बुंदेलखंड में पानी के लिए जा रही लोगों की जान

water crisis
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छत्रसाल की इस वीर भूमि पर पहले ताकत के लिए खून बहता था। पर अब पानी के लिए खून बहना शुरू हो गया है। बुंदेलखंड में सूखे के हालात सदियों से चले आ रहे हैं पर कभी पानी के लिए खून से प्यास नहीं मिटाई गई।

छतरपुर, 25 अप्रैल। कम बारिश और सूखे की त्रासदी को बर्दाश्त कर रहे बुंदेलखंड में बूंद-बूंद पानी के लिए लहू बहना शुरू हो गया है। सरकार की तमाम जल संरक्षण की योजनाओं की असलियत खुलनी शुरू हो चुकी है। पानी के लिए प्रदेश सरकार की चिंता का इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि नगरीय प्रशासन विभाग ने राज्य शासन को प्रदेश के 223 निकायों के लिए 39 करोड़ 42 लाख रुपए के प्रस्ताव भेजे थे। लेकिन अभी तक मात्र पांच करोड़ 84 लाख रुपए ही मंजूर किए गए हैं।

बुंदेलखंड में पानी की जद्दोजहद ने जंग के हालात बना दिए हैं। पिछले एक हफ्ते में टीकमगढ़ जिले में जहां एक को मौत के घाट उतारा जा चुका है, वहीं छतरपुर जिले में भी पानी के विवाद के बाद कई राउंड गोली चलने की घटना ने दहशत फैला दी है। टीकमगढ़ जिले के जतारा थाना के ग्राम कंदवा में पानी के विवाद के कारण 70 साल के सीताराम अरजिया की हत्या कर दी थी। दस अप्रैल को हुई इस घटना में खेत पर कुएं के पानी को लेकर सीताराम का अपने पड़ोसी अशोक रावत से विवाद चल रहा था। चार रोज पहले छतरपुर जिले के गौरिहार थाने के ग्राम रेवना में दो गुट पानी को ले कर एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए। रेवन में वीरसिंह और वासुदेव के हैंडपंप से पानी भरने को लेकर विवाद इस हद तक बढ़ा कि दोनों पक्षों ने फायरिंग शुरू कर दी। घटना में कोई हताहत नहीं हुआ पर गांव में दहशत का माहौल है। पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है।

बुंदेलखंड के सूखे के हालात इलाके में यूं तो पानी के लिए साल भर रंजिशों का कारण बनते हैं। कुछ साल पहले छतरपुर जिले के बडामल्हरा में थाने के पीछे नल पोल से पानी लेने के लिए 40 साल के लांडकुंवर ठाकुर की चाकू से गोद कर हत्या कर दी थी। छत्रसाल की इस वीर भूमि पर पहले ताकत के लिए खून बहता था। पर अब पानी के लिए खून बहना शुरू हो गया है। बुंदेलखंड में सूखे के हालात सदियों से चले आ रहे हैं पर कभी पानी के लिए खून से प्यास नहीं मिटाई गई। सूखे से निपटने और शुद्ध पेयजल मुहैया कराने के नाम पर खर्च की गई राशि को देखें तो यहां चारों ओर पानी ही पानी होना चाहिए। यह राशि सरकारी तंत्र को गीला कर गई पर आमजन प्यासा ही रहा। पिछले पांच साल में मात्र नरेगा के तहत बुंदेलखंड के छह जिलों छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ़, दमोह, सागर और दतिया जिले में 84928.22 लाख रुपए भूमि और जल संरक्षण मद पर खर्च कर दिए गए। यह राशि कहां गुम हो गई सर्वविदित है। सरकारी तंत्र और नेताओं के गठजोड़ ने अपनी प्यास मिटा ली।

तालाबों पर हर वर्ष करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद इनकी तकदीर और तस्वीर नहीं बदली। मजबूरन आमजन को हैंडपंपों पर निर्भर होना पड़ा। अब यह हैंडपंप भी रख-रखाव के नाम पर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए डकार जाते हैं। सागर संभाग के हैंडपंपों के राईजर पाइपों का विस्तार करने के लिए लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने 20.62 लाख रुपए की मांग की है। वहीं पेयजल संकट से निपटने के लिए नगरीय प्रशासन ने राज्य शासन को प्रदेश के 223 निकायों के लिए 39 करोड़ 42 लाख रुपए का प्रस्ताव भेजा था जिसके एवज में मात्र पांच करोड़ रुपए स्वीकृत किए हैं। टीकमगढ़ जिले के 13 निकायों के लिए 26 लाख 65 हजार, पन्ना जिले के 6 निकायों के लिए 8 लाख 6 हजार, छतरपुर जिले के 15 निकायों के लिए 44 लाख 5 हजार व सागर जिले के 10 निकायों के लिए 36 लाख 23 हजार रुपए स्वीकृत हुए हैं। यह राशि पेयजल परिवहन पर खर्च की जाएगी।

प्रदेश सरकार के दावे के मुताबिक प्रदेश में 59 हजार से अधिक जल संरचनाओं का निर्माण कर लिया गया है। सरकार और समाज की संयुक्त भागीदारी से इस अभियान पर अब तक 816 करोड़ रुपए अधिक की राशि खर्च की गई है। प्रदेश के सत्ताधारी इस अभियान को अपनी भारी सफलता बताते नहीं थक रहे हैं। गर्मी आते ही इन जल संरचनाओं के बाद भी बूंद-बूंद पानी के लिए युद्ध से हालात क्यों है? इसका जवाब कोई नहीं दे पा रहा है। ये आंकड़े जल संरक्षण की हकीकत दर्शाते हैं कि प्रदेश के 48 जिलों में जमीन का पानी सूख चुका है जिसमें 24 ब्लाक ऐसे है जहां जरूरत से ज्यादा जल दोहन कर लिया गया है।

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