बांदा, जखनी गांव : आज भी खरी है मेड़बंदी

उमा शंकर पाण्डेय
उमा शंकर पाण्डेय

मेड़बंदी हमारे पुरखों की सबसे पुरानी भूजल संरक्षण विधि है। "खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़"। माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने मेड़बंदी के माध्यम से भूजल रोकने के लिए देशभर के प्रधानों को पत्र लिखा है। वर्षा बूंदे जहां गिरें वही रोकें। जिस खेत में जितना पानी होगा, खेत उतना अधिक उपजाऊ होगा। मेड़ ने खेत को पानी दिया, खेत ने पानी पिया, पड़ोसी खेत को दिया, फिर खेत ने तालाब को दिया, तालाब ने कुएँ को, कुएँ ने गांव को, गांव ने नाली को, नाली ने बड़े नाले को, नाले ने नदी को, नदी ने समुद्र को, समुद्र ने सूर्य को, सूर्य ने बादल को, बादल ने खेत को। यही कहानी मैंने बचपन में सुनी यह एक सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया है। मानव जीवन की सभी आवश्यकताएं जल पर निर्भर हैं तभी तो जल ही जीवन कहा गया है। मैं गांव का हूं, हमारे पुरखे प्रतिवर्ष जून माह में अपने खेत में मेड़बंदी करते थे। किसान थे, मेड़ बंदी के फायदे बताते थे। खेत-खलिहान, कृषि, मौसम के परंपरागत वैज्ञानिक लोक कवि घाघ ने पानी रोकने के लिए मेड़बंदी को उपयुक्त माना है। जल ग्राम के रूप में देश में पहचान रखने वाले गांव जखनी के किसानों का एक ही नारा है "खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़।" समुदाय के आधार पर अपने संसाधनों से 25 वर्ष से मेड़बंदी कर रहे हैं।

मनुष्य को जब से भोजन की आवश्यकता पड़ी होगी उसने भोजन का आविष्कार किया होगा। किस स्थान पर भोजन उगाया जाए? फसलें पैदा की जाएं जमीन खोजी होगी खेत बनाया होगा। खाद्यान्न-अन्न पैदा करने के लिए खेत का निर्माण तय हुआ होगा तभी से मेड़बंदी जैसी जल संरक्षण की विधि का आविष्कार हुआ होगा। यह हमारे पुरखों की विधि है जिन से खेत खलिहान का जन्म हुआ है एवं जिन्होंने जल संरक्षण परंपरागत प्रमाणित सर्वमान्य मेड़बंदी विधि का आविष्कार किया है जिसमें किसी प्रकार की कोई तकनीकी शिक्षा नवीन-ज्ञान, वैज्ञानिक ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती है।

मेड़बंदी से खेत में वर्षा का जल रुकता है, भू जल संचय होता है इससे भूजल स्तर बढ़ता है, गांव की फसलों- को जलभराव एवं अभाव के कारण होने वाले नुकसान से बचाता है। प्रायः भूमि के कटाव के कारण मृदा के पोषक तत्व खेत से बह जाते हैं, मेड़ बंदी के कारण मृदा कटाव रुक जाता है जिससे पोषक तत्व खेत में ही बने रहते हैं जो पैदावार के लिए आवश्यक हैं। नमी संरक्षण के कारण फसल अवशेष के सड़ने से खेत को परंपरागत जैविक खाद ऊर्जा प्राप्त होती है। मेड़बंदी से एक ओर जहां भूमि का खराब होने से बचाव होता है वहीं पशुओं को मेड़ पर शुद्ध चारा भोजन प्राप्त होता है। मेड़बंदी, नाका बंदी, चकबंदी, घेराबंदी, हदबंदी, छोटी मेड़बंदी, बड़ी मेड़बंदी, तिरछी मेड़बंदी सुविधानुसार अलग- अलग क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। धान, गेहूं की फसल तो केवल मेड़बंदी से रुके जल से ही होती है। हमारे पूर्वज जल रोकने के लिए खेत के ऊपर फलदार, छायादार औषधि पेड़ लगाते थे जिसकी छाया खेत में फसल पर कम पड़े जैसे बेल, सहजन, सागोन, करोंदा, अमरूद, नींबू, आदि। यह पेड़ इमारती लकड़ी, आयुर्वेदिक औषधियां, फल के साथ-साथ अतिरिक्त आय भी देते हैं। इन पेड़ों की छाया खेत में कम पड़ती है, इनके पत्तों से जैविक खाद मिलती है, पर्यावरण शुद्ध रहता है। मेड़ के ऊपर हमारे पुरखे अरहर, मूंग, उड़द, अलसी, सरसों, ज्वार, सन जैसी फसलें पैदा करते थे जिन्हें पानी कम चाहिए। मेड़बंदी से उस भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है जहां-जहां जल संकट है, उसका एकमात्र उपाय यह है कि वर्षा जल को अधिक से अधिक खेत में मेड़बंदी के माध्यम से रोका जाए।

विश्व में हमारी आबादी 16% है जबकि जल संसाधन मात्र 2% हैं। 8 जून 2019 को माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने देश भर के प्रधानों को पत्र लिखा कि मेड़बंदी कर खेत में वर्षा बूंदों को रोकें। जखनी का यह मंत्र संपूर्ण भारत में बगैर प्रचार-प्रसार के पहुंच गया "खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़"। हमारे देश में बड़ी संख्या में नहर, तालाब, कुओं, निजी ट्यूबवेल के सिंचाई साधन होने के बावजूद भी कई करोड़ हेक्टेयर भूमि की खेती वर्षा जल पर निर्भर है। लाखों गांवों में वर्तमान में जल संसाधन उपलब्ध नहीं हैं। वर्षा तो मेड़बंदी करें, यह कोई बड़ी तकनीक नहीं है। 3 फीट चौड़ी 3 फीट ऊंची मेड़ बनानी है।

बुंदेलखंड के कई इलाकों में एक ही फसल पैदा होती है। जब तक दो फसल नहीं पैदा होती किसान गरीब रहेगा, इसके लिए पानी जरूरी है। खेत में 4 माह पानी रहेगा नमी रहेगी फसल सुंदर होगी। मेड़बंदी से जल रोकने का उल्लेख मत्स्य पुराण, जल संहिता, आदित्य स्त्रोत के अलावा वेदों में भी खासकर ऋग्वेद में मिलता है।

कुशा को खेत की मेड़ पर पैदा करो, जल क्रांति के लिए मेड़बंदी आवश्यक है। देश में जल संकट है। सौराष्ट्र कच्छ क्षेत्र में 1205 फीट गहराई तक पानी नहीं मिला, राजस्थान के कई जिलों में मालगाड़ी से पानी लाया जाता है, बोतलबंद पानी की मांग बढ़ रही है।

वर्तमान में कोरोना जैसी भयंकर बीमारी के डर से लाखों मजदूर शहर से गांव में हैं। बरसात का समय है, खेत खाली हैं, मजदूरों को रोजगार चाहिए। मनरेगा जैसी महत्वपूर्ण योजना हमारी ग्राम पंचायतों के पास है, इस योजना से बड़ी संख्या में पलायन रुकेगा, रोजगार मिलेगा, किसान मजबूत होगा। खेत से पशु, पक्षी, जीव, जंतु, पेड़-पौधों को पानी मिलेगा। धान, गेहूं, पान, गन्ना, कपास, सब्जियों, पशु औषधियों को मेड़बंदी के माध्यम से पानी मिलता है।

खेत में पानी रोकने से गांव का भूजल स्तर बढ़ेगा। बुंदलेखंड के कई जिलों के सैकड़ों गांवों में खुद किसानों ने अपने पैसे से मेड़बंदी की है, देखा है, सीखा है किया है। अपने श्रम से कुछ प्रधानों ने अपने गांव के किसानों के खेतों में मेड़बंदी कराई है। सरकार की योजना से भी कुछ जगह मेड़बंदी हुई है। परिणाम उचित रहे हैं, कुछ साथियों ने भारत के कई सूखा प्रभावित राज्यों के गांव में खेतों में मेड़बंदी करके जल रोका है उन गांवों का जल स्तर बढ़ा है। ग्रामीण विकास मंत्रालय तथा जल शक्ति मंत्रालय ने पूरे देश के सूखा प्रभावित गांवों में संदेश दिया है कि अपने खेतों में मेड़ बनाओ, हर गांव को जल ग्राम बनाओ।

जल शक्ति मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय, लघु सिंचाई विभाग सभी से मेरा अनुरोध है कि सारी योजनाओं को कुछ समय के लिए रोक कर केवल वर्षा जल रोकने के लिए उपाय करें, परिणाम आपके सामने तुरंत मिल सकते हैं। बुंदेलखंड की 6 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि वर्षा जल पर आधारित है। इन खेतों में मेड़बंदी कर जल रोका जा सकता है। जिन गांवों के किसानों ने अपने संसाधन, श्रम मेहनत से मेड़बंदी की है उन गांवों के खेत जल संपन्न हो रहे हैं। बुंदेलखंड के इलाके में कभी बासमती धान पैदा नहीं होता था लेकिन पिछले वर्ष बुंदलेखंड के सभी जिलों में 10 लाख कुन्तल से अधिक बासमती पैदा हुआ है साथ ही सामान्य धान उत्तर प्रदेश सरकार ने किसानों से 184 करोड़ रुपए का खरीदा है। यह मेड़बंदी का कमाल है जखनी के मंत्र का कमाल है। मेड़बंदी के कारण भूजल स्तर बढ़ा है। जिसे देखना हो बांदा जनपद के जखनी क्षेत्र में देख सकता है। जन, जंगल, जानवर, जल, जमीन खुश हुई तो देश खुशहाल होगा। हमें खुशी है कि पंरपरागत मेड़बंदी जल संरक्षण विधि को देश में जखनी के नाम से जाना जाने लगा है। इस विधि में ना तो किसी विज्ञान की जरूरत है ना आधुनिक यंत्रों की जरूरत है ना ही किसी के धन की। पुरखों की इस विधि के लिए फावड़ा बांस की टोकरी चाहिए। कोई भी पढ़ा-लिखा अनपढ़, बालक, वृद्ध, नौजवान अपने खेत में मेड़बंदी कर सकता है। एक व्यक्ति को जीवन में 70 हजार लीटर पीने का पानी लगता है। संपूर्ण शरीर में लगभग 80% पानी है। पानी से बिजली बनती है। पानी से अमृत। पानी में देवताओं का वास है, जन्म से मृत्यु तक जल ही असली साथी है। जल बचाएं। पानी बनाया नहीं, केवल बचाया जा सकता है।

सपंर्क करेंः उमा शंकर पाण्डेय, जल ग्राम मेड़बंदी यज्ञ अभियान, पोडाबाग राजपूत कन्वेंट स्कूल के सामने, अलीगंज, बांदा, उत्तर प्रदेश-210 001

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Post By: Kesar Singh
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