कवि घाघ की कहावतों में छिपा है अलनीनो का सच
मौसम वैज्ञानिक भले ही अब अलनीनों को लेकर हल्ला मचाये हुये हैं। मौसम वैज्ञानिकों का दावा है कि अलनीनो के कारण किसानों पर अभी और मार पड़ेगी, क्योंकि प्रशांत महासागर पर बनने वाले अलनीनो के कारण आने वाली खरीफ की फसल पर भी असर पड़ेगा। इस अलनीनो के कारण बरसात के मौसम में मानसून ही नहीं आयेगा और सूखा पड़ेगा। जबकि इस सच को कवि घाघ ने 450 साल पहले अपनी कहावतों में ही लिख दिया था। घाघ ने लिखा है कि एक बून्द चैत में परे, सहस बून्द सावन की हरे। इसके अलावा उन्होंने लिखा है कि माघ में गर्मी जेठ में जाड़ तो कहे घाघ हम सब होवें उजाड़। इसका मतलब है कि चैत (मार्च) में एक बून्द गिर जाये तो सावन में पानी नहीं गिरेगा और दूसरी कहावत में घाघ कहते हैं कि अगर जेठ (अप्रैल के और मई का शुभारम्भ) में जाड़ा सा रहे तो फसलें उजड़ जायेंगी।
रवि की फसल में बर्बादी का मंजर देख चुके किसानों की मुश्किलें कम होती नहीं दिखाई पड़ रही है, जिस तरह 450 साल पुरानी घाघ की कविताएँ इस बार फिर खरीफ की फसल पर भी संकट दिखा रही है। वहीं अब मौसम वैज्ञानिकों ने भी दावा कर दिया है कि प्रशांत महासागर पर इस बार प्रबल अलनीनो बन रहा है, जो कि बरसात के समय मानसून नहीं बनने देगा और सूखे के आसार होने लगे हैं। मौसम वैज्ञानिकों का यह दावा भले ही अभी की हाईटेक सिस्टम के चलते हुये हो मगर घाघ ऐसे कवि रहे, जिन्होंने 450 साल पहले ही मौसम कि इन गतिविधियों को अपनी लोकोक्तियों में लिख दिया है। जिसे अधिकतर किसान मानते हैं।
यह लोकोक्तियाँ इतना प्रचलित है कि बुन्देलखण्ड से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान इन्हीं लोकोक्तियों के सहारे आगामी मौसम का हाल जान लेते हैं। घाघ ने लिखा है कि तपै मृग शिरा जोय तो बरखा पूरन होय.. अर्थात बैशाख (अप्रैल) जेठ (मई) में अगर तपन और लू चले तो समझो बरसात पूरी होगी। वहीं मौसम और खेती को लेकर घाघ की कई कहावतें प्रचलित हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश और बुन्देखण्ड के कई किसान आज भी घाघ की कहावतों के अनुरूप ही फसलें करते हैं।
प्रशान्त महासागर की सतह का तापमान अधिक होने पर असमान्य वाष्पीकरण हो जाता है। इस कारण मानसून पश्चिमी भारत से छिटक जाता है और सूखे के हालत पैदा हो जाते हैं। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि सूखा पड़ेगा यह अलनीनो पर निर्भर करता है कि अलनीनो कितना सख्त बन रहा है। 50 फीसदी अलनीनो पर सूखा की स्थिति टल भी जाती है। मगर इस बार अलनीनो की स्थिति 60 फीसद तक पहुँच रही है।
घाघ कवि थे, जिनके विषय में काफी शोध हुआ सबके अलग-अलग तर्क हैं। इनके जन्म को लेकर भी कई तर्क हैं। मगर माना जाता है कि इनका जन्म सम्राट अकबर के कार्यकाल के दौरान हुआ था। घाघ पर भले ही कई लोग शोध कर रहे हो मगर घाघ की लोकोक्तियाँ ग्रामीण अंचल में बच्चे-बच्चे की जुबां पर रहती है।
मौसम वैज्ञानिक भले ही अब अलनीनों को लेकर हल्ला मचाये हुये हैं। मौसम वैज्ञानिकों का दावा है कि अलनीनो के कारण किसानों पर अभी और मार पड़ेगी, क्योंकि प्रशांत महासागर पर बनने वाले अलनीनो के कारण आने वाली खरीफ की फसल पर भी असर पड़ेगा। इस अलनीनो के कारण बरसात के मौसम में मानसून ही नहीं आयेगा और सूखा पड़ेगा। जबकि इस सच को कवि घाघ ने 450 साल पहले अपनी कहावतों में ही लिख दिया था। घाघ ने लिखा है कि एक बून्द चैत में परे, सहस बून्द सावन की हरे। इसके अलावा उन्होंने लिखा है कि माघ में गर्मी जेठ में जाड़ तो कहे घाघ हम सब होवें उजाड़। इसका मतलब है कि चैत (मार्च) में एक बून्द गिर जाये तो सावन में पानी नहीं गिरेगा और दूसरी कहावत में घाघ कहते हैं कि अगर जेठ (अप्रैल के और मई का शुभारम्भ) में जाड़ा सा रहे तो फसलें उजड़ जायेंगी।
रवि की फसल में बर्बादी का मंजर देख चुके किसानों की मुश्किलें कम होती नहीं दिखाई पड़ रही है, जिस तरह 450 साल पुरानी घाघ की कविताएँ इस बार फिर खरीफ की फसल पर भी संकट दिखा रही है। वहीं अब मौसम वैज्ञानिकों ने भी दावा कर दिया है कि प्रशांत महासागर पर इस बार प्रबल अलनीनो बन रहा है, जो कि बरसात के समय मानसून नहीं बनने देगा और सूखे के आसार होने लगे हैं। मौसम वैज्ञानिकों का यह दावा भले ही अभी की हाईटेक सिस्टम के चलते हुये हो मगर घाघ ऐसे कवि रहे, जिन्होंने 450 साल पहले ही मौसम कि इन गतिविधियों को अपनी लोकोक्तियों में लिख दिया है। जिसे अधिकतर किसान मानते हैं।
यह लोकोक्तियाँ इतना प्रचलित है कि बुन्देलखण्ड से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान इन्हीं लोकोक्तियों के सहारे आगामी मौसम का हाल जान लेते हैं। घाघ ने लिखा है कि तपै मृग शिरा जोय तो बरखा पूरन होय.. अर्थात बैशाख (अप्रैल) जेठ (मई) में अगर तपन और लू चले तो समझो बरसात पूरी होगी। वहीं मौसम और खेती को लेकर घाघ की कई कहावतें प्रचलित हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश और बुन्देखण्ड के कई किसान आज भी घाघ की कहावतों के अनुरूप ही फसलें करते हैं।
क्या है अलनीनो
प्रशान्त महासागर की सतह का तापमान अधिक होने पर असमान्य वाष्पीकरण हो जाता है। इस कारण मानसून पश्चिमी भारत से छिटक जाता है और सूखे के हालत पैदा हो जाते हैं। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि सूखा पड़ेगा यह अलनीनो पर निर्भर करता है कि अलनीनो कितना सख्त बन रहा है। 50 फीसदी अलनीनो पर सूखा की स्थिति टल भी जाती है। मगर इस बार अलनीनो की स्थिति 60 फीसद तक पहुँच रही है।
कौन थे घाघ
घाघ कवि थे, जिनके विषय में काफी शोध हुआ सबके अलग-अलग तर्क हैं। इनके जन्म को लेकर भी कई तर्क हैं। मगर माना जाता है कि इनका जन्म सम्राट अकबर के कार्यकाल के दौरान हुआ था। घाघ पर भले ही कई लोग शोध कर रहे हो मगर घाघ की लोकोक्तियाँ ग्रामीण अंचल में बच्चे-बच्चे की जुबां पर रहती है।
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