स्वच्छ जल से कल-कल ध्वनि नाद करने वाली कृष्णी नदी के किनारे बसने वाले गांव इस नदी में नहाते थे, पशुओं को पिलाते थे व इस नदी के जल से फसलों की सिंचाई भी किया करते थे। लेकिन अब औद्योगिक कचरों को ढोते-ढोते इस नदी की क्षमता कचरा ढोने की भी नहीं रह गयी है। यह नदी मौत के कगार पर है। आने वाले वर्षों में हो सकता है कि नदी भूगोल के नक्शे से ही समाप्त हो जाये।
नदी शब्द का अर्थ संस्कृत भाषा के कई अर्थों में लिया गया है, इस शब्द को दरिया, प्रवहणी, सरिता, निरन्तर चलने वाली कहा गया है। वैदिक कोष में भी नदी शब्द को कुछ इस प्रकार परिभाषित किया गया है- ‘‘नदना इमा भवन्ति‘‘ अर्थात् नदी कलकल की ध्वनि करने वाली होती है। हमारे देश में नदियों को माता का संज्ञा मिला हुआ है और नदियों के किनारे ही हमारी संस्कृति पनपी। लोग अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए नदियों के किनारे ही अपना घर बनाकर रहने लगे। लेकिन अब मानव समाज अपनी स्वार्थ सिद्धी के लिए इन नदियों को औद्योगिक कचरा, शहरों के गंदे नाले का सीवर डालकर तथा नदियों को पाटकर मार रहा है। इसका एक उदाहरण है कृष्णी नदी। सहारनपुर के खैरी गांव से कृष्णी नदी का उद्गम हुआ है। यह नदी सहारनपुर से निकलकर जिला शामली, मुजफ्फरनगर से होती हुई बागपत के बरनावा में हिडंन नदी में मिल जाती है। भारत उदय एजूकेशन सोसाइटी के कार्यकर्ता जिला बागपत के बरनावा गांव में भ्रमण के दौरान इस नदी के क्षेत्र में संगम को भी देखने गये थे। यहां पर हिंडन व कृष्णी नदी का संगम है। जो सिमट कर एक नाली का रूप ले लिया है।इस नदी के किनारे महाभारतकालीन लाक्षागृह भी खंडहर हो चुका है इसके बारे में जनश्रुति है कि महाभारत के समय कौरवों ने पांडवों को जलाकर मारने के लिए लांख का घर बनाया था। लांख ज्वलनशील होता है जो बहुत तेजी से जलता हैं। लेकिन पांडवों को दुर्योधन के इस षड़यंत्र का पता चल गया था और वे जलते हुए इस घर से सुरंग के माध्यम से निकट बहती हुई कृष्णी नदी को पारकर जान बचाने में सफल रहे थे। इस प्रकार यह नदी महाभारत काल से भी जुड़ी हुई है। आज भी इन नदियों के संगम के पास लाक्षागृह में एक गुरूकुल का संचालन होता है। जो आज भी प्राचीन संस्कृति को संजोये हुए है। इसमें विद्यार्थियों को संस्कृत, वैदिक शिक्षा, गौ सेवा आदि का संचालन किया जाता हैं।
यह नदी सहारनपुर के गांव खैरी से निकलकर नानौता व शामली के पास से होती हुई बरनावा में हिंडन नदी में मिल जाती है। लगभग 150 किलोमीटर की दूरी तय कर औद्योगिक कचरों को ढोती हुई बरनावा में हिंडन नदी में मिल जाती है। लेकिन अब नदी की क्षमता औद्योगिक कचरों को ढोने की भी नहीं रह गयी है। चन्देनामल, धकौड़ी, जलालपुर, सिक्का आदि गांव इस नदी के जल से बुरी तरह प्रभावित है। हाल ही में चन्देनामल गांव में प्रदूषण की वजह से सरकारी कार्यक्रमों बहिष्कार भी कर दिया था। बरसात के मौसम में जब नदियों के उफान से बाढ़ आ रही है, गंगा व यमुना नदी भी अपने उफान पर है, इस मौसम में कृष्णी एक छोटी नाली के रूप में बह रही है। यह इस नदी की करूणादायिक कहानी है। जो हम सबको भावविह्वल कर देती है।
![नदी से नाली बनकर मर रही कृष्णी नदी नदी से नाली बनकर मर रही कृष्णी नदी](/sites/default/files/hwp/import/images/krishna river copy.jpg)
हम अपने आने वाली पीढ़ी को बतायेंगे कि यहां एक कृष्णी नामक नदी बहती थी। जो अब पूर्णतः समाप्त हो गयी। चैगामा क्षेत्र की यह इकलौती नदी है जिससे लोग पहले अपनी प्यास बुझाते थे। अगर इस प्रकार एक-एक कर नदी समाप्त होती गयी तो हमारे पास नदी शब्द ही बचेगा, जल स्रोत नहीं। लेकिन अब हम उस नदी को क्या नदी कहेंगे जिसमें प्रवाह नहीं बचा हो। नदियों में ध्वनि एवं निरन्तर बहना मुख्य गुण समाप्त होते जा रहे हैं। मेरी अपने नदी प्रेमी साथियों से अपील है कि एक-एक नष्ट होती नदियों को हम सबकों मिल कर बचाना है।
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