भारी-बारिश यानी एक्सट्रीम-रेनफॉल बढ़ीं, रिमझिम बारिश घटी

एक्सट्रीम-रेनफॉल की घटनाएं बढ़ीं, फोटो : Needpix
एक्सट्रीम-रेनफॉल की घटनाएं बढ़ीं, फोटो : Needpix

पिछले साल अगस्त 2019 में सिर्फ 12 दिनों के अंदर भारी-बारिश यानी एक्स्ट्रीम-हेवी-रेनफॉल की 1000 से अधिक घटनाएं हुईं। कर्नाटक में तो 24 घंटे में ही सामान्य औसत से तीन-हजार प्रतिशत अधिक बरसात दर्ज की गई। मौसम विभाग के विभिन्न आंकड़ों के अध्ययन के आधार पर ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट’ (सीएसई) ने यह विश्लेषण प्रस्तुत किया है। अध्ययन रिपोर्ट करते समय सीएसई की निदेशिका सुनीता नारायण ने कहा कि जिस तरह भारी-वर्षा की चरम घटनाएं यानी एक्सट्रीम-रेनफॉल की घटनाएं बढ़ी हैं, उसे देखते हुए मौसम विभाग को चरम वर्षा को नए सिरे से परिभाषित करने की जरूरत है। 

यानी कि कम दिनों में ज्यादा बारिश वाले स्थानों की संख्या बढ़ी है। मौसम विभाग के पूर्व महानिदेशक डॉ. केजे रमेश ने भास्कर-ऐप को बताया कि जब 2 से 3 दिन तक लगातार बारिश होती है, तो उसे एक्स्ट्रीम हेवी रेनफॉल पीरियड कहते हैं। आजकल जलवायु परिवर्तन की वजह से भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में एक्स्ट्रीम हेवी रेनफॉल पीरियड बढ़ रहे हैं। यानी, कुछ ही समय में ज्यादा से ज्यादा बारिश हो रही है। इससे बाढ़ के हालात बन रहे हैं। पिछले साल तक केरल या तटीय महाराष्ट्र में एक्स्ट्रीम-हेवी-रेनफॉल पीरियड देखने को मिलता था। इस बार कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब और मध्यप्रदेश समेत कई राज्यों में यह देखने को मिला। इस कारण इन राज्यों में बाढ़ आई। पहले भी इतनी ज्यादा बारिश होती रही है, लेकिन अब कम दिनों में ज्यादा बारिश वाले स्थान बढ़ गए हैं।

अमर उजाला में छपी मनीष मिश्रा की रिपोर्ट एक्सट्रीम-हेवी-रेनफॉल के पड़ने वाले प्रभावों पर कई नई चीज जानकारी देती है। रिपोर्ट में महाराष्ट्र के विदर्भ में शेतकारी संगठन से जुड़े विजय जंदानिया बताते हैं कि मानसून आएगा और बारिश होगी लेकिन इसका पूरा फायदा किसान नहीं उठा पाएगा, क्योंकि मानसून की चाल बदल गई है। मानसून का पूरा लाभ किसानों को क्यों नहीं मिल पाता? इस बारे में विजय कहते हैं कि विदर्भ में औसतन 35 -40 इंच बारिश हर वर्ष होती है। वह आज भी हो रही है। लेकिन बारिश के दिन कम हो गए हैं कभी-कभी 5-6 दिन में ही पूरे माह की बारिश हो जा रही है। ये पानी जमीन सोख नहीं पाती और ज्यादातर पानी रन-ऑफ यानी बह जाता है।

मौसम विज्ञान से जुड़ी एक कंपनी स्काईमेट के वाइस प्रेसिडेंट महेश पहलवान कहते हैं कि बारिश के पैटर्न बदलने से कई तरह के प्रभाव दिखाई देंगे। पहले बारिश के दिन ज्यादा होते थे, बारिश धीरे-धीरे महीने भर होती थी, अब वह चार-पांच दिन में ही अचानक से हो जाती है।

एक्सट्रीम-हेवी-रेनफॉल कई तरह की समस्याएं पैदा कर रहा है। और आने वाले दिनों में यह कई नई समस्याओं की बढ़ावा देगा। एक्सट्रीम-हेवी-रेनफॉल से बाढ़ और सूखे की दोनों तरह की समस्याएं बढ़ेंगी। क्योंकि जो बारिश 50 से 70 दिन में होती थी वह बारिश अब 3 से 27 दिन के अंदर हो जा रही है। इससे जो समझने लायक बात है, वह यह यह है कि जब बारिश होगी तब बाढ़ आ जाएगी और नहीं तो सूखे का समय बढ़ जाएगा। इसी के साथ भूक्षरण की समस्या बहुत तेजी से बढ़ेगी। और भूक्षरण बंजर भूमि की समस्या को भी कई गुना बढ़ा देगा।

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