और तो सब नदियां हैं, केवल सिंधु और ब्रह्मपुत्र ये दो नद-ऐसा भेद हम भारतीयों ने कबका तय किया है। ये दोनों है हीं ऐसे। विशालकाय और दीर्घवाही जलप्रवाह, जो कैलाश मानस-सरोवर के एक ही प्रदेश में जन्म लेकर परस्पर भिन्न दिशा में बहते नगाधिराज हिमालय की प्रदक्षिणा करके पश्चिम और पूर्व भारत की सेवा करते-करते, हिंद महासागर के दो विभागों को अपने विशाल जल का अर्घ्य अर्पण करते हैं। सिंधु को तो पंजाब की सब नदियां अपना जल अर्पण करती ही हैं, उसके बाद सिंधु ने पंजाब के दक्षिणवर्ती प्रदेश को अपना ही नाम अर्पण किया है।
इधर ब्रह्मपुत्र ने हिमालय का पूरब का सिरा देखकर दक्षिण की ओर जाने का सोचा।
पौराणिक इतिहास कहता है कि सौराष्ट्र के श्रीकृष्ण के लड़के प्रद्युम्न ने भारत के दूसरे सिरे की, शोणित पुर की राजकन्या के साथ विवाह करके भारत को एक कर दिया। जो हो, कैलाश प्रदेश की सांग्पो नाम धारण करने वाली नदी ब्रह्मपुत्र का नाम लेकर भारत की ओर मुड़ गई है। असल में सांग्पो नदी ही ‘दीहंग’ का नाम लेकर भारत की ओर मुड़ती है और पूर्व की लोहित नदी सदिया के पास दीहंग से मिलकर ब्रह्मपुत्र का नाम धारण करती है।
मैं इस प्रदेश में काफी घूमा हूं। वहां के पहाड़ों पर से इन नदियों का मैंने भव्य दर्शन किया है। पासीघाट, सदिया, दुमदुमा और डिब्रूगढ़ आदि स्थानों में बैठकर इस प्रदेश का वर्णन मैंने अनेक प्रकार से लिखा है। लेकिन अब वे सारी बातें पुरानी हो गई हैं। सारा वर्णन एकत्र करके अगर मैं ब्रह्मपुत्र को अपनी श्रंद्धांजलि अर्पण करूं, तो ब्रह्मपुत्र के लिए वह सच्ची श्रद्धांजली होगी, आज मैं इतना ही कहूंगा की ब्रह्मपुत्र नद पूरब की ओर गोआलपाड़ा तक जाकर वहां से दक्षिण की ओर मुड़ता है। फिर यह नद जमुना का नाम लेता है। आगे जाकर वह पद्मा बनकर मेघना के पानी को स्वीकार करता है और उसी का नाम धारण करके अनेक मुखों द्वारा समुद्र को मिलता है। यह सारा प्रदेश अब पाकिस्तान से स्वतंत्र हुए बंगलादेश के अंतर्गत है।
हुगली-गंगा से लेकर मेघना तक सारे प्रदेश को सुन्दर वन कहते हैं। यह सारा प्रदेश गंगा और ब्रह्मपुत्र के असंख्य मुखों से बना हुआ है। ये सब नदियां अपना पानी बंगाल के उपसागर को देकर कृतार्थ होती हैं।
12 मार्च, 1973
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