बिहार में विकराल होता जल संकट

दो लाख गांव ऐसे हैं जहां पानी की गुणवत्ता इतनी निम्न स्तर की है कि लोग विभिन्न बीमारियों से पीड़ित रहते हैं। बहरहाल, बिहार की राज्य सरकार को जल्द से जल्द पानी की समस्या से छुटकारा पाना होगा। नहीं तो नीतिश सरकार की भी पोल जनता के सामने खुल जायेगी।

मानव अस्तित्व के लिए पानी सबसे जरूरी है लेकिन, आज पूरी दुनिया में जल संकट धीरे-धीरे विकराल होता नजर आ रहा है। जल संसाधनों की प्रचुरता के बावजूद स्थितियाँ विकट हैं। हमारे अपने देश में बिहार की बात करें तो यहां नदियों का जाल बिछा है। फिर भी वह जल-संकट की समस्या से जूझ रहा है। राज्य के पश्चिमी हिस्से में भू-जल स्तर धीरे-धीरे नीचे की ओर जाने लगा है। लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरसने लगे हैं। राज्य का लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग लोगों को पानी उपलब्ध कराने में पिछले वर्ष पूरी तरह विफल रहा था। पिछले वर्ष 20 जिलों को कम वर्षा की वजह से सूखाग्रस्त घोषित किया गया। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने देश के 17 राज्यों में 241 नगरों का सर्वेक्षण किया है। इस सर्वे के मुताबिक सभी शहरों में 90 प्रतिशत जल प्रदूषण की समस्या है। बिहार में गया, जमुई, लक्खीसराय, बेगूसराय आदि जिलों के 46 गांवों के जल नमूनों की जांच की गई। इसमें 1.5 पीपीएम फ्लोराइड पाया गया जो कि सामान्य से अधिक है।

बिहार की राजधानी पटना में कुल 40 गंदी बस्तियां हैं। इन गंदी बस्तियों के दो तिहाई हिस्से में पानी की सुविधा तो है लेकिन, पानी की आपूर्ति तथा स्वच्छता असंतोषजनक स्थिति में है। पटना में शुद्ध भूजल 168 मीटर तक की गहराई में मिलता है। यहां नदी, तालाब एवं ऊपरी सतह का जल पीने के लायक नहीं रह गया है। पटना में पेयजल की आपूर्ति 1918 ई. के आसपास शुरू की गई थी। आज यह व्यवस्था 20 करोड़ लीटर प्रतिदिन की आपूर्ति तक जा पहुंची है। पिछले वर्ष पेयजल आपूर्ति के लिए 160 करोड़ रुपया मंजूर किया गया था लेकिन पिछले वर्ष से ही बिहार में 1024 नलकूप बंद हैं। अब सभी बंद राजकीय नलकूपों को सूखा से उत्पन्न स्थिति से लड़ने के लिए तैयार किए जाने का दावा सरकार कर रही है। जिस तरह से पानी के लिए पूरे राज्य में हाहाकार मची है, उसे देखकर यही लग रहा है कि यहां भी पानी की कमी को लेकर अराजकता फैलने की पूरी गुंजाइश है।

राजीव गांधी राष्ट्रीय पेयजल योजना मिशन के अंतर्गत राज्य के प्रत्येक जिले में पानी की गुणवत्ता की जांच के लिए 33 पेयजल गुणवत्ता प्रयोगशाला स्थापित करने के लिए कुल 76.62 करोड़ रुपये केन्द्र सरकार की ओर से दिये गये थे। पेयजल संकट से उबरने के लिए ही केन्द्र ने पेयजल मिशन योजना के अंतर्गत संचालित त्वरित ग्रामीण जलापूर्ति के तहत बिहार को दूसरी किश्त के रूप मे 76.65 करोड़ रुपये भी जारी किए। इसके बावजूद आज भी प्रदेश में जल संकट कम होने का नाम नहीं ले रहा है। भारत सरकार ने भारत निर्माण योजना के तहत शहरों जैसी सुविधाएं ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध करवाने का मन बनाया है।

परन्तु, 2001 में हुए जनगणना के आंकड़ों से नहीं लगता की भारत सरकार की यह योजना पूर्ण हो पाएगी। क्योंकि इसी जनगणना के आधार पर केन्द्रीय सांख्यकीय व कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के एक सर्वेक्षण के मुताबिक एक लाख 74 हजार गांव में पीने का पानी उपलब्ध नहीं है। दो लाख गांव ऐसे हैं जहां पानी की गुणवत्ता इतनी निम्न स्तर की है कि लोग विभिन्न बीमारियों से पीड़ित रहते हैं। बहरहाल, बिहार की राज्य सरकार को जल्द से जल्द पानी की समस्या से छुटकारा पाना होगा। नहीं तो नीतिश सरकार की भी पोल जनता के सामने खुल जायेगी।
 

Path Alias

/articles/baihaara-maen-vaikaraala-haotaa-jala-sankata

Post By: Hindi
×