हेक्टेयर कृषि भूमि एवं 44 हेक्टेयर गैर कृषि इस्तेमाल वाली जमीन शामिल है। केरी होल जलाशय से 86.57 मीटर जलाशय स्तर पर 120 हेक्टेयर वनभूमि, 218 हेक्टेयर कृषि भूमि एवं 35 हेक्टेयर गैर कृषि इस्तेमाल की जाने वाली जमीन है। कोई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्मारक एवं पुरातत्वीय ढांचा डूब में नहीं आ रहा है। इस जलाशय से डूब में आने वाला क्षेत्र आबादी रहित है, इस डूब से कोई आबादी प्रभावित नहीं होगी।

दमणगंगा-पिंजाल नदीजोड़


इस नदीजोड़ द्वारा दमणगंगा नदी घाटी में भुगड़ एवं खरगीहिल जलाशय में उपलब्ध जलाधिक्य को वैतरणा नदी घाटी में पिंजाल नदी पर पिंजाल बांध में स्थानांतरित करने का प्रस्ताव है। यह मुम्बई महानगर की घरेलू एवं औद्योगिक मांग को पूरा करने के लिए 9,090 लाख घनमीटर पानी स्थानांतरित करेगी।

इस प्रस्ताव में तीन जलाशय भुगड़, खरगीहिल एवं पिंजाल बनाने का विचार है। सम्पर्क नहर की पूरी प्रवाह-व्यवस्था दो भागों में बंटी हुई है। पहले भाग में भुगड़ एवं खरगीहिल जलाशय को जोड़ने वाली 16.85 किलोमीटर लम्बी सुरंग होगी। दूसरे भाग में खरगीहिल जलाशय एवं पिंजाल जलाशय को जोड़ने वाली 25.70 किलोमीटर लम्बी सुरंग होगी। जबकि इस योजना का मुख्य उद्देश्य मुंबई महानगरीय क्षेत्र में अतिरिक्त पानी आपूर्ति करना है, इसके आगे पिंजाल जलाशय से मुम्बई महानगर में पानी स्थानांतरित करने की व्यवस्था मुम्बई नगर निगम एवं मुम्बई महानगरीय क्षेत्र विकास प्राधिकरण की योजना के अनुरूप तैयार होना है।

सम्पर्क प्रवाह नहर की प्रवाह-व्यवस्था में तीन जलाशयों को जोड़ने वाली सुरंगों भुगड़-खरगीहिल एवं खरगीहिल-पिंजाल को क्रमशः 16.85 किलोमीटर एवं 25.70 किलोमीटर की सुरंगों के माध्यम से स्थानांतरित करने का प्रस्ताव है। इस तरह प्रस्तावित सम्पर्क नहर के लिए कोई भूमि अधिग्रहण नहीं होगा। भुगड़ एवं खरगीहिल जलाशय से डूब में आने वाला क्षेत्र क्रमशः 1903 हेक्टेयर एवं 1558 हेक्टेयर होगा। पिंजाल जलाशय के मामले में डूब क्षेत्र 1,900 हेक्टेयर होगा, जिसमें 1,064 हेक्टेयर वनभूमि है।

पार्वती-कालीसिंध-चंबल नदीजोड़


इस नदीजोड़ के लिए दो विकल्पों का अध्ययन किया गया है। पहले विकल्प में 226 किलोमीटर लम्बी नहर (12.2 किलोमीटर लम्बी सुरंग सहित) द्वारा मार्ग में 2.18 लाख हेक्टेयर (मध्य प्रदेश 1.93 लाख हेक्टेयर एवं राजस्थान 0.25 लाख हेक्टेयर) की सिंचाई के लिए 6,040 लाख घनमीटर पानी स्थानांतरण का प्रस्ताव है, इसमें घरेलू एवं औद्योगिक उद्देश्य के लिए 130 लाख घनमीटर पानी शामिल है। दूसरे विकल्प में 243 किलोमीटर लम्बी नहर (21.8 किलामीटर लम्बी सुरंग सहित) द्वारा मार्ग में मध्य प्रदेश (1.72 लाख हेक्टेयर) एवं राजस्थान (0.43 लाख हेक्टेयर) की 2.15 लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई के लिए 5,970 लाख घनमीटर पानी स्थानांतरण का प्रस्ताव है, इसमें घरेलू एवं औद्योगिक उद्देश्य के लिए 140 लाख घनमीटर पानी शामिल है। यह सम्पर्क नहर ऊपरी चम्बल नदी घाटी में इस्तेमाल के लिए भी 6,760 लाख घनमीटर पानी प्रदान करेगी। पहले एवं दूसरे विकल्प से मार्ग में रिसाव से होने वाली क्षति क्रमशः 900 लाख घनमीटर एवं 970 लाख घनमीटर होगा। पहला विकल्प गांधीसागर में समाप्त होगा जबकि दूसरा राणाप्रतापसागर में समाप्त होगा। पहले विकल्प में पानी को 47.5 मीटर ऊपर उठाने के लिए 408 मेगावाट बिजली की आवश्यकता होगी, जबकि दूसरे में वह गुरुत्वीय भार से प्रवाहित होगा।

नदी जोड़ परियोजनाइस नदीजोड़ में पार्वती एवं कालीसिंध के जलाधिक्य को चम्बल नदी पर बने गांधीसागर बांध / राणा प्रताप सागर में स्थानांतरित करने का विचार है। इस परियोजना के अन्तर्गत पार्वती नदी पर पाटनपुर बांध, नेवज नदी पर मोहनपुरा बांध एवं कालीसिंध नदी पर कुंडलिया बांध बनाकर तीन जलाशय बनाने का विचार है। इस नदीजोड़ प्रस्ताव में दो विकल्पों पर अध्ययन किया गया है, पहला गांधीसागर को जोड़ना एवं दूसरा राणाप्रतापसागर को जोड़ना। पाटनपुर बांध से गांधीसागर बांध तक सम्पर्क नहर की कुल लम्बाई 226.2 किलोमीटर होगी, जिसमें 12.2 किलोमीटर लम्बी सुरंग एवं 20 किलोमीटर तक ऊपर 47.5 मीटर पानी उठाना शामिल है।

पाटनपुर बांध से राणाप्रताप सागर बांध तक सम्पर्क नहर कुल 242.8 किलोमीटर लम्बी होगी, जिसमें गुरुत्वीय भार से बहने वाली 21.8 किलोमीटर सुरंग शामिल है।

इस परियोजना में पार्वती नदी पर पाटनपुर बांध, नेवज नदी पर मोहनपुरा बांध एवं कालीसिंध नदी पर कुंडलिया बांध के निर्माण से कुल 17,918 हेक्टेयर डूब से प्रभावित होगी, जिसमें 628 हेक्टेयर वनभूमि शामिल है। इससे 54 गांवों के 18,310 लोग डूब से प्रभावित होंगे।

पार-तापी-नर्मदा नदीजोड़


एनडब्ल्यूडीए ने इस नदीजोड़ परियोजना के लिए सम्भाव्यता अध्ययन पूरा कर लिया है। इस सम्पर्क नहर के माध्यम से पार एवं तापी नदियों के बीच उपलब्ध जलाधिक्य को उत्तरी गुजरात के जलाभाव वाले क्षेत्र में स्थानांतरित करने का प्रस्ताव है। यह योजना 401 किलोमीटर लम्बी सम्पर्क नहर द्वारा गुरुत्वीयभार से 13,500 लाख घनमीटर पानी स्थानांतरित करेगी। सम्पर्क नहर 1,900 लाख घनमीटर पानी रिसाव से क्षति के बाद मार्ग में 4,600 लाख घनमीटर पानी से गुजरात की 1.63 लाख हेक्टेयर ज़मीन को सिंचेगी। इसके अलावा यह गुजरात के सौराष्ट्र एवं कच्छ के इलाकों में 7,000 लाख घनमीटर पानी आपूर्ति करेगी। इसके अलावा इसमें 32.5 मेगावाट बिजली उत्पादन का भी प्रावधान है।

परियोजना पश्चिमी तटीय मैदानी क्षेत्र के अन्तर्गत आती है। परियोजना क्षेत्र के कुछ हिस्से प्रायद्वीपीय पठार एवं केन्द्रीय पहाड़ी के अन्तर्गत आते हैं। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य पार, औरंगा, अंबिका, पूर्णा एवं तापी नदी घाटी के जलाधिक्य को मार्ग में सिंचाई प्रदान करते हुए नर्मदा नहर के लाभ क्षेत्र (मियागम एवं वड़ोदरा शाखाएं) में स्थानांतरण का प्रस्ताव है ताकि इस स्थानांतरण के कारण सरदार सरोवर परियोजना में बचे पानी को गुजरात के कच्छ एवं सौराष्ट्र के जलाभाव वाले उत्तरी क्षेत्र के लाभ के लिए और आगे स्थानांतरित किया जा सके। इस सम्पर्क परियोजना में 7 जलाशय झेरी, मोहनकावचाली एवं पाइखेड पार नदी पर, चश्मांडवा औरंगा नदी पर चिक्कार एवं दाबदार, अंबिका नदी पर एवं केलवान पूर्णा नदी पर प्रस्तावित हैं एवं इन सबको जोड़ने के लिए 401 किलोमीटर लम्बी नहर प्रस्तावित है। इस परियोजना में झेरी, पाइखेड, चश्मांडवा एवं चिक्कार बांघ के निचले हिस्से पर बिजली घर प्रस्तावित है। सम्पर्क नहर की कुल लम्बाई दो भागों में बंटी हुई है, पहली पार-तापी (177 किलोमीटर लम्बी जिसमें 5.5 किलोमीटर सुरंग शामिल है) एवं दूसरी तापी-नर्मदा (224 किलोमीटर)। पार से तापी को जोड़ने वाली सम्पर्क नहर मोहनकावचाली जलाशय को पाइखेड जलाशय से जोड़ने वाली सुरंग से प्रारंभ होती है। खुली चैनल पाइखेड बराज से प्रारंभ होकर उकाई जलाशय में गिरती है। तापी-नर्मदा सम्पर्क उकाई जलाशय से प्रारंभ होकर नर्मदा नदी को पार करते हुए मियागम शाखा नहर को जोड़ते हुए नर्मदा मुख्य नहर की बड़ौदा शाखा में गिरती है। इस सम्पर्क नहर के अन्तर्गत कुल लाभ क्षेत्र 3,56,843 हेक्टेयर सिंचाई का दावा किया गया है, जिसमें मार्ग में पार व तापी के बीच 17,411 हेक्टेयर, तापी एवं नर्मदा के बीच 23,940 हेक्टेयर एवं शेष 315,492 हेक्टेयर निर्माणाधीन सरदार सरोवर परियोजना द्वारा नर्मदा के लाभ क्षेत्र में प्रस्तावित है। तापी के दक्षिणी एवं पार के उत्तरी क्षेत्र के बीच 6 नदी घाटियाँ पार, औरंगा, अंबिका, पूर्णा, मिंढोला एवं तापी हैं। वास्तव में मिंढोला नदी घाटी प्रस्तावित पार-तापी नदीजोड़ के बीच में पड़ता है। चार नदी घाटियाँ पार, औरंगा, अंबिका, पूर्णा, मिंढोला एवं तापी की सालाना सकल जल उत्पत्ति 52,510 लाख घनमीटर है एवं विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद सतही जल उपलब्धता 30,200 लाख घनमीटर है (75 प्रतिशत निर्भरता पर)।

इस सम्पर्क में सात प्रस्तावित जलाशयों (झेरी, मोहनकावचाली, पाइखेड, चश्मांडवा, चिक्कार, दाबदार एवं केलवान) से 7,559 हेक्टेयर जमीन डूब में आयेगी, जिसमें 3,572 हेक्टेयर वनभूमि है। इन जलाशयों से 75 गांवों के 14,832 लोग एवं 9,029 पशु डूब से प्रभावित होंगे। डूब से प्रभावित होने वाले लोगों में 75 प्रतिशत आबादी आदिवासियों की होगी। प्रभावित होने वाले लोगों के लिए आकर्षक पैकेज के माध्यम से पुनर्वास की व्यवस्था की जाएगी। क्षतिपूरक वनीकरण के लिए भी व्यवस्था की जाएगी।

हिमालयी भाग


एनडब्ल्यूडीए ने हिमालयी भाग के 14 नदीजोड़ों के लिए भी पूर्व सम्भाव्यता अध्ययन पूरा कर लिया है। चूंकि एनडब्ल्यूडीए ने हिमालयी भाग के नदीजोड़ों के बारे में कोई विवरण उपलब्ध नहीं कराया है, इसलिए इस भाग में नदीजोड़ों के बारे में राज्य सभा एवं लोकसभा में समय-समय पर पूछे गये प्रश्नों के जवाब से उपलब्ध सामग्री को यहा ंउपलब्ध कराने का प्रयास किया जा रहा है।

शारदा यमुना राजस्थान जोड़


एनडब्ल्यूडीए ने शारदा यमुना राजस्थान जोड़ के लिए पूर्व सम्भाव्यता अध्ययन पूरा कर लिया है। एनडब्ल्यूडीए की पूर्व सम्भाव्यता रिपोर्ट के अनुसार यमुना-राजस्थान जोड़ से राजस्थान को 2.4 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई का लाभ मिलने का अनुमान लगाया गया है। इस जोड़ की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट की तैयारी के लिए सर्वेक्षण एवं जांच का कार्य एनडब्ल्यूडीए द्वारा प्रारंभ किया जा चुका है, जिसे 2007 तक पूरा करने का कार्यक्रम है।

राजस्थान के लिए गंगा का पानी: राजस्थान सरकार ने मानसून में 100 दिन के लिए 1,133 क्यूसेक गंगा जल हरिद्वार होते हुए एवं 566 क्यूसेक गंगा जल बिजनौर होते हुए राजस्थान में इस्तेमाल के लिए स्थानांतरित करने की सम्भावना के लिए किये गये अध्ययन में केन्द्रीय जल आयोग ने उजागर किया कि गंगा से राजस्थान स्थानांतरित करने के लिए इन दो स्थानों के समीप साल भर में 20-30 दिन से ज्यादा पर्याप्त पानी उपलब्ध नहीं होता।

ब्रह्मपुत्र-गंगा नदीजोड़


सूखे मौसम में ब्रह्मपुत्र के पानी को गंगा में स्थानांतरित करके गंगा के प्रवाह में वृद्धि की योजना के प्रथम चरण के अन्तर्गत, केंद्रीय जल आयोग ने 1982 में गुरुत्वीय प्रवाह से बांग्लादेश होते हुए जोगीघोपा बराज एवं ब्रह्मपुत्र-गंगा जोड़ नहर परियोजना पर एक सम्भाव्यता अध्ययन तैयार किया था। दूसरे चरण के प्रस्ताव में ब्रह्मपुत्र की प्रमुख उत्तरी सहायक नदियों दिहांग व सुबनसिरी पर जल संग्रहण के लिए दो बांध बनाने का अनुमान लगाया गया। वह प्रस्ताव भारत-बांग्लादेश संयुक्त नदी आयोग के समक्ष में रखा गया, जबकि बांग्लादेश गणराज्य की सरकार द्वारा इस पर आशंका व्यक्त करने के बाद, प्रस्ताव को आगे नहीं बढ़ाया गया।

मानस-शंखोश-तीस्ता-गंगा नदीजोड़


ब्रह्मपुत्र की प्रमुख सहायक नदी शंखोश को भूटान में मोचू नाम से जाना जाता है, जो कि पोचू एवं मोचू के मिलने से बनी है। शंखोश नदी घाटी भूटान को पूर्वी एवं पश्चिमी क्षेत्रों में बांटती है। यह भूटान में 214 किलोमीटर एवं भारत में 107 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए धूबरी के पास ब्रह्मपुत्र नदी से मिलती है। मानस-शंखोश-तीस्ता-गंगा नदीजोड़ परियोजना शंखोश बहुउद्देशीय परियोजना का ही नया स्वरूप है। इस परियोजना के लिए 265 मीटर ऊंचा कंक्रीट का मुख्य बांध, 62.5 मीटर ऊंचा लिफ्ट बांध एवं 141.70 किलोमीटर लम्बी नहर प्रस्तावित है, जो कि चार लाख हेक्टेयर जमीन को सींचेगी। मुख्य बांध भारत एवं भूटान की सीमा से 13 किलोमीटर की दूरी पर करबारी गांव के पास प्रस्तावित है। 390 मीटर जलाशय स्तर पर मुख्य बांध की सकल भंडारण क्षमता 63,250 लाख घनमीटर एवं सजीव भंडारण क्षमता 44,560 लाख घनमीटर प्रस्तावित है। जलाशय नदी के तट से 52 किलोमीटर के क्षेत्र में फैली होगी एवं अधिकतम जलाशय स्तर पर यह 6,178 हेक्टेयर जमीन को डुबोएगी। परियोजना में प्रस्तावित लिफ्ट बांध से 821 हेक्टेयर एवं नहर के प्रवाह क्षेत्र में 2,600 हेक्टेयर जमीन डूब जाएगी। परियोजना में 4,000 मेगावाट की स्थापित क्षमता की पनबिजली परियोजना भी प्रस्तावित है।

एनडब्ल्यूडीए द्वारा किए गए पूर्व सम्भाव्यता अध्ययन में, राष्ट्रीय परिदृश्य योजना के अन्तर्गत नदीजोड़ योजना में मानस-शंखोश-तीस्ता-गंगा (एम एस टी जी), सुवर्णा रेखा-महानदी, गंगा-दामोदर-सुवर्ण रेखा एवं फरक्का-सुन्दरवन जोड़ से पश्चिम बंगाल में 11.1 लाख हेक्टेयर क्षेत्र सिंचित होने का अनुमान लगाया गया है। परियोजना की तकनीकी आर्थिकी मूल्यांकन के लिए क्षेत्र सर्वेक्षण एवं परीक्षण का कार्य प्रगति पर है, जबकि मानस बाघ रिजर्व के अन्तर्गत पड़ने वाले मानस से शंखोश जोड़ नहर के 114 किलोमीटर एवं रायदक रिजर्व वन, बक्सा बाघ रिजर्व एवं गोबुरबर्सा रिजर्व वन के अन्तर्गत पड़ने वाले शंखोश से तीस्ता नदीजोड़ के 24 किलोमीटर के हिस्से में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा अनुमति न मिलने के कारण सर्वेक्षण एवं परीक्षण का कार्य प्रारम्भ नहीं हो सका है। पूर्व सम्भाव्यता रिपोर्ट के अनुसार, नदीजोड़ परियोजना के लिए 1994 1994-95 के कीमत स्तर पर अनुमानित प्रारम्भिक लागत 116.70 अरब रुपये हैं, जिसमें मुख्य कार्य नहर व्यवस्था, नहर बिजली घर एवं संचालन व्यय शामिल है। एनडब्ल्यूडीए ने मानस व शंखोश नदियों, ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियों एवं तीस्ता के बीच पड़ने वाली नदियों के अतिरेक प्रवाह को फरक्का के अपस्ट्रीम में गंगा नदी में स्थानांतरित करने के लिए एमएसटीजी जोड़ की पूर्व सम्भाव्यता रिपोर्ट तैयार कर ली है।

कोलकाता पोर्ट में पानी की कमी को सुधारने के लिए इस अतिरेक पानी के भाग को गंगा नदी में बढ़ाने के लिए प्रस्तावित किया गया है। वर्तमान में उपरोक्त जोड़ परियोजना सम्भाव्यता रिपोर्ट तैयार करने के लिए सर्वेक्षण एवं जांच के स्तर पर है, जिसके 2003 तक पूरा हो जाने का कार्यक्रम है। एमएसटीजी नदीजोड़ के लिए पूर्व सम्भाव्यता रिपोर्ट रास्ते में 6.5 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता प्रदान करती है।

नहर का बहाव क्षेत्र ऊष्ण कटिबंधी क्षेत्र में पड़ता है। सम्पर्क नहर के क्षेत्र में औसत सालाना वर्षा 4100 मिलीमीटर होती है। सम्पर्क नहर तिती एवं नीलपारा रिजर्व वन से भी होकर गुजरेगी, जिन्हें जलडापरा अभयारण्य के अन्तर्गत शामिल कर लिया गया है। जलडापरा अभयारण्य गैंडे के निवास के तौर पर प्रसिद्ध है। तारसा एवं शंखोश नदियों के बीच के क्षेत्र को पूर्वी दोआर के नाम से जाना जाता है। अति उत्कृष्ट 886 वर्ग किलोमीटर का यह वन क्षेत्र वन्यजीवों के लिए एक अच्छा आश्रय है। नहर के मार्ग में आने वाले रिजर्व वन में प्रमुख हैं - बक्सा बाघ रिजर्व, जलडापरा अभयारण्य, धुमची, मोराघाट, डायना, अपर तांडु, अपलचन्द आदि। इसके अलावा नहर भूटान के 173.87 हेक्टेयर मिश्रित घने जंगलों से होकर गुजरेगी। बक्सा बाघ रिजर्व क्षेत्र में 290 हेक्टेयर जमीन अधिगृहीत की जानी है। बक्सा बाघ रिजर्व क्षेत्र के अन्तर्गत रायडेक एवं गाबुर बसरा रिजर्व वन भी आते हैं। नहरों के लिए इन आरक्षित वनों से कुल 1245.16 हेक्टेयर जमीन अधिगृहीत की जानी है।

भूटान से होकर गुजरने वाली नहर की वनभूमि भारत के मुकाबले जयादा बेहतर मानी जाती है। नहर के मार्ग में 9 गांवों से 21,503 लोगों की जनसंख्या प्रभावित होगी। जिसमें से 8,790 लोग अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति से सम्बन्धित हैं। नहर के लिए अधिगृहीत की जाने वाली 2,834 हेक्टेयर जमीन में से 967.06 हेक्टेयर अति उत्कृष्ट चाय बागान हैं। इसके अलावा 1,319.03 हेक्टेयर वनभूमि, 384.6 हेक्टेयर कृषिभूमि एवं 163.31 हेक्टेयर अन्यभूमि हैं।

नदियों को जोड़ने की ऐतिहासिक प्रगति -


अगस्त 1980: जल संसाधन मंत्रालय द्वारा जल विकास के लिए एक राष्ट्रीय परिदृश्य तैयार किया गया।
जुलाई 1982: राष्ट्रीय परिदृश्य के संदर्भ में विस्तृत अध्ययन के लिए राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी का गठन
सितंबर 1999: एकीकृत जल संसाधन विकास योजना हेतु गठित राष्ट्रीय आयोग की रिपोर्ट प्रस्तुत: नदीजोड़ योजना के बारे में विशेष सलाह
15 अगस्त 2002: राष्ट्रपति ने स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संबोधन में भारत की नदियों को जोड़ने की आवश्यकता बताई
31 अक्टूबर 2002: नदीजोड़ के बारे में सुझाव देते हुए उच्चतम न्यायालय का आदेश
16 दिसंबर 2002: केन्द्र सरकार द्वारा श्री सुरेश प्रभु की अध्यक्षता में कार्यदल का गठन
7 दिसंबर 2002: अवकाश प्राप्त मुख्य न्यायाधीश श्री बीएन कृपाल ने कहा कि नदीजोड के बारे में उच्चतम न्यायालय का अवलोकन मात्र एक सलाह
31 मार्च 2004: नदीजोड़ योजना के कार्यदल के अध्यक्ष श्री सुरेश प्रभु ने अपने पद से इस्तीफा दिया।

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Post By: Shivendra
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