भाण्डागारण निगम अधिनियम, 1962 (General warehouse rules and regulations in India in Hindi)

(1962 का अधिनियम संख्यांक 58)


{19 दिसम्बर, 1962}


कृषि उपज और कतिपय अन्य वस्तुओं के भाण्डागारण के प्रयोजनके लिये निगमों के निगमन और विनियमन का तथाउनसे सम्बन्धित विषयों का उपबन्धकरने के लिये अधिनियम

भारत गणराज्य के तेरहवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो:-

अध्याय 1


प्रारम्भिक


1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ


(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम भाण्डागारण निगम अधिनियम, 1962 है।

(2) इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है।
(3) यह ऐसी तारीख2 को प्रवृत्त होगा जिसे केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे।

2. परिभाषाएँ


इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो:-

(क) “कृषि उपज” से निम्नलिखित वस्तु-वर्गों में से कोई वर्ग अभिप्रेत है, अर्थात:-

(i) खाद्य पदार्थ जिसके अन्तर्गत खाद्य तिलहन भी हैं,
(ii) पशुओं का चारा जिसके अन्तर्गत खली और अन्य सारकृत चारे भी हैं,
(iii) कच्ची कपास, चाहे वह ओटी हुई हो या न हो और बिनौला,
(iv) कच्चा पटसन, और
(v) वनस्पति तेल;
(ख) “समुचित सरकार” से केन्द्रीय भाण्डागारण निगम के सम्बन्ध में केन्द्रीय सरकार और राज्य भाण्डागारण निगम के सम्बन्ध में राज्य सरकार अभिप्रेत है;

(ग) “केन्द्रीय भाण्डागारण निगम” से धारा 3 के अधीन स्थापित केन्द्रीय भाण्डागारण निगम अभिप्रेत है;

(घ) “सहकारी सोसाइटी” से सहकारी सोसाइटी अधिनियम, 1912 (1912 का 2) के अधीन या सहकारी सोसाइटियों से सम्बन्धित ऐसी किसी अन्य विधि के अधीन, जो किसी राज्य में तत्समय प्रवृत्त हो, रजिस्ट्रीकृत या रजिस्ट्रीकृत समझी जाने वाली ऐसी कोई सोसाइटी अभिप्रेत है, जो कृषि उपज या किसी अधिसूचित वस्तु के प्रसंस्करण, विपणन, भाण्डाकरण, निर्यात या आयात में या बीमा कारबार में लगी हुई है तथा इसके अन्तर्गत सहकारी भूमि बन्धक बैंक भी है;

3 {(घघ) “राष्ट्रीयकृत बैंक” से बैंककारी कम्पनी (उपक्रमों का अर्जन और अन्तरण) अधिनियम, 1970 (1970 का 5) की प्रथम अनुसूची में विनिर्दिष्ट तत्स्थानी नया बैंक 4{या बैंककारी कम्पनी (उपक्रमों का अर्जन और अन्तरण) अधिनियम, 1980 (1980 का 40) की प्रथम अनुसूची में विनिर्दिष्ट कोई तत्स्थानी नया बैंक, अभिप्रेत है;}

(ङ) “अधिसूचित वस्तु” से (कृषि उपज से भिन्न) ऐसी कोई वस्तु अभिप्रेत है, जिसे केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये अधिसूचित वस्तु घोषित करे और जो ऐसी वस्तु है जिसके बारे में संसद को संविधान की सप्तम अनुसूची की सूची 3 की प्रविष्टि 33 के आधार पर विधि बनाने की शक्ति प्राप्त है;

(च) विहित” से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;
(छ) “मान्यता प्राप्त संगम” से ऐसा संगम अभिप्रेत है जो केन्द्रीय सरकार द्वारा तत्समय अग्रिम संंविदा (विनयमन) अधिनियम, 1952 (1952 का 74) की धारा 6 के अधीन मान्यता प्राप्त है;

(ज) रिजर्व बैंक” से भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 (1934 का 2) के अधीन गठित भारतीय रिजर्व बैंक अभिप्रेत है;

(झ) “अनुसूचित बैंक” से ऐसा बैंक अभिप्रेत है जो तत्समय, भारतीय रिजर्व अधिनियम, 1934 (1934 का 2) की वित्तीय अनुसूची में सम्मिलित है 1{ और इसके अन्तर्गत राष्ट्रीयकृत बैंक भी है;

(ञ) “स्टेट बैंक” से भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम, 1955 (1955 का 23) के अधीन गठित भारतीय स्टेट बैंक अभिप्रेत है;

(ट) “राज्य भाण्डागारण निगम” से ऐसा भाण्डागारण निगम अभिप्रेत है जो राज्य के लिये इस अधिनियम के अधीन स्थापित है या स्थापित समझा गया है;

(ठ) “भाण्डागारण निगम” से ऐसा भाण्डागारण निगम अभिप्रेत है जो इस अधिनियम के अधीन स्थापित है, या स्थापित समझा गया है;

(ड) “वर्ष से वित्तीय वर्ष अभिप्रेत है।

2{ 2क. किसी राज्य में अप्रवृत्त किसी विधि अथवा वहाँ अविद्यमान किसी कृत्यकारी के प्रति निर्देशों का अर्थान्वयन:- इस अधिनियम में किसी राज्य में अप्रवृत्त किसी विधि अथवा वहाँ अविद्यमान किसी कृत्यकारी के प्रति निर्देश का उस राज्य के सम्बन्ध में यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह उस राज्य में प्रवृत्त तत्स्थानी विधि अथवा वहाँ विद्यमानी तत्स्थानी कृत्यकारी के प्रति निर्देश है।}

अध्याय 2


केन्द्रीय भाण्डागारण निगम


3. केन्द्रीय भाण्डागारण निगम


(1) केन्द्रीय सरकार, ऐसी तारीख3 से, जिसे वह राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे, केन्द्रीय भाण्डागारण निगम के नाम से एक निगम की स्थापना करेगी। वह शाश्वत उत्तराधिकार और सामान्य मुद्रा वाला एक निगमित निकाय होगा जिसे सम्पत्ति का अर्जन, धारण और व्ययन करने की तथा संविदा करने की शक्ति प्राप्त होगी और वह उक्त नाम से वाद लाएगा और उसके विरुद्ध वाद लाया जाएगा।

(2) केन्द्रीय भाण्डागार निगम का प्रधान कार्यालय नई दिल्ली में 4{या ऐसे अन्य स्थान पर होगा जिसे केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट करे।

4. शेयर पूँजी और शेयरधारी


(1) केन्द्रीय भाण्डागारण निगम की प्राधिकृत शेयर पूँजी बीस करोड़ रुपए होगी जो एक-एक हजार रुपए अंकित मूल्य के प्रति शेयर के दो लाख शेयरों में विभाजित होगी। ऐसे शेयर, जिन्हें निर्गमित करना शेष रह जाता है, समय-समय पर जैसे और जब केन्द्रीय भाण्डागारण निगम उचित समझे, केन्द्रीय सरकार की मंजूरी से निर्गमित किये जा सकेंगे:

5{परन्तु केन्द्रीय सरकार केन्द्रीय भाण्डागारण निगम की प्राधिकृत शेयर पूँजी को ऐसे विस्तार तक और ऐसी रीतिह से, जो वह सरकार अवधारित करे, समय-समय पर, राजपत्र में अधिसूचित आदेश द्वारा, बढ़ा सकेगी

(2) 6{केन्द्रीय सरकार, विधि द्वारा इस प्रयोजन के लिये संसद द्वारा किये गए विनियोग के पश्चात किसी समय निर्गमित शेयर पूँजी का चालीस प्रतिशत प्रतिश्रुत करेगी और शेयर पूँजी का साठ प्रतिशत निम्नलिखित संस्थाओं द्वारा ऐसी अवधि के अन्दर और उस अनुपात में प्रतिश्रुत किया जाएगा जो केन्द्रीय सरकार विनिर्दिष्ट करे, अथार्त:-

(क) स्टेट बैंक,
(ख) अन्य अनुसूचित बैंक,
(ग) सहकारी सोसाइटियाँ,
(घ) बीमा कम्पनियाँ, विनिधान न्यास और अन्य वित्तीय संस्थाएँ,
(ङ) कृषि उपज या किसी अन्य अधिसूचित वस्तु में व्यवहार करने वाले मान्यता प्राप्त संगम और कम्पनियाँ।

(3) यदि उपधारा (2) में निर्दिष्ट शेयर पूँजी के साठ प्रतिशत का कोई प्रभाग अनावंटित रह जाता है, तो वह केन्द्रीय सरकार और स्टेट बैंक द्वारा ऐसे अनुपात में, जो उनमें परस्पर करार पाया गया हो, और ऐसे करार के अभाव में, केन्द्रीय सरकार द्वारा अवधारित अनुपात में प्रतिशत किया जा सकेगा।

(4) केन्द्रीय भाण्डागारण निगम के शेयर केन्द्रीय भाण्डागारण निगम द्वारा इस अधिनियम के अधीन बनाए गए विनियमों के अनुसरण में, केन्द्रीय सरकार, 1{स्टेट बैंक, किसी अनुसूिचत बैंक, बीमा कम्पनी, विनिधान न्यास या अन्य वित्तीय संस्था या किसी सहकारी सोसाइटी को अथवा कृषि उपज या किसी अधिसूचित वस्तु में व्यवहार करने वाले मान्यता प्राप्त किसी संगम या कम्पनी को ही अन्तरित किये जा सकेंगे किसी अन्य को नहीं।

2{ 5. कतिपय शेयरों का अनुमोदित प्रतिभूतियाँ होना - इस धारा में वर्णित अधिनियमों में किसी बात के होते हुए भी, केन्द्रीय भाण्डागारण निगम के शेयरों के बारे में यह समझा जाएगा कि वे, -

(क) उन अन्य प्रतिभूतियों के अन्तर्गत हैं जो भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 (1882 का 2) की धारा 20 में प्रगणित हैं ; और

(ख) बीमा अधिनियम, 1938 (1938 का 4) और बैंक कारी विनयमन अधिनियम, 1949 (1949 का 10) के प्रयोजन के लिये अनुमोदित प्रतिभूतियाँ हैं।,

6. केन्द्रीय भाण्डागारण निगम का प्रबन्ध


(1) केन्द्रीय भाण्डागारण निगम के कार्यकलाप और कारबार का साधारण अधीक्षण और प्रबन्ध निदेशक बोर्ड में निहित होगा जो कार्यपालिका समिति और प्रबन्ध निदेशक की सहायता से उन सभी शक्तियों का प्रयोग और सभी कृत्यों का निर्वहन कर सकेगा जिनका प्रयोग या निर्वहन केन्द्रीय भाण्डागारण निगम द्वारा इस अधिनियम के अधीन किया जा सकता है।

(2) निदेशक बोर्ड लोकहित का ध्यान रखते हुए कारबारी सिद्धान्तों के अनुसार कार्य करेगा और नीति सम्बन्धी प्रश्नों पर वह अपना मार्गदर्शन ऐसे निदेशों से प्राप्त करेगा जो केन्द्रीय सरकार उसे दे।

(3) यदि इस बारे में कोई शंका उत्पन्न होती है कि कोई प्रश्न नीति सम्बन्धी प्रश्न है या नहीं, तो केन्द्रीय सरकार का विनिश्चय अन्तिम होगा।

7. निदेशक


(1) धारा 6 में निर्दिष्ट निदेशक बोर्ड निम्नलिखित से मिलकर बनेगा, अर्थात:-

(क) छह निदेशक, जिन्हें केन्द्रीय सरकार नाम निर्देशित करेगी,

(ख) एक निदेशक, जिसे स्टेट बैंक नाम निर्देशित करेगा,

(ग) एक निदेशक, जिसे अन्य अनुसूचित बैंक निर्वाचित करेंगे,(घ) एक निदेशक, जिसे सहकारी सोसाइटियाँ निर्वाचित करेंगी,
(ङ) एक निदेशक, जिसे बीमा कम्पनियाँ विनिधान न्यास और अन्य वित्तीय संस्थाएँ, कृषि उपज या अधिसूचित वस्तु में व्यवहार करने वाले मान्यता प्राप्त संगम और कम्पनियाँ निर्वाचित करेंगी;

4{ (चच) तीन निदेशक, जिन्हें केन्द्रीय सरकार नियुक्त करेगी,

(छ) एक प्रबन्ध निदेशक, जिसे केन्द्रीय सरकार ने खण्ड (क) से लेकर खण्ड (च) तक के खण्डों में निर्दिष्ट निदेशकों से परामर्श करके नियुक्त किया हो:

परन्तु वे तीन निदेशक, जो खण्ड (घ), (ङ) और (च) के अधीन निर्वाचित किये जाने हैं, बोर्ड के प्रथम गठन के वास्ते केन्द्रीय सरकार द्वारा ऐसी रीति से नाम निर्देशित किये जा सकेंगे जिससे उन खण्ड में निर्दिष्ट संस्थाओं के प्रत्येक वर्ग को (चाहे वे निगम के शेयरधारक बन गए हों या नहीं) प्रतिनिधत्व मिल जाये, किन्तु इस प्रकार नाम निर्दिष्ट निदेशक तब तक पद धारण करेगा जब तक उसको उस खण्ड में उपबन्धित रूप में निर्वाचित निदेशक द्वारा बदल नहीं दिया जाता और इस प्रकार निर्वाचित निदेशक तब तक पद धारण करेगा जब तक बदला गया निदेशक उस दशा में पद धारण करता जिसमें कि उसे ऐसे बदला नहीं गया होता।

(2) उपधारा (1) के खण्ड (घ), (ङ) और (च) में निर्दिष्ट निदेशकों का निर्वाचन विहित रीति से किया जाएगा।

(3) यदि इस निमित्त विहित अवधि के अन्दर, या इतनी अतिरिक्त अविधि के अन्दर, जितनी केन्द्रीय सरकार अनुज्ञात करे, उपधारा (1) के खण्ड (घ) या खण्ड (ङ) या खण्ड (च) में निर्दिष्ट संस्थाएँ किसी निदेशक का निवार्चन करने में असफल रहती हैं तो केन्द्रीय सरकार उस रिक्ति को भरने के लिये निदेशक का नाम निर्देशन कर सकेगी।

(4) निदेशक बोर्ड का एक अध्यक्ष 1{ होगा, जिसे, केन्द्रीय सरकार निदेशकों में से नियुक्त करेगी।

2{ (4क) उपधारा (1) के खंड (चच) के अधीन नियुक्त निदेशक ऐसा वेतन और ऐसे भत्ते प्राप्त करने के हकदार होंगे जिन्हें केन्द्रीय भाण्डागारण निगम, केन्द्रीय सरकार के अनुमोदन से, अवधारित करे।}

(5) प्रबन्ध निदेशक:-

(क) ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कर्तव्यों का पालन करेगा जिन्हें निदेशक बोर्ड या केन्द्रीय भाण्डागारण निगम उसे सौंपे या प्रत्यायोजित करे, तथा

(ख) ऐसा वेतन और ऐसे भत्ते पाएगा, जो केन्द्रीय भाण्डागारण निगम केन्द्रीय सरकार के अनुमोदन से नियत करे।

(6) केन्द्रीय भाण्डागारण निगम के प्रबन्ध निदेशक से भिन्न निदेशक पारिश्रमिक के रूप में ऐसी राशियाँ प्राप्त करने के हकदार होंगे जो केन्द्रीय भाण्डागारण निगम केन्द्रीय सरकार के अनुमोदन से नियत करे

परन्तु कोई शासकीय निदेशक उन भत्तों से, यदि कोई हों, जो उसकी सेवा-शर्त को विनियमित करने वाले नियमों के अधीन अनुज्ञेय हों, भिन्न कोई पारिश्रमिक प्राप्त करने का हकदार नहीं होगा।

(7) निदेशकों की पदावधि और निदेशकों की आकस्मिक रिक्तियाँ भरने की रीति ऐसी होगी जो विहित की जाये।

8. केन्द्रीय भाण्डागारण निगम के निदेशक के पद के लिये निरहर्ताएँ


यदि कोई व्यक्ति -
(i) पागल पाया जाता है या विकृतचित्त का हो जाता है, अथवा
(ii) न्यायनिर्णीत दिवालिया है या किसी समय रहा है या अपने ऋणों का चुकाना निलम्बित कर दिया है या अपने लेनदारों के साथ समझौता कर चुका है, अथवा
(iii) किसी ऐसे अपराध के लिये दोष सिद्ध किया जाता है या किया गया है जिसमें नैतिक अधमता अन्तर्ग्रस्त है, तथा उस अपराध के लिये छह मास से अन्यून कारावास से दण्डादिष्ट किया गया है, किन्तु उक्त दण्डादेश के अवसान की तारीख से पाँच वर्ष की अवधि व्यतीत नहीं हुई है, अथवा

(iv) सरकार की या सरकार के स्वामित्वाधीन और नियंत्रणाधीन निगम की सेवा से हटा दिया गया या पदच्युत कर दिया गया है, अथवा
(v) केन्द्रीय भाण्डागारण निगम या किसी राज्य भाण्डागारण निगम के 1{धारा 7 की उपधारा (1) के खण्ड (चच) के अधीन नियुक्त निदेशकों और प्रबन्ध निदेशक, से भिन्न वैतनिक पदधारी है, अथवा
(vi) केन्द्रीय भाण्डागारण निगम के साथ की गई किसी विद्यमान संंविदा में या उस निगम के लिये किये जाने वाले किसी काम में वैयक्तिक रूप से कोई ऐसा हित रखता है जो कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) में यथा परिभाषित पब्लिक कम्पनी के (निदेशक से भिन्न) शेयरधारक के रूप में नहीं है, तो वह केन्द्रीय भाण्डागारण निगम का निदेशक चुने जाने और होने के लिये निरर्ह होगा:

परन्तु जहाँ ऐसा व्यक्ति शेयरधारक है, वहाँ वह केन्द्रीय भाण्डागारण निगम को यह प्रकट करेगा कि वह उस कम्पनी में किस प्रकार के और कितने शेयर धारण किये हुए है।

9. निदेशकों का पद से हटाया जाना


(1) केन्द्रीय सरकार, केन्द्रीय भाण्डागारण निगम से परामर्श करके, प्रबन्ध निदेशक को उसके पद से किसी भी समय हटा सकेगी किन्तु ऐसा करने के पूर्व वह हटाए जाने के प्रस्ताव के विरुद्ध उसे कारण बताने का उचित अवसर देगी।
(2) निदेशक बोर्ड ऐसे किसी निदेशक को पद से हटा सकेगा, जो:-

(क) धारा 8 में वर्णित निरर्हताओं में से किसी निरर्हताओं से ग्रस्त है या ग्रस्त हो जाता है, अथवा

(ख) निदेशक बोर्ड की इजाजत के बिना बोर्ड के तीन से अधिक क्रमवर्ती अधिवेशनों से ऐसे कारण के बिना अनुपस्थित रहा है, जो बोर्ड की राय में उसकी ऐसी अनुपस्थिति की माफी के लिये पर्याप्त है।

10. अधिकारियों आदि की नियुक्ति और उनकी सेवा-शर्तें


(1) केन्द्रीय भाण्डागारण निगम ऐसे अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को नियुक्त कर सकेगा जिन्हें वह अपने कृत्यों के दक्ष पालन के लिये आवश्यक समझता है।

(2) केन्द्रीय भाण्डागारण निगम द्वारा इस अधिनियम के अधीन नियोजित प्रत्येक व्यक्ति ऐसी सेवा-शर्तों के अधीन होगा और ऐसे पारिश्रमिक पाने का हकदार होगा जो इस अधिनियम के अधीन निगम द्वारा बनाए गए विनियमों द्वारा अवधारित हों।

11. केन्द्रीय भाण्डागारण निगम के कृत्य


इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, केन्द्रीय भाण्डागारण निगम:-

(क) भारत 1{या विदेश, में ऐसे उपयुक्त स्थानों पर जिन्हें वह ठीक समझता है, गोदाम और भाण्डागारण अर्जन और निर्माण कर सकेगा,

(ख) व्यष्टियों, सहकारी सोसाइटियों और अन्य संस्थाओं द्वारा ऑफर की गई या किये गए कृषि उपज, बीजों, खादों, उवर्रकों, कृषि उपकरणों और अधिसूचित वस्तुओं के भण्डारकरण के लिये भाण्डागार चला सकेगा,

(ग) कृषि उपज, बीजों, खादों, उवर्रकों, कृषि उपकरणों और अधिसूचित वस्तु को भाण्डागारों तक पहुँचाने और वहाँ से लाने के लिये परिवहन की सुविधाओं के लिये व्यवस्था कर सकेगा,

(घ) किसी राज्य भाण्डागार निगम की शेयर पूँजी के लिये प्रतिश्रुत कर सकेगा,

(ङ) कृषि उपज, बीजों, खादों, उवर्रकों, कृषि उपकरणों और अधिसूचित वस्तुओं के क्रय, विक्रय, भण्डारकरण और वितरण के प्रयोजनों के लिये सरकार के अभिकर्ता के रूप में कार्य कर सकेगा,2***

1{ (ङक) इस अधिनियम के प्रयोजनों को क्रियान्वित करने के लिये केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से, किसी केन्द्रीय अधिनियम या किसी राज्य अधिनियम द्वारा या उसके अधीन स्थापित किसी निगम के साथ या कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) के अधीन बनाई गई और रिजस्ट्रीकृत किसी कम्पनी जिसके अन्तर्गत विदेशी कम्पनी भी है, के साथ या उसकी समनुषंगी कम्पनियों के माध्यम से संयुक्त उद्यम में प्रवेश कर सकेगा।

स्पष्टीकरण - इस खण्ड के प्रयोजन के लिये, विदेशी कम्पनी” पद का वही अर्थ है जो आय-कर अधिनियम, 1961 (1961 का 43) की धारा 2 के खण्ड (23क) में है,(ङख) आनुषंंगिक कम्पनियाँ स्थापित कर सकेगा, और,
(च) ऐसे अन्य कृत्य कर सकेगा जो विहित किये जाएँ।

12. कार्यपालिका समिति


(1) केन्द्रीय भाण्डागारण निगम की एक कार्यपालिका समिति होगी जो निम्नलिखित से मिलकर बनेगी, अर्थात:-

(क) निदेशक बोर्ड का अध्यक्ष 3***
(ख) प्रबन्ध निदेशक, तथा
(ग) विहित रीति से निगम द्वारा चुने गए दो अन्य निदेशक।
4{ (2) निदेशक बोर्ड का अध्यक्ष, कार्यपालिका समिति का अध्यक्ष होगा।

(3) निदेशक बोर्ड के साधारण नियंत्रण, निदेशन और अधीक्षण के अधीन रहते हुए कार्यपालिका समिति ऐसी किसी बात के बारे में कार्यवाही करने के लिये सक्षम होगी जिसे करने के लिये निगम सक्षम है।

13. निगम के अधिवेशन


(1) केन्द्रीय भाण्डागारण निगम का वार्षिक साधारण अधिवेशन (जिसे इसमें इसके पश्चात वार्षिक साधारण अधिवेशन कहा गया है) प्रत्येक वार्षिक वित्तीय वर्ष की समाप्ति के छह मास के अन्दर या तो निगम के प्रधान कार्यालय में या किसी अन्य कार्यालय में होगा और निदेशक बोर्ड कोई अन्य साधारण अधिवेशन किसी अन्य समय पर बुला सकेगा।

(2) वार्षिक साधारण अधिवेशन में उपस्थित शेयर धारक वार्षिक लेखाओं पर, रिपोर्ट वाले वर्ष के दौरान निगम के कामकाज के बारे में निदेशक बोर्ड की रिपोर्ट पर तथा वार्षिक, तुलनपत्र और लेखाओं के बारे में लेखापरीक्षक की रिपोर्ट पर विचार-विमर्श करने के हकदार होंगे।

(3) केन्द्रीय भाण्डागार निगम का निदेशक बोर्ड, निगम के शेयरधारकों में से एक तिहाई शेयरधारकों की अध्यपेक्षा पर, निगम का विशेष अधिवेशन बुलाएगा।

(4) उपधारा (3) के अधीन विशेष अधिवेशन के लिये की गई अध्यपेक्षा में यह कथन होगा कि अधिवेशन बुलाने का क्या उद्देश्य है और वह अध्यपेक्षाकर्ताओं द्वारा हस्ताक्षरित होगी और निगम के प्रधान कार्यालय में जमा की जाएँगी और उसमें कई दस्तावेजें एक जैसे प्रारूप में हो सकती हैं जिनमें से प्रत्येक दस्तावेज एक या अधिक अध्यपेक्षाकर्ता द्वारा हस्ताक्षरित होगी।

(5) यदि केन्द्रीय भाण्डागारण निगम का निदेशक बोर्ड विशेष अधिवेशन बुलाने के लिये इस प्रकार जमा की गई अध्यपेक्षा की तारीख से इक्कीस दिन के अन्दर आगे कार्यवाही नहीं करता है, तो अध्यपेक्षाकर्तागण या उनमें से बहुसंख्यक स्वयं अधिवेशन बुला सकेंगे, किन्तु इन दोनों में से किसी दशा में, इस प्रकार बुलाया गया अधिवेशन अध्यपेक्षा जमा करने की तारीख से तीन मास के अन्दर किया जाएगा।

(6) केन्द्रीय भाण्डागारण निगम अपने अधिवेशन में कामकाज के बारे में प्रक्रिया के जिसके अन्तर्गत अधिवेशनों में गणपूर्ति भी है, ऐसे नियमों का पालन करेगा जिनका उपबन्ध इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय भाण्डागारण निगम द्वारा बनाए गए विनयमों द्वारा किया जाये।

14. केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुदान और ऋण


(1) केन्द्रीय सरकार, संसद द्वारा इस निमित्त बनाई गई विधि द्वारा सम्यक विनियोग करने के पश्चात केन्द्रीय भाण्डागारण निगम को उन दोनों निधियों में से, जो केन्द्रीय भाण्डागारण निगम द्वारा बनाई रखी जाती हैं, किसी के भी प्रयोजनों के लिये:-

(क) अनुदान के रूप में ऐसी धनराशियाँ दे सकेंगी, जो केन्द्रीय सरकार आवश्यक समझे, तथा

(ख) उधार के रूप में ऐसी धनराशियाँ ऐसे निबन्धनों और शर्तों पर दे सकेगी जो केन्द्रीय सरकार अवधारित करे।

(2) केन्द्रीय सरकार उपधारा (1) के अधीन कोई संदाय करते समय उस निधि को विनिर्दिष्ट करेगी जिसके प्रयोजनों के लिये वह संदाय किया जा रहा है।

15. निगम दो निधियाँ रखेगा


केन्द्रीय भाण्डागारण निगम दो अलग-अलग निधियाँ बनाए रखेगा, अर्थात:-

(क) केन्द्रीय भाण्डागारण निधि (जिसे इसमें इसके पश्चात भाण्डागारण निधि कहा गया है), तथा

(ख) साधारण निधि।

16. भाण्डागारण निधि


(1) भाण्डागारण निधि में-

(क) ऐसी सभी धनराशियाँ और अन्य प्रतिभूतियाँ, जो केन्द्रीय भाण्डागारण निगम की धारा 43 की उपधारा (2) के खण्ड (ग) के अधीन अन्तरित की गई हैं,

(ख) ऐसे अनुदान और उधार, जो केन्द्रीय सरकार भाण्डागारण निधि के प्रयोजन के लिये दे, तथा

(ग) ऐसी धनराशियाँ, जो भाण्डागारण निधि में से दिये गए उधारों से या उधारों पर ब्याज से अथवा उस निधि में से किये गए विनधानों पर लाभांश से प्राप्त हों, जमा की जाएँगी।

(2) भाण्डागारण निधि का उपयोजन निम्नलिखित प्रयोजनों के लिये किया जाएगा:-

(क) राज्य भाण्डागारण निगम की शेयर पूँजी की प्रतिश्रुति करने के वास्ते राज्य सरकारों को समर्थ करने के प्रयोजन के लिये राज्य सरकारों को ऐसे निबन्धनों या शर्तों पर उधार देना या जो केन्द्रीय भाण्डागारण निगम ठीक समझे,

(ख) कृषि उपज और अधिसूचित वस्तुओं के, सहकारी सोसाइटियों से भिन्न माध्यम द्वारा, भाण्डागारण और भाण्डाकरण की अभिवृद्धि करने के प्रयोजन से, राज्य भाण्डागारण निगमों या राज्य सरकारों को ऐसे निबन्धनों और शर्तों पर उधार और साहय्यिकियाँ देना, जो केन्द्रीय भाण्डागारण निगम ठीक समझे,

1{(ग) कृषि उपज और अधिसूचित वस्तुओं के भाण्डागारण और भण्डारकरण की अभिवृद्धि के प्रयोजन के लिये कार्मिकों के प्रशिक्षण या प्रसार और प्रचार के सम्बन्ध में उपगत व्यय की पूर्ति करना,

(घ) भाण्डागारण निधि के प्रशासन के सम्बन्ध में उपगत व्यय की पूर्ति करना, जिसके अन्तर्गत अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों के वेतन, भत्ते और अन्य पारिश्रमिक भी हैं।,

17. साधारण निधि


(1) साधारण निधि में -
(क) धारा 16 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट राशियों से भिन्न ऐसी सभी राशियाँ, जो केन्द्रीय भाण्डागारण निगम को प्राप्त हों, तथा(ख) ऐसे अनुदान और उधार, जिन्हें केन्द्रीय सरकार साधारण निधि के प्रयोजनों के लिये दे, जमा किये जाएँगे।

(2) साधारण निधि का उपयोजन निम्नलिखित प्रयोजनों के लिये किया जाएगा -

(क) केन्द्रीय भाण्डागारण निगम के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों के वेतन, भत्ते और अन्य पारिश्रमिक चुकाना, तथा
(ख) निगम के अन्य प्रशासनिक व्यय चुकाना, तथा
(ग) इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करना:

1{परन्तु साधारण निधि का उपयोजन धारा 16 की उपधारा (2) के खण्ड (ग) या खण्ड (घ) में निर्दिष्ट व्यय चुकाने के लिये नहीं किया जाएगा।}

अध्याय 3


राज्य भाण्डागारण निगम


18. राज्य भाण्डागारण निगम


(1) राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा और केन्द्रीय भाण्डागारण निगम के अनुमोदन से, राज्य के लिये ऐसे नाम वाला भाण्डागारण निगम स्थापित कर सकेगी, जो अधसूचना में विनिर्दिष्ट किया जाये।

(2) उपधारा (1) के अधीन स्थापित राज्य भाण्डागारण निगम उस उपधारा के अधीन अधिसूचित नाम वाला तथा शाश्वत उत्तराधिकार और सामान्य मुद्रा वाला एक निगमित निकाय होगा, जिसे सम्पत्ति का अर्जन, धारण और व्ययन करने की और संविदा करने की शक्ति प्राप्त होगी और वह उस नाम से वाद लाएगा और उसके विरुद्ध वाद लाया जाएगा।

(3) राज्य भाण्डागारण निगम का प्रधान कार्यालय राज्य में उस स्थान पर होगा जिसे, राजपत्र में अधिसूचित किया जाये।

(4) उपधारा (1), (2) और (3) में किसी बात के होते हुए भी, जहाँ किसी निगम की बाबत धारा 43 की उपधारा (2) के खण्ड (छ) के अधीन यह समझा जाता है कि वह इस अधिनियम के अधीन उस राज्य के लिये स्थापित निगम है, वहाँ उपधारा (1) के अधीन निगम की स्थापना करना राज्य सरकार के लिये, आवश्यक न होगा।

19. अंश पूँजी और शेयरधारी


(1) राज्य भाण्डागारण निगम की प्राधिकृत पूँजी अधिक-से-अधिक दो करोड़ रुपए तक की ऐसी राशि होगी, जो विहित की जाये और वह पूँजी एक-एक सौ रुपए के अंकित मूल्य वाले शेयरों में विभाजित होगी, जिनमें से प्रथम बार इतनी संख्या में शेयर निर्गमित किये जाएँगे, जितनी निगम द्वारा राज्य सरकार से परामर्श करके अवधारित की जाये और शेष शेयर समय-समय पर जैसे और जब निगम केन्द्रीय भाण्डागारण निगम से परामर्श करके ठीक समझे और राज्य सरकार की मंजूरी से निर्गमित किये जा सकेंगे:

2{परन्तु किसी राज्य भाण्डागारण निगम के बारे में केन्द्रीय सरकार सम्बद्ध राज्य सरकार से परामर्श करके उपर्युक्त प्राधिकृत पूँजी की अधिकतम सीमा को ऐसे विस्तार तक और ऐसी रीति से, जो केन्द्रीय सरकार अवधारित करे, समय-समय पर और राजपत्र में अधिसूचित आदेश द्वारा, बढ़ा सकेगी।,

(2) ऐसी किसी दशा में जब राज्य सरकार ने प्रथम बार निर्गमित शेयर पूँजी और ऐसी पूँजी के पश्चात्वर्ती निर्गमन में ऐसी पूँजी के पचास प्रतिशत के लिये प्रतिश्रुत किया है तब केन्द्रीय भाण्डागारण निगम उस पूँजी के शेष पचास प्रतिशत के लिये प्रतिश्रुत करेगा।

20. राज्य भाण्डागारण निगम का प्रबन्ध


(1) राज्य भाण्डागारण निगम के कार्यकलापों का साधारण अधीक्षण और प्रबन्ध, निदेशक बोर्ड में निहित होगा, जो निम्नलिखित से मिलकर बनेगा, अर्थात:-

(क) पाँच निदेशक, जिन्हें केन्द्रीय भाण्डागारण निगम नाम निर्देशित करेगा, जिनमें से एक निदेशक स्टेट बैंक से परामर्श करके नाम निर्देशित किया जाएगा और कम-से-कम एक निदेशक गैर-सरकारी व्यक्ति होगा,

(ख) पाँच निदेशक, जिन्हें राज्य सरकार नाम निर्देशित करेगी; और

(ग) एक प्रबन्ध निदेशक, जिसकी नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा खण्ड (क) और खण्ड (ख) में निर्दिष्ट निदेशकों से परामर्श करके और केन्द्रीय भाण्डागारण निगम 3{को सूचना देने के बाद, की जाएगी।

(2) निदेशक बोर्ड के अध्यक्ष की नियुक्ति राज्य भाण्डागारण निगम के निदेशकों में से राज्य सरकार द्वारा केन्द्रीय भाण्डागारण निगम 3{को सूचना देने के बाद}, की जाएगी।

(3) प्रबन्ध निदेशक -
(क) ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कर्तव्यों का पालन करेगा जो निदेशक बोर्ड या राज्य भाण्डागारण निगम उसको सौंपे या प्रत्यायोजित करे, तथा

(ख) ऐसा वेतन और ऐसे भत्ते पाएगा, जो राज्य भाण्डागारण निगम द्वारा, केन्द्रीय भाण्डागारण निगम से परामर्श करके और राज्य सरकार के पूर्व अनुमोदन से नियत किए जाएँ।

(4) निदेशक बोर्ड लोकहित का ध्यान रखते हुए कारबारी सिद्धान्तों के अनुसार कार्य करेगा और नीति सम्बन्धी प्रश्नों के बारे में वह अपना मार्गदर्शन ऐसे निदेशों से प्राप्त करेगा, जो राज्य सरकार या केन्द्रीय भाण्डागारण निगम उसे दे।

(5) यदि इस बारे में कोई शंका उत्पन्न होती है कि कोई प्रश्न नीति सम्बन्धी प्रश्न है या नहीं, या यदि राज्य सरकार और केन्द्रीय भाण्डागारण निगम परस्पर विरोधी निदेश देते हैं, तो वह केन्द्रीय सरकार को निर्दिष्ट किया जाएगा, जिसका उस पर विनिश्चय अन्तिम होगा।

(6) राज्य भाण्डागारण निगम के प्रबन्ध निदेशक से भिन्न निदेशक पारिश्रमिक के रूप में ऐसी राशियाँ पाने के हकदार होंगे, जो विहित की जाएँ:

परन्तु कोई शासकीय निदेशक ऐसे किन्हीं भत्तों से, जो उसे उसकी सेवा-शर्तों को विनियमित करने वाले नियमों के अधीन अनुज्ञेय हैं, भिन्न पारिश्रमिक पाने का हकदार नहीं होगा।

(7) निदेशकों की पदावधि और उनमें होने वाली आकस्मिक रिक्तयाँ भरने की रीति ऐसी होगी, जो विहित की जाये।

21. निगम के निदेशक के पद के लिये निरहर्ताएँ


यदि कोई व्यक्ति -
(i) पागल पाया जाता है या विकृतचित्त का हो जाता है, अथवा
(ii) न्यायनिर्णीत दिवालिया है या किसी समय रहा है या अपने ऋणों का चुकाना निलम्बित कर दिया है, या अपने लेनदारों के साथ समझौता कर चुका है, अथवा
(iii) किसी ऐसे अपराध के लिये दोष सिद्ध किया जाता है या किया गया है, जिसमें नैतिक अधमता अन्तर्ग्रस्त है तथा उस अपराध के लिये छह मास से अन्यून कारावास से दण्डादिष्ट किया गया है, किन्तु उक्त दण्डादेश के अवसान की तारीख से पाँच वर्ष की अवधि व्यतीत नहीं हुई है, अथवा
(iv) सरकार की या सरकार के स्वामत्वाधीन और नियंत्रणाधीन किसी निगम की सेवा से हटा दिया गया या पदच्युत कर दिया गया है, अथवा
(v) 1*** किसी राज्य भाण्डागारण निगम के प्रबन्ध निदेशक से भिन्न कोई वैतनिक पदधारी है, अथवा
(vi) राज्य भाण्डागारण निगम के साथ की गई किसी विद्यमान संविदा में या उस निगम के लिये किये जाने वाले किसी काम में वैयक्तिक रूप से कोई ऐसा हित रखता है, जो कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) में यथापरिभाषित पब्लिक कम्पनी के (निदेशक से भिन्न) शेयरधारक के रूप में नहीं है,

तो वह राज्य भाण्डागारण निगम का निदेशक चुने जाने और होने के लिये निरर्ह होगा:

परन्तु जहाँ ऐसा व्यक्ति शेयरधारक है, वहाँ वह भाण्डागारण निगम को यह प्रकट करेगा कि वह उस कम्पनी में किसी प्रकार के और कितने शेयर धारण किए हुए है।

22. निदेशकों का पद से हटाया जाना


(1) राज्य सरकार, केन्द्रीय भाण्डागारण निगम 2{को सूचना देने के बाद, प्रबन्ध निदेशक को उसके पद से किसी भी समय हटा सकेगी किन्तु ऐसा करने के पूर्व वह हटाए जाने के प्रस्ताव के विरुद्ध उसे कारण बताने का उचित अवसर देगी।

(2) निदेशक बोर्ड ऐसे किसी निदेशक को पद से हटा सकेगा, जो -

(क) धारा 21 में वर्णित निरहर्ताओं में से किसी निरर्हता से ग्रस्त है या ग्रस्त हो जाता है, अथवा

(ख) निदेशक बोर्ड की इजाजत के बिना बोर्ड के तीन से अधिक क्रमवर्ती अधिवेशनों से ऐसे कारण के बिना अनुपस्थित रहा है, जो बोर्ड की राय में उसकी ऐसी अनुपस्थिति की माफी के लिये पर्याप्त है।

23. अधिकारियों आदि की नियुक्ति और उनकी सेवा-शर्तें


(1) राज्य भाण्डागारण निगम ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों को नियुक्त कर सकेगा, जिन्हें वह अपने कृत्यों के दक्ष पालन के लिये आवश्यक समझता है।

(2) राज्य भाण्डागारण निगम द्वारा इस अधिनियम के अधीन नियोजित प्रत्येक व्यक्ति ऐसी सेवा-शर्तों के अधीन होगा और ऐसे पारिश्रमिक पाने का हकदार होगा, जो इस अधिनियम के अधीन निगम द्वारा बनाए गए विनियमोें द्वारा अवधारित हों।

24. राज्य भाण्डागारण निगम के कृत्य


इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, राज्य भण्डागारण निगम:-

(क) राज्य के अन्दर ऐसे स्थानों पर, जिन्हें वह केन्द्रीय भाण्डागारण निगम 1{से परामर्श के पश्चात, अवधारित करे, गोदाम और भाण्डागार का अर्जन और निर्माण कर सकेगा,

(ख) राज्य के अन्दर कृषि उपज, बीजों, खादों, उवर्रकों, कृषि उपकरणों और अधिसूचित वस्तुओं के भण्डारकरण के लिये भाण्डागार चला सकेगा,

(ग) कृषि उपज, बीजों, खादों, उवर्रकों, कृषि उपकरणों और अधिसूचित वस्तुओं का भाण्डागारों तक पहुँचाने और वहाँ से लाने के लिये परिवहन की सुविधाओं के लिये व्यवस्था कर सकेगा,

(घ) कृषि उपज, बीजों, खादों, उवर्रकों, कृषि उपकरणों और अधिसूचित वस्तुओं के क्रय-विक्रय, भण्डारकरण और वितरण के प्रयोजनों के लिये केन्द्रीय भाण्डागारण निगम या सरकार के अभिकर्ता के रूप में कार्य कर सकेगा, 2***

3{(घक) राज्य सरकार के पूर्व अनुमोदन से, केन्द्रीय भाण्डागारण निगम के साथ संयुक्त उद्यम में प्रवेश कर सकेगा; और,

(ङ) ऐसे अन्य कृत्य कर सकेगा, जो विहित किये जाएँ।

25. कार्यपालिका समिति


(1) राज्य भाण्डागारण निगम की एक कार्यपालिका समिति होगी जो निम्नलिखित से मिलकर बनेगी, अर्थात

(क) निदेशक बोर्ड का अध्यक्ष,
(ख) प्रबन्ध निदेशक, तथा
(ग) विहित रीति से चुने गए तीन अन्य निदेशक, जिनमें से एक ऐसा होगा, जो धारा 20 की उपधारा (1) के खण्ड (क) में निर्दिष्ट निदेशक है।

(2) निदेशक बोर्ड का अध्यक्ष कार्यपालिका समिति का अध्यक्ष होगा।

(3) निदेशक बोर्ड द्वारा समय-समय पर दिये गए किन्हीं साधारण या विशेष निदेशों के अधीन रहते हुए कार्यपालिका समिति ऐसी किसी बात के बारे में कार्यवाही करने के लिये सक्षम होगी, जिसे करने के लिये राज्य भाण्डागारण निगम सक्षम है।

अध्याय 4


वित्त, लेखा और सम्परीक्षा


26. क्रियाकलापों का कार्यक्रम और वित्तीय प्राक्कलनों का दिया जाना


(1) प्रत्येक वर्ष के प्रारम्भ के पूर्व प्रत्येक भाण्डागारण निगम आगामी वर्ष के दौरान होने वाले अपने क्रियाकलापों के कार्यक्रम का विवरण तथा उससे सम्बन्धित वित्तीय प्राक्कलन तैयार करेगा।

(2) उपधारा (1) के अधीन तैयार किया गया विवरण प्रत्येक वर्ष के प्रारम्भ से कम-से-कम तीन मास पूर्व -

(क) केन्द्रीय भाण्डागारण निगम की दशा में, केन्द्रीय सरकार के समक्ष,
(ख) राज्य भाण्डागारण निगम की दशा में, केन्द्रीय भाण्डागारण निगम और राज्य सरकार के समक्ष,उसके अनुमोदन के लिये रखा जाएगा।

(3) उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी भाण्डागारण निगम के विवरण और वित्तीय प्राक्कलन का पुनरीक्षण या उस भाण्डागारण निगम द्वारा केन्द्रीय भाण्डागारण निगम की दशा में, केन्द्रीय सरकार के अनुमोदन से या राज्य भाण्डागारण निगम की दशा में, केन्द्रीय भाण्डागारण निगम और राज्य सरकार के अनुमोदन से, किया जा सकेगा।

27. भाण्डागारण निगम की उधार लेने की शक्तियाँ


(1) भाण्डागारण निगम, निधियाँ बढ़ाने के वास्ते रिजर्व बैंक से परामर्श करके और समुचित सरकार के पूर्व अनुमोदन से ब्याज बन्धपत्रों और ब्याजू डिबेंचरों का, पुरोधण और विक्रय कर सकेगा:

परन्तु पुरोधृत और परादेय बन्धपत्र और डिबेंचरों को और निगम के अन्य उधारों की कुल रकम किसी भी समय निगम की समादत्त शेयर पूँजी और रिजर्व निधि की रकम के दस गुने से अधिक नहीं होगी।

(2) इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों का निर्वहन करने के प्रयोजन के लिये भाण्डागारण निगम:-

(i) रिजर्व बैंक से, या

(ii) स्टेट बैंक से, ऐसी अवधियों के लिये, जिनके लिये और उन प्रतिभूतियों में से किसी प्रतिभूति पर, जिनके आधार पर वह 1{भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम, 1955 (1955 का 23), के उपबन्ध के अधीन धनराशियाँ, अग्रिम और उधार के तौर पर देने के लिये प्राधिकृत है, 2{या}

2{(iii) किसी 3{ अनुसूचित बैंक} से, या

(iv) ऐसी बीमा कम्पनी, विनिधान न्यास या अन्य वित्तीय संस्था से, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त अनुमोदित की जाये,}

धनराशियाँ उधार ले सकेगा।

(3) उपधारा (1) के परन्तुक के अधीन रहते हुए केन्द्रीय भाण्डागारण निगम केन्द्रीय सरकार से और राज्य भाण्डागारण निगम राज्य सरकार और केन्द्रीय भाण्डागारण निगम से ऐसी प्रतिभूतियों पर और ऐसे निबन्धनों और शर्तों पर, जो प्रत्येक मामले में उधार लेने वाले निगम और उधार देने वाले के बीच में करार पाई जाएँ धनराशियाँ उधार ले सकेगा।

4{(4) राज्य भाण्डागारण निगम के बंधपत्र और डिबेंचर ऐसे बंधपत्र या डिबेंचरों के पुरोधरण के समय राज्य भाण्डागारण निगम के निदेशक बोर्ड की सिफारिश पर समुचित सरकार द्वारा प्रत्याभूत किये जाएँगे।,

28. निक्षेप खाता


भाण्डागारण निगम की सभी धनराशियाँ रिजर्व बैंक या स्टेट बैंक 5{या किसी राष्ट्रीयकृत बैंक}, या इस अधिनियम के अधीन बनाए गए किन्हीं नियमों के अधीन रहते हुए, 6{किसी अन्य अनुसूचित बैंक, या सहकारी बैंक में जमा की जाएँगी।

29. निधियों का विनिधान


भाण्डागारण निगम अपनी निधियों का विनिधान केन्द्रीय या किसी राज्य सरकार की प्रतिभूतियों में या किसी अन्य रीति से कर सकेगा, जो समुचित सरकार विहित करे।

30. लाभों का व्ययन


(1) प्रत्येक भाण्डागारण निगम अपने वार्षिक शुद्ध लाभों में से एक रिजर्व निधि स्थापित करेगा।

(2) भाण्डागारण निगम डूबन्त और शंकास्पद ऋणों, आस्तियों के अवक्षयण और ऐसी सभी अन्य बातों के लिये, जिनके लिये प्रायिक रूप से कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) के अधीन रजिस्ट्रीकृत और नगिमित कम्पनियाँ उपबन्ध करती हैं, उपबन्ध करने के पश्चात अपने वार्षिक शुद्ध लाभों में से लाभांश घोषित कर सकेगा:

31. भाण्डागारण निगम के लेखा और लेखापरीक्षा


(1) प्रत्येक भाण्डागारण निगम उचित लेखा और अन्य सुसंगत अभिलेख रखेगा और लाभ-हानि सहित वार्षिक लेखा विवरण और तुलनपत्र ऐसे प्रारूप में तैयार करेगा, जो विहित किया जाये:-

परन्तु केन्द्रीय भाण्डागारण निगम की दशा में, भाण्डागारण निधि और साधारण निधि से सम्बन्धित लेखे अलग-अलग रखे जाएँगे।

(2) भाण्डागारण निगम के लेखाओं की परीक्षा ऐसे लेखापरीक्षक द्वारा की जाएगी, जो कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) की धारा 226 के अधीन कम्पनियों के लेखापरीक्षक के रूप में कार्य करने के लिये सम्यक रूप से अर्ह है।

(3) उक्त लेखापरीक्षक की नियुक्ति समुचित सरकार द्वारा भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की सलाह पर की जाएगी।

(4) लेखापरीक्षक को भाण्डागारण निगम के वार्षिक तुलनपत्र और लाभ-हानि लेखा की एक-एक प्रति दी जाएगी और उनसे सम्बन्धित लेखाओं और वाउचरों सहित उनकी परीक्षा करना उसका कर्तव्य होगा, और उसको निगम द्वारा बनाए रखी गई सभी बहियों की एक सूची परिदत्त की जाएगी और उसकी सभी सुसंगत समय पर निगम की पुस्तकों, लेखाओं और अन्य दस्तावेजों तक पहुँच होगी और वह निगम के किसी अधिकारी से ऐसी जानकारी और ऐसे स्पष्टीकरण माँग सकेगा, जिन्हें वह लेखापरीक्षक के रूप में अपने कर्तव्य के पालन के लिये आवश्यक समझे।

(5) लेखापरीक्षक अपने द्वारा लेखापरीक्षित लेखाओं और वार्षिक तुलनपत्र और लाभ-हानि लेखा के बारे में शेयरधारकों को रिपोर्ट देगा और ऐसी प्रत्येक रिपोर्ट में वह यह कथन करेगा कि क्या उसकी राय में लेखा से -

(क) तुलनपत्र की दशा में, उसके वित्तीय वर्ष के अन्त में निगम की स्थिति की, तथा
(ख) लाभ-हानि लेखा की दशा में, उसके वित्तीय वर्ष के लाभ या हानि की, सही और ऋजु स्थिति प्रकट होती है तथा यदि उसने अधिकारियों से कोई स्पष्टीकरण या जानकारी माँगी है, तो क्या वह उसे दी जा चुकी है और क्या वह समाधानप्रद है।

(6) समुचित सरकार, किसी भी समय भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के परामर्श से लेखापरीक्षक को यह अपेक्षा करने वाले निदेश दे सकेगी कि वह उन उपायों की पर्याप्तता के बारे में, जो भाण्डागारण निगम ने अपने शेयरधारकों और लेनदारों के संरक्षण के लिये किये हैं, या निगम के लेखाओं की परीक्षा करने में अपनाई गई प्रक्रिया की पर्याप्तता के बारे में, अपनी रिपोर्ट समुचित सरकार को दे और यदि उसकी राय में लोकहित में यह अपेक्षित है, तो लेखापरीक्षा प्रविषय को व्यापक बना सकेगी या बढ़ा सकेगी या यह निदेश दे सकेगी कि लेखापरीक्षा में कोई भिन्न प्रक्रिया अपनाई जाये या यह निदेश दे सकेगी कि लेखापरीक्षक द्वारा कोई अन्य परीक्षा की जाये।

(7) भाण्डागारण निगम लेखापरीक्षक की प्रत्येक रिपोर्ट शेयरधारकों के समक्ष रखी जाने से कम-से-कम एक मास पूर्व उस रिपोर्ट की एक-एक प्रति भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को और केन्द्रीय सरकार को भेजेगा।

(8) इस धारा में इसके पूर्व किसी बात के होते हुए भी, भारत का नियंत्रक-महालेखापरीक्षक स्वप्रेरणा पर, या समुचित सरकार से इस निमित्त प्राप्त निवेदन पर, भाण्डागारण निगम के बारे में ऐसी लेखापरीक्षा कर सकेगा और ऐसे समय पर कर सकेगा जब वह आवश्यक समझे

(9) भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को तथा भाण्डागारण निगम के लेखाओं की परीक्षा करने के लिये उसके द्वारा प्राधिकृत किसी व्यक्ति को, ऐसी लेखापरीक्षा के बारे में वही अधिकार, विशेषाधिकार और प्राधिकार प्राप्त होंगे, जो नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को सरकारी लेखाओं की परीक्षा के बारे में प्राप्त हैं तथा विशिष्टतया उसे लेखा पुस्तकों, लेखाओं, सम्बद्ध वाउचरों और अन्य दस्तावेजों और कागजपत्रों को पेश किये जाने की माँग करने और निगम के कार्यालय का निरीक्षण करने का अधिकार होगा।

(10) भाण्डागारण निगम के वार्षिक लेखे उनकी लेखापरीक्षा रिपोर्ट सहित वित्तीय वर्ष के समाप्त होने से पूर्व छह मास के अन्दर निगम के वार्षिक साधारण अधिवेशन में रखे जाएँगे।

(11) इस धारा के अधीन प्रत्येक लेखापरीक्षा रिपोर्ट साधारण वार्षिक अधिवेशन में रखे जाने के पश्चात एक मास के अन्दर समुचित सरकार को भेजी जाएगी और तत्पश्चात यथाशक्य शीघ्र वह सरकार उसे, यथास्थिति, संसद के दोनों सदनों या राज्य के विधान-मण्डल के समक्ष रखवाएगी।2{31 क. विवरिणयाँ और रिपोर्टें: भाण्डागारण निगम समुचित सरकार को अपनी सम्पत्ति या कार्यों के बारे में ऐसी विवरणियाँ, आँकड़े, लेखे और अन्य जानकारी देगा, जैसी कि वह सरकार समय-समय पर अपेक्षा करे।,

अध्याय 5


प्रकीर्ण


32. रिक्तियों आदि से भाण्डागारण निगमों के कार्यों और कार्यवाहियों का अविधिमान्य न होना


भाण्डागारण निगम का कोई कार्य या कार्यवाही केवल इस कारण अविधिमान्य नहीं होगी कि उसके निदेशकों में कोई रिक्ति या उसके गठन में कोई त्रुटि है।

33. प्रत्यायोजन


भाण्डागारण निगम लिखित रूप में साधारण या विशेष आदेश द्वारा, इस अधिनियम के अधीन अपनी शक्तियाँ और कृत्य, जो वह अपने कृत्यों के दक्ष पालन के लिये आवश्यक समझे, निगम के सचिव या अन्य अधिकारी को ऐसी शर्तों और परिसीमाओं के, यदि कोई हों, जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाएँ, अधीन रहते हुए प्रत्यायोजित कर सकेगा।

34. शेयरधारकों के मताधिकार


भाण्डागारण निगम के शेयरधारकों के किसी अधिवेशन में प्रत्येक सदस्य को निगम में अपने द्वारा धारित प्रत्येक शेयर की बाबत एक मत प्राप्त होगा।

35. केन्द्रीय भाण्डागारण निगम और राज्य भाण्डागारण निगम के बीच विवाद


यदि केन्द्रीय भाण्डागारण निगम और किसी राज्य भाण्डागारण निगम के बीच कोई मतभेद इस अधिनियम के अधीन अपने-अपने कृत्यों और शक्तियों के बारे में हो, तो ऐसा मतभेद केन्द्रीय सरकार को निर्दिष्ट किया जाएगा, जिसका उस पर विनिश्चय अन्तिम होगा।

36. विश्वस्तता और गोपनीयता की घोषणा


भाण्डागारण निगम का प्रत्येक निदेशक, लेखापरीक्षक, अधिकारी या अन्य कर्मचारी अपने कर्तव्य ग्रहण करने से पूर्व अनुसूची में दिये गए प्रारूप में विश्वस्तता और गोपनीयता की घोषणा करेगा।

37. निदेशकों की क्षतिपूर्ति

1 2015 के अधिनियम सं० 16 की धारा 5 द्वारा लोप किया गया।2 1976 के अधिनियम सं० 42 की धारा 9 द्वारा (24-3-1976 से) अंतःस्थापित।(1) भाण्डागारण निगम के प्रत्येक निदेशक की ऐसी सभी हानि और व्यय की, जो उसने अपने कर्तव्यों के निर्वहन में उपगत किया हो, किन्तु जो उसके स्वयं जानबूझकर किये गए कार्य या व्यतिक्रम से न हुए हों, क्षतिपूर्ति सम्बन्धित निगम द्वारा की जाएगी।

(2) भाण्डागार निगम का निदेशक, निगम के किसी अन्य निदेशक या किसी अधिकारी या अन्य कर्मचारी के लिये या किसी ऐसी हानि या व्यय के लिये उत्तरदायी नहीं होगा, जो निगम की ओर से सद्भावपूर्वक अर्जित या ली गई किसी सम्पत्ति या प्रतिभूति के मूल्य की या उसमें हक की अपर्याप्तता या कमी के या निगम के प्रति बाध्यताधीन किसी व्यक्ति के सदोष कार्य के अथवा अपने पद या उससे सम्बन्धित कर्तव्यों के निष्पादन में सदभावपूर्वक की गई किसी बात के फलस्वरूप हो।

38. अपराध


(1) जो कोई किसी भाण्डागारण निगम की लिखित सहमति के बिना, किसी प्रोस्पेक्टस या विज्ञापन में उस निगम के नाम का प्रयोग करेगा, वह कारावास से, जो छह मास तक का हो सकेगा, या जुर्माने से, जो एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डनीय होगा।

(2) कोई न्यायालय सम्बन्धित भाण्डागारण निगम द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी अधिकारी के लिखित परिवाद पर ही उपधारा (1) के अधीन किसी अपराध का संज्ञान करेगा, अन्यथा नहीं।

39. आयकर और अधिकर के सम्बन्ध में उपबन्ध -


आयकर अधिनियम, 1961 (1961 का 43) के प्रयोजनों के लिये भाण्डागारण निगम उस अधिनियम के अर्थ में कम्पनी समझा जाएगा और वह अपनी आय, लाभों और अभिलाभों पर तद्नुसार आयकर और अधिकर देने का दायी होगा

40. भाण्डागारण निगमों का परिसमापन


कम्पनियों या निगमों के परिसमापन से सम्बन्धित विधि का कोई भी उपबन्ध किसी भाण्डागारण निगम को लागू नहीं होगा और ऐसे किसी निगम को, समुचित सरकार के आदेश से ही और उस रीति से, जो वह निर्दिष्ट करे, समापनाधीन किया जाएगा, अन्यथा नहीं।

41. नियम बनाने की शक्ति


(1) समुचित सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिये नियम, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी।
(2) पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम निम्नलिखित के लिये उपबन्ध कर सकेंगे -

(क) वे अतिरिक्त कृत्य जिनका कोई भाण्डागारण निगम पालन कर सकेगा,
(ख) केन्द्रीय भाण्डागारण निगम के निदेशकों के नामनिर्देशन और निर्वाचन की रीति तथा वह अवधि जिसके अन्दर ऐसे निदेशकों का नामनिर्देशन या निर्वाचन किया जाएगा,
(ग) किसी भाण्डागारण निगम के निदेशकों की पदावधि और उनमें होने वाली आकस्मिक रिक्तियाँ भरने की रीति और उनको देय पारिश्रमिक,
(घ) किसी भाण्डागारण निगम की कार्यपालिका समिति के लिये निदेशकों के चुने जाने की रीति,
(ङ) 2{धारा 19 की उपधारा (1) द्वारा या उसके अधीन विनिर्दिष्ट अधिकतम सीमा के अन्दर, किसी राज्य भाण्डागारण निगम की प्राधिकृत पूँजी,
(च) किसी भाण्डागारण निगम द्वारा तैयार किये जाने वाले लेखा के वार्षिक विवरण और तुलनपत्र का प्रारूप,
(छ) किसी अनुसूचित या सहकारी बैंक में किसी भाण्डागारण निगम के धन का जमा किया जाना,
(ज) किसी भाण्डागारण निगम के शेयरों के निर्गमन की रीति, उनके बारे में की जाने वाली माँगे और अन्य सब विषय जो शेयरों के निगर्मन के आनुषंंगिक हैं,
3{(झ) वह प्रारूप जिसमें और वह रीति जिससे भाण्डागारण निगम द्वारा धारा 31क के अधीन विवरिणयाँ, आँकड़े, लेखे और अन्य जानकारी दी जानी है,,
4{(ञ), कोई अन्य बात जो विहित की जानी है या विहित की जाए।

(3) इस धारा के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम बनाए जाने के पश्चात यथाशीघ्र, संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, तीस दिन की अवधि के लिये रखा जाएगा। यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी। यदि उक्त सत्र के, जिसमें वह इस प्रकार रखा गया हो, या पूर्वोक्त बाद के सत्रों के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिये सहमत हो जाएँ तो तत्पश्चात वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा। यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएँ कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात वह निष्प्रभाव हो जाएगा। किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।

42. भाण्डागारण निगमों की विनियम बनाने की शक्ति


(1) भाण्डागारण निगम ऐसी सब बातों के लिये, जिनका इस अधिनियम के उपबन्धों को कार्यान्वित करने के प्रयोजनार्थ उपबन्ध करना आवश्यक या समीचीन हो, समुचित सरकार की पूर्व मंजूरी से ऐसे विनियम, जो इस अधिनियम और इसके अधीन बनाए गए नियमों से असंगत न हो, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, बना सकेगा।

(2) विशष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे विनियम निम्नलिखत के लिये उपबन्ध कर सकेंगे:-

(क) भाण्डागारण निगम के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की सेवा की शर्तें और उनको देय पारिश्रमिक
(ख) वह रीति, जिससे और वे शर्तें, जिनके अधीन रहते हुए केन्द्रीय भाण्डागारण निगम के शेयर अन्तरित किये जा सकेंगे,
(ग) वह रीति, जिससे किसी भाण्डागारण निगम और उसकी कार्यपालिका समिति के अधिवेशन बुलाए जाएँगे, ऐसे अधिवेशनों में हाजिर होने के लिये फीसें और उनमें अपनाई जाने वाली प्रक्रिया,
(घ) भाण्डागारण निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों के कर्तव्य और आचरण,
(ङ) वे शक्तियाँ और कर्तव्य, जो किसी भाण्डागारण निगम के प्रबन्ध निदेशक को सौंपे या प्रत्यायोजित किये जाएँ,
(च) साधारणतया, भाण्डागारण निगम के कार्यकलाप का दक्ष संचालन।

(3) समुचित सरकार किसी विनियम को, जिसे उसने मंजूर किया है, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, विखण्डित कर सकेगी और तब ऐसा विनियम निष्प्रभाव हो जाएगा।

43. निरसन और व्यावृत्तियाँ


(1) धारा 3 के अधीन केन्द्रीय भाण्डागारण निगम स्थापित किये जाने की तारीख से एग्रीकल्चर प्रोड्यूस (डेवलपमेंट एंड वेयरहाउिंसग) कॉरपोरेशन एक्ट, 1956 (1956 का 28) वहाँ तक निरसित हो जाएगा जहाँ तक कि वह राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम अधिनियम, 1962 (1962 का 26) द्वारा निरसित नहीं किया गया है।

(2) ऐसे निरसन के होते हुए भी -

(क) निरसित अधिनियम के अधीन स्थापित केन्द्रीय भाण्डागारण निगम (जिसे इसमें इसके पश्चात उक्त निगम कहा गया है), द्वारा आबंटित शेयरों और निर्गमित शेयर-प्रमाणपत्रों के बारे में यह समझा जाएगा कि वे इस अधिनियम की धारा 3 के अधीन स्थापित निगम द्वारा ऐसे आबंटित और निर्गमित किये गए हैं मानो यह अधिनियम उस दिन को प्रवृत्त था जिसको वे शेयर आबंटित किये गए थे और वे शेयर-प्रमाणपत्र निर्गमित किये गए थे,
(ख) उक्त निगम का प्रत्येक शेयरधारक इस अधिनियम की धारा 3 के अधीन स्थापित निगम में उतने शेयरों का धारक हो जाएगा जितने उक्त निगम में उसके द्वारा धृत शेयरों की संख्या और मूल्य के समतुल्य हों,
(ग) राष्ट्रीय भाण्डागारण विकास निधि की, जो उक्त तारीख से ठीक पूर्व उक्त निगम द्वारा बनाई रखी जाती थी, सभी धनराशियाँ और अन्य प्रतिभूतियाँ इस अधिनियम की धारा 3 के अधीन स्थापित निगम को अन्तरित हो जाएँगी और उसके द्वारा बनाई रखी जाएँगी,

(घ) निरसित अधिनयम के अधीन किये गए किसी कार्य या की गई किसी कार्रवाई को (जिसके अन्तर्गत कोई नियुक्ति, नाम निर्देशन, प्रत्यायोजन या बनाए गए नियम या विनियमन आता है), वहाँ तक जहांँ तक कि वह इस अधिनियम के उपबन्ध से असंगत नहीं है, इस अधिनियम के अधीन किया गया या की गई समझी जाएगी,
(ङ) निरसित अधिनियम के अधीन किसी राज्य भाण्डागारण निगम में उक्त निगम द्वारा धृत प्रत्येक शेयर के बारे में यह समझा जाएगा कि वह इस अधिनियम की धारा 3 के अधीन स्थापित निगम द्वारा तत्स्थानी उस राज्य भाण्डागारण निगम में धृत है, जिसे इस अधिनियम के अधीन स्थापित समझा गया है,
(च) उक्त निगम के सभी अधिकार, दायित्व और बाध्यताएँ, चाहे वे किसी संविदा से या अन्यथा उत्पन्न होती हैं, इस अधिनियम की धारा 3 के अधीन स्थापित निगम के क्रमशः अधिकार, दायित्व और बाध्यताएँ हो जाएँगी,
(छ) निरसित अधिनियम के अधीन किसी राज्य के लिये स्थापित राज्य भाण्डागारण निगम के बारे में यह समझा जाएगा कि वह इस अधिनियम के अधीन उस राज्य के लिये स्थापित राज्य भाण्डागारण निगम है।

अनुसूची


(धारा 36 देखिए)


विश्वस्तता और गोपनीयता की घोषणा


मैं ---------------------- घोषणा करता हूँ कि भाण्डागारण निगम के (यथास्थिति) निदेशक, अधिकारी, कर्मचारी या लेखापरीक्षक के रूप में मुझसे अपेक्षित और उक्त निगम में मेरे द्वारा धारण किये गए, किसी पद या प्रास्थिति से उचित रूप से सम्बन्धित कर्तव्यों का मैं निष्ठापूर्वक, सच्चाई से और अपनी सर्वोत्तम विवेक, बुद्धि, कौशल और योग्यता से निष्पादन और पालन करुँगा।

मैं यह भी घोषणा करता हूँ कि मैं उक्त निगम के कार्य से सम्बन्धित कोई जानकारी ऐसे किसी व्यक्ति को, जो वैध रूप से हकदार न हो, संसूचित नहीं करुँगा और न संसूचित होने दूँगा और ऐसे किसी व्यक्ति को निगम की या उसके कब्जे की तथा निगम के कारबार से सम्बद्ध किन्हीं पुस्तकों या दस्तावेजों का निरीक्षण नहीं करने दूँगा और न उसकी उन तक पहुँच होने दूँगा।

मेरे सामने हस्ताक्षर किये
हस्ताक्षर --------
हस्ताक्षर ----------
हस्ताक्षर ------
तारीख -------------


सन्दर्भ


1. 11989 के अधिनियम सं० 37 की धारा 2 द्वारा लोप किया गया।
2. 218 मार्च, 1963; अधिसूचना सं. सा०का०नि० 463, तारीख 16-3-1963 द्वारा, देखिए भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, धारा 3 (प), पृ० 155 ;
इस अधिनियम का 1955 के अधिनियम सं० 20 की अनुसूची में विनिर्दिष्ट राज्यों को लागू होने के सम्बन्ध में, वही प्रभाव होगा मानो धारा 2 के खण्ड (ङ) के सम्बन्ध में होता: “उस समुदाय के सम्बन्ध में, जिसके बारे में संसद को संविधान की सातवीं अनुसूची की तीसरी सूची की प्रविष्टि सं० 33 के आधार पर नियम बनाने की शक्ति है” शब्दों और अंकों का 1965 के अधिनियम सं० 20 की धारा 2 द्वारा (27-11-1965 से) लोप कर दिया गया था।

3. 3 1976 के अधिनियम सं० 42 की धारा 2 द्वारा (24-3-1976 से) अन्तःस्थापित।
4. 4 1989 के अधिनियम सं० 37 की धारा 3 द्वारा जोड़ा गया।
5. 11976 के अधिनियम सं० 42 की धारा 2 द्वारा (24-3-1976 से) अन्तःस्थापित।
6. 2 1989 के अधिनियम सं० 37 की धारा 4 द्वारा अन्त: स्थापित।
7. 3 18 मार्च, 1963 अधिसूचना सं० सा०का०नि० 464, तारीख 16-3-1963 द्वारा देखिए भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, धारा 3 (i), पृ० 155।
8. 4 1963 के अधिनियम सं० 34 की धारा 2 द्वारा अन्तःस्थापित।
9. 5 1976 के अधिनियम सं० 42 की धारा 3 द्वारा अन्तःस्थापित।
10. 6 1976 के अधिनियम सं० 42 की धारा 3 द्वारा (24-3-1976 से) “केन्द्रीय सरकार” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
11. 1 1976 के अधिनियम सं० 42 की धारा 3 द्वारा (24-3-1976 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
12. 2 2015 के अधिनियम सं० 16 की धारा 2 द्वारा प्रतिस्थापित।
13. 3 2005 के अधिनियम सं० 45 की धारा 2 द्वारा लोप किया गया।
14. 4 2005 के अधिनियम सं० 45 की धारा 2 द्वारा अन्तःस्थापित।
15. 1 2005 के अधिनियम सं० 45 की धारा 2 द्वारा प्रतिस्थापित।
16. 2 2005 के अधिनियम सं० 45 की धारा 2 द्वारा अन्तःस्थापित।
17. 1 2001 के अधिनियम सं० 23 की धारा 2 द्वारा (1-11-2001 से) अन्तःस्थापित।
18. 2 2001 के अधिनियम सं० 23 की धारा 2 द्वारा (1-11-2001 से) “तथा” शब्द का लोप किया गया।
19. 3 2005 के अधिनियम सं० 45 की धारा 4 द्वारा लोप किया गया।
20. 4 2005 के अधिनियम सं० 45 की धारा 4 द्वारा प्रतिस्थापित।
21. 1 1976 के अधिनियम सं० 42 की धारा 4 द्वारा (24-3-1976 से) अन्तः स्थापित।
22. 1 1976 के अधिनियम सं० 42 की धारा 5 द्वारा (24-3-1976 से) अन्तःस्थापित।
23. 2 1976 के अधिनियम सं० 42 की धारा 6 द्वारा (24-3-1976 से) अन्तःस्थापित।
24. 3 2001 के अधिनियम सं० 23 की धारा 3 द्वारा (1-11-2001 से) “के पूर्व अनुमोदन से” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
25. 1 2001 के अधिनियम सं० 23 की धारा 4 द्वारा (1-11-2001 से) कतिपय शब्दों का लोप किया गया।
26. 2 2001 के अधिनियम सं० 23 की धारा 5 द्वारा (1-11-2001 से) “के पूर्व अनुमोदन से” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
27. 1 2001 के अधिनियम सं० 23 की धारा 6 द्वारा (1-11-2001 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
28. 2 2001 के अधिनियम सं० 23 की धारा 6 द्वारा (1-11-2001 से) “तथा” शब्द का लोप किया गया।
29. 3 2001 के अधिनियम सं० 23 की धारा 6 द्वारा (1-11-2001 से) अन्त: स्थापित।
30. 1 1976 के अधिनियम सं० 42 की धारा 7 द्वारा (24-3-1976 से) “भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम, 1955 (1955 का 23)” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
31. 2 1976 के अधिनियम सं० 42 की धारा 7 द्वारा (24-3-1976 से) अन्तःस्थापित।
32. 3 2005 के अधिनियम सं० 45 की धारा 5 द्वारा प्रतिस्थापित।
33. 4 2015 के अधिनियम सं० 16 की धारा 3 द्वारा प्रतिस्थापित।
34. 5 1976 के अधिनियम सं० 42 की धारा 8 द्वारा (24-3-1976 से) अन्तःस्थापित।
35. 6 1976 के अधिनियम सं० 42 की धारा 8 द्वारा (24-3-1976 से) किसी अनुसूचित बैंक” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
36. 7 2015 के अधिनियम सं० 16 की धारा 4 द्वारा लोप किया गया।
37. 1 2015 के अधिनियम सं० 16 की धारा 5 द्वारा लोप किया गया।
38. 2 1976 के अधिनियम सं० 42 की धारा 9 द्वारा (24-3-1976 से) अन्तःस्थापित।
39. 1 2015 के अधिनियम सं० 16 की धारा 6 द्वारा लोप किया गया।
40. 2 1976 के अधिनियम सं० 42 की धारा 10 द्वारा (24-3-1976 से) कतिपय शब्द के स्थान पर प्रतिस्थापित।
41. 3 1976 के अधिनियम सं० 42 की धारा 10 द्वारा (24-3-1976 से) अन्तःस्थापित।
42. 4 1976 के अधिनियम सं० 42 की धारा 10 द्वारा (24-3-1976 से) खंड (ञ) के रूप में पुनःअक्षरांकित।

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