भारत का जल संकट किसी से छिपा नहीं है। हर साल गर्मियों के दौरान जल संकट का भयानक रूप सामने आता है। इस बार ऐसे समय में जल संकट गहराने लगा है, जब भारत सहित पूरी दुनिया कोविड-19 महामारी से लड़ रही है। किसी इलाके में दो दिन में एक बार पानी की सप्लाई की जा रही है, तो कुछ इलाकों में दिन में एक बार ही नलों में पानी आ रहा है। हालांकि इससे लोगों को थोड़ी राहत जरूर मिली है, लेकिन जिन इलाकों में घरों तक नल ही नहीं पहुंचा या जहां नल तो है, किंतु पानी नहीं पहुंचा, ऐसे इलाकों में लोगों को महामारी के दौरान बूंद-बूंद पानी के लिए दो-चार होना पड़ रहा है। इन विकट परिस्थितियों में भी पानी लाने की जिम्मेदारी महिलाओं के कंधों पर ही रहती है। ये जिम्मेदारियां महिलाओं के कंधों पर कई दशकों से हैं, जहां महिलाओं की समस्या का ध्यान बिल्कुल नहीं रखा जाता है।
2020 शुरु होते ही कोरोना ने दस्तक दे दी थी। ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि गर्मी में कोरोना वायरस मर जाता है, लेकिन इसके कोई प्रमाण या शोध सामने नहीं आए थे। फिर भी पूरी दुनिया गर्मियों का ही उत्सुकता से इंजतार कर रही थी, लेकिन इस बार जलवायु परिवर्तन का ऐसा असर दिखा कि अप्रैल में भी कई जगहों पर ठंड का एहसास हुआ। हिमालयी इलाकों में ओलावृष्टि, भारी बारिश और बर्फबारी हुई। लोगों ने गर्मी का जितना इंतजार किया, गर्मी उतनी ही देरी से आई। कोरोना के बीच गर्मी आते ही, जल संकट भी सामने आ खड़ा हुआ। डेढ़ महीने पहले ही मध्य प्रदेश के 100 निकायों में जल संकट मंडाराने लगा। देश के विभिन्न स्थानों से भी पानी के संकट के मामले सामने आए, लेकिन इस बार फिर जल संकट का मामला मध्य प्रदेश का ही है।
नई दुनिया में प्रकाशित खबर के मुताबिक मध्य प्रदेश के कटनी के माधवनगर हाॅउसिंग बोर्ड बजरंग नगर में पेयजल सप्लाई के लिए पाइप लाइन तो डाली गई है, लेकिन अभी तक पानी का कनेक्शन नहीं हो पाया है। ऐसे में लाॅकडाउन और कोरोना के बीच लोगों को समस्या हो रही है। यहां के लोग पानी के लिए हैंडपंप पर निर्भर हैं, लेकिन भूजल स्तर गिरने के कारण हैंडपंप में भी पर्याप्त पानी नहीं आता है। इसके बावजूद भी हैंड़पंप पर लोगों की काफी भीड़ रहती है। कई बार तो रात भर जागना पड़ता है। इन परिस्थितियों में कोरोना के बीच लोगों की सुरक्षा पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। एक स्थानीय महिला रामवती बाई ने नई दुनिया को बताया कि ‘‘यदि पानी चाहिए तो हैंडपंप से भरने के लिए भी नंबर आना चाहिए। पानी के लिए नंबर लगाने का दौर रात से ही शुरु हो जाता है। कई बार तो पानी के लिए रातभर जागना पड़ता है।’’
खबर के मुताबिक नगर निगग ने एक समय पानी की सप्लाई शुरू कर दी है। नगर निगम पर्याप्त पानी के इंतजाम का दावा कर रहा है, लेकिन वास्तव में पर्याप्त पानी है ही नहीं। जल प्रदाय के कार्यपालनयंत्री सुधीर मिश्रा का कहना है कि ‘‘पेयजल के लिए परेशानी न हो इसके प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन इलाकों में नगर निगम की सप्लाई पहुंचाने का कार्य जारी है।’’ यूं तो ये स्थिति मध्य प्रदेश की है, लेकिन बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ आदि के विभिन्न इलाकों का भी यही हाल है। पिछले साल बीबीसी हिंदी में छपी एक खबर के मुताबि हरियाणा के नूंह जिले के भादस गांव की आबादी करीब 1200 है, लेकिन गांव के लोग खुद पैसे देकर पानी का टैंकर मंगवाते हैं। पानी को स्टोर करने के लिए यहां लोगों ने बड़े बड़े चैंबर (कुंडा) बनवाए हैं। गांव कनेक्शन की एक खबर के अनुसान उन्होंने पिछले साल 19 राज्यों में एक सर्वे किया था। इसके लिए लगभग 18267 लोगों का इंटरव्यू लिया था। इसमें पता चला कि 39.1 प्रतिशत महिलाओं को पानी लेने के लिए घर के बाहर जाना पड़ता है। इनमें से 16 प्रतिशत (2388 महिलाएं) महिलाओं को पानी लेने के लिए 1 से पांच किलोमीटर तक पैदल जाना पड़ता है। 4131 महिलाओं को पानी के लिए 200 मीटर जाना पड़ता है।
‘वन इंडिया’ की खबर के मुताबिक ग्रामीण भारत की महिलाओं को पानी लाने के लिए 14 हजार किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। पैदल चलने की इस पानी की यात्रा में उनके हाथ और सिर पर भरे हुए बर्तनों आदि में पानी का बोझ होता है। पहाड़ी राज्यों की स्थिति भी इसके अलग नहीं है। लोगों को पानी लेने के लिए घर से बाहर जाना पड़ता है, कई जगहों पर तो घर से सैंकड़ों मीटर दूर जाकर पानी लाते हैं। ऐसे में कोरोना को फैलने से रोकना चुनौतीपूर्ण रहेगा और जल संकट का समाधान वक्त और भविष्य की सबसे बड़ी मांग है। साथ पानी का संरक्षण बेहद जरूरी है, क्योंकि ये पानी का संकट महिलाओं के सामने भी कई समस्याएं खड़ी कर रहा है और कई बार पानी के लिए उन्हें अपना सुख-चैन और रातों की नीद का त्याग करना पड़ता है।
हिमांशु भट्ट (8057170025)
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