सोफिया से तो कुछ 370 लोगों को रोजगार मिलेगा। श्री पुसाडकर का कहना है कि अमरावती जिले में अभी भी 2,35,000 हेक्टेयर कृषि भूमि में सिंचाई व्यवस्था बाकी है। इस परियोजना के पूरा होने से पानी की कमी के कारण इस आंकड़े में 23,219 हेक्टेयर की और वृद्धि हो जाएगी।
महाराष्ट्र के अमरावती ताप बिजलीघर का वर्षों से सर्वाजनिक विरोध हो रहा है। विदर्भ क्षेत्र के किसानों को डर है कि यह विद्युत संयंत्र अपर वर्धा सिंचाई परियोजना से पानी लेगा। पिछले दिनों इस विषय में अचानक ही समझौते के आसार नजर आने लगे। राज्य के जलसंसाधन मंत्री अमरावती के नागरिक प्रतिनिधियों और राजनीतिज्ञों से मिले और उन्होंने घोषणा की कि यह ताप बिजलीघर अपर वर्धा के पानी को छूएगा भी नहीं और इसके बदले यह अमरावती शहर के गंदे पानी को साफ कर इस्तेमाल करेगा। नगरवासियों को और भी कई सुविधाएं देने की घोषणा करते हुए मंत्री ने घोषणा की कि इस परियोजना के बाद इस जिले में बिजली कटौती समाप्त हो जाएगी।इस घोषणा का उस वर्ग ने स्वागत किया है जो कि पूर्व में सोफिया पावर कंपनी द्वारा निर्मित किए जा रहे इस बिजलीघर का विरोध कर रहे थे। उन्होंने इसे किसानों की जीत घोषित की। परंतु कुछ ही दिनों में यह बात सामने आई कि इस निर्णय के बजाए समाधान के कुछ नए प्रश्न खड़े कर दिए हैं। इसके बाद फिर से इस परियोजना का विरोध प्रारंभ हो गया है।
क्षेत्रीय विधायक यशोमति ठाकुर का कहना है कि 2640 मेगावाट की निर्माणाधीन परियोजना के प्रथम चरण में 8.7 करोड़ क्यूबिक मीटर पानी की आवश्यकता है। लेकिन अमरावती की शहरी गंदगी अधिकतम 2.4 करोड़ लीटर पानी ही निकल पाएगा। इसलिए बिजलीघर की आवश्यकताओं की पूर्ति जिले के काउडन्यापुर बांध से करनी होगी। बांध का निर्माण अभी प्रारंभ होना है और इधर सोफिया, बिजलीघर तो चालू होने जा रहा है। तब पानी कहां से आएगा।
सोफिया हटाओ संघर्ष समिति ने इस परियोजना के खिलाफ नागपुर उच्च न्यायालय में अपील दर्ज करवाई है। समिति के समन्वयक सोमेश्वर पुसाडकर का कहना है कि मंत्री द्वारा पानी के बारे में लिया गया निर्णय आंख में धूल झोंकना है। अपर वर्धा सिंचाई परियोजना में 2.4 करोड़ क्यूबिक मीटर पानी उद्योगों के लिए सुरक्षित रखा गया हैं पुसाडकर का कहना है अपर वर्धा बांध से अभी भी 2.4 करोड़ क्यूबिक मीटर या उससे भी अधिक पानी इस्तेमाल में आएगा। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा है कि पूरे औद्योगिक कोटे का पानी सिर्फ सोफिया के लिए इस्तेमाल करना हानिकारक हो सकता है। इसके बाद तो 1247 हेक्टेयर में फैले नंदगांव पेठ औद्योगिक क्षेत्र की औद्योगिक इकाईयों के लिए पानी बचेगा ही नहीं। बात सिर्फ पानी की नहीं है। बल्कि रोजगार की भी है। महाराष्ट्र औद्योगिक विकास निगम ने जब भूमि का अधिग्रहण किया था तो 1,178 किसान विस्थापित हुए थे। इन सबसे निगम ने रोजगार का वादा भी किया था। ऐसे में यदि सोफियाकंपनी ही सारे पानी का इस्तेमाल कर लेगी तो सरकार अपने द्वारा किए गए वायदे को किस प्रकार पूरा करेगी?
सोफिया से तो कुछ 370 लोगों को रोजगार मिलेगा। श्री पुसाडकर का कहना है कि अमरावती जिले में अभी भी 2,35,000 हेक्टेयर कृषि भूमि में सिंचाई व्यवस्था बाकी है। इस परियोजना के पूरा होने से पानी की कमी के कारण इस आंकड़े में 23,219 हेक्टेयर की और वृद्धि हो जाएगी। इस परिस्थिति में जिले में कहीं से पानी लिया जाए चाहे वह ताजा हो या दूषित, किसानों को सिंचाई से बेदखल ही करेगा।
नागरिक समूह बिजली कटौती समाप्त करने के आश्वासन से भी संतुष्ट नहीं हैं। विदर्भ में ताप विद्युत परियोजनाओं का विरोध कर रही समिति के श्री विवकेानन्द माथने का कहना है कि विदर्भ अभी भी अपनी खपत से अधिक विद्युत उत्पादित करता हैं हमें सोफिया की जरूरत ही नहीं है। उधर पुसाडकर का कहना है कि यदि अमरावती का सीवेज सोफिया की पानी आपूर्ति हेतु पर्याप्त हो तो भी यह पानी इतनी मात्रा में उसे नहीं मिल पाता।
इस पानी के अन्य भी कई दावेदार हैं। अंबा नाला को ही लें। इसके माध्यम से अमरावती के सुकाली, वानार्शी, हर्तुना और अन्य गांवों की 400 हेक्टेयर भूमि में सिंचाई होती है। इस नाले के पानी को उपचारित कर इसको पुनः शहर में गैर पीने योग्य कार्यों के लिए दिए जाने का प्रस्ताव भी पड़ा है। इस काम को पूरा करने के लिए नगरपालिका ने करीब तीन हेक्टेयर जमीन अधिग्रहित भी कर ली है। इसके अलावा एक विवादास्पद बांध परियोजना भी अमरावती के सीवेज से जुड़ी है। नाले के माध्यम से सीवेज का 2.4 करोड़ क्यूबिक पानी बहकर पेडी नदी में मिलता है। यह मात्रा इसके कुल प्रवाह का 40 प्रतिशत है। इसी योगदान की वजह से ही लोअर पेडी पर बनने वाली 500 करोड़ की सिंचाई परियोजना को न्यायोचित बताया जा रहा है। श्री माथने का कहना है सोफिया के तस्वीर में आने से अब इस पानी के चार दावेदार हो गए हैं। यह भला किस तरह की योजना हुई?
किसान सन् 2005 से लोअर पेडी बांध परियोजना के खिलाफ हैं। यह बांध क्षारीय भूमि को सिंचित करने के लिए बन रहा है। इस भूमि पर सिंचाई से हानि ही होगी। अब सरकार ने अंबा नाले के पानी को सोफिया की ओर मोड़ने का निश्चय कर लिया है तो उन 12 गांवों के जिन किसानों ने अपनी कृषि भूमि लोअर पेडी परियोजना के लिए खाली की थी वे मांग कर रहे हैं कि जब परियोजना ही नहीं है तो हमें हमारी जमीन वापस की जाए।
पेडी धरण संघर्ष समिति के समंवयक अधिवक्ता श्रीकांत खोरगड़े का मत है कि निर्णय में बड़ी चतुराई से यह स्पष्ट नहीं किया गया है अंबा नाला का पानी कहां से लिया जाएगा। अधिकांशतः पानी बांध से ही लिया जाएगा। ऐसे मामले में बांध द्वारा बांध सिंचाई के लिए किए गए वादों का क्या होगा? समिति के सदस्यों का कहना है कि या तो बांध निर्माण निरस्त किया जाए और इसकी ऊंचाई कम की जाए, जिससे कम से कम भूमि डूब में आए।
लोग तो यह भी मानते हैं कि यदि बिना तोड़े-मरोड़े अमरावती की स्थिति को देखा जाए तो यह साफ हो जाएगा कि जिले में इतना पानी ही नहीं है कि वह सोफिया जैसी परियोजना को चला सके।
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