भारी बजट के बावजूद प्यासे हैं गाँव


घनसाली के ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल का संकट इस कदर बढ़ा कि गत 17 मई 2010 को 18 घंटे तक पानी के स्रोत पर लगी लम्बी लाइन में खड़ी चार महिलायें बैशाखी देवी, छौंपाड़ी देवी, रुशना देवी तथा यशोदा देवी भूख प्यास के कारण बेहोश होकर गिर पड़ी। इसी तरह जून माह में देवप्रयाग विधानसभा क्षेत्र के एक गाँव में पेयजल की समस्या के कारण लोगों में पैदा हो रहे तनाव को देखते हुए सार्वजनिक नल में पुलिस की तैनाती करनी पड़ी। इसी तरह प्रतापनगर विकासखंड के पट्टी रमोली, भूदरा व रौणद रमोली में आसपास के लगभग सभी गाड़-गधेरे सूख गये हैं, जिसके कारण किसान धान की रोपाई नहीं कर पा रहे हैं। ग्राम सभा रौणद रमोली के थापला, दोउग, पुजरगाँव व पनियाल के ग्रामीण गत वर्ष भी पानी की कमी के चलते धान की रोपाई नहीं कर पाये थे। 17 मई को डोईवाला (देहरादून) के कान्हरवाला क्षेत्र में पेयजल संकट से परेशान लोगों ने पेयजल कर्मचारियों को कार्यालय में बंधक बना दिया। किम (पौड़ी) को चार ग्राम सभाओं के लिये 1994 में सतेड़-रणचूला पम्पिंग पेयजल योजना बनी थी। बढ़ती आबादी और विभागीय लापरवाही के कारण यह योजना आज दम तोड़ती हुई नजर आ रही है, जिसके कारण गर्मी का मौसम आते ही क्षेत्र में पेयजल का भारी संकट खड़ा हो जाता है। गंगा नदी के किनारे बसे होने के बाद भी लक्ष्मण झूला और उसके आसपास के क्षेत्र इन दिनों भयानक पेयजल की कमी से जूझ रहे हैं। लोग गंगा से पानी ले जाकर पेयजल संकट दूर कर रहे हैं।

ये कुछ घटनायें दर्शाती हैं कि भारतीय दावों के बाद भी प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में पेयजल संकट कितना गहरा और भयानक है। पेयजल जैसी मूलभूत सुविधा भी लोगों को नहीं मिल पा रही है। यह हाल टिहरी, ऋषिकेश व इनके आसपास के क्षेत्रों का ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड का है। एक तरह से कहें तो पूरे राज्य, विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में पानी को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। तराई में गत एक दशक में पानी का जलस्तर पाँच से दस फीट तक नीचे चला गया है।

प्रदेश में इस समय 6,182 पेयजल योजनायें संचालित हो रही हैं। हर शहर के लिये नगरीय पेयजल योजना है। इनमें से उत्तराखंड पेयजल निगम के अधीन 741 तथा उत्तराखंड जल संस्थान के अंतर्गत 5,435 योजनायें हैं। इसके अलावा ग्राम सभा के पास 3,864 एकल ग्रामीण योजनायें हैं। लगभग 425 ट्यूबवेलों और लगभग 25 हजार हैंड पम्प भी लोगों को पेयजल की आपूर्ति कर रहे हैं। इसके बाद भी पूरे प्रदेश में इस वर्ष 783 क्षेत्रों को पेयजल की कमी के कारण संकटग्रस्त घोषित किया गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में 606 और शहरी क्षेत्रों में 177 मुहल्लों में पानी का भयानक संकट है। पूरे प्रदेश में सरकारी आंकड़ों के अनुसार जून अंत तक पूरे प्रदेश में 85 स्थानों पर टेंकरों से पेयजल की आपूर्ति की गयी और कई स्रोतों में 60 प्रतिशत तक पानी की कमी हुई है।

ऐसा नहीं है कि पेयजल की ओर प्रदेश सरकार का ध्यान ही नहीं है। हर साल औसतन 500 करोड़ रुपये पेयजल की सुधार योजनाओं पर खर्च किये जा रहे हैं। जिला और राज्य सेक्टर में पैसे की कमी नहीं है। केन्द्र सरकार भी विभिन्न योजनाओं के माध्यम से करोड़ों रुपये हर वर्ष आबंटित कर रही है। इसके बाद भी पेयजल का संकट साल दर साल गहरा होता जा रहा है। दरअसल पेयजल के बजट का आधा पैसा भी सही ढंग से पेयजल योजनाओं पर खर्च नहीं हो रहा है। कई सारी योजनायें कागजों में ही बन रही हैं तो कई योजनाओं में सुचारु रूप से पानी आने के बाद भी कभी मरम्मत तो कभी सुधारीकरण के नाम से लाखों रुपये का वारा-न्यारा किया जाता है। वास्तविक पेयजल संकट को दूर करने के लिये गंभीरता से कार्य नहीं किया जा रहा है।

शहरी क्षेत्रों में मीडिया की नजर भी रहती है और राजनैतिक रूप से हो हल्ला भी ज्यादा होता है। पेयजल व पानी से जुड़ी दूसरी योजनाओं से संबंधित सभी बड़े अधिकारी भी शहरों में ही रहते हैं। इसी कारण शहरों में पेयजल संकट उतना गहरा नहीं है। जिन स्थानों पर संकट होता भी है तो उसे शीघ्र ही दूर कर लिया जाता है। सबसे ज्यादा परेशानी ग्रामीण क्षेत्रों में है, जहाँ की सुध लेने वाला कोई नहीं है। मीडिया की नजर भी ग्रामीण क्षेत्रों पर तब तक नहीं जाती, जब तक कि कोई बड़ी बात नहीं हो जाती। स्वयं सरकारी आंकड़े इस बात के गवाह है। ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ 606 इलाके संकटग्रस्त हैं वहीं शहर के मात्र 177 मुहल्लों में ही पेयजल का संकट हैं।
 
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