भारत सरकार की आपत्तियों और आशंकाओं को खारिज करते हुए चीन ने ब्रह्मपुत्र नदी पर बाँध का निर्माण पूरा कर लिया है। इस बाँध के बनने से जहाँ भारत और चीन के बीच ब्रह्मपुत्र नदी का जल विवाद गहरा गया है, वहीं पर प्राकृतिक एवं रणनीतिक रूप से भी भारत के लिये चुनौतियाँ बढ़ गई हैं।
चीन ने ब्रह्मपुत्र नदी पर बाँध बनाकर भारत की चिन्ता बढ़ा दी है। दोनों देशों के बीच कई बार वार्ता होने के बावजूद चीन ने भारत की आशंकाओं और आपत्तियों को दरकिनार करते हुए अपने सबसे बड़ी पनबिजली परियोजना से बिजली उत्पादन शुरू कर दिया है। इस बाँध के बनने से जहाँ भारत और चीन के बीच ब्रह्मपुत्र नदी का जल विवाद गहरा गया है, वहीं पर प्राकृतिक एवं रणनीतिक रूप से भी भारत के लिये चुनौतियाँ बढ़ गई हैं। गर्मी के मौसम में जहाँ चीन ब्रह्मपुत्र नदी के पानी को रोककर भारत के लिये समस्या पैदा करेगा। वहीं भारी बारिश के समय पानी छोड़कर पूर्वोत्तर राज्यों को बाढ़ के चपेट में ला देगा। दूसरी तरफ इस बाँध के बनने से पूर्वोत्तर राज्यों में पानी की आपूर्ति बाधित हो सकती है। चीन की सबसे बड़ी पनबिजली परियोजना- ‘जम हाइड्रोपावर स्टेशन’ चालू हो गई है। करीब 9764 करोड़ रुपए की लागत से बनी यह परियोजना चीन की अति महत्वाकांक्षी पनबिजली परियोजना है। इस बाँध के शुरू होने के पहले से ही भारत-चीन सरकार को अपनी चिन्ताएँ बताता रहा है। लेकिन चीन सरकार ने आशंका को नजरअन्दाज करता रहा है।चीनी अखबारों के मुताबिक चीन सरकार ने कहा है कि वह भारत की चिन्ताओं पर गौर करेगा और इस सम्बन्ध में भारत के साथ सम्पर्क में रहेगा। इस पनबिजली परियोजना को बनाने वाली चीनी कम्पनी ‘चाइना गेझोउबा ग्रुप’ ने सरकारी समाचार एजेंसी ‘शिन्हुआ’ से हुई बातचीत में बताया कि केन्द्र की सभी छह इकाइयों का समावेश पावर ग्रिड में करा दिया गया है। इस बाँध को विश्व की सबसे ज्यादा ऊँचाई पर बने पनबिजली केन्द्र के रूप में जाना जाएगा। भारत की चिन्ताओं के सन्दर्भ में चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग का बयान काबिलेगौर है। उन्होंने कहा कि दोनों देश उच्च स्तरीय यात्राओं के दौरान उठे जल मुद्दों को लेकर दोनों ओर के विशेषज्ञ एक-दूसरे के सम्पर्क में हैं। इस परियोजना से जहाँ चीन समेत तिब्बत के मध्य क्षेत्र में बिजली की कमी दूर होगी, वहीं भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को पानी के लिये प्यासा रहना पड़ सकता है। तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर बाँध को लेकर चीन का कहना है कि वह अपने इलाके में अन्तरराष्ट्रीय नियमों के तहत ही बाँध बनाया है। इससे भारत के हिस्से के पानी का बहाव नहीं रुकेगा।
दूसरी तरफ ब्रह्मपुत्र नदी को लेकर चीन का रवैया शुरू से ही आक्रामक रहा है। भारत को बगैर औपचारिक जानकारी दिये बाँध बनाने की उसकी चाल दोतरफा है। एक तो इससे उसकी बिजली की जरूरतें पूरी होंगी, दूसरे इससे भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के आर्थिक हितों को नुकसान पहुँचेगा।
ब्रह्मपुत्र नदी पर हाइड्रोपावर परियोजना का चालू होना खतरे का संकेत है। सिर्फ सुरक्षा ही नहीं, चीन की इस परियोजना को लेकर पर्यावरणीय चिन्ताएँ भी हैं। सरसरी तौर पर देखने से यह भले ही चीन का आन्तरिक मामला और उसके विकास से जुड़ा दिखे लेकिन ऐसा है नहीं। भारत को इस पर गहरी चिन्ताएँ रही हैं और ये वाजिब हैं। दो साल पहले ही भारत सरकार के एक अन्तर-मंत्रालय विशेषज्ञ समूह ने कहा था कि ब्रह्मपुत्र नदी पर जिस बाँध को चीन बना रहा है, उससे इस नदी के बहाव के भारतीय हिस्से पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। उस दौरान भारत सरकार ने आधिकारिक द्वीपक्षीय वार्ताओं में इस मुद्दे को उठाया। मगर चीन से कोई सन्तोषजनक जवाब नहीं मिला। उसने सिर्फ इतना भर कहा कि चिन्ता की कोई जरूरत नहीं, यह बाँध ऐसा नहीं है, जिसमें पानी जमा कर रखा जाता है। यह पनबिजली परियोजना का हिस्सा है, जिससे बहाव अप्रभावित जारी रहेगा।
इसके बावजूद ऐसी आशंकाएँ कभी दूर नहीं हुई कि चीन इन बाँधों का उपयोग भारत और बांग्लादेश के हिस्से का पानी रोकने और कभी एक साथ ज्यादा पानी छोड़ने के लिये कर सकता है। इसके पीछे कारण चीन की नीतियाँ हैं। वह किसी भी पड़ोसी देश के प्रति सदाशय नहीं रहा है। कई साल पहले गुपचुप तरीके से ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे बसे दागू, जियाचा और जिएक्सू में बाँध बनाने के प्रस्ताव को चीन की कैबिनेट ने मंजूरी दी थी। भारत को पहले तो कोई जानकारी नहीं दी गई, बाद में पोल खुलने पर चीन यह कहता रहा कि यह अध्ययन कर काम को आगे बढ़ाया जा रहा है कि परियोजना से ऊपर और निचले प्रवाह क्षेत्र में मौजूद देशों के हितों पर चोट नहीं पहुँचे। चीन के इस आधिकारिक बयान के बावजूद आशंकाएँ कायम रहीं तो इसके कारण थे। एक तो चीन जो कहता है वह करता नहीं, दूसरे अगर वाकई हितों का ध्यान रखा जाता है तो प्रस्ताव मंजूरी से पहले भारत से इस सन्दर्भ में बातचीत होती। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। चीन पहले ही जांग्मू में 510 मेगावाट बिजली क्षमता वाली एक परियोजना के लिये बाँध बनाने में जुटा था। इस बाँध पर भी काम गुपचुप तरीके से किया गया और सेटेलाइट चित्रों से इसकी पोल खुली।
चीन और भारत के बीच पानी मुख्य सुरक्षा मुद्दे के तौर पर उभर रहा है। यह दोनों देशों के बीच विवाद का एक बड़ा कारण बना हुआ है। ऐसा इसलिये हो रहा है कि गंगा को छोड़कर एशिया की तमाम बड़ी नदियों का उद्गम चीनी नियंत्रण वाले तिब्बती क्षेत्र में है। यहाँ तक कि गंगा की दो प्रमुख सहायक नदियाँ भी यहीं से होकर आती हैं। आज उसकी कुदृष्टि यारलुंग सांगपो (ब्रह्मपुत्र का चीनी नाम) पर पड़ चुकी है और वह इंजीनियरिंग व तकनीकी कौशल से उसका पूरा पानी हड़प कर जाना चाहता है। इसके जरिए वह अपनी प्यास बुझाने में कम, हमें प्यासा मारने का ज्यादा इच्छुक है। इस नदी का पानी बड़े-बड़े टनलों द्वारा चीन येलो नदी तक ले जाना चाहता है, जो उसके अनुसार सूखने के कगार पर है। चीन इस पानी का उपयोग अपने उद्योगों और राजधानी बीजिंग सहित अन्य नगरों की बढ़ती आबादी की प्यास बुझाने में करेगा। वहाँ के पूर्व राष्ट्रपति हू जिनताओ, जिनके दौर में सभी बाँधों की योजना परवान चढ़ी, खुद एक हाइड्रो इंजीनियर रहे हैं और उनकी इस परियोजना में खासी दिलचस्पी रही है।
मजेदार बात तो यह है कि चीन ने अपनी इस परियोजना को मजबूरी के तौर पर पेश किया है। तर्क यह दिया जा रहा है कि इसके कार्यान्वयन के बिना उसके सभ्यता की जननी येलो नदी सूख जाएगी और उसके किनारे आबाद शहर वीरान हो जाएँगे। वैसै थोड़ी बहुत सामान्य ज्ञान की जानकारी रखने वाला व्यक्ति भी बता सकता है कि हाल तक पानी की प्रचुर मात्रा और अपने अनियंत्रित रुख के कारण येलो नदी को ‘चीन का शोक’ कहा जाता था। अब ऐसी बड़ी नदी के एकाएक सूखने की खबर या तो झूठ है या अपने संसाधनों के अन्धाधुन्ध दोहन का नतीजा। जाहिर है, इसके जिम्मेदार हम नहीं जो ब्रह्मपुत्र का पानी खोकर इसका दंड भुगतें। चीन इस मामले में अड़ियल रवैया अपनाने की जिद में है। उससे सदाशयता की कल्पना इसलिये नहीं की जा सकती कि वह पहले मेकांग नदी के साथ ऐसा कर चुका है। उसके जलस्रोत पर कब्जे का नतीजा यह हुआ कि थाइलैंड और लाओस, जहाँ चीन से यह नदी जाती थी, की जलविद्युत परियोजनाएँ बुरी तरह चरमरा गई।
ज्ञात हो कि बाँध बनाने से जुड़ा मामला 2001, 2003 और 2007 में प्रमुखता से प्रकाश में आया था लेकिन भारत सरकार चुप बैठी रही और इसका खामियाजा यह हुआ कि चीन बेरोकटोक बाँध बनाने की योजना में जुटा रहा। उस समय अगर सही प्रतिक्रिया की गई होती तो शायद जांग्मू में बाँध नही बनता। चीन को अपने कदम वापस खींचने पड़ते। इस मामले में बांग्लादेश का भी साथ लिया जा सकता था क्योंकि ब्रह्मपुत्र नदी का प्रवाह क्षेत्र वहाँ भी है। चीन सतलज नदी से जुड़े हमारे समझौते का भी खुला उल्लंघन कर चुका है। समझौते के मुताबिक इस नदी के चीनी प्रवाह क्षेत्र या आस-पास के चीनी इलाके में अगर जलस्तर बढ़ा तो उसकी सूचना उसे हमें देनी थी, लेकिन 2005 में ‘पारी छू’ झील के पानी के बढ़ते जलस्तर की सूचना उसने हमें नहीं दी, फलस्वरूप हिमाचल में बाढ़ की नौबत आ गई और करोड़ों का नुकसान हुआ।
जम हाइड्रो पावर स्टेशन
चीन की सबसे बड़ी और विश्व की सबसे ज्यादा ऊँचाई पर बनी इस पनबिजली परियोजना- जम हाइड्रोपावर स्टेशन से बिजली का उत्पादन शुरू हो गया है। वह पनबिजली परियोजना एक साल में 2.5 अरब किलोवाट प्रतिघंटे बिजली उत्पादन करेगी। इस बाँध के निर्माण पर 9,764 करोड़ रुपए लागत आई है। चीन की प्रमुख कंस्ट्रक्शन कम्पनी ‘चाइना गेझोउबा ग्रुप’ ने इस बाँध का निर्माण किया है। चीन के मुताबिक, इससे तिब्बत में बिजली की किल्लत दूर हो जाएगी। यह बाँध तिब्बत में शन्नान क्षेत्र के ग्यासा काउंटी में स्थित है। यह बाँध तिब्बत की राजधानी ल्हासा से 140 और भारत की सीमा से 550 किमी दूर है। जम हाइड्रो पावर स्टेशन को जांग्मू हाइड्रोपावर स्टेशन के नाम से भी जाना जाता है। हाल ही में जांग्मू हाइड्रो पावर स्टेशन की सभी 6 इकाईयों को पावर ग्रिड से जोड़ दिया गया है। इस पनबिजली परियोजना में ब्रह्मपुत्र नदी के पानी का इस्तेमाल होगा। ब्रह्मपुत्र नदी को तिब्बत में यारलुंग जांगबो के नाम से जाना जाता है।
यह नदी तिब्बत से भारत आती है और फिर वहाँ से बांग्लादेश जाती है। यह परियोजना ब्रह्मपुत्र के ऊपरी हिस्से से बड़े पैमाने पर पानी का दोहन करेगी। चीन पहले ही तिबब्त से भारत आने वाली आक्सास, सिंधु, ब्रह्मपुत्र और इरावती नदियों में रेडियोएक्टिव कचरा बहाकर पानी को दूषित कर चुका है। इस बाँध के बनने से ब्रह्मपुत्र में पानी की आपूर्ति की भारत की चिन्ताओं को चीन ने खारिज कर दिया है। जबकि परियोजना के शिलान्यास के समय से ही भारत इस पर अपना विरोध जताता रहा है। इस बाँध के बन जाने से भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की चिन्ताएँ बढ़ गई है। इस बाँध के बनने के बाद भारत को मुख्य रूप से दो मोर्चों पर सतर्क रहना होगा। पहला, इस बाँध के बनने से भारत प्राकृतिक आपदा का शिकार बन सकता है। ज्यादा बारिश होने और चीन के अचानक पानी छोड़ने से पूर्वोत्तर में भयानक बाढ़ आने की सम्भावना है। दूसरा यह भारत को रणनीतिक चुनौतियाँ भी पेश करेगा। भारतीय विशेषज्ञों ने ब्रह्मपुत्र नदी की रणनीतिक स्थिति को देखते हुए इस परियोजना पर कई मौकों पर चिन्ताएँ जाहिर कर चुका है। विदेश और रक्षा मंत्रालय के सूत्रों का मानना है कि युद्ध जैसी परिस्थिति में ज्यादा पानी छोड़ने से पूर्वोत्तर राज्यों के कई इलाके बाढ़ की चपेट में आ सकते हैं। हालांकि, वर्ष 2013 में भारतीय विशेषज्ञों का एक समूह परियोजना स्थल का दौरा कर चुका है। फिर भी भारत की चिन्ता निराधार नहीं है।
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