बचपन
उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में स्वामी विज्ञानानन्द का आश्रम गंगा नदी के ओम तट पर भिटौरा गाँव में है। वर्ष 1970 के दिनों में रामशंकर पुत्र रामलखन गाँव बड़नपुर जनपद फतेहपुर में अपने माता-पिता और तीन बहनों के साथ रहते थे। जब रामशंकर की उम्र 13-14 वर्ष की रही होगी, उस समय वह दसवीं कक्षा के छात्र थे। अचानक एक दिन कुछ असाधारण करने की लालसा में रामशंकर सब कुछ छोड़ कर घर से बिना किसी को बताये चले जाता है और 33 वर्ष बाद जब वह अपने गाँव लौटा तो वह पिता के द्वारा रखे गये नाम रामशंकर को छोड़ चुका था। रामशंकर अब स्वामी विज्ञानानंद हो चुके थे।
वर्षों बाद लौटे विज्ञानानंद जब कुछ अलग करने की लालसा में घर से गये थे और अब के गाँव में आये परिवर्तन को देख रहे थे, उन्हें गाँव के किनारे बहती हुई नदी नहीं दिखी जिसमें वह साथियों के साथ नहाया करते थे। उन्होंने बचपन में पढ़ा था कि फतेहपुर जनपद में सात नदियाँ गंगा, यमुना, रिन्द, नोन, पांडु, 'ससुर-खदेरी न.1' तथा 'ससुर खदेरी न.2' बहती हैं उन सात नदियों में एक नदी 'ससुर-खदेरी न.2' उनके गाँव के किनारे बहती थी जो अब नहीं है। जिस जगह नदी थी अब वहाँ खेती हो रही थी। यह देख उन्होंने एक बच्चे से कक्षा पाँच की किताब मंगाई तो यह देख कर वह और भी दंग रह गये पाठ्यक्रम की किताब में फतेहपुर जनपद की पाँच नदियाँ गंगा, यमुना, रिन्द, नोन तथा पांडु ही थीं जबकि उनका यह मत था कि फतेहपुर में सात नदियाँ थी। उनकी यादों में सात नदियों का अस्तित्व था। उन्होंने सरकारी दस्तावेजों में खोजना शुरू किया तो दस्तावेजों में भी पाँच ही नदियाँ दर्ज थीं। 'ससुर-खदेरी न.1' तथा ससुर-खदेरी न.2 ड्रेनिज के नाम से दर्ज थीं। उनके मन में आया कि गाँव के पास बहने वाली नदी 'ससुर-खदेरी न.2' को पुनर्जीवित करने का काम किया जाय।
जब नदी की खोज यात्रा में लगे स्वामी विज्ञानानन्द
विज्ञानानंद ने वर्ष 2005 में ससुर-खदेरी के लिये पदयात्रा प्रारम्भ की। इस 60 किमी की पदयात्रा में उनका बड़ा विरोध हुआ। 6 माह बाद दूसरी पदयात्रा प्रारम्भ की जिसमें उन्हें कुछ जन समर्थन जरूर मिला। एक वर्ष शान्त रहने के बाद तीसरी पदयात्रा प्रारम्भ की जिसमें उन्हें नदी को पुनर्जीवित करने को व्यापक समर्थन मिला। उस समय उत्तर प्रदेश में बहुजन समाजवादी पार्टी की सरकार थी। और जिलाधिकारी गुरुप्रसाद जनपद में तैनात थे। नदी की जमींन पर सरकार ने तमाम पट्टे कर दिये थे जिनको खाली कराना आसान न था। बसपा शासन के दबाव में प्रशासन भी इस कार्य को न करने का मन बना चुका था। बसपा शासन के खेल राज्य मंत्री अयोध्या प्रसाद पट्टों पर काबिज पट्टाधारकों के साथ खड़े थे। जिला मुख्यालय पर धरना प्रदर्शन हुआ। प्रशासन में बैठे अधिकारियों ने शासन के विरोधी स्वरों को देखते हुए नदी को पुनर्जीवित करने के कार्य को सिरे से ख़ारिज कर दिया। इस नदी क्षेत्र में 80 से 100 गाँव आते हैं। शासन और प्रशासन का रुख देखते हुए विज्ञानानंद ने गाँव में पड़ाव डालना प्रारम्भ किया जिससे नदी को पुनर्जीवित करने को जनसमर्थन जुटाया जा सके। इसी दौरान विधान सभा का चुनाव आ गया चुनाव के परिणाम समाजवादी पार्टी के पक्ष में गये और सरकार सपा की बनी।
जमीनी काम करने के बाद कागजी लिखा पढ़ी का कार्य प्रारम्भ किया। सरकार में प्रमुख सचिव कृषि आलोक रंजन थे उनके साथ तीन बैठकें आयोजित की गयीं। बैठकों से वैचारिक दृष्टि से वह तैयार हो गये कि नदी को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए लेकिन जनपद का कोई अधिकारी इस कार्य को हाथ में लेने को तैयार नहीं था। उस समय जिलाधिकारी के पद पर तैनात कंचन वर्मा ने प्रमुख सचिव आलोक रंजन को लिखित एक पत्र भेजा कि नदी को पुनर्जीवित करना सम्भव नहीं है। लखनऊ में तैनात भूगर्भ जल अधिकारी चाहते थे कि नदी को पुनर्जीवित किया जाय। अन्तिम प्रयास को 13 मार्च 2013-14 को एक बैठक लखनऊ में बुलाई गयी जिसमें उनके एक मित्र प्रदीप श्रीवास्तव जो दिल्ली में डीजीपी थे, मनरेगा प्रमुख तथा फतेहपुर जिलाधिकारी कंचन वर्मा को भी बुलाया गया। जिलाधिकारी ने इस कार्य को अव्यावहारिक बताया। लेकिन मनरेगा प्रमुख ने इस कार्य को होना सम्भव इस शर्त पर बताया जब नदी के पुनर्जीवन को मनरेगा कार्ड धारकों की बड़ी संख्या हो। तब विज्ञानानंद ने आश्वासन दिया वह मनरेगा कार्ड धारकों की संख्या 10 हज़ार तक एकत्र कर देंगे। संख्या को देखते हुए मनरेगा प्रमुख ने कृषि प्रमुख सचिव को इस कार्य को सम्पादित कराने की हामी भर दी।
अब बारी थी फतेहपुर जिलाधिकारी को ‘ससुर-खदेरी न.2’ की सफाई कार्य को हाथ में लेने की। बैठक के बाद उन्हें फिर बुलाया गया इस बार कृषि प्रमुख आलोक रंजन ने आदेशात्मक लहजे में जिलाधिकारी कंचन वर्मा को कहा नदी को पुनर्जीवित करना ही है। आदेश को देखते हुए जिलाधिकारी ने भी कहा ठीक है मैं भी पूरा सहयोग करुँगी। 18 मार्च 2014 को कार्य प्रारम्भ करने की तिथि तय की गयी। 14 मार्च को मनरेगा प्रमुख फतेहपुर आ गये और नदी की नाप-जोख शुरू हो गयी।
18 मार्च 2014 को 'ससुर-खदेरी न.2' को पुनर्जीवित करने का कार्य प्रारम्भ हुआ। साढ़े नौ हज़ार मनरेगा कार्ड धारकों ने इस नदी की खुदाई की। लगभग 350 पट्टे निरस्त किये गये। 60 बीघा जमीन जो नदी की थी उसपर भूमिधरी एसडीएम ने कर दी थी उसको भी खाली कराया गया। जिलाधिकारी कंचन वर्मा ने पट्टे धारकों को दी गयी वैधानिकता को ख़त्म किया जो एक बड़ा काम था। नदी के पानी का एक श्रोत पीछे था जिसे अभी पूरी तरह से पुनर्जीवित नहीं कराया जा सका। वर्षाजल का पानी उसी झील में आकार एकत्रित होता था जो नदी के प्रवाह को निरंतर बनाये रखती थी। यह मूल झील ठिठोरा गाँव में थी। यह झील की खुदाई अभी आधी ही हो सकी है इस झील में अब वर्षाजल ठहरने लगा है जिससे आठ माह पानी नदी को मिलने लगा है। नदी में पानी रोकने को जगह-जगह चेक डेम बनाये गये हैं। उनका लक्ष्य था 'ससुर-खदेरी न.1' तथा ससुर-खदेरी न.2 को पुनर्जीवित करना 'ससुर-खदेरी न.2' को पुनर्जीवित कर लिया गया। ससुर-खदेरी न.1 नदी का भी हाल इससे बुरा है वह बड़ी नदी है उसको पुनर्जीवित किया जाना बाकी है।
मालूम हो कि फतेहपुर जनपद प्रदेश का ऐसा पहला जनपद है जिसके 13 ब्लॉक के सापेक्ष 9 ब्लॉक डार्क जोन घोषित किये जा चुके हैं। फतेहपुर जनपद कि भौगोलिक स्थिति इस तरह की है कि यहाँ नदियों का पानी भूगर्भ में न जाकर बह कर निकल जाता है। गंगा यमुना से 40 फीट ऊँची है जिसके कारण नदियों का जल स्राव हो जाता है। ससुर-खदेरी न.2 भिठोरा ब्लॉक के फर्सी गाँव में स्थित झील से प्रारम्भ होती है। 4 किमी बाद अलोला झील है और 8 किमी बाद खिरवा झील है आगे 3-4 बड़े तालाब हैं जिनसे यह नदी पल्लवित होती थी। इन झीलों से होकर जो पानी नदी में प्रवाहित होता था उन मार्गों पर किसानों ने खेती शुरू कर दी मार्ग अवरुद्ध होने के कारण झीलों के पानी से गाँव डूबने लगे गाँव को डूबने से बचाने को एक नाला निकाला गया जिसे गंगा में डाल दिया गया। इस तरह 'ससुर खदेरी न.1' नदी ख़त्म हो गयी। यह नदी न.2 से चार गुना बड़ी है। अप्रैल के आखिरी सप्ताह से 'ससुर खदेरी न.1' के पुनर्जीवन का कार्य प्रारम्भ करना है। दोनों ही नदियाँ वर्षा आधारित हैं। यह दोनों ही नदियाँ कोशाम्बी होती हुई इलाहाबाद के यमुना में जाकर मिल जाती है।
गंगा का कर्ज उतारने को
गंगा नदी के तट पर आश्रम होने के कारण वे रोज देखते थे कि हजारों की संख्या में मूर्तियाँ गंगा में विसर्जित होती हैं। मूर्तियाँ गंगा जी में प्रवाहित करने से प्रदूषण तो बढ़ता ही है, साथ ही स्नान के समय यह मूर्तियाँ पैरों तले आ जाती हैं। वे समझ गये कि प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियाँ तथा अन्य पूजा सामग्री जैसे फल, फूल इत्यादि भी गंगा-प्रदूषण में एक बहुत बड़ा कारण हैं। इसको मद्देनजर रखते हुये स्वामी विज्ञानानंद जी ने इस क्षेत्र में एक नई प्रथा की शुरूआत की और मूर्तियों का भूविसर्जन करवाना शुरू किया। आज मूर्तियों का भूविसर्जन फतेहपुर में एक आन्दोलन बन गया है। और लगभग अस्सी फीसद मूर्तियों का अब भूविसर्जन ही होता है। ऐसा माना जा रहा है कि देवी प्रतिमाओं का जल विसर्जन रुकने से गंगा में जाने वाली लगभग पंद्रह सौ टन गंदगी बच गयी।
जीवन यात्रा और धर्मयात्रा साथ-साथ
विज्ञानानंद ने 33 वर्षों में वेदों का ज्ञान अर्जित किया। बाल्यावस्था में घर से जाने के बाद वह हरिद्वार में विरक्त कुटियों में रहे वहाँ पर रामानन्द नाम के दिगंबर योगाभ्यासी के सानिध्य में एक वर्ष व्यतीत किया। रामानन्द योगाभ्यासी कि सलाह पर गंगोत्री अवधूत रामानन्द जी यहाँ चले गये वहाँ पर 8 वर्ष रहे। वहाँ से फतेहपुर में स्वामी रामानन्द पीली कोठी वाले संत के विरक्त जीवन से प्रभावित हुए। बीच में जोशीमठ वासुदेवानन्द के साथ चार माह रहे, पुरी आदि शंकराचार्य 5 माह रहे, विज्ञानानंद ने 1999 में यज्ञ करवाया जिसमें वासुदेवानन्द जी को बुलाया। 2002 में लौट आये। लौट कर आने के बाद भिठोरा में जहाँ पर गंगा उत्तरायण हो रही हैं वहाँ पर ओम घाट बनवाया और वहीं पर एक आश्रम बनाया। आश्रम के पास ही एक संस्कृत पाठशाला का निर्माण करवाया जिसमें बच्चे कर्मकाण्ड की शिक्षा लेने आते हैं। संस्कृत पाठशाला की मान्यता संदीपन महाविद्यालय से है। खास बात यह है कि इस विद्यालय में किसी भी जाति के बच्चे शिक्षा ले सकते हैं। पाठशाला में पढ़ने वाले बच्चों की सम्पूर्ण व्यवस्था है जिसका कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। जातिवाद का दंश झेल चुके विज्ञानानंद किसी भी बच्चे को जाति के आधार पर शिक्षा देने से वंचित नहीं रखना चाहते हैं। जातिवाद का दंश संस्कृत पाठशाला में पढने वाले बच्चों को भी झेलना पड़ रहा है। जिस महाविद्यालय ने पाठशाला को मान्यता दी है उसने सात वर्षों में कुछ ही बच्चों को पास किया है।
विज्ञानानंद ने एक गौशाला का भी निर्माण किया है जिसमें लगभग 50 साहेवाल गाय हैं खास बात यह है कि गौशाला में साहेवाल प्रजाति के सांड भी हैं जिससे अच्छी नस्ल के बछड़े प्राप्त हो सके। गायों की देख रेख आधुनिक रूप से की जाती है।
उन्होंने अपनी जमींन पर ही एक शमशान घाट का भी निर्माण करवाया है। जब इस बारे में उनसे जानकारी ली इसकी क्या जरूरत आ पड़ी तब उन्होंने बताया कि गंगा किनारे एक दिन वह भ्रमण कर रहे थे उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति अपनी पुत्री का अन्तिम संस्कार करने आया उसके साथ उसका पुत्र भी था। गंगा किनारे बने घाट पर वहाँ पर अन्तिम संस्कार कराने वाले उससे घाट पर अन्तिम संस्कार करवाने कि बहुत ज्यादा फ़ीस माँग रहे थे और वह इतना धन दे नहीं पा रहा था। आखिर में उसे अपनी पुत्री को बिना दाहसंस्कार के गंगा में प्रवाह करना पड़ा। यह मेरे लिये बेहद कष्ट दायक था तब ख्याल आया कि क्यों न एक शमशान बनाया जाय जिसमें बहुत कम फ़ीस में ही दाह संस्कार करने दिया जाय। जिसमें 100 रुपए से 250 रुपए तक ही लिये जाते हैं।
विज्ञानानंद ने वृद्धा अवस्था में घर छोड़ देने वालों के लिये आश्रम में रहने की व्यवस्था की है उनके रहने खाने का प्रबंध बिना किसी प्रतिबंध के किया है। घाट के एक छोर पर वृद्धों के लिये छोटी-छोटी कुटिया बनायी गयी हैं जिससे उनकी निजता में खलल न हो। आश्रम की रसोई में प्रतिदिन 150-200 व्यक्तियों तक की खाने की व्यवस्था होती है। रसोई सुचारू रूप से चलती रहे इसके लिये आधुनिक मशीनों का प्रबंध किया है। ओम घाट पर साधना स्थल बनवाया है जो गहन साधना में लीन साधना करने वालों के लिये है। अतिथियों के लिये अतिथि घर भी हैं। आश्रम में आयुर्वेद पर प्रयोग भी किये जा रहे हैं जिससे आर्थिक दृष्टि में कमजोर व्यक्तिओं को मदद दी जा सके।
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