छत्तीसगढ़ के नक्सल इलाके के गांव दक्कोटोला के लोगों की अनूठी पहल
गांव में कई परिवार ऐसे थे, जिनके पास शौचालय बनाने में आने वाले खर्च लायक पैसा नहीं था। ऐसे में गांव के लोग आगे आए। चंदा करके ऐसे दर्जन भर परिवारों को पांच से सात हजार रुपए की मदद दी गई। विजय, सुबिल, मधुकर, जगदीश, कमलेश, लीलाराम, रामलाल आदि ने कर्ज लेकर पक्का शौचालय बना लिया। गांव वालों ने इनकी मदद की। तीन महीने की कोशिशों के बाद हर परिवार ने हैसियत के हिसाब से अपने घर में पक्के शौचालय तैयार कर लिए। पहाड़ी के नीचे धुर नक्सली इलाके का गांव दक्कोटोला आसपास के कई गांवों के लिए मिसाल बन गया है। गांव के लोगों की छोटी सी कोशिश से गांव के हर घर में पक्का शौचालय है। वह भी बिना सरकारी मदद के। गांव के साथ समस्या यह थी कि पास में खुला मैदान नहीं है। एक तरफ पहाड़ है, दूसरी तरफ खेत। बारिश के मौसम में महिलाओं और बच्चों को शौच के लिए बाहर जाने में दिक्कत होती थी। सांप डंस लेते थे। बीमारी फैल रही थी। तीन महीने पहले मई में पंचायत की बैठक हुई। तय किया कि सरकार का मुंह ताकने की जगह खुद ही कोशिश करें। आज इस गांव का एक भी व्यक्ति खुले में शौच करने नहीं जाता।
अंबागढ़ चौकी से करीब 20 किलोमीटर दूर इस गांव की आबादी 400 से कुछ ज्यादा है। मकान हैं करीब 60। ग्राम पंचायत खुर्सीटिकुल के आश्रित गांव दक्कोटोला में मुख्यतः आदिवासी और मरार समाज के लोग रहते हैं। ग्रामीणों ने पिछले कई वर्षों से इन सारी समस्याओं के निपटारे के लिए शासन की राह देखी, पर कुछ न हुआ। गांव में पक्के शौचालय बनाने के लिए राज्य सरकार का पीएचई विभाग योजना चलाता है। सरकार इसके लिए आर्थिक मदद भी देती है। पर पीएचई का कोई अफसर गांव में आया ही नहीं। इस समस्या को लेकर मई को गांव में एक सामूहिक बैठक बुलाई गई। इसमें सभी ने अपने घरों में पक्के शौचालय तैयार करने का संकल्प लिया।
समस्या यह थी कि गांव में कई परिवार ऐसे थे, जिनके पास शौचालय बनाने में आने वाले खर्च लायक पैसा नहीं था। ऐसे में गांव के लोग आगे आए। चंदा करके ऐसे दर्जन भर परिवारों को पांच से सात हजार रुपए की मदद दी गई। विजय, सुबिल, मधुकर, जगदीश, कमलेश, लीलाराम, रामलाल आदि ने कर्ज लेकर पक्का शौचालय बना लिया। गांव वालों ने इनकी मदद की। तीन महीने की कोशिशों के बाद हर परिवार ने हैसियत के हिसाब से अपने घर में पक्के शौचालय तैयार कर लिए।
महिला मंडल की अध्यक्ष रेखा निकोड़े ने बताया की घरों में शौचालय नहीं होने से सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं और बच्चों को होती थी। गांव के आस-पास मैदान नहीं होने से उनको शौच के लिए काफी लंबी दूरी तय करनी होती थी। उस पर सांप-बिच्छू का डर। बारिश में मुश्किलें और बढ़ जाती थीं। शौच के लिए निकले गांव के कई बुजुर्ग घायल भी हो चुके थे।
गांव में कई परिवार ऐसे थे, जिनके पास शौचालय बनाने में आने वाले खर्च लायक पैसा नहीं था। ऐसे में गांव के लोग आगे आए। चंदा करके ऐसे दर्जन भर परिवारों को पांच से सात हजार रुपए की मदद दी गई। विजय, सुबिल, मधुकर, जगदीश, कमलेश, लीलाराम, रामलाल आदि ने कर्ज लेकर पक्का शौचालय बना लिया। गांव वालों ने इनकी मदद की। तीन महीने की कोशिशों के बाद हर परिवार ने हैसियत के हिसाब से अपने घर में पक्के शौचालय तैयार कर लिए। पहाड़ी के नीचे धुर नक्सली इलाके का गांव दक्कोटोला आसपास के कई गांवों के लिए मिसाल बन गया है। गांव के लोगों की छोटी सी कोशिश से गांव के हर घर में पक्का शौचालय है। वह भी बिना सरकारी मदद के। गांव के साथ समस्या यह थी कि पास में खुला मैदान नहीं है। एक तरफ पहाड़ है, दूसरी तरफ खेत। बारिश के मौसम में महिलाओं और बच्चों को शौच के लिए बाहर जाने में दिक्कत होती थी। सांप डंस लेते थे। बीमारी फैल रही थी। तीन महीने पहले मई में पंचायत की बैठक हुई। तय किया कि सरकार का मुंह ताकने की जगह खुद ही कोशिश करें। आज इस गांव का एक भी व्यक्ति खुले में शौच करने नहीं जाता।
अंबागढ़ चौकी से करीब 20 किलोमीटर दूर इस गांव की आबादी 400 से कुछ ज्यादा है। मकान हैं करीब 60। ग्राम पंचायत खुर्सीटिकुल के आश्रित गांव दक्कोटोला में मुख्यतः आदिवासी और मरार समाज के लोग रहते हैं। ग्रामीणों ने पिछले कई वर्षों से इन सारी समस्याओं के निपटारे के लिए शासन की राह देखी, पर कुछ न हुआ। गांव में पक्के शौचालय बनाने के लिए राज्य सरकार का पीएचई विभाग योजना चलाता है। सरकार इसके लिए आर्थिक मदद भी देती है। पर पीएचई का कोई अफसर गांव में आया ही नहीं। इस समस्या को लेकर मई को गांव में एक सामूहिक बैठक बुलाई गई। इसमें सभी ने अपने घरों में पक्के शौचालय तैयार करने का संकल्प लिया।
समस्या यह थी कि गांव में कई परिवार ऐसे थे, जिनके पास शौचालय बनाने में आने वाले खर्च लायक पैसा नहीं था। ऐसे में गांव के लोग आगे आए। चंदा करके ऐसे दर्जन भर परिवारों को पांच से सात हजार रुपए की मदद दी गई। विजय, सुबिल, मधुकर, जगदीश, कमलेश, लीलाराम, रामलाल आदि ने कर्ज लेकर पक्का शौचालय बना लिया। गांव वालों ने इनकी मदद की। तीन महीने की कोशिशों के बाद हर परिवार ने हैसियत के हिसाब से अपने घर में पक्के शौचालय तैयार कर लिए।
हर कोई था परेशान, सांप-बिच्छू का डर भी
महिला मंडल की अध्यक्ष रेखा निकोड़े ने बताया की घरों में शौचालय नहीं होने से सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं और बच्चों को होती थी। गांव के आस-पास मैदान नहीं होने से उनको शौच के लिए काफी लंबी दूरी तय करनी होती थी। उस पर सांप-बिच्छू का डर। बारिश में मुश्किलें और बढ़ जाती थीं। शौच के लिए निकले गांव के कई बुजुर्ग घायल भी हो चुके थे।
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Post By: Shivendra