बोलंगीर प्यासा क्यों

चकाचौंध से अभी भी कोसों दूर उड़ीसा के बाकी देहाती कस्बों जैसा ही है बोलंगीर। एक लाख से थोड़ी ज्यादा आबादी का छोटा शहर और दिल्ली और गुडगांव जैसे शहरों से लगभग दोगुनी औसत वर्षा के बावजूद भी बोलंगीर प्यासा क्यों? बोलंगीर कोई रेगिस्तान का हिस्सा नहीं है। पूरे शहर में 100 छोटे-बड़े तालाबों का जाल बिछा हुआ है।

उड़ीसा के पश्चिम अंचल का एक जिला है बोलंगीर। हालांकि किसी परिचय का मोहताज नहीं है यह इलाका। भूख से मौतों के लिए चर्चा में रहने वाले ‘केबीके’ को आप जानते ही होंगे। केबीके का अर्थ है कालाहांडी, बोलंगीर और कोरापूट। इन तीन जिलों से बने इलाके को भारत का सबसे गरीब क्षेत्र माना जाता है। यह तीनों ही उड़ीसा के जिले हैं। प्राकृतिक रूप से सम्पन्न इस इलाके के कोरापूट को तो उड़ीसा का कश्मीर भी कहा जाता है। इनके बीच का ही बोलंगीर जिले का मुख्यालय बोलंगीर कस्बा इन दिनों गम्भीर जलसंकट से जूझ रहा है।

चकाचौंध से अभी भी कोसों दूर उड़ीसा के बाकी देहाती कस्बों जैसा ही है बोलंगीर। एक लाख से थोड़ी ज्यादा आबादी का छोटा शहर और दिल्ली और गुडगांव जैसे शहरों से लगभग दोगुनी औसत वर्षा के बावजूद भी बोलंगीर प्यासा क्यों? बोलंगीर कोई रेगिस्तान का हिस्सा नहीं है। पूरे शहर में 100 छोटे-बड़े तालाबों का जाल बिछा हुआ है। हरियाली और वनस्पतियां जी-भर के प्रकृति ने इस इलाके में बिखेर रखा है। फिर आखिर बोलंगीर के हिस्से प्यासा होने की शर्मिंदगी क्यों?

एकसमय में एक स्थानीय राजशाही की राजधानी रहे बोलंगीर में पानी का प्रबंधन भी शाही था। अपने तालाबों की बदौलत आत्मनिर्भर था बोलंगीर। रानी बांध, गडसर बांध, करंगाकांटा बांध, प्रताप सागर, महारानी सागर, नरसिंह बाँध, गेट सरोवर और घीकुनरी बाँध सहित 100 से ज्यादा बांध और सागर शहर के लोगों की प्यास बुझाते थे। स्थानीय भाषा में सागर और बांध कहे जाने वाले तालाबों के अलग-अलग रूप आपस में जुड़े हुए थे और पूरे नगर को पानी की आपूर्ति करते थे। पर बोलंगीर का जीवन में रस भरने वाले ये तालाब अनदेखी के शिकार हो गये। तालाबों की अनदेखी आज बोलंगीर के जीवन से रस छीन रहा है। बोलंगीर अपने अकुशल जल प्रबन्धन और अपर्याप्त आपूर्ति व्यवस्था के लिये बदनाम हो रहा है।

तालाब आराम से नगरवासियों की पानी की जरूरत पूरी कर देते थे। सन् 2000 तक शहर में स्थित 107 एकड़ के महारानी सागर तालाब से पानी की आपूर्ति शहर में की जाती थी, इसके बाद धीरे-धीरे इस पर कब्जा होने लगा। समाज और प्रशासन की चुप्पी की वजह से तालाब को बेकार बना दिया गया। तालाब का कैचमेंट खत्म हुआ तो पानी की आपूर्ति कम हो गयी। लोगों की प्यास बुझाने के लिए बोलंगीर के जल विभाग को नगर से 16 किमी दूर सुक्तल नदी से पानी लेना शुरु करना पड़ा, लेकिन चूंकि यह नदी बारहमासी नहीं है, इसलिये शहर की बढ़ती जनसंख्या माँग का बोझ सहन नहीं कर पायी। अब शहर से 50 किमी दूर स्थित महानदी से पानी की आपूर्ति की जा रही है। जल आपूर्ति के साथ कईं समस्याएं भी आ गईं जैसे लम्बी पाइप लाइन में लीकेज, और रास्ते में पड़ने वाले खेतों के किसानों द्वारा इसमें छेद करके पानी निकाल लिया जाना आदि।

स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता संजय मिश्रा कहते हैं कि “यह सच है कि जमीन पर स्थित सभी जलस्रोत बारहमासी नदियाँ नहीं हैं, लेकिन एक बेहतर योजना और उत्तम प्रबन्धन की मदद से इन जलस्रोतों को पुनर्जीवित किया जा सकता है और इससे काफी आसानी होगी...”। वे आगे कहते हैं, “आज भी गर्मी के दिनों में भी महारानी सागर तालाब लगभग 20,000-30,000 लोगों के नहाने और पीने का पानी देता है...”।

एक और वरिष्ठ समाजसेवी शशिभूषण पुरोहित कहते हैं, “बोलंगीर शहर के निवासियों ने आज तक कभी भी जलसंकट का सामना नहीं किया, यहाँ तक कि बहुत कम बारिश होने के बावजूद भी। पूरे शहर में लगभग 100 छोटे-बड़े तालाब हैं जिन्हें नहरों के नेटवर्क बनाकर लक्ष्मीजोर बाँध, रानी बाँध, करंगा काटा, नरसिंह बाँध, गेट सरोवर, घीकुनरी बाँध आदि से जोड़कर पानी की सतत आपूर्ति सुगम बनाई जा सकती है...”।

चार साल पहले शहर के कुछ स्थानीय उत्साही युवकों ने महारानी सागर तालाब को अतिक्रमणमुक्त बनाने के लिये एक सक्रिय अभियान चलाया था। “महारानी सागर सुरक्षा परिषद” के बैनर तले रैलियों तथा चक्काजाम का आयोजन भी किया ताकि जनता के बीच जागरुकता फैले और प्रशासन पर अतिक्रमण हटाने का दबाव बने। इन युवाओं ने अपनी तरफ से इस कार्य के लिये श्रमदान करने की पेशकश भी की, लेकिन इस समूह के युवाओं को प्रशासन और पुलिस ने परेशान किया, हालांकि गिरतार नहीं किया लेकिन “शान्ति भंग करने” के आरोप में उन पर मुकदमे कर दिए। परिषद के समन्वयक सत्य सुन्दर भंज कहते हैं कि “वर्षों तक प्रशासन ने इस तालाब की घोर उपेक्षा करके इसे एक तरह से कचरा फेंकने का मैदान बनाकर रख दिया था, मजबूरी में हमें आंदोलन चलाना पड़ा, हमारे खिलाफ झूठे मुकदमे हमारे उत्साह को कम नहीं कर सकते।“

शहर की जल आपूर्ति की देखरेख करने वाले लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के अधिकारी कहते हैं कि हम बराबर माँग के अनुसार पानी की सप्लाई कर रहे हैं। विभाग के अनुसार बोलंगीर शहर को पचास किमी लंबी पाइपलाइन द्वारा महानदी से पम्प करके और शहर के अंदर स्थित दो प्रोडक्शन कुंओं से औसतन एक हजार एलपीसीजी पानी की सप्लाई रोजाना की जा रही है। लेकिन लोग इसे मानने को तैयार नहीं हैं, वैध पाइपलाइन के जरिये पानी लेने वाली सुकान्ता साहू शिकायत करती हैं कि उन्हें “पाँच से सात दिनों में एक बार एक घण्टे से भी कम पानी दिया जाता है।“ एक पत्रकार सुदीप गुरु का कहना है, ‘लोग पानी के लिये पैसा खर्च करने को तैयार हैं, लेकिन जब पानी ही नहीं आता तो पानी का वैध कनेक्शन लेने का क्या मतलब।‘

चार साल पहले शहर के कुछ स्थानीय उत्साही युवकों ने महारानी सागर तालाब को अतिक्रमणमुक्त बनाने के लिये एक सक्रिय अभियान चलाया था। “महारानी सागर सुरक्षा परिषद” के बैनर तले रैलियों तथा चक्काजाम का आयोजन भी किया ताकि जनता के बीच जागरुकता फैले और प्रशासन पर अतिक्रमण हटाने का दबाव बने। इन युवाओं ने अपनी तरफ से इस कार्य के लिये श्रमदान करने की पेशकश भी की, लेकिन इस समूह के युवाओं को प्रशासन और पुलिस ने परेशान किया, हालांकि गिरतार नहीं किया लेकिन “शान्ति भंग करने” के आरोप में उन पर मुकदमे कर दिए।

विभाग द्वारा अपलब्ध कराए गए आंकड़ों से सुदीपगुरु की बात की पुष्टि होती है, शहर में सिर्फ 3500 घरों में नल कनेक्शन दिये गये हैं, जबकि बाकी के लोग सार्वजनिक नलों या कुओं-तालाबों पर निर्भर हैं। फिर भी अपनी नाकामी छिपाने के लिये, जल संसाधन विभाग, विद्युत विभाग पर आरोप लगा रहा है।

एक कार्यकर्ता हेमन्त पाण्डा कहते हैं कि “काफी दूरी से पानी लाने में कई तरह की समस्याएं आती हैं, लेकिन अपनी जिम्मेदारी से भागने के लिये जल संसाधन विभाग और विद्युत विभाग आपस में एक-दूसरे पर दोषारोपण में व्यस्त हैं...पेयजल के मुद्दे को जनता के मूलभूत अधिकार की तरह देखना चाहिये और यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इसे उपलब्ध करवाये, लेकिन बोलंगीर में सिर्फ 35 फीसदी जनता को ही पानी मिल पाता है, वह भी अनियमित और बहुत कम मात्रा में, जबकि बाकी के लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं...इस भीषण जलसंकट के लिये प्रशासनिक कमियाँ और राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी ही मुख्य कारण है, एक तरह से कहा जाये तो यह संकट स्वयं हमने अपने ऊपर ओढ़ लिया है क्योंकि हम भूल गये थे कि जलसंकट से निपटने में तालाबों की मुख्य भूमिका होती है...”।

जब इस जलसंकट के बारे में बात की गयी तो बोलंगीर नगरनिगम की अध्यक्षा दमयन्ती बाघ ने कहा कि “रोजाना हमारे पास पानी नहीं मिलने, खराब मिलने आदि की 20 शिकायतें आती हैं, हम भी समस्या से वाकिफ हैं, लेकिन लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग को दूरी की वजह से लगातार पानी की आपूर्ति करने में परेशानी आ रही है... उंहोंने वादा किया कि इस मुद्दे पर जिला प्रशासन और विधायक-सांसद से बात की जाएगी, तथा जल्द से जल्द इसका हल निकाल लिया जायेगा...। सबसे पहले महारानी सागर तालाब को गहरा और पुनर्जीवित करने की योजना पर काम करेंगे, इसके बाद अन्य तालाबों की तरफ भी ध्यान दिया जायेगा”।

परिषद के कार्यकर्ता भंज कहते हैं कि शहर के तालाबों का ही प्रबन्धन कर लिया जाये तो पानी की समस्या स्थानीय स्तर पर ही हल हो जायेगी। पानी की सप्लाई के लिये केन्द्रीकृत व्यवस्था से अधिक समस्याएं हो रही हैं, 50 किमी दूर से पानी लाने पर लो-वोल्टेज तथा पाईपलाइन लीकेज की समस्या भी पानी की पूर्ति में बाधा डालते हैं।

हालांकि अब प्रशासन धीरे-धीरे नींद से जाग रहा है, और तालाबों के नवीनीकरण की योजनाएं सामने आने लगी हैं, लेकिन जब तक यह नहीं होता तब तक बोलंगीर एक ऐसे शहर का बदतरीन उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है, जहाँ पानी तो बहुत अधिक मात्रा में है, लेकिन लोग प्यासे हैं। योजनाकारों की दूरदृष्टि के अभाव और कुप्रबन्धन की वजह से बोलंगीर में प्यास है और लोग मुश्किल में हैं। बाकी शहरों के लिए उदाहरण है बोलंगीर। (इंडिया वाटर पोर्टल)

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