भारी-भरकम बजट : तब गंगा एक्शन प्लान अब क्लीन गंगा अभियान


गंगा एक्शन प्लान को लेकर सरकारों ने सबक नही लिया, पर निर्मल गंगा को लेकर सरकारें जिस तरह से संवेदनशील हो चुकी हैं उस तरह वे वैज्ञानिको की रिपोर्टों पर गौर नहीं कर पा रही हैं।

बता दें कि गंगा पर एक तरफ जल विद्युत परियोजनाएँ निर्माणाधीन व निर्मित हैं तो दूसरी तरफ गंगा में उड़ेले जा रहे सीवर इत्यादि के कारण गंगा का प्रवाह भी अनियमित हो रहा है और साथ ही बाधित भी हो रहा है।

अर्थात गंगा को स्वच्छ रखने के लिये सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से ज्यादा जल प्रवाह की निरन्तरता बनाए रखना जरूरी बताया जा रहा है। क्योंकि प्रवाह ही नदी की सफाई करता है। ऐसे संकेत अपनी-अपनी रिपोर्टों में कई बार गंगा पर ‘क्लीन गंगा’ को लेकर गंगा बेसिन में काम कर रहे वैज्ञानिको ने दिये हैं।

वैसे भी गंगा पर धार्मिक आयोजन लगातार होते हैं। यह आयोजन बिना जल प्रवाह के सफल नहीं माने जाते। दूसरी तरफ देखें तो निर्मल गंगा के लिये भी जल प्रवाह को वैज्ञानिक आवश्यक बता रहे हैं। इधर 12 जनवरी 2016 को अर्धकुम्भ मेले का आगाज हो चुका है।

आगामी चार माह तक इस मेले में देश-विदेश से लोगों का यहाँ आने का ताँता बना रहेगा। इस दौरान देवप्रयाग से हरिद्वार तक गंगा में जल प्रवाह का नियमित होना जरूरी होगा। स्थिति यह है कि लीन सीजन होने की वजह से गंगा में जल प्रवाह स्वतः ही कम हो जाता है और दूसरी तरफ गंगा पर निर्मित जलविद्युत परियोजनाएँ बचे-खुचे गंगा के जल प्रवाह को अपने-अपने जलाशय में रोक देती हैं।

ऐसे में अर्धकुम्भ में होने वाले लाखों लोगों के गंगा स्नान हेतु जल प्रवाह की सर्वाधिक कमी महसूस होगी, जो इस वक्त गंगा पर बन रही विकासीय परियोजनाओं पर फिर से सवाल खड़ा करता नजर आ रहा है।

गंगा बेसिन में ‘क्लीन गंगा’ के लिये काम कर रहे वैज्ञानिकों ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जलविद्युत परियोजनाएँ बिजली बनाने और गंगा का जलप्रवाह बहाल रखने के बीच सामंजस्य बनाए रखना जरूरी है। जिससे कार्य बाधित भी ना हो और गंगा साफ भी रहे। बताया गया कि लीन सीजन में ये परियोजनाएँ अतिरिक्त पानी स्टोर किये रखती हैं।

हरिद्वार में हो रहे धार्मिक आयोजन के दौरान गंगा बेसिन के सबसे बड़े जलाशय टिहरी झील को बफर स्टाक के रूप में रखने के लिये वैज्ञानिकों ने कहा है। इसके साथ ही उत्तरकाशी, भैरवघाटी, भागीरथी के जलाशयों से नियमित पानी छोड़ने के लिये कहा गया है।

'क्लीन गंगा, फ्लो सेडीमेंट्स बजटिंग इन गंगा' के टीम लीडर डॉ. सन्तोष राय का कहना है कि गंगा का यदि प्राकृतिक बहाव बरकरार रखा जाय तो यह सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से अधिक कारगर होगा। प्रवाह ही नदी की सफाई करता है। प्रवाह की निरन्तरता सुनिश्चित कर ली जाय तो ‘क्लीन गंगा मिशन’ की सार्थकता कई गुना बढ़ जाएगी।

उल्लेखनीय यह है कि राज्य में नदियों के सवाल पर सरकार का रुख स्पष्ट नजर नहीं आ रहा है। जबकि मौजूदा समय में राज्य की विभिन्न नदियों पर ‘‘उत्तराखण्ड बाढ़ मैदान परिक्षेत्रण अधिनियम 2012’’ के तहत सर्वेक्षण होना था कि इन नदियों के किनारे कितनी बसाहटें हैं और कितना प्रदूषण इन बसाहटों के कारण नदियों में बढ़ रहा है।

क्लीन गंगाविशेषकर गंगा बेसिन में ऐसा सर्वेक्षण का होना सरकारों ने आवश्यक माना था। इसके लिये बाकायदा जिला स्तर पर जिलाधिकारी और राज्य स्तर पर मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली कमेटी भी गठित हो चुकी है मगर समय पर यह रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को प्रेषित नही हो पाई।

अब सरकार ने पुनः एनजीटी से अतिरिक्त समय की माँग करते हुए अनुरोध पत्र भेजा है। इस बावत सिंचाई सचिव आनन्द बर्धन का कहना है कि नदी बेसिन क्षेत्रों के सर्वेक्षण का काम बेहद पेचीदा है। तमाम तकनीकी और भौगोलिक पहलुओं के मद्देनज़र सर्वेक्षण तो होना है, लिहाजा विस्तृत सर्वेक्षण के लिये वक्त चाहिए।

ऐसे में ‘निर्मल गंगा’ को लेकर गंगा एक्शन प्लान के जैसे ही लोगों के मन में फिर से सवाल खड़े हो रहे हैं। एक तरफ गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिये केन्द्र सरकार ने 20 हजार करोड़ रुपए के एकीकृत गंगा संरक्षण कार्यक्रम को स्वीकृति दी और जिसे 2020 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। दूसरी तरफ अब तक नदी बेसिन क्षेत्र के सर्वेक्षण का काम अधर में लटका हुआ है। ऐसे में निर्मल गंगा की कल्पना पर फिर से प्रश्नचिन्ह खड़ा हो रहा है।

मालूम हो कि पिछले वर्ष 10 दिसम्बर को एनजीटी ने गंगा के पहले चरण के फैसले को सुनाते हुए उत्तराखण्ड सरकार को गोमुख से हरिद्वार तक और गंगा की सहायक नदियों बावत यह निर्देश दिये थे कि इस अन्तराल में आने वाले होटल व इंडस्ट्रीज़ को तत्काल नोटिस करें कि वे गंगा को स्वच्छ बनाए रखने के लिये अपने-अपने सीवेज का ट्रीटमेंट करें या अपने प्रतिष्ठान बन्द करें।

अथवा वे राज्य के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से इस आशय का प्रमाण पत्र एनजीटी को प्रस्तुत करें कि उनके व्यवसाय से गंगा की स्वच्छता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला। जबकि ऐसा ना करने पर एनजीटी ने राज्य सरकार को खुद ही हलफ़नामा प्रस्तुत करने को कहा था। सो नियम-कानून को ताक पर रखकर सरकार के नाक के निचे गंगा में आये दिन प्रदूषण की मात्रा बढ़ ही रही है।

कुल मिलाकर गोमुख से लेकर हरिद्वार तक यह चर्चा आम है कि पहले ‘गंगा एक्शन प्लान आया अब निर्मल गंगा अभियान आया।’ गंगा निर्मल होगी कि नहीं इस पर लोगों में संशय बना हुआ है।


गंगा नदी में हर वर्ष 500 मिलियन मीट्रिक टन सिल्ट बहकर आती है। इस सिल्ट के कारण इलाहबाद से आगे 148 जगहों पर गंगा सूखने के कगार पर पहुँच गई है।

पाँच राज्यों से गुजरने वाली गंगा नदी के वनीकरण के लिये फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट देहरादून एक डीपीआर तैयार कर रहा है।

गंगा नदी बेसिन क्षेत्रों का ‘उत्तराखण्ड बाढ़ मैदान परिक्षेत्रण अधिनियम 2012’ के तहत सर्वेक्षण होना था जो समय पर नहीं हो पाया है।

‘क्लीन गंगा’ के लिये काम कर रहे वैज्ञानिकों ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जलविद्युत परियोजनाएँ बिजली बनाने और गंगा का जलप्रवाह बहाल रखने के बीच सामंजस्य बनाए रखना जरूरी है।

हरिद्वार में हो रहे धार्मिक आयोजन के दौरान गंगा बेसिन के सबसे बड़े जलाशय टिहरी झील को बफर स्टाक के रूप में रखने के लिये वैज्ञानिकों ने कहा है। इसके साथ ही उत्तरकाशी, भैरवघाटी, भागीरथी के जलाशयों से नियमित पानी छोड़ने के लिये कहा गया है।

'क्लीन गंगा, फ्लो सेडीमेंट्स बजटिंग इन गंगा' के टीम लीडर डॉ. सन्तोष राय का कहना है कि गंगा का यदि प्राकृतिक बहाव बरकरार रखा जाय तो यह सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से अधिक कारगर होगा।



12 जनवरी 2016 को अर्धकुम्भ मेले का हो चुका है अगाज।

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Post By: RuralWater
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