भारत में घटते संसाधन

द मिलेनियम प्रोजेक्ट की रिपोर्ट में भविष्य की चुनौतियों के लिहाज से भारत की स्थिति को विकासशील देशों में सबसे गंभीर माना जा रहा है। द मिलेनियम प्रोजेक्ट की रिपोर्ट में जिन समस्याओं को भारत के भविष्य के लिए सबसे गंभीर चुनौती माना गया है उनमें बढ़ती आबादी के कारण संसाधनों की कमी का संकट (जिसमें जल संकट प्रमुख है), आंतरिक अशांति, गरीबी-अमीरी की बढ़ती खाई का संकट और भ्रष्टाचार प्रमुख हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि संसाधन की कमी और आर्थिक असमानता सामाजिक अशांति की सबसे बड़ी वजह होती है। भारत में बढ़ती आबादी और सामाजिक असमानता के कारण संसाधनों और सुविधाओं का समुचित वितरण एक जटिल प्रश्न है, जिसे सुलझाने में प्रशासन तंत्र विफल है अगर इन समस्याओं को तत्परता से दूर नहीं किया गया, तो आने वाले समय में नक्सलवाद जैसी अतिवादी प्रवृत्तियां खतरनाक ढंग से बढ़ सकती हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सन् 2020 में भारत की आबादी लगभग एक अरब 33 करोड़ और 2040 में एक अरब 57 करोड़ हो जायेगी। इतनी बड़ी आबादी के कारण संसाधनों पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा और इसके चलते कई तरह की सामाजिक, आर्थिक विसंगतियां पैदा होंगी। 'गिनी कोफिसेंट इंडेक्स' (आर्थिक असमानता का सूचक) लगातार बढ़ रहा है, जो भारत को आगे चलकर गंभीर अस्थिरता में ढकेल सकता है। 'स्टेट ऑफ द फ्यूचर रिपोर्ट' (2011) में चुनौतियों का क्षेत्रवार विश्लेषण भी किया गया है। भारत और चीन को एशिया-ओसनिया समूह में रखा गया है। चूंकि भारत और चीन आबादी, क्षेत्रफल, जैव-विविधता और प्राकृतिक संसाधनों के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है, इसलिए रिपोर्ट में दोनों देशों के ऊपर मंडरा रही चुनौतियों का उल्लेख भी प्रमुखता से किया गया है। समस्या की गंभीरता को निर्धारित करने के लिए रिपोर्ट में 'सोफी इंडेक्स' नामक सूचकांक का सहारा लिया गया है। सोफी इंडेक्स के पैमाने पर भारत की स्थिति चीन, ब्राजील, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और मिस्र जैसे विकासशील देशों में सबसे चिंतनीय है।

सोफी इंडेक्स में भारत को 1.4, जबकि चीन को 1.3 और ब्राजील को 1.09 अंक दिये गये हैं। सन् 2020 तक भारत, चीन और ब्राजील कमोबेश तमाम 15 वैश्विक चुनौतियों से दो-चार होंगे। हालांकि इन दिनों भ्रष्टाचार का मुद्दा देश में छाया हुआ है, लेकिन इस विषय पर इस रिपोर्ट में विस्तार से चर्चा नहीं है। हां, भ्रष्टाचार की बढ़ती प्रवृत्ति को भारत के बेहतर भविष्य के लिए खतरनाक माना गया है। बढ़ती जनसंख्या और जलवायु परिवर्तन के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभावों को भी चिंताजनक बताया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पेयजल के अलावा सिंचाई जल की उपलब्धता लगातार कम हो रही है। भारत की जनसंख्या दुनिया की कुल आबादी की 17 प्रतिशत है, जबकि विश्व के कुल पेयजल का पांच फीसद ही भारत में है। गंगा-यमुना जैसी बड़ी नदियों के प्रदूषित होने के कारण अगले दशकों में भारत को गंभीर पेयजल संकट का सामना करना पड़ेगा, साथ ही सिंचाई जल की कमी के कारण खेती पर बुरा असर पड़ेगा। रिपोर्ट के अनुसार, पेय जल संकट के कारण चीन में पलायन शुरू हो चुका है और निकट भविष्य में भारत के लोग भी पानी की अनुपलब्धता के कारण आंतरिक पलायन के लिए बाध्य होंगे।

देश में कृषि भूमि पहले से ही कम है (विश्व की कुल कृषि भूमि का महज तीन प्रतिशत), जो प्रदूषण, पारिस्थितिकी संकट, जल संकट, औद्योगिक और आवासीय जरूरतों के कारण आगे चलकर और कम हो सकती है। कृषि भूमि को संरक्षित रखना भारत के लिए चुनौती है। ऊर्जा कमी की समस्या को भारत के लिए गंभीर चुनौतियों में से एक माना गया है। सरकार ने 2017 तक 17 हजार मेगावाट अतिरिक्त ऊर्जा उत्पादन के लिए भारी-भरकम योजना बनायी है। सरकार 2030 तक परमाणु ऊर्जा के प्रतिशत को 13 तक पहुंचाना चाहती है। इसके बावजूद वैकल्पिक ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की प्रगति असंतोषजनक बतायी गयी है। भारत और चीन की स्वास्थ्य से संबंधित चुनौतियों के प्रति रिपोर्ट में चिंता जाहिर की गयी है। कहा गया है कि भारत कुपोषण से लेकर संक्रमणकारी रोगों के मोर्चे पर अब भी काफी पीछे है। प्रति व्यक्ति डॉक्टर उपलब्धता मानक से काफी कम है। शिक्षक और लैंगिक समानता के मोर्चे पर भी भारत की स्थिति असंतोषजनक बतायी गयी है।
 

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