बिजली की तर्ज पर हो पानी का बँटवारा


नदियों को आपस में जोड़ने के लिये जितनी ज़मीन की जरूरत होती है इस योजना में उसकी एक तिहाई ही काफी है। यह छह करोड़ हेक्टेयर ज़मीन की सिंचाई में सहायक हो सकती है, जबकि इससे 60 हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन भी किया जा सकता है। इसके जरिए 70 करोड़ लोगों को निर्बाध पानी की आपूर्ति की जा सकती है।

नदियों के पानी पर सभी का हक है, लेकिन भारत में जिस राज्य से कोई नदी होकर गुजरती है उसका पानी वह पड़ोसी राज्य को देने को तैयार नहीं। पानी को लेकर कर्नाटक तमिलनाडु से उलझ रहा है तो हरियाणा पंजाब से दो-दो हाथ कर रहा है, लेकिन समाधान नहीं मिल रहा है।

नेशनल वाटरवेज डेवलपमेंट (एनएडब्ल्यूएडी) के प्रोफेसर एसी कामराज का कहना है कि नदियों को आपस में जोड़ने की योजना पर काम भारत में संभव नहीं है। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने गंगा को कावेरी से जोड़ने की योजना पर काम शुरू किया था, लेकिन बाद में यह पूरी तरह से ठप हो गया। इंदिरा गांधी ने भी इसे लेकर काम आरंभ किया। 1982 में नेशनल वाटर डेवलपमेंट एजेंसी का भी गठन किया गया। इसमें 30 नदियों को आपस में जोड़े जाने की बात थी, लेकिन कुछ विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने के अलावा इसके तहत और कोई काम नहीं हो सका। कामराज का कहना है कि नेशनल वाटरवेज प्रोजेक्ट के तहत पानी का बँटवारा कम खर्च पर और बगैर विवाद के किया जा सकता है। उनका कहना है कि नदियों को आपस में जोड़ने से पानी एक सिरे से दूसरे सिरे तक बहता है, लेकिन उनकी योजना में ऐसा नहीं है। इसमें जिस नदी के पास अतिरिक्त पानी है वह दूसरी को मिल जाता है। जो पानी सागर में जाकर बेकार होना है वह दूसरे राज्य को मिल जाए तो इसमें किसी को परेशानी नहीं होगी। योजना पावर ग्रिड की तरह से काम करती है, यानी कुछ दिन दिया है तो वापस मिलेगा।

संसाधन व खर्चों की बात की जाए तो यह बेहद मुफीद है। नदियों को आपस में जोड़ने के लिये जितनी ज़मीन की जरूरत होती है इस योजना में उसकी एक तिहाई ही काफी है। यह छह करोड़ हेक्टेयर ज़मीन की सिंचाई में सहायक हो सकती है, जबकि इससे 60 हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन भी किया जा सकता है। इसके जरिए 70 करोड़ लोगों को निर्बाध पानी की आपूर्ति की जा सकती है। इसमें पानी को दूसरी जगह भेजने के लिये पंप करने की जरूरत नहीं होती, क्योंकि बहाव प्राकृतिक होता है। इसके जरिए 18 करोड़ रोज़गार भी सृजित होने की संभावना है। इसमें तीन उत्तर, दक्षिण व सेंटर में वाटरवेज बनाने की जरूरत है।

बाढ़ के पानी का बँटवारा इन तीनों जगहों से हो जाएगा। कामराज का कहना है कि चीन ने 1.2 लाख किमी के वाटरवेज का निर्माण कर रखा है। इससे उसे बहुत ज्यादा फायदा मिल रहा है।

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