भारतीय बिजली परियोजनाओं पर ग्रहण

ब्रह्मपुत्र बिजली परियोजना
ब्रह्मपुत्र बिजली परियोजना

ब्रह्मपुत्र नदी की धारा को मोड़ने की चीन की योजना से अरुणाचल प्रदेश की प्रस्तावित 9500 मेगावाट की बिजली परियोजनाएं प्रभावित हो सकती हैं। चीन अपनी पनबिजली परियोजना के लिए ब्रह्मपुत्र नदी के पानी का रुख बदल कर तिब्बत में बांध बनाना चाहता है। हालांकि चीन ने कहा है कि इस मसले पर किसी भी तरह की कार्रवाई के दौरान वह भारत के हितों का पूरा ख्याल रखेगा। सूत्रों के मुताबिक अरुणाचल प्रदेश ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपरी हिस्से में 9500 मेगावाट की पनबिजली परियोजनाएं स्थापित करना चाहता है। इस मकसद से अरुणाचल प्रदेश की सरकार ने नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) को प्री फिजीबिलिटी रिपोर्ट (पीएफआर) भी तैयार करने के लिए कहा था। एनटीपीसी इस परियोजना की पीएफआर प्रदेश सरकार को सौंप चुकी है।

जानकारों का कहना है कि तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर अगर चीन कोई बांध बनाता है तो इससे 9500 मेगावाट की प्रस्तावित पनबिजली परियोजना पर निश्चित रूप से फर्क पड़ेगा। उनका कहना है कि अगर चीन ब्रह्मपुत्र नदी से सिर्फ बिजली बनाने का काम करता है तो इससे अरुणाचल प्रदेश की परियोजनाओं पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन अभी तक चीन की मंशा का खुलासा नहीं हो पा रहा है कि वह ब्रह्मपुत्र नदी पर क्या बनाना चाहता है। चीन के साथ पानी को लेकर कोई समझौता नहीं होने के कारण वह अपनी कार्रवाई को उजागर करने के लिए बाध्य नहीं है। उपग्रह की तस्वीर से भी यह साफ नहीं हो सकता है कि चीन वहां क्या बना रहा है या बनाने जा रहा है।

दूसरी तरफ जिंदल पावर के डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर सुशील कुमार मारु ने कहा कि चीन की कार्रवाई से अरुणाचल प्रदेश में उनकी किसी भी पनबिजली परियोजना पर फर्क नहीं पड़ेगा। उन्होंने बताया कि 6000 मेगावाट की उनकी तीन परियोजनाएं अरुणाचल प्रदेश से ही आरंभ होने वाली नदी पर स्थित है।इस बीच चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि सीमापार जल संसाधनों के विकास पर उसका रवैया जिम्मेदाराना रहा है। प्रवक्ता के मुताबिक यारलुंग सांगपो नदी (चीन में ब्रह्मपुत्र को इसी नाम से जाना जाता है) पर जो पनबिजली परियोजना बनाई जा रही है वह बहुत बड़ी नहीं है और इससे नदी के प्रवाह पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। गौरतलब है कि चीन यहां 510 मेगावाट का पावर प्रोजेक्ट लगा रहा है। पिछले साल चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ ने अपनी भारत यात्रा के दौरान कहा था कि नदी के प्रवाह को नहीं बदला जा रहा है। दोनों देशों के बीच इस मसले पर विशेषज्ञ स्तरीय चार बार वार्ता हो चुकी है।
 

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