बराहक्षेत्र योजना को पीछे ठेलने की कोशिश-मजूमदार समिति का गठन

बराहक्षेत्र बांध की यह योजना 1946 से लेकर 1951 के अंत तक इस प्रकार से खबरों में छाई रही जिससे लगता था कि इस पर किसी भी दिन अमल होना शुरू हो जायेगा। परन्तु कभी बरसात, कभी अर्थाभाव, कभी आंकड़ों का और अधिक विश्लेषण, कभी गण्डक या कोसी में से एक योजना का चुनाव आदि कितने ही कारणों से योजना का कार्यान्वयन टलता रहा। इस बीच परियोजना की अनुमानित लागत 100 करोड़ रुपए से बढ़कर 177 करोड़ रुपए हो गई। नाटक का पटाक्षेप 5 जून, 1951 को हुआ जब कि सरकार द्वारा एस.सी. मजूमदार, परामर्शी इंजीनियर- बंगाल सरकार, की अध्यक्षता में 4 सदस्यों की एक सलाहकार समिति का गठन किया गया जिसमें मजूमदार के अलावा एम.पी. मथरानी, चीफ इंजीनियर, गण्डक वैली, बिहार; एन.पी. गुर्जर, और जी. सुन्दर-चीफ इंजीनियिर (विद्युत), मद्रास सदस्य थे। इस समिति से प्रस्तावित बराह क्षेत्र बांध परियोजना के निम्न मुद्दों पर उनकी राय मांगी गई-

1. योजना ठोस है या नहीं?
2. योजना लागू करने का क्रम ठीक है या नहीं तथा गणना ठीक है या नहीं?
3. सिंचाई तथा विद्युत उत्पादन का अनुमान ठीक है या नहीं?
4. विद्युत उत्पादन के विकास का अनुमान ठीक है या नहीं?
5. योजना के प्रथम 4 अंशों में जो काम होगा उसे बाढ़ से क्षति तो नहीं होगी?

योजना के प्रस्तावों को इस समिति ने आमतौर पर ठीक माना पर कहा कि
(1) योजना के प्रथम चार चरणों में लगभग 48 करोड़ रुपया खर्च होगा और प्रभावी रूप से बाढ़ नियंत्रण 5वें चरण में दिखाई पड़ेगा।
(2) योजना के सातवें क्रम में बराहक्षेत्र में 60 करोड़ की लागत से बिजली’ घर बनेगा जो कि 18 लाख किलोवाट बिजली पैदा करेगा। यह कहा गया कि समूचे भारत में सारे स्रोतों को मिलाकर 17.5 लाख किलोवाट बिजली पैदा होती है। भारत के सभी बिजली घरों में सबसे अधिक बिजली की वार्षिक मांग 11 लाख किलोवाट है। 1940 से 1950 तक बिजली की मांग 50 हजार किलोवाट प्रतिवर्ष की दर से बढ़ी है। अगले दस वर्षों में इसके कुछ और बढ़ने के अनुमान हैं। नए बन रहे बिजली घर 10 लाख किलोवाट अतिरिक्त बिजली पैदा करेंगे। इस प्रकार बराहक्षेत्र में पैदा होने वाली बिजली एक लम्बे समय तक बिना इस्तेमाल के पड़ी रहेगी। अतः एक बड़ी पूंजी का फजूल ढंग से लम्बे समय तक फंसे रहने और बाढ़ नियंत्रण का लाभ देर से मिलने की दलील देते हुये समिति ने एक दूसरी योजना की सिफारिश की।

इन सिफारिशों में खर्च हुये बुद्धि कौशल, विवेक और दूरदर्शिता पर टिप्पणी नहीं करना ही उचित है पर इसका इतना तात्कालिक परिणाम जरूर निकला कि पिछले 6 वर्षों से कोसी को नियंत्रित कर लेने की उभरती उम्मीदों पर सिरे से पानी फिर गया।

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Post By: tridmin
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