जल-संसाधन विभाग की वार्षिक रिपोर्टों में लम्बे समय तक यह सूचना दुहरायी जाती रही। एक आम आदमी के लिए यह समझ पाना मुश्किल है कि सच मंत्री महोदय बोल रहे थे या उनके विभाग की रिपोर्ट। एक ओर जल संसाधन मंत्री द्वारा तटबंध की भर्त्सना और दूसरी ओर उनके विभाग की रिपोर्ट में निधि की कमी के कारण तटबंध न बना पाने के रुदन का अर्थ सामान्य जनता क्या निकाले?
देश को आजादी मिलने के बाद 1952 तक अंग्रेज इंजीनियरों और प्रशासकों की विरासत बाढ़ नियंत्रण के क्षेत्र में कायम रही मगर जब 1953 में कोसी नदी पर तटबन्धों के निर्माण की तकनीकी, प्रशासनिक, राजनैतिक, नैतिक, आदर्शवादी, सामाजिक, देशी और विदेशी विशेषज्ञों आदि से सभी प्रकार की स्वीकृति मिल गयी तब तटबन्धों के बाजार में फिर उछाल आया। कोसी पर तटबन्धों की स्वीकृति के बाद बाढ़ और उसके नियंत्रण पर सारी बहस समाप्त हो गयी और उत्तर बिहार की प्रायः सभी छोटी-बड़ी नदियों पर बिना किसी बहस-मुबाहसे के तटबन्धों के निर्माण का काम शुरू हुआ। 1990 से 2006 के बीच इन तटबन्धों के निर्माण में जरूर कमी आई या यूँ कहें कि इस तरह का कोई निर्माण हुआ ही नहीं। तटबन्ध निर्माण में यह ठहराव किसी विचारधारा या आदर्श के अधीन हुआ हो, ऐसा नहीं था।इसके मूल में जहाँ एक ओर अकर्मण्यता थी तो दूसरी तरफ राजनैतिक छल। विडम्बना यह थी कि जल- संसाधन विभाग के मंत्री महोदय प्रायः हर उपलब्ध मंच से तटबन्धों की भर्त्सना करते थे जबकि उनका विभाग तटबन्धों का निर्माण न कर पाने के लिए संसाधनों की कमी का रोना रोता था। जल-संसाधन विभाग, बिहार सरकार का वर्ष 1991-92 की वार्षिक रिपोर्ट कहती है (पृष्ठ-9), ‘‘अब तक निर्मित तटबन्धों की कुल लम्बाई लगभग 3465 कि.मी. है, जिससे लगभग 29.28 लाख हेक्टर क्षेत्र को बाढ़ से सुरक्षा प्रदान होती है। 10 चालू तटबन्ध अभी निर्माणाधीन है। इनकी कुल प्रस्तावित लम्बाई 872.74 कि.मी. तथा लाभान्वित क्षेत्र 6,36,560 हेक्टर है। अब तक केवल 556.69 कि.मी. लम्बाई में उनका निर्माण हुआ है जिससे 3,18,110 हेक्टर भूमि को आंशिक सुरक्षा मिल रही है। निधि के अभाव में इन्हें पूरा करने में कठिनाई हो रही है।
इसके अलावे निर्मित तटबंधों के रख-रखाव एवं सुरक्षात्मक कार्य कर बड़ी राशि सरकार को व्यय करना पड़ता है।’’ जल-संसाधन विभाग की वार्षिक रिपोर्टों में लम्बे समय तक यह सूचना दुहरायी जाती रही। एक आम आदमी के लिए यह समझ पाना मुश्किल है कि सच मंत्री महोदय बोल रहे थे या उनके विभाग की रिपोर्ट। एक ओर जल संसाधन मंत्री द्वारा तटबंध की भर्त्सना और दूसरी ओर उनके विभाग की रिपोर्ट में निधि की कमी के कारण तटबंध न बना पाने के रुदन का अर्थ सामान्य जनता क्या निकाले? इस दौरान राज्य सरकार नेपाल में प्रस्तावित बांधों के हक में अखंड मंत्र जाप भर करती रही और नेपाल में बांध निर्माण का वास्ता देकर अपनी सारी जिम्मेवारियों से बचती रही।
सत्ता परिवर्तन के साथ-साथ 2006 में तटबन्धों के निर्माण में फिर तेजी आयी है। सरकार ने बड़े पैमाने पर तटबन्धों को ऊँचा और मजबूत करने का काम अपने हाथ में लिया है। इस प्रयास का क्या परिणाम निकलेगा यह तो भविष्य के गर्भ में है पर इतना जरूर कहा जा सकता है कि इसका सुफल या कुफल जब भी आयेगा तब इनके निर्माण से जुड़े सारे सम्बद्ध लोग या तो इस दुनियाँ में नहीं होंगे या इतने अप्रभावी और महत्वहीन हो चुके होंगे कि उनसे किसी उत्तर की किसी को कोई अपेक्षा ही नहीं रहेगी। उस समय जो लोग उत्तर देने के लिए उपलब्ध होंगे वह सारा दोष पिछली पीढ़ी के नेताओं और इंजीनियरों पर डाल कर खुद को पाक साफ बता कर निकल जायेंगे।
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